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"Life की परछाई: Chapter 4Chapter 5Chapter 6Chapter 7 • Chapter 8 • Chapter 9" has published on 8th August, 2025. अगर आपको online reading में असुविधा होती है, और आप इसे printed form में पढ़ना चाहते हो, तो post के bottom में दिए 'Download and Print' button को click करके आप उसका printout करवा लेना। जिसमें 'Download and Print' button नहीं है उसके लिए आप 'Google form' को भरकर मुझे send कर दो, मैं आपको pdf भेज दूंगा। इसके अलावा सबसे अंत में UPI QR code भी लगा हुआ है, अगर आप मेरे काम को अपने इक्षा के अनुरूप राशि भेंट करके सराहना चाहते हो तो, आप उसे scan करके मुझे राशि भेंट कर सकते हो। जो आप वस्तु भेंट करोगे, वो शायद रखा रह जाए, परंतु राशि को मैं अपने जरूरत के अनुसार खर्च कर सकता हूँ। ध्यानवाद !
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Life की परछाई : Chapter 8 (Second Birth)| Bilingual story by AnAlone Krishna

● Life की परछाई ●

By AnAlone Krishna

Chapter 8

 (इस chapter में आप इस अंतर को समझोगे कि हर किसी का अनुभव और नजरियाँ एक ही चीज को लेकर कैसे अलग हो सकता है। जिससे आप उनके द्वारा लिए गए फैसलों के पीछे के कारण को अच्छे से समझ पाओगे। आप इसमे किसी को पसंद ना करने के बावजूद उसकी परवाह करने के कारण को भी समझ पाओगे।)

Prelude | Chapter 1 2 | 3 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 

● Life की परछाई ●
Chapter 8 : Second Birth


अभिलाषा अपने bed पे बैठी अपनी यादों की album देख रही थी। वह page पलटी, बाई ओर ऊपर Rony की पहली तस्वीर, उसके नीचे पूरी family के साथ उसकी पहली तस्वीर थी। दाई ओर Rony का जन्मदिन सलोनी के साथ अनाथालय में मनाते हुए था, ऊपर पहले सालगिरह की और उसके नीचे दूसरे सालगिरह की। हां, जब तक सलोनी की शादी हुई, तब तक Rony का दो सालगिरह हो चुका था, और तब तक कुछ और भी ऐसे लम्हें अभिषा को सलोनी के मिले, जिन्हें वो आज भी याद करती है। वैसे तो delivery के बाद अभिषा थोड़ी unhealthy हो गई थी, और बच्चों का शरीर तो नाजुक होता ही है। इसलिए अभिषा और रॉनी दोनों बार-बार बीमार पड़ते रहते थे। जब भी किसी भी परिवार में माता-पिता को कोई viral fever होता है, तो वह बच्चों को भी हो ही जाता है। या फिर अगर बच्चे बीमार पड़ते हैं तो उनके ठीक होते-होते अधिकांश समय मां भी बीमार हो ही जाती है। ऐसा होने का कारण उनके शरीर का genes होता है। क्योंकि माता-पिता का ही genes बच्चों में आया होता है, तो बीमारियों के लिए एक शरीर से दूसरे में जाना आसान हो जाता है। जब सलोनी की शादी जल्दबाजी में तय हो रहा था, अभिषा अपने मायके में थी। तो वह सलोनी के साथ खड़ी थी। पर जब दो साल का Rony अचानक मौसम के बदलने से बीमार पड़ा, तो उसे doctor के पास ले जाया गया। वहां से उदय अभिषा को अपने साथ ले गया, और उसके बाद दो दिन अभिषा भी बीमार रही। तब तक इधर सलोनी की शादी की सारी बात तय हो गई। फिर खराब मौसम की वजह से Rony बार-बार बीमार हो रहा था, इसलिए वह अपनी बचपन की सहेली के शादी में भी नहीं आ पाई। 


वैसे तो दो बातें होती हैं- पहली यह कि पति-पत्नी के बीच के प्रेम की वजह से उनकी संताने पैदा होती है, और दूसरी यह कि पति-पत्नी के द्वारा आपस में उत्पन्न की गई संतानों की वजह से उनके बीच प्रेम होता है। जब दो लोग मिलते हैं, साथ आते हैं, उनके बीच की घनिष्ठता तब बढ़ती है जब वो मिल कर एक मत के साथ कोई ख्वाब देखते हैं, उसे पूरा करने के लिए एक साथ एक-दूसरे की मदद करते हुए उन्हें सहारा देते हुए कोशिशें करते हैं, और उन प्रयासों और पलो को एक साथ जीते हैं। जब दो व्यक्ति प्रेम में बंधते हैं, उनकी सोच, व्यवहार, ख्वाब मिलते हैं तभी वो एक दूसरे के साथ commitment/शादी करते हैं। वो साथ मिलकर अपने-अपने परिवार और समाज के साथ संघर्ष करते हैं, और जब तक वो जीतते हैं, तब तक उनके बीच की घनिष्ठता बढ़ जाती है। फिर उनके बीच की घनिष्ठ प्रेम की वजह से उनकी संताने होती है। पर इसके विपरीत, जब दो लोग अपने परिवार की खुशी के लिए विवाह के बंधन में बंधते हैं, उस वक्त ना ही वो एक-दूसरे के सोच को जाने होते हैं, ना वो एक-दूसरे के ख्वाबों को समझे होते हैं, वो एक-दूसरे के व्यवहार को भी अपनाए नहीं होते हैं। शादी के बाद या तो पति पत्नी में ये चीजें आपस में मिलती है, या तो कभी नहीं भी मिलती है। तब ऐसे में जब ये एक-दूसरे के साथ संतान को जन्म देते हैं, तो फिर उस संतान का देखभाल, उसकी परवरिश पति-पत्नी को साथ मिलकर करना होता है। ऐसे में उन्हें एक दूसरे के साथ मिलकर एक दूसरे के सोच को अपनाते हुए, उस बच्चे के भविष्य का ख्वाब देखना पड़ता है और उन्हें साथ मिलकर उस बच्चे की परवरिश करने के लिए अपने-अपने कर्म को करना पड़ता हैं। इसके कारण फिर पति पत्नी में प्रेम हो ही जाता है। अब पति-पत्नी के प्रेम की वजह से संताने हो, या संतानों के वजह से पति पत्नी में प्रेम हो, वैसे तो दोनों ही खूबसूरत लगता है। पर मुझे दोनों सही नहीं लगता है। मैं सिर्फ पति-पत्नी के प्रेम से उत्पन्न हुई संतानों को ही बेहतर मानता हूँ।
इसका मैं उदाहरण देता हूँ कि जिस घर में पति-पत्नी के प्रेम से संतान पैदा हुआ होगा, अगर पति घर आकर अपने बच्चे को धूल मिट्टी में खेलते देखेगा तो उसे गोद में उठा लेगा। वह समझेगा कि उसकी पत्नी busy होगी, तो वह उसपर क्रोध नहीं करेगा। क्योंकि उस संतान से पहले वह अपनी पत्नी को प्रेम किया होगा, वह उसे जानेगा और समझेगा भी। पर जिस घर में बिना प्रेम के संतान पैदा हुआ हो, जब पति घर वापस आकर अपने बच्चे को धूल मिट्टी में खेलता देखेगा तो अपनी पत्नी को डांटेगा। हो सकता है कि वो गाली भी दे या मारे भी, वो उसके स्वभाव पर निर्भर करता है। क्योंकि वह प्रेम अपने अंश/बच्चे से करता है। अपनी पत्नी से वह प्रेम इसलिए जताएगा क्योंकि वह उसके बच्चे की मां है, उसके बच्चे को जन्म दी है, और उसकी परवरिश कर रही होगी। इसलिए उस घर में पति अपने पत्नी से सीधा प्रेम नहीं करेगा बल्कि अपने बच्चे की वजह से प्रेम करेगा। इसके उल्टा हो सकता है कि पत्नी का प्रेम भी इसी तरह का हो। इसलिए मैं दो लोगों के बीच इस तरह के प्रेम को कम महत्व देता हूँ।
पर एक ना एक दिन तो वो बच्चे बड़े हो ही जायेंगे, फिर उनके बीच का प्रेम का स्वरूप कैसा होगा ? जो पति-पत्नी अपने प्रेम में अपने बच्चों को जन्म दिए होंगे, उनके बीच का प्रेम और ज्यादा घनिष्ट हो चुका होगा। तो फिर अगर उनके बच्चे अपने life में आगे बढ़ना चाहे, अपना दाम्पत्य जीवन शुरू करना चाहे, तो वो अपने बच्चों को स्वतंत्र छोड़ देंगे। ठीक वैसे ही जैसे चिड़िया या अन्य जानवर अपने बच्चों को बड़े होने के बाद अपना अलग जिंदगी शुरू करने के लिए अपने बच्चों को स्वतंत्र छोड़ देते हैं। क्योंकि अगर उनके बच्चे उनसे स्वतंत्र हो भी जाए, तो भी उस पति-पत्नी के बीच आपस का प्रेम और एक-दूसरे का साथ हमेशा उनके जीवन के आखिरी स्वांस तक रहेगा। परन्तु जिस घर में पति-पत्नी के बीच का प्रेम बच्चों की वजह से था, वह बच्चे जब बड़े हो जाएंगे और स्वतंत्र होना चाहेंगे तो वो पति-पत्नी उन्हें स्वतंत्र आसानी से होने नहीं देंगे। क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता से जैसे ही स्वतंत्र होंगे, फिर उनके बीच का प्रेम शायद ही बचे। उन्हें भय होगा कि इसके बाद वो एक-दूसरे का शायद ख्याल नहीं रखेंगे। इसलिए वो अपने बच्चों को भावनात्मक तौर पर और tightly पकड़ कर रखने का कोशिश करेंगे। वो अपने बच्चों के life का decisions लेने का कोशिश करेंगे और एक दुसए से fight करेंगे। ताकि उनके बच्चे इस अहसास के साथ उन्हें अत्यधिक महत्व दे और प्रेम करे, कि उनके वजह से उनके बच्चो की life में खुशियां है। और जिसके चलते उनके बच्चों के साथ-साथ पति/पत्नी भी एक-दूसरे की कद्र करे, प्रेम करे और ख्याल रखे। Because, if someone loves anyone; they care each and everything or everyone, who have love for their beloved; and to whom their beloved loves and cares. आप समझ ही रहे होंगे कि माता-पिता क्यों अपने बच्चों के life में इतना ज्यादा interfere करते हैं।


जब रॉनी होने वाला था, उदय अभिषा को बोला था, "हमारे समाज में कई ऐसे घर के बच्चे होते हैं, जिन्हें अच्छी सुविधाएं नहीं मिलती उनके खिलने के लिए। और जिन्हें बेहतर सुविधा मिलती है, वो उस चीज का कद्र नहीं करते। मैं जितना पढ़ा हूं, तुम्हें भी लगभग उतना पढ़ने का मौका मिला। मेरे पास जितने मौके हैं अपने life में कुछ करने का, तुम्हारे पास भी लगभग उतने ही मौके हैं। कई लड़कियां ऐसी है जिन्हें भी हमारे जितना ही मौके मिले। पर वो अपने पिता की जिंदगी भर की कमाई, उनके परिवार के जीवन भर के त्याग को अपने happily married life के लिए भुला देती रही है। तुम्हारे पिता तुमसे नाराज थे कि तुम अपने career पर ध्यान देने के बजाए मुझसे शादी की। तुम चाहो तो तुम इसके बाद अपने career पर ध्यान दे सकती हो, मैं बच्चे को संभाल लूंगा।"

अभिषा उदय के इस support को देखकर उसको कहती है, "हाँ आप permission नहीं भी देते तो भी मै यह करती ही। पर जब तक हमारा baby school नहीं जाने लगेगा तब तक मैं किसी और के भरोसे इसे नहीं छोड़ सकती हूँ। आप खुद का ख्याल ढंग से रख नहीं सकते हो तो baby का क्या ही रखोगे !"

इसपर उदय उदास होने का बनावटी सकल बनाता है, और आगे अभिषा कहती है, "एक बार यह school आने-जाने लगेगा और इसके आने, ले जाने का काम आपका होगा। मैं अपने काम पे जाऊंगी, आपको दिन भर इसे देखना होगा। बस तब तक जितना आपको अपने life में हांथ-पैर मारने है मार लो।"

अभिषा ऐसे कह रही थी कि जैसे उसके लिए काम रखा हुआ था और उदय अपने लिए ढंग का काम ढूंढ नहीं पाता। खैर, ये सब तो पति-पत्नी के बीच के नोक-झोंक की बात है।

उदय कुछ सोचते हुए गंभीर होकर अभिषा को कहता है, "अगर हमें यह चाहिए, कि हमारे बच्चे को हमेशा इस बात का अहसास रहे कि उसे life में जो कुछ भी मिल रहा है, वो बहुतों को नहीं मिलता है। इसलिए उसे अपने life में मिले सभी चीजों का कद्र करना चाहिए। तो उसके लिए हमें क्या करना चाहिए ?"

अभिषा कहती है, "तो उसके लिए उसे हमें वो अहसास करवाना होगा कि हर किसी के पास वो सब नहीं है, जो उसके पास है।"

उदय अभिषा को कहता है, "मैं क्या कहता हूँ, इसके हर एक खुशी के मौके पर इसे अनाथालय ले जाएंगे। ताकि ऐसे बच्चे जिन्हें परिवार और उनका प्यार नहीं मिलता है, इसको अहसास भी हो, और उसे अपनी खुशियाँ दूसरों के साथ बांटने की आदत बचपन से ही हो।"

इसलिए अभिषा शुरू से ही रॉनी को अनाथालय लेकर जाया करती थी।


जब रॉनी के होने के बाद अभिषा पहली बार अनाथालय गई थी, तब वहां की Guardian mother अभिषा को कृष्ण के लिखे poem "My Second Childhood" को पढ़ते हुए उसे समझाती है-

"Through this journey of beautiful time,

I should passed my curious ride.

Life is going with giving me proper chime,

A new life, a new childhood fall at my side."

"इसमें कवि जीवन की यात्रा में उत्साह और जिज्ञासा के साथ आगे बढ़ने की बात कर रहा है। जिसमें अपने बच्चे के जन्म को वह अपने जीवन में नए बचपन को पाने की बात करता है।"

"Everything is changed in way of so furious.

I found reasons of my rudeness and make them hide.

I wants to be a good father so me get serious,

He'll become a good man so have to make his love wide."

"इन पंक्तियों में कवि उसके बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाना चाहता है। इसलिए वह गंभीरता के साथ जल्द से जल्द अपने व्यवहार को समझकर अपनी बुराइयों को दबाना/छुपाना चाहता है। ताकि वह अपने बच्चे को बहुत सारा प्यार दे सके।"

"People whom I shown bad behavior, he'll see it through them.

If anyone will hate him, it's me to have shame.

I wants to care him that way, in which he'll lives at a good fame.

My chest will become broad after hear, his works and his name."

"कवि कहता है कि वह जिनके साथ भी कभी बुरा किया है, वो उसके बच्चे को नापसंद करेंगे। अगर उसके गलतियों के कारण उसके बच्चे को किसी का नफरत देखना पड़ेगा, तो उसे खुद पर शर्म आएगा। इसलिए वह दूसरे stanza में खुद को जल्द से जल्द बदलने की बात कर रहा है।"

"This is not easy, my life is so busy,

I have to give him proper time, and not behave as fussy.

He'll learn from every person, who will present at his surrounding.

He'll learn from all good and bad, which will happen at his arounding."

"कवि कहता है कि उसके पास वक्त नहीं है पर उसे अपने बच्चे के लिए वक्त निकालना होगा। क्योंकि वह यह जानता है कि वह जैसा माहौल अपने बच्चे को देगा, अच्छा या बुरा, उन सभी से उसका बच्चा कुछ ना कुछ सीखेगा।"

"Life giving people approximately three opportunities,

To survive childhood as a son, as a father ,and as a grandfather.

These all childhood have never shown same equalities,

In live, give ,and seen, completing wishes is mostly harder."

"कवि समझाने की कोशिश करता है कि जिंदगी में तीन बार बचपन जीने का मौका मिलता है- पहले अपना, फिर अपने बच्चों का, और फिर अपने बच्चों के बच्चों का। यह तीनों बचपन अलग-अलग होते हैं। एक में लोग वो बचपन जीते हैं जो उनके माता-पिता उन्हें देते हैं। दूसरे में लोग वो बचपन जीते है जैसा वो अपने बच्चों को देते हैं। तीसरे में लोग वैसा बचपन जीते और देखते हैं जैसा उनके बच्चे अपने बच्चों को देते हैं। इसमें अपने बच्चे की परवरिश को वह सबसे कठिन कहता है। क्योंकि अगर अपने बच्चे को उससे बेहतर बचपन ना दे पाया जैसा उसे जीने को मिला, या वह ऐसी परवरिश ना दे पाया कि उसके बच्चे अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाए, तो वह खुद को failure मानेगा।"

Guardian Mother अभिषा को समझायी कि, "बच्चे पैदा करना कोई महान काम नहीं होता है। उन्हें अच्छी परवरिश देना, एक अच्छी जिंदगी देना, यह सबसे ज्यादा महत्व रखता है। बच्चे बड़े होकर अगर अपने अभिभावकों का कद्र करते हैं, तो इसलिए नहीं कि उन्होंने उन्हें जन्म दिया था, बल्कि उनसे मिले प्यार की वजह से वो उनका सम्मान करते हैं।"


आप Chapter 4 के अंत को याद करो, जब कृष्ण आकर उदय को अपनी कविता सुना रहा था। उदय वहीं था जब guardian mother अभिषा को कृष्ण की कविता के भाव को समझा रही थी। वह उनको अपने दोस्त की कविता समझाते सुनकर सिर झुकाकर मंद-मंद मुस्कुराया। उसके बाद सलोनी बच्चों के साथ हँसते खेलते आई। अनाथ बच्चियां अभिषा को देखी, उसे नफरत करने के अंदाज में गुस्से से घूरी और वहां से बिना कुछ कहे चली गई। वो ऐसे क्यों behave की ? तो इसका जवाब है उनकी उम्मीद, वो अभिषा के गोद में उसका अपना बच्चा देखी तो उन्हें यह अहसास हुआ कि वो अभिषा के लिए भी अपनी नहीं है, पराई है। जिसके वजह से उन्हें अभिषा का प्यार जताना, भी उन्हें परायापन का अहसास दिला दिया। और छोटे बच्चे तो expressive होते ही हैं, तो वो express कर दी। दूसरा कारण यह भी था कि अक्सर couples, जिनके बच्चे नहीं होते, वो अनाथालय में बच्चों को गोद लेने आते थे। जब वो बच्चियां सलोनी से यह जानी कि अभिषा अपने बच्चे के जन्म की खुशी उनके साथ बांटने आई है, तो उन्हें खुशी नहीं हुई। वो समझी कि अब अभिषा भी उनके लिए नहीं आएगी। ऐसे बच्चे शायद ही किसी से उम्मीद रखते हैं, और इनपर कोई तरस खाता है, तो वो तुरंत इसे समझ जाते हैं। क्योंकि आँखें खोलते ही वो पहला अहसास जो देखते हैं, वो लोगों का तरस ही होता है। 


वह एक दौर था जब वैसी बहुएं सास बन रही थी जिन्हें अपनी सास से बहुत सताया गया था, उनसे भर जवानी नौकरों की तरह काम करवाया गया था, कम काम करने पर खाना नहीं दिया जाता था, उनपर हुकुम चलाया जाता था, और उन्हें बात-बात पे नीचा दिखाया जाता था। वक्त में हर चीज के बदलाव का एक दौर आता है। यह वही दौर चल रहा था जब ऐसी बहुएं सास बन रही थी, जो ये सब देखी, और यही सब सीखी। पर उनके घर में आ रही नई बहुएं, जैसे कि अभिषा, पढ़ी-लिखी और आत्मसम्मानी लड़कियां थी। जो अपने से बड़ों का सम्मान तो करती थी, पर गलत का विरोध भी करती थी, और अपने आत्मसम्मान के लिए अड़ भी जाती थी। इसलिए अभिषा की सास का उसपर control नहीं चल रहा था। जिसके वजह से उसकी सास का ego को ठेस पहुंच रहा था, और अभिषा चाह कर भी अपनी सास का दिल नहीं जीत पा रही थी। पर जब अभिषा को रॉनी हुआ, अभिषा की सास भी अभिषा की देखभाल करने लगी। करती भी क्यों ना, अभिषा उसके बेटे उदय के वंश को आगे जो बढ़ा रही थी। वह उसके बेटे के बेटे की मां थी। उसके पोते रॉनी के सेहत के लिए अभिषा का भी स्वस्थ रहना जरूरी था। पर क्या वो अभिषा को पसंद करने लगी थी, तो नहीं। अभिषा वो थी जिसके लिए उसका बेटा उसके खिलाफ गया, तो अभिषा को तो वह जिंदगी भर पसन्द नहीं कर पाएगी। वह अभिषा का care तो करती थी, पर उसे पसंद नहीं करती थी। Because, अगर किसी को किसी से प्रेम होता है, तो वह हर उस वस्तु और इंसान की फिक्र करने लगता है जिसका उसका प्रिय(beloved) परवाह करता है, या जो उसके beloved की परवाह करते हैं। चाहे वो उन्हें पसंद हो या ना हो। 


कहा जाता है कि अपने बच्चों से ज्यादा प्रिय उनके बच्चे होते हैं। यानी कि माता-पिता से ज्यादा प्रेम बच्चों को दादा-दादी करते हैं। अभिषा की सास रॉनी को बहुत प्रेम करती थी, और उसके प्रेम को देखकर अभिषा की ननंद और देवर भी रॉनी को बहुत प्रेम करते थे। और क्योंकि वो सभी रॉनी को बहुत प्रेम देते थे, चाहे अभिषा की सास उसे indirectly ताने मारती, या चाहे उसकी ननंद और देवर उसका disrespect करते, वह सब ignore कर देती थी। पर वो सभी धृष्टता करना रॉनी के बचपन से ही शुरू कर दिए थे। वो रॉनी को अभिषा के खिलाफ बचपन से ही बहकाना शुरू कर दिए थे। यही वजह है कि रॉनी पर अभिषा या उदय दोनों में से किसी का छवि नहीं है। रॉनी पर जो उसकी दादी का बचपन से प्रभाव रहा उसी की वजह से रॉनी अभिषा से बाद के generation का होने के बावजूद decisions लेने में, खुद को express करने में संकोच करता है। उसमें हिम्मत नहीं अपने प्यार, स्मृति के लिए stand लेने का, या उसे वह भरोसा दिलाने का जिससे स्मृति अपने घर में रॉनी के बारे में बता सके।

[reference, "Hope Without Hope" and "Life की परछाई: Prelude"]


जब रॉनी तीन साल का होने वाला था, तक वह एक दिन रोते-रोते अपनी फुआ के पास गया। वह इसे बोला, "पुआ, मोटू हमको दकेल दिआ। ऊ सात नय केलने देता हे।"

उस वक्त उसकी दादी उसके सामने ही थी।

उसकी फुआ रॉनी का हाँथ पकड़कर बोली, "ऐसे कैसे नहीं खेलाएगा! चल देखते हैं।"

पर उसकी दादी हाँथ छुड़ा दी, और रॉनी को बोली कि, "क्या जरूरत है उनके साथ खेलने जाने का ? अपने माँ-बाप को जाके बोलो भाई-बहन देने को। दूसरे के भाई-बहन के साथ खेलने जाएगा तो वो सब तो भगाएंगे ही ना...।"

रॉनी की फुआ समझ गई। वो दोनों सीधे मुँह अभिषा और उदय को और एक बच्चा करने के लिए नहीं बोल सकती थी। इसलिए वो रॉनी के अबोधता का फायदा उठा रही थी, उसे बहका रही थी। ताकि रॉनी जाकर अभिषा और उदय के पास जिद्द करे, और ऐसा हुआ भी। जब शाम को उदय घर आया तब रॉनी अभिषा के पास जिद्द कर रहा था। उदय को देखकर अभिषा बोली, "देखिए ना, कौन इसको उल्टा पट्टी पढ़ा दिया है, दोपहर से जिद्द कर रहा है कि इसको भाई-बहन चाहिए।"

उदय यह सुनकर रॉनी को कहता है, "बदमाश, किससे ऐसा उल्टा-पुल्टा तुम बात सीखता है ? रुक तुमको अभी हम बताते है।"

और उदय को हाँथ उठाता देख रॉनी डर कर वहां से भागकर अपनी दादी की साड़ी में छुप जाता है। जब रात होता है, और अभिषा रॉनी को खाना खिलाने की कोशिश करती है, रॉनी तब भी बहुत नखरे करता है। पर एक महीना कम तीन साल के रॉनी को भला कोई कैसे समझाए, उदय उस समय रॉनी को बहलाता है कि, "अभी रात हो गई है ना, अभी लाने के लिए कैसे जाएंगे ? कल जब सुबह होगी तब हमलोग लाने चलेंगे।"

फिर जब रॉनी खाना खत्म किया तब उसकी दादी और फुआ वही खड़ी थी। उसकी फुआ बोली, "चलो, आज तुम हमारे साथ सोओगे।"

रॉनी उन्हें बोला, "मुजे मम्मी-पापा के पाच छोना हे।"

तब रॉनी की दादी उससे कहती है, "तुम अपने मम्मी-पापा के साथ सोओगे ना, तो वो तुम्हें भाई-बहन कभी भी लाकर नहीं देंगे। इसलिए जब तक तुम्हारे लिए भाई या बहन ना लाए, उनके साथ मत सोना।"

यह सुनकर छोटा रॉनी उदय और अभिषा को देखकर अपना मुँह गुब्बारे की तरह फुलाता है, और उनके साथ चला जाता है। और यह सब देख कर अभिषा और उदय को समझ में आ जाता है कि रॉनी को कौन बहकाया है।


रात में जब अभिषा और उदय सोने के लिए गए, अपने bed पर बैठकर अभिषा पूछी, "आप क्या चाहते हैं ? क्या आपको भी दूसरा बच्चा चाहिए ?"

इसपर उदय उससे कहा, "तुम कोई बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं हो। जब रॉनी हुआ, तब तुम्हारा health बहुत ज्यादा खराब हुआ। अगर हम अगला बच्चा करने की कोशिश करेंगे तो फिर से तुम्हारा health पर असर पड़ेगा। मेरे लिए बच्चे से ज्यादा तुम important हो। अगले बच्चे की चाह से अच्छा, तुम healthy रहो, और रॉनी भी healthy रहे। सिर्फ बच्चे कर लेने से कुछ नहीं होता है। ऐसे कई लोग है जो गैरजिम्मेदार है, बस बच्चे पैदा कर से समाज में आबादी बढ़ाते हैं और उनके बच्चों को health, education, career, और अच्छी परवरिश में से कुछ नहीं मिलता है। उनकी हालत अनाथालय के बच्चों से भी बुरी होती है। कहने को तो उन बच्चों के मां-बाप होते हैं, पर ऐसे लोग अपने बच्चों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करते हैं। हमारा भले ही एक बच्चा रहे, पर हम उसे अपने स्तर से सबसे अच्छा भविष्य देंगे।"

यह सुनकर अभिषा बोली, "हाँ पर, उसके साथ कोई खेलने कूदने के लिए तो चाहिए ना...।"

तब उदय अपने होंठ अभिषा के बेहद करीब ले जाकर बोला, "क्या सिर्फ खून से ही कोई भाई-बहन होते हैं, या  इंसान का व्यवहार लोगों को अपना बनाता है ? हम अपने बच्चे को कैसी परवरिश दे ? लोगों मे अपना और पराया का भेद करने वाला या अपने अच्छे व्यवहार से सभी को अपना बना लेने वाला ? हाँ, अगर बच्चे की चाह बस बहाना है, तुम्हें कुछ और चाहिए तो अलग बात है।" और खुद को उदय अभिषा के और भी करीब ले जाता है। तब अभिषा उदय को देखकर और बातें सुनकर शर्माती है, और उसे अपने हाथों से दूर धकेलती है।

अभिषा चादर ओढ़कर लेट जाती है और कहती है, "सो, जाइए चुपचाप।" और शर्माकर चेहरा ढंक कर सो जाती है।


अगले दिन जब सुबह हुई, तो रॉनी बात को भूल गया, और उदय भी काम पे चला गया। पर जब दोपहर में रॉनी पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेल रहा था, और अभिषा को आंगनबाड़ी सेविकाएं अपने साथ ले गई मदद करने के लिए, तब अभिषा की सास और ननंद को फिर से मौका मिला रॉनी को बहकाने का। शाम को जब उदय और अभिषा आते हैं तो उस दिन रॉनी उन्हें परेशान कर देता है। वह ठीक से रात में खाना भी नहीं खाया और खुद से रूठ कर वहां से उठकर अपनी फुआ के कमरे में जाकर सो भी गया। जब अभिषा उसे लेने गई, तो वह बिस्तर को कसकर पकड़ लिया और अभिषा के साथ जाने से मना कर दिया। फिर उसके अगले दिन रॉनी को उसकी फुआ सुबह उठते ही रात की बात याद दिला दी, ताकि रॉनी अभिषा और उदय को सुबह से ही परेशान करे। जिसके वजह से उदय उस दिन काम पे नहीं जा पाया। उदय और अभिषा, दोनों मिलकर रॉनी को बहुत समझाने की कोशिश किए, कि एक दिन में बच्चे पैदा नहीं होते। पर रॉनी समझता ही नहीं, उसके उल्टा वहां बगल में खड़ी रॉनी की फुआ उसे और बहकाती है। आखिर छोटे बच्चों को आप कैसे समझा सकते हो कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं। तब अभिषा चालाकी दिखाते हुए रॉनी को बोली, "हमें नहीं पता कि एक दिन में बच्चा कैसे पैदा होते हैं। हम तो यही जानते हैं कि जब भगवान जी खुश होते है, तब बच्चे घर में बच्चे देकर जाते हैं। तुम्हारी फुआ को जाकर बोलो, कि मम्मी को नहीं पता कैसे एक दिन में बच्चे पैदा होते हैं। उन्हें आता है ना, इसलिए उनसे बोलो कि आप ही करवा दो।"

इससे अभिषा की ननंद फंस गई, अब वो रॉनी को कैसे समझाएगी ? तब भी उसकी सास उनके मजे लेने के लिए रॉनी को बोलती है, "तुम्हारी फुआ भगवान से मांगेगी तो उसका ना बच्चा होगा, वो तुम्हारे भाई-बहन कैसे होंगे ? अपने मम्मी-पापा को बोलो कि भगवान बच्चा नहीं लाकर दे रहे हैं तो वो भगवान से जबरदस्ती मांग कर तुम्हारे लिए भाई-बहन लाए।"

यह सुनकर उदय का पारा चढ़ता है। वह गाड़ी निकालता है, और अभिषा को कहता है, तुम रॉनी को लेकर गाड़ी में बैठो। उदय की माँ उदय से पूछती है, "तुम बाबू को लेकर कहाँ जा रहे हो ?"

उदय गुस्से में बोलता है, "भगवान के पास, इसको भाई-बहन चाहिए ना...!"

उदय की माँ मुस्कुराते हुए बोलती है, "पर बाबू को लेकर क्यूँ जा रहे हो ? इसके लिए तुम दोनों को अकेले जाना चाहिए ना...!"

उदय इसका कोई जवाब नहीं देता है, और गाड़ी चालू करके वहां से चला जाता है। उसकी मां को कोई अंदाजा नहीं हुआ, कि अब उदय क्या करने जा रहा है।

जब उदय गाड़ी को चला रहा था, तब अभिषा पूछी, "हमलोग कहाँ जा रहे हैं ?"

उदय रॉनी को डराने के लिए बोला, "हमलोग भगवान से एक अच्छा बच्चा मांगे थे। पर यह तो बहुत जिद्दी और शैतान बच्चा है, इसको हमलोग वापस करने जा रहे हैं।"

यह सुनकर रॉनी अभिषा को डर से कस कर पकड़ लिया।


उदय गाड़ी को अनाथालय के gate के पास रोक कर उतरा। वह रॉनी को उतारने की कोशिश किया, पर रॉनी डर से अभिषा को कस के पकड़े रहा, और नीचे नहीं उतरा। अनाथालय के entry hall में Guardian Mother उदय को वहां जाने का करना पूछी, और उदय बोला, "रॉनी जिद्द कर रहा था कि उसे भाई-बहन चाहिए। अब एक दिन में इसकी जिद्द को कैसे पूरा करे ?"

Guardian Mother पूछी, "तो यहां बच्चा गोद लेने आए हो ?"

उदय casually कहता है, "अरे नहीं। मैं चाहता हूँ कि यह रिश्तों को खून से नहीं, बल्कि व्यवहार से बनाना सीखे। यहां यह खेले-कूदे, और यहां के बच्चों को अपने भाई-बहन की तरह माने।"

Guardian Mother उदय को डांटते हुए बोली, "तो तुम्हें यह बच्चों का play ground या park लगता है, जहां अपने बच्चे का दिल बहलाने के लिए ले आए ? क्या करोगे जब इसे किसी का साथ बहुत ज्यादा अच्छा लगने लगेगा और उसे अपने साथ घर ले जाना चाहेगा ?"

उदय मुस्कुराते हुए अपनी गलती पर पछतावा करते हुए बोलता है, "I'm sorry mother, मुझे यह ध्यान में ही नहीं आया।"

Guardian Mother उसे डाँटते हुए बोली, "अपने बच्चे को ले जाओ, और इस तरह उसे लेकर यहां कभी मत आना।" तब उसकी assistant आगे आई और Guardian mother के कान में कुछ बोली। Guardian Mother अभिषा को बोली, "तुमलोग यहाँ आ ही गए हो तो मेरे साथ चलो, मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है।" और वह उन्हें दो दिन की एक छोटी बच्ची के पास ले गई। Assistant उस बच्ची की मां के द्वारा छोड़े गए उसके letter को लाने गई, और mother teacher इन्हें बताई, "कल afternoon में इसकी अभागी माँ इसे यहाँ छोड़कर गई है। एक ऐसे दंपत्ति हैं जिन्हें बच्चा नहीं हो पा रहा है, इसलिए वो किसी बच्चे को गोद लेना चाहते हैं। फिलहाल वो दूसरे शहर गए हुए हैं और तीन दिन बाद लौटेंगे। तुम चाहो तो इसे गोद ले सकते हो।" 

तब तक assistant अभिषा को letter लाकर थमाई, और उदय बोला, "आपको मै बता चुका हूँ कि हम यहाँ गोद लेने ले लिए..." पर अभिषा उदय के हाँथ को पकड़कर उसे इशारा करके रोक दी। वह letter को खोल चुकी थी, उसे उसकी handwriting जाना-पहचाना लगा। Envelope के अंदर कुछ और भी था जो envelope को छूने से उसे महसूस हुआ, वह उसे निकाली, तो उसमें ठीक वैसा ही locket था, जैसा वह अपने गले में पहनी हुई थी। अभिषा उस letter को पढ़ना शुरू की, उसमें लिखा था- 


"मैं तुमसे यह नहीं कहूँगी कि मैं अच्छी हूँ। क्योंकि अगर मैं होती, तो मैं तुम्हें छोड़ने के बजाए अपने पास रखने की कोशिश करती। तुम्हें मैं बहुत प्यार करती, और हमेशा तुम्हारे साथ रहती। पर मैं उतनी भी बुरी नहीं हूँ कि तुम मुझे तुम्हें छोड़ने के लिए नफ़रत करो। मैं तुम्हारे लिए यह पत्र लिख रही हूँ, ताकि तुम यह समझ पाओ कि मैं तुम्हें क्यों छोड़ रही हूँ।

मैं बचपन से ही ख्वाब देखने वाली लड़की थी, और यही मेरे life का सबसे बड़ा गुनाह था। मैं पढ़ना चाहती थी, और अपने life में कुछ करना चाहती थी। जब मुझे यह समझ में आया कि मेरा परिवार मुझे मेरे ख्वाब को पूरा करने में सहयोग करने में असमर्थ है, तब मैं बच्चों को tuitions पढ़ाकर अपना खर्च निकालना शुरू कर दी। मैं अपने दम पर भी अपने life में कुछ बन सकती थी। पर मैं जिस समाज में रहती थी, उसमें लड़कियाँ अपने खुद के identity के लिए मेहनत नहीं करती है। मैं बेवकूफ थी जो अपनी खुद की identity बनाने के लिए कोशिश कर रही थी। और मुझसे उससे भी बड़ी गलती यह हुई कि जब मेरे बार-बार मना करने के बावजूद मेरे घर में मेरे लिए रिश्ता ले कर आया गया, तब मैं अपने घरवालों को busy देखकर चुपके से उन्हे बिना बताए उस शादी से बचकर भाग गई। मैं अपने घर से अपने पढ़ाई के लिए hostel चली गई। मेरे पीठ-पीछे लोग गलतफहमी में यह अफवाह उड़ा दिए कि मैं किसी लड़के के साथ भाग गई हूँ। जबकि मेरे life में ऐसा कोई लड़का नहीं था। मेरे इस गलती की वजह से मेरे परिवार को बहुत कुछ झेलना पड़ा। कोई मेरे घर रिश्ता नहीं करना चाह रहा था। मेरी उस एक गलती की वजह से मेरे भाई की भी शादी अटकी हुई थी। मुझे लगा कि अगर अपने घरवालों की बात मानकर वो जहाँ चाहते हैं मैं वहाँ शादी कर लूँगी, तो सभी मुझे भी माफ करके मुझे अपना लेंगे, जैसे मेरी सहेली को समाज के लोग अपना लिए थे। अंत में किसी तरह से मेरा कहीं शादी हुआ। पर मेरा किसी लड़के के साथ संबंध होने की अफवाह मेरे पति और उसके घरवालों को भी कोई जाकर सुना दिया। मैं कई बार कोशिश की उनको समझाने की कि यह अफवाह झूठी है, पर किसी ने मेरे बात को सच नहीं माना। उन्हें लोगों की बात सच लगती थी और मेरी झूठी। क्योंकि इसका और एक कारण यह भी था कि जब मेरी शादी की पहली रात को मेरा पति नशे की हालत में मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाया, और तुम मेरे कोंक में आई, नशा उतरने के बाद भूल जाने की वजह से मेरा पति इसे भी मानने से इंकार कर दिया कि उसने मेरे साथ ऐसा कुछ किया है। जिससे सबको यही लगने लगा कि तुम उसकी नहीं किसी और की संतान हो। फिर मुझे घर से बिना इजाजत के बाहर नहीं जाने दिया जाने लगा। मेरे बारे में उड़ी अफवाह की वजह से कोई अपने बच्चों को भी मेरे पास पढ़ने नहीं भेजते थे। मेरी सास मुझे हमेशा कोसने लगी और मेरी ननंद मुझे प्रताड़ित करने की कोशिश करने लगी। वो इस हद तक मेरा जीना हराम कर दिए कि मैं उनके घर से कहीं भाग जाऊं। क्योंकि वो मुझे समाज के सामने ब्याह कर लाए थे, निकाल नहीं सकते थे। मैं जब मायके गई तंग आकर, मैं वापस नहीं आना चाहती थी। पर मुझे मेरे मायके में भी यह एहसास दिला कर वापस भेज दिया गया कि मुझे वहां कोई चाहता नहीं है। उन्हें मुझसे पीछा छुड़ाना था, इसलिए जो मिला उसके साथ मुझे बांध कर वो छुटकारा पा लिए। वो मुझे मेरे ससुराल वापस छोड़ दिए, और मुझे वापस देखकर मेरे ससुराल के लोग खुश नहीं हुए।

मेरी एक सहेली है जो भाग कर शादी की। इसलिए उसके ससुराल वाले पहले पसंद नहीं करते थे। पर जब वह उनके साथ रहकर उनका दिल जीती, उसका बेटा हुआ, तब उसे सभी अपना लिए, और उसके बाद उसके ससुराल वाले उसका care करने लगे। मैं भी इसी आस में थी कि शायद एक दिन सब ठीक हो जाएगा, जब मेरा बेटा होगा, तो मेरे ससुराल वाले भी मुझे अपना लेंगे। इसलिए मैं हर वो काम करती, जो वो कहते। मैं नौकरों की तरह सुबह-शाम उनकी गुलामी करती, अपने आत्मसम्मान को खोकर। मैं अपमान का हर घूट पीकर जीती आई हूँ। पर वो नहीं बदले। जब मेरा नौवा महीना आया, तब भी उन्हें मुझपर तरस नहीं आया। मैं उसी हाल में सारे काम को हँस-हँसकर करती रही। फिर भी किसी ने मेरी परवाह नहीं की। मैं इसी हाल में खाना भी बनाई, बर्तन भी धोई, झाड़ू भी लगाई, और कपड़े भी धोई। वो खाना थाली में अधिक लेकर बाद में जानवरों को खिला देते है, पर मेरे भूख और प्यास की वो परवाह नहीं करते हैं। आज रात जब तुम होने वाली थी, मेरी चीखें सुनकर भी मेरे लिए कोई नहीं आए। ना घरवाले, और ना आस-पास के कोई भी लोग। अगर इस दौरान मैं या तुम मर भी जाती तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इन नौ महीनों में मैं घुट-घुट कर मरते आई हूँ, एक जिंदा लाश की तरह घूमते आई हूँ। मैं बचपन से जितने ख्वाब को देखते हुए बड़ी हुई, उनके रंग एक-एक करके धूलते हुए देखते आई हूँ। मेरी जिंदगी रंगहीन, और गंधहीन हो गई। फिर भी मै जिंदा रही सिर्फ इस आस में कि एक दिन सब अच्छा हो जाएगा और जब तुम इस दुनियां में आई, कुछ लम्हों के लिए ही सही, तुम मेरी नीरस हो गई जिंदगी को महका दी, खुशबू बनकर। पर मै इस आस में तुम्हारे भविष्य को खराब नहीं होने दूंगी कि आगे चलकर सब अच्छा जरूर होगा। वो तुम्हारे होते ही तुम्हें मुझसे छीनकर मुझसे दूर करने की बात करने लगे, तुम्हे किसी को दे देने की, फेंक देने की, छोड़ देने की, या बहा देने की। क्योंकि उन्हें यह लगता है कि तुम उनकी नहीं बल्कि मेरा किसी के साथ किया पाप हो। अगर तुम बेटा होती, तो मैं लड़कर उनसे DNA test करवाकर तुम्हें तुम्हारा हक दिलाती। मगर फूटी किस्मत, अगर मैं साबित भी कर दूँ कि तुम उनका अपना खून हो तो भी वो तुम्हे बोझ ही समझेंगे, क्यूंकि तुम एक लड़की हो। तुमसे वो प्यार नहीं करेंगे, तुम्हें भी नौकरों की तरह रखेंगे, तुम्हें भी वैसे जीना होगा जैसे मैं जीते आई हूँ। तुम्हें वो पढ़ाएंगे नहीं, तुम्हारे ऊपर खर्च नहीं करेंगे। तुम्हें जिंदगी भर नाजायज कहकर तुम्हारा जीना हराम कर देंगे। जब तुम बड़ी होओगी और ना जाने कितने लोग तुम्हारे ऊपर बुरी नजर डाले, तब कोई हिफाजत करने नहीं आएगा। वो तुमसे अपना मुँह फेर ले या तुम्हारे जिस्म का सौदा भी किया जाए। इससे बेहतर कि तुम एक अनाथ बनकर जियो। हो सकता है कि तुम्हें कोई अच्छा परिवार गोद ले, हो सकता है कि वो तुम्हें इतना प्यार दे जितना शायद मैं तुम्हें ना दे पाऊँ। हो सकता है कि इससे तुम अपने life में हर उस चीज को पा लो, जो मै अपने life में पा ना सकी, एक अच्छा खुशहाल परिवार और एक अच्छी जिंदगी। और यह सब अगर नहीं भी होगा तो guardian mothers तुम्हें मुझसे बेहतर जिंदगी देंगी।

जब तक तुम मेरे इस खत को पढ़ने के काबिल बनोगी, तब तक शायद मैं जिंदा ना रहूँ। मैं जिस तरह मर-मर कर जी रही हूँ, मुझे नहीं पता कि मैं और कब तक जिंदा रहूंगी। इसलिए मुझे तुम ढूंढने की कोशिश मत करना। जो तुम्हें अपनाएंगे, तुम्हें अपना प्यार देंगे, तुम उन्हें मुझसे भी ज्यादा प्यार करना, उनका हमेशा सम्मान करना। क्योंकि वो तुम्हें वो सब कुछ देने का कोशिश करेंगे जो शायद मैं कभी भी तुम्हें ना दे पाऊँ। मेरी प्यारी बेटी, बस इतना याद रखना कि तुम्हारी यह अभागी मां तुम्हारी बहुत फिक्र करती है इसलिए तुम्हें छोड़ रही है, और मैं जब तक जियूँगी, तुम्हें याद करूँगी।"


इस letter को पढ़ने के बाद अभिषा guardian mothers से पूछी, "क्या आप इस letter को पढ़ी हो ?"

वो बोलीं, "मुझे इसे पढ़ने की कोई जरूरत नहीं थी। वो मुझसे बात की थी इस विषय में।"

अभिषा परेशान होते हुए पूछी, "और आप उसे इसे यहां छोड़कर जाने दी, suicide करने के लिए ?"

Guardian Mother बोली, "तुम शायद इसकी मां को अच्छे से नहीं जानती हो, वह बहुत brave है। वह ऐसा कुछ नहीं करेगी।"

अभिषा झुंझलाते हुए बोली, "तो फिर वह इस letter में क्या लिखी है ? जब तक जियूँगी, और तुम मुझे कभी ढूंढने की कोशिश मत करना,..."

Guardian Mother कहती है, "वह सबसे पहले खुद को उस दलदल से निकालने की कोशिश करेगी। फिर अपने life को वापस restart करने की। पर अगर यह बच्ची उसके life में वापस लौटी, तो उसके और इसके, दोनों के लिए ही बहुत परेशानी हो सकती है। इसलिए उसे बेहतर यही लगा कि वो वैसे अपनी जिंदगी को दोबारा शुरू करे और यह ऐसे।"

अभिषा उदय को बोलती है, "अगर इसे कोई और गोद ले लेगा तो फिर यह अपनी मां से कभी नहीं मिल पाएगी। क्या इसे हम अपने पास रख लें ?"

उदय उस दो दिन की छोटी सी बची के हंथेली में अपना हाँथ फेरते हुए अभिषा को बोला, "जैसी तुम्हारी इक्षा।" और वह बच्ची उदय की उंगली को कस कर पकड़ ली। जब उदय दूसरे हांथ से उठाने के लिए पालकी में थोड़ा झुका और उसकी गर्म सांसे उस बच्ची पर पड़ी, तो वह पहली बार सबके सामने आँखें खोली। और वह उदय को देखकर जोर-जोर से रोने लगी। तब अभिषा की नजर उसकी आंखों की पुतलियों में पड़ी, वह उदय को थोड़ा push करते हुए बगल की और वह उस बच्ची को अपने गोद में उठा ली। वह छोटी बच्ची अभिषा का स्पर्श पाकर खुद को थोड़ा महफूज पाई और फिर आँखें बंद करके सो गई। 

रॉनी अनाथालय के बच्चियों के साथ खेलते हुए वहां आया। अभिषा रॉनी को बोली, "तुम्हें बहन चाहिए थी ना, देखो तो यह कितनी प्यारी है। इसे हम अपने साथ ले जाएं ?"

यह सुनकर अनाथालय की बच्चियां गुस्से में रूठे अंदाज में अभिषा को बोली, "तुम दोनों ही बहुत गंदी हो। एक अपने बच्चे को छोड़ने आती है और दूसरी उसे वापस ले जाने। तुमलोग को हमसे कोई मतलब नहीं है। तुमलोग यहां वापस मत आना। तुमलोग हमें पसंद नहीं हो।" और वो वहां से चली गई।


इसके बाद अभिषा और उदय document की प्रक्रिया पूरी करके अनाथालय से सीधा अभिषा के मायके गए। अभिषा की माँ पहले इन्हें देखकर खुश हुई, पर फिर अभिषा के गोद में बच्ची को देखकर हैरानी से पूछी, "यह किसकी बच्ची है ?"

अभिषा खुशी के साथ बोलती है, "हमारी, हम इसे गोद लिए हैं।"

अभिषा की माँ उदय को देखती है, वह उदय के आंखों में देखती है उदय को सहमति के भाव को दिखाते हुए। और उस बच्ची को अपने गोद में लेने की कोशिश करते हुए इन्हे बोली, "तुम यह क्या उल्टे-सीधे काम करते रहते हो!" उसकी नजर उसकी आँखों पर गई, "इसकी आँखें तो..." इससे पहले कि अभिषा की माँ  अपना वाक्य पूरा करती, अभिषा आगे पूछ दी, "माँ, सलोनी के बारे में कुछ खबर है क्या ?"

उसकी माँ उस बच्ची को देखते हुए उसको बताई, "आज सुबह ही खबर आया, सलोनी अब इस दुनियाँ में नहीं रही। उसके घरवाले सलोनी के ससुराल जा रहे थे। और वो बोले कि उसका बच्चा भी साथ में मर गया।"

अभिषा सोचती है कि "लोग अपना चरित्र बचाने के लिए कितना झूठ बोलते हैं और झूठ फैलाते हैं।" सलोनी जब मर ही गई तो फिर उसके बारे में और कुछ जानकार क्या लाभ ! वह नम आंखों से उस छोटी बच्ची को देखते हुए बोली, "माँ, मुझे इसे अपने पास रखना है।"

उसकी माँ उससे पूछी, "तुम दोनों अपने घरवालों से permission लिए हो इसके लिए ?" इससे पहले कि अभिषा की माँ आगे कुछ बोलती, उदय बोला, "माँ परेशान किए हुए थी कि उन्हें बच्चा चाहिए। वह रॉनी को बकाई हुई थी और रॉनी जिद्द किए हुए था कि इसे भाई-बहन चाहिए। अब एक दिन में अगर उन्हें चाहिए तो उन्हें सिर्फ इसी तरह ना हम दे सकते हैं। बाकी घरवाले तो आपलोग भी हो। आपलोग बताओ, कि अपलोग हमारे इस फैसले को अपनाओगे या नहीं ?"

अभिषा की माँ उनसे पूछी, "और इसके घरवाले, इसे अगर वापस चाहेंगे तो... ?"

उदय जवाब दिया, "अनाथालय में इस बात को गुप्त रखा जाएगा। हमारी अच्छी जान-पहचान पहले से है। और लोग कोई कागज नहीं मांगते हैं। वैसे भी मुझे नहीं लगता है की अब इसे कोई ढूँढने की भी कोशिश करेगा। तो कोई दिक्कत नहीं आएगी।"

अभिषा की माँ उनसे बोली, "बच्चे पालना कोई आसान काम नहीं होता है, उसमें भी गोद ली हुई बच्ची को। तुम्हें बहुत कुछ झेलना होगा।"

उदय कहता है, "अब जो होगा, हम साथ मिलकर देख लेंगे।"

अभिषा कहती है, "पता है माँ, मेरे लिए सबसे अच्छी बात क्या है ? उदय मेरे हर फैसले में साथ है, ये मुझसे बहुत प्यार करते हैं। और मैं इनके भरोसे अपने किसी भी फैसले के लिए किसी भी हद तक जा सकती हूँ।"

अभिषा कहती है, "हाँ, पता है मुझे। तुम पहले भी यह कर चुकी हो, और झेलना हम सभी को पड़ा। तुम्हारे इस फैसले का भी असर हम सभी पर होगा।" वह पूछती है, "इसका नाम कुछ सोची हो ?"

अभिषा कहती है, "इसका नाम इसकी माँ खुशबू दी है। तो हम भी इसे खुशबू ही बुलाए तो कैसा रहेगा ?"

इसपर उदय कहता है, "इसका पुराना नाम इसकी माँ की पुरानी जिंदगी से इसे जोड़ेगा। हम अगर इसे अपना अलग नाम दे 'मेहक', तो कैसा रहेगा ?"

अभिषा कहती है, "मेहक, हाँ ठीक ही है। नाम अलग है पर अर्थ same ही है। तो इसका नाम हम मेहक ही रखेंगे।"


अभिषा भावुक होकर album की तस्वीर के पीछे से मेहक की माँ की वो चिट्ठी निकालती है, और बीती बातें याद करके, बहुत ज्यादा उदास हो जाती है। तब Mehak वापस अभिषा के कमरे आई। वह अभिषा को अपने हाथों में उस चिट्ठी को पकड़े हुए और रोते हुए देखी तो उसके पास आई, और उसके हांथ से वह चिट्ठी लेते हुए बोली, "आप अभी भी इसे संभाल के रखी हो ? अब इसकी हमारे life में कोई जरूरत नहीं है।" वह उस चिट्ठी को फाड़कर अभिषा को अपने बांहों में भरकर बोलती है, "मैं सबसे ज्यादा आपको प्यार करती हूँ मम्मी, बहुत ज्यादा और हमेशा करूंगी। क्योंकि मैं आपकी बेटी हूँ, और इसके अलावा मुझे कुछ भी नहीं जानना है।" वह अभिषा के आंखों से आंसू पोंछते हुए और उन albums को side करते हुए बोलती है, "अब छोड़ो भी इन बीती बातों को याद करके रोना धोना। सबलोग hall में आपका wait कर रहे हैं, आप interval भी miss कर दोगी। चलो आओ हम सब movie देखते हैं। अच्छी movie है। मतलब अभी तक तो सब अच्छा ही जा रहा है।"


-----Every tragedy ends with sadness, and

every sunrise gives hope of happiness.-----


Note:- किसी को अच्छा या बुरा उसके हालात बनाते है। पर हम चुन सकते हैं, बुराई में कम बुरा और अच्छाई मे सबसे अच्छा को।

Key points to learn : Marital rape, Ethical views of social crimes, Laws related to adultery and adoption, the Hindu Adoption and Maintenance Act (HAMA), 1956, and the Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015, CARA- Central Adoption Resource Authority


Story by -AnAlone Krishna.
Completed on 25th July, 2025 A.D.
Published on 8th August, 2025 A.D.

● Life की परछाई ●
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