• पहली दिल्लगी - मोती किया गुम •
(प्यार का त्याग करने के अहसास के साथ)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता
*पहली दिल्लगी-मोती किया गुम*
बहके-बहके से थे मेरे ये मंजर,
अब थोड़ा सा सम्भल गया हूँ ।
जी ना पाऊँगा कभी उसके बिना मैं,
पर सुकुन नही वो, समझ गया हूँ ॥
ना चाहा था कभी पाना उसको,
ना थी कभी वो मेरी मँजिल ।
मेरी चाह थी कि तुझे खुश कर दूँ ,
ऐ जिन्दगी, कुछ मै ऐसा कर दूँ ॥
है यह बैरन हवा के झोंको जैसी,
जी करता है मैं खोया रहूँ इसमें ।
ऐ जिन्दगी, जिन्दगी है यह मेरी,
लेकिन वैसी नही कि सुकुन मिले जिसमें ॥
जानता हूँ कुछ खो जायेगा मुझसे,
जिसे ढूँढता रहूँ शायद पूरी जिन्दगी भर ।
मैं जा रहा हूँ अपना वजूद ढूँढने ,
भले जी ना पाऊँगा तुझे मैं अब कभी पर ॥
रहेगा कोई शिकवा गिला मुझसे,
तो ऐ जिन्दगी, मुझे कभी माफ कर देना ।
याद दिलाना मेरी मिठी यादों को,
और उसके आँसुओ को साफ कर देना ॥
आस न रहेगा मुझे इसका कभी क्योंकि,
मैं गलती नही गुनाह कर रहा हूँ ।
ऐ जिन्दगी, तू चाहता है कि मैं खुश रहूँ उसके साथ,
और मैं उसे छोड़कर संघर्ष अपना रहा हूँ ॥
-AnAlone Krishna.
16/07/2017
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