पहली दिल्लगी - शुरुआत सपनों की ,कृष्ण कुणाल की लिखी कविता

• पहली दिल्लगी - शुरुआत सपनों की •
(प्यार में पड़ने से पहले के अहसास के साथ)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता


¤पहली दिल्लगी-शुरूआत सपनो की¤

अब तक के हैं धुँधले-धुँधले,
बीत गये वो पल ।
बिना सोचे समझे सब किया करते थे,
जीते थे जो कल ।।
ना आज की चिंता, ना कल का फिक्र,
अभी क्या किये बस उसका जिक्र ।
ऐ जिन्दगी, अब कुछ समझ रहा हूँ ,
अब धीरे-धीरे समझाता चल ।।

ऐ खुली-खुली हवायें,
ऐ रंगबिरंगा समां ।
अब मौका है जी लूँ तुझे ।
तुने ही अबतक लुभाया था मुझे ।।
है रीमझिम बरसता बादल,
और ये हरी-भरी सी धरती ।
ऐ जिन्दगी, उसपर ये बहार,
मुझे अपनी ओर आकर्षित करती ।।

लोग होंगे जिनको नाम की चाहत,
लोग होंगे जिनको काम का डर ।
मैं सदा तुमसे जुड़ा रहूँ,
मेरी भावनाओं को तू ऐसा कर ।।
ना कुछ पाने की है चाहत,
ना कुछ खोने का है डर ।
ऐ जिन्दगी तुझे मैं खुश कर दूँ,
मेरी परिस्तिथीयों को तू ऐसा कर ।।

ना तूझे जीने की चाह बचे,
ना लगे, मेरा काम रह गया बाकी ।
ऐ जिन्दगी तू मेरा ऐसा बनना,
तुझे खोने का गम अंत मे रहे ना ताकी ।।

-AnAlone Krishna.
16/06/2017
Expended form of 1st para. of my last poem, 'पहली दिल्लगी-शुरूआत से अंत', http://krishnakunal.blogspot.com/2017/06/blog-post.html

इसके हर एक stage के अहसास के साथ लिखे गए कविता को पढ़ने के  लिए blog के page 'पहली दिल्लगी'  में जाएं। Link- http://krishnakunal.blogspot.com/p/poetry_11.html




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