हमदर्द सा कोई, bhag-१
भाग-१
"मैं कुछ सुनना नही चाहती | मुझे लगा था कि हम दोस्त हैं| पर लगता है तुम कुछ और ही समझ रहे हो | हद होती है तुम जैसे लड़को की |"
"यार कोमल, मैं तो बस मजाक कर रहा था |"
"मजाक और मेरे साथ ! तुम तो बहुत कमाल के इंसान हो । देख रहे हो कि दीदी की शादी के बाद मेरा मन नही लगता फिर भी मेरे से मजाक कर रहे हो |"
"तुम्हारा मिजाज बनाने के लिए ही तो मजाक कर रहे थे |"
"तुम जानता भी है, कि अपनी दीदी के ससुराल जाने के बाद कैसा महसूस होता है । तुम्हारा न तो कोई भाई हैं और न कोई बहन | तुम क्या जानेगा किसी अपने से दूर होने का गम ।"
"मै तुम्हारा दर्द नही समझ सकता पर अंदाजा लगा सकता हूँ ।"
"मुझे तुमसे कोई लेना-देना नही है | तुम आज के बाद कभी मिलना मत|"
"अगर बात दिल पर लगी हो तो माफ कर दो | मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नही था |"
"जो भी हो | पर कभी मुझसे अब बात करने की कोशिश भी मत करना ।"
इतना कहकर कोमल वहाँ से चली गयी । और सतीश बेंच पर बैठा रह गया । मानो दोस्ती टूटने की बात ने उसे जमा दिया हो । पहले चेहरे पर झूठा मुस्कान था । पर अब वो भी न रहा ।
सतीश की आँखे हमेशा भीगी-भीगी सी रहती थी । पर अब लगने लगा कि गंगा बहने लगेगी ।
एक सप्ताह पहले कोमल की दीदी का शादी हुआ । वो जिसे वह सबसे करीब मानती थी । लाड-प्यार तो छोटी होने के कारण उसे माँ-बाप से ज्यादा मिलता था । पर कोमल की दीदी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी । जिससे वह अपनी सारी दुख-सुख साझा करती थी । वह कोमल की गलतियों को ठीक करती । और किसी काम मे अगर जरूरत हो तो मदद भी करती ।
अपनी दीदी की शादी के बाद कोमल खुद को अकेला मानने लगी । इसलिए शायद सतीश का मजाक को वह गहराई से ले ली । दीदी की शादी के बाद घर के सभी सदस्य उसे सहानभूती भरी नजरो से देखने लगे । जो कि कोमल को बिलकुल भी अच्छा नही लगता । अब घर की छोटी शरारती लड़की को बड़ी और सयानी बनना था । कोई भी आता और दो-चार ज्ञान दे जाता । जो कि उसे पसंद नही था । और इसलिए वह बात-बात पर चिढ़चिढ़ी हो गई और अकेलापन महशूश करने लगी । सतीश यह बात जानता था कि जब लोगों को अकेलापन पसंद आने लगता है और वे चिढ़चिढ़े हो जाते हैं , तो वो नादानी करने लगते हैं । और अपनो का दिल दुखाने लगते हैं ।
वह थोड़ा हसी-मजाक करके कोमल का दिल बहलाना चाहता था ।
सतीश के कोमल से दोस्ती हुए दो सप्ताह भी अभी नही हुए थे । यहाँ तक की कॉलेज में सतीश और कोमल की आपस में दोस्ती कब हुई , यह कहना भी बहुत मुश्किल था । दरसल उनके बीच बाकियों की तरह दोस्ती था ही नही । बस सहपाठी थें और दोनो को एक दूसरे को जानने लगे थे तो उनमें दोस्ती पनपने लगी थी, इसलिए सप्ताह भर से शाम को class के बाद जब मिलते थे तो बात कर लिया करते थें । पर अचानक कोमल का बदला हुआ व्यवहार सतीश को पसंद नही आया । वह नही चाहता था कि उसके जैसे कोमल भी ऐसी स्तिथि मे अपनो के साथ दुर-व्यवहार करें । इसलिए वह पहले कोमल के करीब आना चाहता था । फिर एक अच्छा दोस्त बनकर उसे उसके अपनो के रिस्तो को पहले की तरह बनायें रखने में मदद करना चाहता था । कोमल को उसके निजी जिवन में दखल अंदाजी पसंद न था । और वह सतीश के सोच को भाप चुकी थी । इसलिए उसके साथ ऐसा व्यवहार करके वहाँ से चली गयी ।
सतीश अब बेंच से उठा और समुद्र के किनारे लगे बेरीयर से लदकर खड़े-खड़े समुद्र को निहारने लगा । एक के बाद एक उसे सारी बातें याद आने लगी । अभी की भी और छः साल पहले की भी ।
लोगो के लिए सतीश एकलौता था । पर ऐसा छः साल पहले नही था । तब उसका एक छोटा भाई भी था । जो कि मलेरीये के तेज बुखार के कारण देह छोड़ गया । तब सतीश की उम्र बारह बर्ष होगा और उसके भाई राकेश की उम्र मात्र आठ वर्ष ।
यूँ तो अब छः वर्ष बीत चूके थे । लेकिन सतीश के ज़ेहन से भाई की मौत का मंजर कभी गया ही नही । जाता भी कैसे राकेश जाते-जाते ऐसा कुछ कह कर ही गया था ।
"दादा हाम तोर हीस्सा खईबो , सैले हामरा मोरावे लागल हे ने । हामर बेश ले ईलाज नाय करवे लागल हे ने । देईखलेबे तोरा मोरलो बाद चैन से नाय जीये देबो । तोरा भूत बईन के डेरावत रहबो ।"
सतीश को वह घटना बार-बार आने की वजह उसके भाई का ऐसा कहना नही था । बल्कि उसका अपने भाई के प्रति प्यार था । जिसे वह अपनी जान से भी ज्यादा चाहता था । तभी तो कॉलेज में किसी लड़की के करीब आकर उसका दुख बाँटना चाहता था । पर वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का आदी नहीं था, इसलिए कभी किसी से दिल नही लगा पाया ।
जब राकेश बिमार पड़ा तो पहले गाँव के कम्पॉन्डर को बुलाया गया । उसने राकेश को कुछ दवाई दी । पर इससे कोई राहत नही हुआ । तो उसने राकेश को जल्द से जल्द शहर के किसी बड़े डॉक्टर से दिखाने को कहा। पर सतीश के माता-पिता डॉक्टर को दिखाने के बजाय डायन-भूत करने लगे और ओझा-भगत ढूँढने लगे। सतीश पढ़ने लिखने जाता था इसलिए इसका विरोध किया । पर घरवालो ने उसे उलटा ही समझा दिया ।
"बेटा , जब दवा काम नही आता है तब दुआ काम आती है । और वैसे भी हमारे तो वैद्ध महाराज महान थे । ये अँग्रेजी दवाँये उनके सामने कुछ नही था ।"
सतीश भी ताव मे आ गया और बोल दिया - "इतना महान था तो मरने से पहले कोढ़ का शिकार काहेले था ? अपना इलाज क्यो नही कर लिया ?"
और उसे इसका भी उत्तर मिला - "बेटा , कुछ भाग्य का लिखा भी भोगना पड़ता है ।"
लहरें आती और जाती । हर बार कोशिश करतीं सतीश के आँसुओ को साथ ले जाये । और सतीश के आँसू थे कि हर बार लहरों को दगा दे जाती । वो पैमाने पे भरे होते पर छलकते ही नहीं । आज तो उसे एक अच्छे दोस्त को पाने से पहले खोने का भी गम था । कई बार कोशिश किया किसी को अपना परछाई बनाने की । पर ऐसा कोई दोस्त मिला ही नही । और न उसके भाई की कमी कोई पूरा कर पाया ।
उसे आज भी याद हैं कैसे उसने कहा था कि - "दादा हमरा झिलिया खाय के मन करे लागल हो ।"
वह खुशी-खुशी गाँव में बने बनिये के होटल में गया । जिस भाई को खाने में कोई भी चीज पसंद नही आ रहा था । वह 'झिलिया' मिठाई खाने की फरमाईश कर रहा था । सतीश जब तक घर पहुँचा तब तक घर में बहुत भीड़ हो चूकि थी । सभी राकेश को चारो ओर से घेरे हुए थे । माँ और दादी उसके हाथ को सहला रही थीं । बापू और काका पैर सहला रहे थे । सतीश को देखते ही उसके दादाजी बोले - " छोटका के बगल में बैठ के एकर हाँथ सहलाव ।"
दादी राकेश का हाथ सतीश की ओर बढ़ा दी । अपने हाथ में लेते ही राकेश ने सतीश का हाथ पकड़ लिया । पर सतीश ने हाथ छुड़ाया और उसे सहलाने लगा । भाई से लगाव ऐसा था कि मरते-मरते राकेश सिर्फ सतीश को देखता रहा । और जब-तक उसका अंतिम संस्कार न हुआ , सतीश को सिर्फ यह लगता था कि राकेश तो बस सोया हुआ है । वह कुछ देर बाद उठेगा और कहेगा कि - "दादा हामर झिलियाँ मिठाई दे ।"
समय बीता और सतीश अगली कक्ष मे प्रमोट हो गया । उसके स्कूल के कई दोस्त अपना ट्रांस्फर करवा लिये । जो बचे थे उन्होंने अपना-अपना अलग मँडली बना ली । कोई दर्द कम करने वाला मिला नही इसलिए वह अकेला और शांत हो गया ।
नये दोस्त सतीश के अतीत के बारे में नही जानते थे । और उन्हें वह बताना चाहता भी नही था । वैसे भी अतीत को याद करने से क्या लाभ , लोगो को तो वर्तमान में जीना चाहिए । लोग उसे एकलौता समझते थे । और ताज्जूब करते थे कि इसके जैसा सीधा और शांत लड़का इस दुनियाँ मे कैसे पैदा हो गया ।
सतीश अक्सर अपना मिजाज ठीक करने के लिए साहील की ओर आता । बैंच पर बैठकर लोगो को आते जाते देखता । या फिर लहरों को चट्टानो से टकराते देखता । आज भी वह यही करने यहाँ आया था । पर कोमल को तीन दिन से रोजाना आते देख उससे रहा नही गया । और उसका हमदर्द बनने की कोशिश किया ।
इतना वर्ष बीतने के बाद वह अपने भाई के बगैर रहने के लिये सीख चूका था । तो उसने बेरीयर को कश के पकड़ा । पैर को बिना हीलाये अपने शरीर को हाथो के सहारे पीछे किया । लंबी-गहरी साँस लिया । और धीरे से उसे छोड़कर वापस जाने के लिए मुड़ा ।
तभी उसे किसी की आवाज सुनाई दी - "अरे सतीश , कैसे हो ?"
सतीश बड़े हैरत से जवाब दिया - "ठीक-ठाक । पर .....!"
"यही ना की इतने दिनो के बाद भी तुम्हें कैसे पहचान लिया । अरे भाई , सिर्फ कद बढ़ा है तुम्हारा । शक्ल वही का वही है । हाँ पहले हमेशा हँसता हुआ रहा करता था । और अब दिखने में रोन्दू लगते हो ।"
"दरसल भाई, तुम तो मुझे पहचान लिये पर मैं तुम्हे पहचान नही पा रहा हूँ ।"
"क्या यार !, मै तुम्हारा बचपन का दोस्त हर्ष हूँ । मतलब मैंने स्कूल क्या छोड़ा तूमने मुझे भूला ही दिया ।"
"हर्ष नाम तो याद है । लेकिन शक्ल नही पहचान पाया । इसके लिए माफ कर दो । वैसे भी मेरी याद्दाश्त कमजोर होती जा रही हैं ।"
यह सुनकर हर्ष उदास मन से बोला - "तुम्हारी याद्दाश्त कमजोर हो गई हैं.....!
लोग बदल जाते हैं, उनके अंदाज बदल जाते हैं ।
मौसम बदल जाते हैं , तो धरती का व्यवहार बदल जाता हैं ।
तेरे जैसा दोस्त जब एक दोस्त को भूलता हैं ,
तब दोस्ती तो होती हैं पर दोस्ती की मिठास बदल जाती हैं ।"
सतीश हर्ष को राहत पहुँचाते हुए बोला -
"सूरज उगता है और डूब जाता हैं,
मौसम भी आकर बदल जाता हैं ।
उदास ना हो यह जान कर कि मैं तुम्हें भूल गया ऐ दोस्त ,
हो सकता ईनकी तरह हमारी भी फिर से नई शुरूआत हो ।"
इसपर हर्ष पूछा - " तुम सच में मुझे भूल गये कि मजाक कर रहे हो ?"
इसपर सतीश उत्तर दिया - "सच में ।"
हर्ष ने फिर कहा - "नहीं , तुम्हारा अंदाज अभी भी मुझे याद हैं । तुम मजाक ऐसे करते हो कि सामने वाला हकीकत समझने लगता हैं ।"
तो सतीश ने मुस्कुराते अंदाज मे कहा - "यार जाने दे ना । जब दोस्ती फिर से हो ही गई हैं तो कभी कभी याद दिलाते रहना ।"
"अभी थोड़ा जल्दी में हूँ । ठीक है तो मिलते रहना ।"
"ठीक है तब फिर मिलतें हैं ।"
और दोनो अपने-अपने गंतव्य की ओर चले गये ।
_कथा समाप्तम्_
-AnAlone Krishna
13-15/12/2016
Last reedited on 10th June, 2025 A.D.
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