भाग-2
Class पूरा हुआ। Lecturer class से चले गए। सतीश भी अपना bag pack करने लगा। तभी उसका दोस्त राजेश ने उससे पूछा - "क्या भाई सतीश, तब तुरंत अपना room निकलोगे या फिर कुछ देर रूकोगे ?"
"जैसा तुम चाहों।"
तभी सतीश का एक अन्य दोस्त रवि उसके सामने आया और बोला -"तब चलो। Library चलते हैं।"
सतीश ने निराशा भरे अंदाज़ में कहा -"नहीं भाई, आज नहीं । आज मुझे थोड़ा कुछ काम है।"
रवि थोड़ा छेड़खानी करने के मन से रूखे ढंग से कहा -"हाॅ, हाॅ। जानता हूँ मैं तेरा काम। वही न अपनी girlfriend को घर छोड़ने जानेवाला।"
इसपर सतीश चिढ़ते हुए तपाक से उत्तर दिया -"भाई वो मेरी girlfriend नहीं है। वह बस एक अच्छी दोस्त है।"
तब रवि मुस्कुराते हुए बोला -"chill कर यार। मैं बस मजाक कर रहा था। ठीक तब तुम जाओ, मैं चलता हूँ library को।(कुछ second रूक कर) तुम्हारे बिना मन नहीं लगता यार, लौट आओ।"
और फिर रवि वहाँ से library चला जाता है और सतीश और राजेश बात करते हुए बाहर की ओर।
रवि जिसके बारे में सतीश से बात कर रहा था वो और कोई नहीं बल्कि कोमल ही थी। कुछ महीनें अकेलेपन में रहने के बाद इस चुलबुली कोमल को अकेलेपन से घुटन होने लगा। उसने चाहा कि वो फिर से पहले की तरह अपने सखियों तथा रिश्तेदारों से घुले-मिले, पर ऐसा न हो सका। उसने चन्द महीनों के अपने रूखे स्वभाव से सभी के साथ अपने आपसी रिश्तों को खराब कर लिया था। जिसका नतीजा यह निकला कि वह अब सभी के साथ पहले जैसा व्यवहार कतई नहीं कर सकती थी। लोग अब कोमल की मौजूदगी में असहज महसूस करते थे, जिसका अंदाज़ा अब इसे भी होने लगा था।लेकिन कोमल को यह भी अहसास हुआ कि इन सभी परिस्थितियों के होने के बावजूद अगर वह अपना जिन्दगी पहले के जैसा किसी के साथ जी सकती है तो वह सतीश ही है। उस दिन के घटे शाम के समय की घटना कोमल को इस बात के लिए याद आती रही कि कोई व्यक्ति उसके किसी भी परिस्थिति में हमेशा सामान्य व्यवहार रखना चाहता है। जिसके चलते धीरे -धीरे सतीश के तरफ उसका ध्यान जाता रहा।
"साईकल लाये हो क्या?", राजेश ने सतीश से पूछा।
"नहीं।"
"क्या ! आज भी नहीं ?", राजेश हैरानी के साथ पूछा।
"नहीं।"
"देख रहा हूँ, जब से कोमल से तुम्हारा बात होना शुरू हुआ है, तुम उसके साथ पैदल ही आना -जाना करने लगे हों। प्यार -व्यार का चक्कर है क्या?"
"नहीं भाई, अभी सिर्फ friends हैं।"
"सिर्फ दोस्त ?"
यह कहकर राजेश अपना साईकल बाहर निकाला और एक टक सतीश को देखने लगा। तब सतीश किसी हारे हुए इंसान की भाँति बोला -"सिर्फ दोस्त ही है, उससे ज्यादा नहीं। मुझे उसके साथ time spend करना अच्छा लगता है, इसलिए साथ जाता हूँ। इसके आगे कभी अगर बात बढ़ेगा, तो वह किसी से छुपेगा थोड़ी न।"
राजेश की नज़र कोमल पर पड़ी। वह गेट की तरफ सतीश के साथ जाने लगा जहाँ पर कोमल खड़ी थी। वह जाते-जाते सतीश को बोला -"देख भाई, कोई हमारी दोस्ती के बीच आ ना पाए।"
"बिल्कुल नहीं आयेगा भाई।"
कोमल के करीब पहुंच कर राजेश सतीश से बोला -
"जा अब, तेरे इस सफर में, तुझे एक खूबसूरत हमसफ़र मिला है।
मैं जा रहा हूँ अपने रास्ते, मुझे ना कोई शिकवा -गिला है।
कुछ लम्हे का ही साथ होता है ,दोस्त के साथ यादें बनाने के लिए ।
लोग मिलते हैं फिर बिछड़ जाते हैं, दुनिया में यही सिलसिला है।"
यह बोलकर राजेश वहाँ से चला जाता है। और सतीश को यह बात सुनकर मुस्कुराता देख कोमल कहती है -"यह राजेश शायरी में भी बात पते की करता है। और थोड़ा मजाकिया भी है।"
सतीश उत्तर देता है -"मेरा दोस्त है ना......।"
दोनों फिर बातें करते हुए कोमल के घर की ओर चल दिए। Class में अधिकतर कोमल सतीश को रवि के साथ और बाहर राजेश के साथ देखती थी। इसलिए वह रास्ते में चलते-चलते सतीश से पुछ दी कि उसका इन दोनों सें दोस्ती कैसे हुई। रवि जहाँ एक ओर मेधावी लड़का था, और वह पढ़ाई के अलावा बाकी किसी काम में बहुत कम ही ध्यान देता था। और दूसरी ओर राजेश सामान्य लड़का था, वह बाकी चीजों में जितना ध्यान देता था, पढ़ाई में तो उससे कम ही देता था। आमतौर पर यह देखा जाता है कि लोग अकसर अपने जैसे लोगों से ही दोस्ती करते हैं। इसलिए कोमल के मन में यह जिज्ञासा उठना भी जरूरी ही था । चलते-चलते सतीश कोमल को यह बताना शुरु किया कि कैसे उसकी दोस्ती इन दोनों सें हुई।
"मैं जब इस college में admission लिया, उसके दो चार दिन तक तुम्हें हँसते-खेलते देखा। फिर अचानक तुम उदास रहने लगी, और तुम्हारा रवैया बदलने लगा।"
"हाँ, ऐसा हो तो रहा था।"
"मुझे अपना past याद आ रहा था, मैंने सोचा कि तुम्हें इस situation से निकलने में थोड़ी मदद करूँ। इसलिए पहले मैंने तुम्हारे बारे में informations पता किए, और तुम्हारे करीब जाकर तुमसे थोड़ा हसी मजाक करने की कोशिश करने लगा।"
"जिसके चलते हमारा झगड़ा भी हुआ था। पर यह तो हमारे बारे में है, मै तो यह पूछ रहीं हूँ कि तुम्हारा रवि और राजेश से कैसे दोस्ती हुई।"
"वही तो बता रहा हूँ। उनके बारे में कहानी अब शुरू होगी।" यह कहकर सतीश कोमल को यह बताने लगा कि कैसे उसकी दोस्ती इन दोनों से हुई।
जब मौसम बदल जाते है, तो कई पौधे सूख जाते है। लेकिन पेड़ तब भी हरा-भरा रहता है। यह उसकी आदत होती है, उसके कुछ पत्तियाँ झड़ जाती है, फिर भी इतनी तो बची होतीं ही है कि किसी पंथी को छाया दे सके। सतीश कोमल से हुए झगड़े के कारण थोड़ा मायूस हुआ, और वैसे ही रहने लगा, जैसे रवि रहता था। शांत और किसी से भी कम ही घुलने-मिलने वाले लोगों जैसा। इसी कारण से रवि सतीश के करीब आया। दोनों साथ में class करते , फिर सतीश अपना अकेलापन दूर करने के लिए रवि के साथ library चला जाया करता था। वह अपना ध्यान सिर्फ पढ़ाई में लगाकर खुद को इन चीजों से उभारना चाहता था। धीरे-धीरे वह इसमें सफल भी हो गया। इस बीच वह बाकी सहपाठियों के व्यवहार को भी अंदर ही अंदर समझता रहा। जब सतीश का मन थोड़ा उभर गया, तब वह रवि के अलावा बाकी लड़कों से भी घुलने-मिलने लगा। जो अंदर से ज्यादा दुःखी होता है, वह बाहरी जीवन में कम से कम खुश रहने की कोशिश करता है। जिसे अकेलापन ज्यादा सताता है, वह अधिक से अधिक लोगों से संपर्क बनाता है, ताकि अकेलापन कम सताये। सतीश बाकी लड़कों से तो संपर्क बना रहा था। लेकिन किसी भोग के खानें में भी वो स्वाद कहाँ ? जो स्वाद अपनी माँ के हाथों से बनें खानें में होता है। सतीश की दोस्ती बाकी लड़कों से हल्की-फु्ल्की रही, पर रवि के साथ-साथ राजेश के साथ भी धीरे-धीरे अच्छी होती चली गयी। रवि के साथ सतीश पढ़ाई करता और राजेश के साथ थोड़ी मौज-मस्ती।
जब सतीश कोमल को अपनी कहानी सुनाया, तब कोमल थोड़ा जिज्ञासु ढंग से अपने भौंहों को सिकोड़ते हुए पुछी- "तुम यह बात मुझे सीधे-सीधे सुना सकते थे। पर हमारे साथ आपस में क्या हुआ था, यह बताने की क्या जरूरत थी ?"
इसपर सतीश थोड़ा आश्चर्य करते पुछता है -"तुम्हें क्या लगता है, नहीं थी ?"
कोमल तपाक से अपने आवाज उछाल देते हुए उत्तर देती है -"बिलकुल नहीं थी।"
तब सतीश समझाते हुए बोलता है -"(थोड़ा खिचते हुए)जरूरत थी।(फिर सामान्य ढंग से)अगर मैं तुम्हें हमारे साथ हुए पहले की बात नहीं बताता तो बाद में मैं शांत क्यों रहने लगा, यह बात तुम्हें समझ में नहीं आता। लोग पहली नजर में जो देखते हैं, उसी को सिर्फ सच समझने लगते हैं। यह समझने की कोशिश ही नहीं करते कि हमारे किसी भी समय किसी के साथ कोई बर्ताव करने की वजह, उस समय हमारे साथ घट रहे परिस्थितियाँ होतीं हैं। हम हमेशा वैसे ही बर्ताव नहीं करते। समय के साथ हमारे व्यवहार में बदलाव होते रहते हैं।"
तब कोमल पुछती है -"तुम्हें क्या लगता है ? अगर तुम ये बात सीधे-सीधे बताते, तो क्या मैं नहीं समझती।"
"शायद नहीं।"
"तुम्हें मैं इतनी मुर्ख लगती हूँ ?"
"ऐसा नहीं है।"
"अच्छा ठीक है , एक बात बताओ। तुम्हें क्या लगता है, मैंने तुमसे दोबारा, दोस्ती क्यों की ?"
"इन परिस्थितियों से निकलने के लिए, तुम बाकीयों के मौजूदगी में असहज महसूस करती हो।"
"सिर्फ इतना ही?"
"हाँ..............।"
"मेरा बाकीयों के साथ व्यवहार खराब हो रहा था, यह काफी नहीं है। हमें परिस्थितियों का सामना करना चाहिए। अगर खराब हो रहा हो, तो उसे सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। उससे भागना नहीं चाहिए। मैं जब चाहूँ, तब सभी के साथ पहले की तरह व्यवहार स्थापित कर सकती हूँ।"
सतीश शांत होकर सुनता रहा। कोमल आगे बोलती रही-
"लेकिन इस समय मैं किसी नये शख़्स से बात करना चाह रही थी। कोई ऐसा जो मुझे वैसे accept करे जैसे मैं हूँ। अभी। तुम सही सोंचते हो कि - लोग यह समझने की कोशिश ही नहीं करते कि हमारे किसी भी समय किसी के साथ कोई बर्ताव करने की वजह, उस समय हमारे साथ घट रहे परिस्थितियाँ होतीं हैं। हम हमेशा वैसे ही बर्ताव नहीं करते जैसे कि पहले किए थें । समय के साथ हमारे व्यवहार में बदलाव होते रहते हैं। तुम नए थे, इसलिए मुझसे वर्तमान के मेरे व्यवहार के अनुसार बात करते, और इसलिए मैंने तुमसे करीबी बढ़ाने की कोशिश की थीं।"
सतीश के चेहरे पर हल्का मायुशी दिखने लगा। पर तब भी वो शांत रहकर ही सुनता रहा। और कोमल आगे बोलती रही-
"पर अब मुझे कुछ ज्यादा ही लगता है। मुझे ऐसा महसूस होता है कि तुम्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि मैं कल कैसी थीं । तुम मुझे वैसे accept करते हो जैसे मैं आज हूँ। इसलिए मुझे ऐसा लग रहा है कि हम दोस्ती से आगे निकल रहें हैं।"
"मतलब......?"
"जैसा कि लोग कहते हैं (थोड़ा खिचते हुए)कि हमारे बीच कुछ....................."
"मैं लोगों कि परवाह नहीं करता। मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट हो और ऐसे मे अगर मेरी नजर गलती से भी किसी लड़की पर पड़ जाए, तो वो उसपर भी मुझे छेड़ने लगेंगे। उन्हें बस कोई topic चाहिए होता है, मजाक करने के लिए।"
कोमल सतीश की बात पर हामी भरते हुए-"हाँ, ये तो है।"
फिर वो थोड़ा जिज्ञासु ढंग से पूछती है-"लेकिन यह बात बताओ...........। हमारी दोस्ती अच्छी है। हमारे बीच समझ अच्छा है। रहते साथ में हैं। तो लोग तो ऐसे बात करेंगे ही न......।"
"हाँ, ये बात तो है।"
"तो क्या कहते हो, (थोड़ा खिचते हुए )हमें लोगों के सामने accept कर लेना चाहिए कि हम............."
सतीश बीच में ही टोक देता है-"देखो, हम दोस्त है, हमारे बीच समझ अच्छी बैठती है, रहते साथ में है, ये अलग बात है। पर मैं तुमसे प्यार नहीं करता। तुम पर सहानुभूति/sympathy तो होती है, मगर तुम्हारा सुख-दुःख मुझे महसूस नहीं होता। तुम्हारा जीवन अच्छा रहें, यह दुआ तो करता हूँ, मगर तुम हमेशा खुश रहो इसके लिए मैं कुछ कर नहीं सकता। एक दोस्त के जैसे तुम्हारी मेरे life में जगह है, तुम्हारे साथ मुझे time spend करना अच्छा लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम्हारे साथ आने के लिए मै हमेशा बाकी दोस्तों को अकेला छोड़ दूंगा। तुम अच्छी लड़की हो, तुमसे दोस्ती किया जा सकता है, मगर मुझे तुम्हारे लिए कोई प्यार-व्यार वाले बाकी के जज़्बात महसूस ही नहीं होते। अब तुम ही सोचो न......., उस time मैंने तुम्हारा मन बहलाने की कोशिश किया, as a friend, मगर अगर प्यार वाली बात होती तो तुम्हारे नाराज होने के बावजूद तुम्हें खुश रखने की कोशिश करता। तुम्हें मनाने की कोशिश करता। मगर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। इसलिए हम सिर्फ दोस्त हैं, उससे ज्यादा कुछ नहीं।"
"ऐसा तो मैं भी सोचती हूँ। मुझे भी एसा ही लगता है कि प्यार जज़्बात है, और दोस्ती एक रिश्ता। जज़्बात खत्म हो सकते हैं, पर रिश्ते तोड़ें नहीं जाते।दोस्ती वाला प्यार अलग होता है, प्रेमी वाले प्यार में काम-वासना भरा रहता है। मगर हमें लोगों का मुंह बन्द कराने के लिए, मुझे लगता है शायद हमें ऐसा मान लेनी चाहिए।"
"लोग हमेशा कुछ ना कुछ बोलते ही रहेंगे। अभी उन्हें सक है, वैसे में उन्हें भरोसा हो जायेगा। अरे, तुम्हारा घर आ गए। और पता भी नहीं चला।"
कोमल और सतीश के college से घर आने के क्रम में उनकी ये बातें सुनते-सुनते मैं कैसे बीत गया मुझे भी पता नहीं चला। वैसे तो लोगों की जिन्दगियों से अब तक कई चीजों को मैं सिखा हूँ, लेकिन उनके यह ज्ञान भरी बातों वाली यह खूबसूरत लम्हा, मुझे बहूत पसंद है। मैं बीतता रहता हूँ, मगर मुझे हमेशा तलाश रहती है ऐसे ही लम्हों की। जो एक कहानी बन सके, और लोगों को सीख दे सके। उनके जीवन को एक अलग और अच्छी दिशा दे सके। सतीश कोमल के घर की घंटी बजाता है और पीछे मुड़कर कोमल को कहता है-"हमें अपने वर्तमान में ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जो शायद भविष्य में हमारी या किसी और की भी जिन्दगी खराब करें। लोगों की अगर हम एक बात मानेंगे तो वो हमसे आगे और काम करवायेंगे।"
सतीश दोबारा दरवाज़े की घंटी बजाने के लिए जैसे ही मुड़ा, दरवाज़ा खुला। चौखट के अंदर से कोमल की माँ सतीश पर नजर पड़ते ही अपने चेहरे में थोड़ा मुस्कान लाते हुए बोली-
"अरे, सतीश !"
"नमस्ते आंटी...!"
"आओ, अंदर आओ।"
सतीश अपने कदमों को पीछे करते हुए बोलता है-"नहीं आंटी। अभी जल्दी में हूँ।फिर कभी आऊँगा।" यह बोलकर वहाँ से चला जाता है।
"यह सतीश हमेशा जल्दी में रहता है, कि हमसे डरता है इसलिए भाग जाता है।"
"नहीं माँ, यह जल्दी लोगों से घुलता-मिलता नहीं है।"
कोमल और उसकी माँ, दोनों अंदर चलें जाते हैं।
~समाप्तम्~
Story continue in the next part, "हमदर्द सा कोई : भाग - ३"
-AnAlone Krishna
13/09/2017(date of published)
29/08/2017-13/08/2017(date of written)
My quote:- यह जरूरी नहीं कि साथ रहने वाला हर लड़का-लड़की lovers हो। अगर आप यह बोलते हो कि लड़का-लडकी कभी friends नहीं हो सकते, तो यह बात मैं समझता हूँ कि आप अपने सामने opposite character वाले person के मौजूदगी में खुद पर control नहीं रख सकते इसलिए ऐसा बोल रहे हो। और अगर ऐसा नहीं है तो चाहे कुछ भी बोल लो, यह बात अंदर से आप भी जानते हो कि लड़का-लड़की भी friends हो सकते हैं।
Thanks for read my story work.
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