• पहली दिल्लगी - शुरुआत से अंत •
(किसी युवा के पहली बार प्यार में पड़ने से लेकर इसे खोने तक के अहसास के सारांश के साथ)
कृष्ण कुणाल कि लिखी कविता
¤पहली दिल्लगी-शुरूआत से अंत¤
ऐ खुली-खुली हवायें,
ऐ रंगबिरंगा समां ।
अब मौका है जी लूँ तुझे ।
तुने ही अबतक लुभाया था मुझे ।।
ना कुछ पाने की है चाहत,
ना कुछ खोने का है डर ।
ऐ जिन्दगी तुझे मैं खुश कर दूँ,
मेरी परिस्तिथीयों को तू ऐसा कर ।।
ये कौन सुनहरे जुल्फो वाली,
है किसका चमकता ये रौशन सा चेहरा ।
ये खुद ही प्रेरणा का श्रोत है खुद में,
उम्मीद की जगाती ज्योत है सब में ।।
कौन भला अब रोकेगा खुद को,
हर्ष-उल्लस सब है उसमें ।
ऐ जिन्दगी क्या मैं झूठ बोल रहा ,
दिखता मुझको रब है उसमें ।।
वो धूप में घनहरी छाया हैं,
हर अदा उसका मुझे भाया है ।
पर ऐ जिन्दगी तू मुझको बता,
जो माँगा था मैंने, क्या ये वही है ?
बहुत मुस्किल हो रहा समझना मुझको,
क्या गलत, क्या सही हैं ।।
ना चाहा था कभी पाना उसको,
ना थी कभी वो मेरी मँजिल ।
मेरी चाह थी कि तुझे खुश कर दूँ,
ऐ जिन्दगी, कुछ मैं ऐसा कर दूँ ।।
ना आस रहा, ना प्यास रहा,
हाँ थोड़ा महबूब की बाँहो मे रास रहा ।
ऐ जिन्दगी, कुछ खोने का गम नही मुझको,
तू जैसा भी रहा, बिलकुल झक्कास रहा ।।
-AnAlone Krishna.
10/06/2017
इसके हर एक stage के अहसास के साथ लिखे गए कविता को पढ़ने के लिए blog के page 'पहली दिल्लगी' में जाएं। Link- http://krishnakunal.blogspot.com/p/poetry_11.html
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