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Life की परछाई : Chapter 5 (The Worthy Heir)| Bilingual story by AnAlone Krishna

● Life की परछाई ●

By AnAlone Krishna

Chapter 5

 (इस story को पढ़कर आप यह समझ पाओगे कि जिस बच्चे को जैसा माहौल मिलता है, उससे उम्मीदें भी उसी के अनुरूप कि जाती है। इसलिए उसके ख्वाब, ethical values, moral intention भी उसी के अनुरूप develop होता है। जिसके कारण उसके लिए काबिलियत, लायक, नालायक की परिभाषा भी अलग होती है।)

Prelude | Chapter 1 2 | 3 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 

● Life की परछाई ●
Chapter 5 : The Worthy Heir


सात साल की अभिषा अपने पिता के गोद में सिर रखकर रात में उनके कमरे में लेट कर अपने पिता से पूछती है, "जो कहानी आप हमको सुनाते हो, क्या Princess को भी King वही कहानियां सुनाया करते थे ?"

अभिषा के ऐसे अतरंगी सवाल सुनकर उसके पिता उससे पूछते हैं, "क्यों ? तुम ऐसा सवाल आज क्यों पूछ रही हो ?"

अभिषा बोलती है, "हमारी कहानियों में एक Princess होती है। जिससे किसी आम इंसान को प्यार हो जाता है। उस princess को शैतान उठा कर ले जाता है। जिसे छुड़ाने उसका lover आता है। फिर दोनों को प्यार हो जाता है। फिर king उन दोनों की शादी करवा देते हैं। पर कल जब मैं movie देख रही थी, उसमें एक princess से उस kingdom के सैनिक को प्यार हो जाता है। पर यह बात जब king को पता चलती है तो उस सैनिक को king jail में कैद करवा देते हैं। वो उस princess and सैनिक के love को क्यों accept नहीं किए ? कहानी में तो king मान जाता है।"

अभिषा के पिता smile करते हैं और उससे कहते हैं, "क्योंकि जब कहानी का king उसकी princess की शादी उस आम इंसान से करवाते हैं तो फिर वह आम आदमी उस princess के साथ महल में रहने लगता है, happy-happy. लेकिन जब असली princess की शादियां होती है तो वह अपने prince/king के kingdom में चली जाती है। वो princess जिसको एक सैनिक से प्यार हुआ था, वो तो शादी करके कोई और kingdom नहीं जाती। उस सैनिक का घर तो उसी kingdom के किसी गली में था। तो फिर उस princess को राजमहल छोड़ना पड़ता। पर princess को तो राजमहल में अच्छा-अच्छा खाना मिलता था, अच्छा कपड़ा पहनती थी, अच्छा bed में सोती थी, उसकी कई दासिया होती थी, वो कोई नहीं मिलती महल के बाहर। तो फिर वो कैसे जीती महल के बाहर ? king ये बात जानते थे, अपनी princess की फिक्र करते थे, इसलिए वो उनकी शादी नहीं होने दिए।"

अभिषा बोलती है, "तो वो king उस सैनिक को अगला king बना देते, और महल में ही रख लेते। वो ऐसा क्यों नहीं किए ?"

अभिषा के पिता उसे समझाते हैं, "उस king के बाद तो राजा उस kingdom का prince ना बनता। जो वह सैनिक था, उसको वहां के लोग, मंत्री, सेनापति अपना king कभी मानते ? वो तो चाहते ना अपने prince को राजा बनाने के लिए। जिसके चलते वो विद्रोह कर देते। हो सकता है कि कोई उस सैनिक का कत्ल भी कर देता। फिर वो princess विधवा हो जाती, उसका life फिर खराब हो जाता, इसलिए king उसका शादी नहीं होने दिया।"

अभिषा रूठकर बोलती है, "उस princess को उस सैनिक के साथ भाग जाना चाहिए था।"

उसके father उसको बोले, "फिर king उनके पीछे अपना सैनिक भेजता और यह इनाम रखता की जो उसकी princess को भगाने वाले सैनिक का सिर लाएगा उसको बहुत सारा सोना दिया जाएगा।"

अभिषा उठकर bed पर बैठ जाती है, और गुस्से से घूरते हुए बोलती है, "पापा, आप जान बुझकर अपने से बनाकर ये सब बोल रहे हो। यह जताने के लिए कि अगर मैं किसी के साथ भागूंगी तो आप उसे नहीं छोड़ोगे।"

अभिषा के पिता उसको मुस्कुराते हुए और उसके माथे को सहलाते हुए बोलते, "हर पिता की जिम्मेदारी होती है कि वो अपनी princess का ख्याल रखे, उसे safe रखें, और उसकी princess अगर कोई गलती करे तो उसे रोके।"

अभिषा बोलती है, "पर आपकी princess तो बहुत समझदार है ना पापा। फिर भी आप उसे रोकेंगे ?"

अभिषा के पिता बोलते हैं, "अगर मेरी princess समझदार है तो फिर वो भागना क्यों चाहती है ? क्या अपनी खुशी के पल में वो अपने मम्मी-पापा को शामिल करना नहीं चाहेगी ?"

अभिलाषा खुश होकर वो वापस अपने पिता के गोद में सिर रखकर सो जाती है, और बोलती है, "मै जिसको पसन्द करूंगी आप उसे अपना लोगे ना ? आपको अपनाना ही होगा।"

अभिलाषा के पिता बोलते हैं, "तुम बहुत जिद्दी हो। अगर वो लड़का अच्छा रहा, तो सोचूंगा।"

इसपर अभिलाषा गुस्सा जाती है, और अपना माथा उनके गोद से हटाकर bed के तकिए में रखकर सीधी होकर सो जाती है।


अभिषा अपनी गोद से पहली album को बगल मे रखती है और दूसरी album को उठाकर उसे पलटती है। बाईं तरफ सबसे ऊपर की तस्वीर मे ढाई साल की अभिषा अपने पिता की गोद मे सोई हुई है। नीचे की तस्वीर में 7 साल की अभिषा अपने पिता के कंधे में बैठकर मेले मे घूम रही है। दाई ओर ऊपर की तस्वीर मे अभिषा अपने जन्मदिन मे अपने पिता को cake खिला रही है, और उसके नीचे उसके बचपन की family photo है। अभिषा का लगाव अपने पिता से कितना ज्यादा था यह तो आप इससे समझ ही चुके होगे। आप देखोगे कि जब बच्चे 5 से 10 साल के होते हैं, वो बहुत ज्यादा जिज्ञासु होते हैं। इसलिए वो सवाल बहुत पूछते हैं। अभिषा भी इस उम्र में बहुत ज्यादा बातूनी थी।


मेले में पूर्वी अपने पिता के साथ अभिषा को मिली। अभिषा उसके साथ मिल कर मेला घूमना चाहती थी, झूला झूलना चाहती थी, खेल देखना चाहती थी। पर पूर्वी अपने पिता के साथ चली गई। तब वह अपने पिता को बोलती है, "पापा, पूर्वी ना, अपने पापा की हर बात मानती है।"

अभिषा के पिता उसे बोलते हैं, "यह तो अच्छी बात है। सभी अच्छे बच्चे अपने पिता की बात मानते हैं।"

अभिषा बोलती है, "आप दादाजी के अच्छे बच्चे नहीं हो। वो बोलते हैं कि आप उनकी कभी बात नहीं सुनते हो।"

अभिषा के पिता मुस्कुराते हैं और अभिषा को बगल में  अपनी छाती के जितने ऊंचाई वाली दीवार पर बिठाकर उसकी आंखों में देखकर बोलते है, "मै अपने पिता का समझदार बेटा हूँ, और तुम्हें भी बहुत ही समझदार बनना है।"

अभिषा पूछती है, "समझदार बच्चे अपने बड़ों की बात क्यों नहीं मानते हैं ?"

अभिषा के पिता उसे समझाते हैं, "समझदार बच्चों को किसी की बात मानने की जरूरत नहीं होती है। क्योंकि जो समझदार होता है उसमें समझदारी होती है सही और गलत की। इसलिए वह खुद समझ सकता है कि सही क्या है और गलत क्या। पर जो यह बात नहीं समझ सकते हैं उन्हें ना जरूरत होती है दूसरों की बात मानने की।" उसके पिता अभिषा का चेहरा देखते हैं और समझ जाते हैं कि अभिषा नहीं समझी। वह उदाहरण देकर समझाते हैं,

"देखो, मान लो कि मैं बाहर धूप से थका-हारा घर में आता हूँ। मैं तुम्हें देखता हूँ और कहता हूँ कि थोड़ा पानी ले आओ। जाते हुए पंखा चालू करने बोलूंगा तो तुम पंखा भी चालू कर दोगी। फिर तुम जाओगी और किसी भी मग या लोटा में पानी देखोगी, और उसे उठाकर ले आओगी। अब वो पानी साफ है या गंदा, तुम ध्यान दी ? क्या तुम साथ में glass लाई ? मतलब तुम उतना ही करोगी जितना कोई और तुमसे कहेगा। पर अगर तुम मुझे धूप से आते हुए देखो, और अपने मन से वहां से चली जाओ। अगर मैं जाते हुए पंखा चालू करने को बोलूं तो तुम अनसुना करके चली जाओ। क्योंकि धूप में शरीर गर्म होता है, इसलिए तुरंत पंखा नहीं लेना चाहिए और पानी भी नहीं पीना चाहिए। फिर कोई साफ सुथरा मग या लोटा को उठाकर, या उसे अच्छे से बिखेरकर उसमें ताजा-साफ और ठंडा पानी भरकर लाओ, उसमें नींबू निचोड़कर या सत्तू घोलकर। साथ में glass भी लाओ और आते समय पंखा चालू करो। तो क्या मैंने इतना कुछ कहा था ? मतलब तुम अपना समझदारी दिखाई ना...? इस तरह जब तुम खुद से अपनी समझदारी से काम कर सकती हो तो फिर हर बात मुझसे पूछने की क्या जरूरत हैं ? तो बताओ, तुम्हें मेरी हर बात माननी चाहिए या तुम्हें समझदार बनना चाहिए ?"

अभिषा बोलती है, "पर आप तो हमेशा सही बोलते हो। तो फिर आपकी बात क्यों नहीं माननी चाहिए ?"

अभिषा के पिता उससे बोलते हैं, "क्या मैं भगवान हूँ ?"

अभिषा बोलती है, "नहीं।"

उसके पिता आगे बोलते हैं, "क्या मुझसे गलतियां नहीं हो सकती है ?" सलोनी सोच में पड़ जाती है, उसके पिता 2 sec बाद आगे बोलते हैं, "देखो, जब मैं छोटा था, और मैं बड़ा हो रहा था, उस time मुझे कई बार ऐसा लगा कि मेरे पापा ग़लत कर रहे हैं, तो जब मुझे बोलना था मैं उनके उल्टा बोला। पर वो नहीं माने। फिर बाद में आगे चलकर कभी यह पता चला कि मैं गलत हूं और वो सही है, तो कभी वो गलत थे और मैं सही था। पर वो मेरी बात मुझे बच्चा समझकर कभी भी नहीं मानते थे। तो फिर उनका विरोध करना ही बंद कर दिया। फिर जब वो कुछ किए, और वो गलत हुए तो मुझे आके डांटे, कि मुझे उन्हें रोकना चाहिए था ना। मैं भी उन्हें बोला कि वो मेरी बात कभी सुनते है क्या ! तो फिर मुझे डांट कर बोले, हां तो फिर भी बोलना चाहिए ना, दबाव बनाना चाहिए, जिद्द करना चाहिए था। अगर मैं ऐसा करता तो शायद वो मेरी बात सुनते और वह गलती नहीं करते।"

अभिषा पूछी, "पापा, दादाजी खुद ही बात नहीं सुनते हैं और खुद ही बोलने बोलते हैं ?"

उसके पिता बोलते हैं, "हां। मैं उनकी बात नहीं सुनूंगा तो बोलेंगे कि मैं उनकी बात नहीं सुनता हूँ। जब उनकी बात सुनकर अपना अलग राय दूंगा तो उसमें भी बोलेंगे कि मैं उनकी बात नहीं सुनता हूँ। पर तुम ये सब चक्कर में मत पड़ो। तुम इस बात को समझो कि हर पिता चाहता है कि वो अपने बच्चों के लिए अच्छा ही करे। इसलिए वो वही करने की कोशिश करता है जो उसे सही लगता है। पर जरूरी तो नहीं कि वह हर बार सही ही हो। तो ऐसे में बच्चों का काम होता है कि वो इसका विरोध करे। हो सकता है कि बड़े बच्चों की बात सुने, हो सकता है उनकी बात को ना सुना जाए। पर फिर भी बच्चों को अगर कुछ गलत लगता है तो उन्हें अपनी बात कहनी चाहिए। क्योंकि हो सकता है बड़े ही गलत हो और तुम सही हो जाओ, तो बड़े तुम पर proud करेंगे कि तुम समझदार हो रही हो; और हो सकता है कि बड़े ही सही हो और तुम ही गलत रहो, पर फिर भी बड़े तुम पर proud करेंगे कि तुम सीख रही हो। इसे यूं समझो कि यह तुम्हारी test है। हम तुम्हारे marks काटने पे लगे हुए है, और तुम्हें यह साबित करना है कि तुम अच्छी हो। इसलिए तुम हार नहीं मानना है, और अगर कुछ गलत या सही लगे तो तुम्हें वह जरूर कहना चाहिए।"

यह सुनकर अभिषा अपने दोनों हांथ अपने पिता को बांहों में लेने के लिए फैलती है, जिसे उसके पिता पकड़कर बंद करते हैं और बोलते हैं, "मेरा कंधा दुःख रहा है अब तुम पैदल चलो।"

यह सोच कर अपनी bed पर बैठी अभिषा थोड़ी भावुक होती है। उदय उसके सामने आता है, वह अभिषा को album देखते हुए देखता है और अभिषा को देखकर मुस्कुराता है। वह hanger से अपने घर के कपड़े लेता है और कपड़े बदलकर खाना खाने चला जाता है। अभिषा album के page को पलटती है, और याद करती है उस दिन को जब वह अपनी पसंद से शादी करने के लिए अपने पिता से permission मांग रही थी और उसके पिता इसका विरोध कर रहे थे।

अभिषा के पिता उससे पूछते हैं, "तुम उस लड़के से शादी क्यों करना चाहती हो ?"

अभिषा बोलती है, "क्योंकि मैं उसे पसंद करती हो ?"

अभिषा के पिता उससे पूछते हैं, "और तुम्हारे ख्वाब का क्या ! उन सपनों का क्या ?"

अभिषा कहती है, "मै उन्हें शादी के बाद पूरा करने की कोशिश करूंगी।"

अभिषा के पिता उससे पूछते हैं, "तुम्हें सच में लगता है कि तुम शादी के बाद इस तरह अपने सपनों में ध्यान दे पाओगी ?"

अभिषा कहती है, "मैं manage कर लूंगी।"

अभिषा के पिता उससे कहते हैं, "पर मुझे यह उम्मीद नहीं है कि तुम ध्यान दे पाओगी।"

अभिषा कहती है, "पर वो मेरी problem है ना पापा। आप क्यों tension लेते हो ?"

अभिषा के पिता उससे कहते हैं, "मैंने अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे ऊपर खर्च की है। अपनी जरूरतों से पहले तुम्हारी जरूरतों और ख्वाहिशों का ध्यान रखते आया हूँ। इतनी मेहनत की मैंने और अपनी पूरी जिंदगी की कमाई तुम्हारे पढ़ाई पर खर्च कर दी, इसलिए कि तुम किसी दिन उन सभी पर पानी फेरकर ये सब छोड़कर चली जाओ ? तुम्हें और तुम्हारे भाई दोनों को एक ही school में पढ़ाया, तुम दोनों को बराबर सुविधा और मौका दिया हूँ। तुम्हें यही करना तो तो पहले ही छोड़ देती सब कुछ, तुम्हारे भाई को तो at least बेहतर मौका मिलता।"

अभिषा कहती है, "आप मुझसे ज्यादा बस अपने बेटे की फिक्र करते हैं, सिर्फ इसलिए कि वह बेटा है और बेटी ?"

उसके पिता कहते हैं, "अगर ऐसा होता तो हम तुम्हें भी सब सुविधा क्यों देते जो तुम्हारे भाई को देते ? बात ये है कि क्या तुम इस चीज का कद्र कर रही हो...।"

अभिषा कहती है, "पापा, मै कद्र करती हूँ। उन सभी का जो आपने मेरे लिए किया।"

उसके पिता उससे पूछते हैं, "तो फिर तुम अपने career में ध्यान देने के बजाए, शादी क्यों करना चाह रही हो ?"

अभिषा कहती है, "क्योंकि वो मुझे बहुत पसंद है पापा।"

उसके पिता उससे कहते हैं, "पसंद तो हमेशा बदलता ही रहता है, आज यह तो कल कोई और होगा।"

अभिषा कहती है, "पापा...। एक इंसान जिसके साथ रहने से मुझे ऐसा लगता है कि मेरे अन्दर की कमी पूरी होती है, जिसके साथ मेरी सोच मिलती है, जिससे उम्मीद है कि वो मुझे support करेगा, और जिसपर भरोसा है कि मैं पूरी जिंदगी उसके साथ गुजार सकती हूँ, मै उसे सिर्फ इसलिए छोड़ दूँ क्योंकि मुझे अपने ख्वाब प्यारे हैं, और बाद में किसी अंजान की हो जाऊं जो शायद मुझे support करेगा भी कि नहीं।"

उसके पिता उससे कहते हैं, "क्या तुम्हारे ख्वाब सिर्फ तुम्हारे हैं ? क्या हम सभी ने तुम्हारे ख्वाब को पूरा करने के लिए कोई मेहनत नहीं की है ? वह इंतज़ार क्यों नहीं कर सकता है तुम्हारी कामयाबी तक ? हम कौन सा तुम्हारी शादी किसी और से करवाने का कोशिश कर रहे हैं जो वह इंतजार नहीं कर सकता है ?"

अभिषा कहती है, "उसकी family उसकी शादी के लिए लड़की देख रहे हैं।"

उसके पिता उससे कहते हैं, "तो उसकी जुबान नहीं है, वो मना नहीं कर सकता है क्या ?"

अभिषा कहती है, "उसकी मां emotional drama करके उसको मिलने के लिए भेज दी। उसके मना करने पर अगर उसकी family उसपर emotionally pressure बनाएगी तो ?"

उसके पिता कहते हैं, "तो तुम्हें डर है कि कहीं वो अपनी family के लिए तुम्हें धोखा ना दे दे।"

अभिषा कहती है, "एक अच्छा बेटा अपनी family की तकलीफ को तो नहीं देख सकेगा ना ?"

अभिषा के पिता उससे पूछते हैं, "पर तुम हमारी उम्मीदों को तोड़ सकती हो ?" वह कुछ नहीं कहती, और फिर वो कहते हैं, "तुम हमारा सारा खर्च waste करने जा रही हो। हमारी सारी मेहनत बेकार कर दोगी। तुम उन चीजों के लायक नहीं थी। इससे बेहतर कि तुम्हारे ऊपर इतना खर्च करने के बजाए हम किसी और चीज पर खर्च करते, शायद तुम्हारे भाई के बेहतर education पर। तुम लायक नहीं हो हमारी विरासत के। अगर तुम उससे अभी शादी करोगी तो हम तुम्हें हमारी संपत्ति से बेदखल कर देंगे।"

पर अभिषा अपनी पसंद को चुनी, और अपने घरवालों के against जाकर अपनी पसंद, उदय से शादी की।

ऐसा आखिर क्या हुआ था कि अभिषा को इतना प्यार करने वाले पिता, उसकी पसंद को accept नहीं कर रहे थे ? ऐसा क्या हुआ कि अभिषा अपने चार दिन के प्यार के लिए अपना सब कुछ पीछे छोड़ दी। तो चलो बताता हूँ।

जब अभिषा, सलोनी और पूर्वी college से घर आती, खिलखिलाकर बातें करती हुई, हंसती हुई; तो गांव में तरह-तरह की बातें होती। लोग संदेह करते कि इन लड़कियों का कहीं चक्कर तो नहीं चल रहा। लोग मुंह पर बोलने से डरते, पर पीठ-पीछे बाते बनाते। लोगों की फुसफुसाहट इनके घरवालों के कानो में भी सुनाई दे ही जाता था। अभिषा का परिवार और उसके करीबी लोग revolutionary थे, जिसके चलते कोई हिम्मत नहीं करता था इनसे कुछ भी बोलने का। पर पूर्वी के घरवाले तो रूढ़िवादी थे, उन्हें सबसे ज्यादा फर्क पड़ता था कि लोग उनके बारे में क्या बोल रहे हैं। वहीं सलोनी के घर में लोग संदेह लेकर पहुंचते, सलोनी उन्हें डांट देती, घरवाले सलोनी पर बाहर-बाहर भरोसा दिखाते और लोगों को भगा देते। पर फिर भी लोग उसके घरवालों को परेशान करते। समाज चाहता था कि जल्द से जल्द इनकी शादी हो जाए, ताकि देखा-देखी उनके घरों की बच्चियां अपना पैर बाहर ना निकालने लगे। इनको देखकर उनके घरों के भी बच्चे बाहर जाकर पढ़ना चाहते, अपने ख्वाब सजाते, कुछ बनना चाहते। फिर समाज उनपर अपने ख्वाबों और इक्षाओं को थोप नहीं पाता। इसलिए बीच-बीच में लोग सलोनी के घर रिश्ते लेकर आ जाते थे। सलोनी सीधा मना कर देती, तो उसके घरवाले भी कुछ कर नहीं पाते। सलोनी के पिता भी उसपर दबाव बनाने की कोशिश नहीं करते थे। पर पूर्वी के घर में दृश्य थोड़ा अलग था। पूर्वी के पिता का निर्णय ही अंतिम निर्णय होता। पूर्वी से तो कुछ पूछा भी नहीं  जाता था। पूर्वी कहती कि उसे अभी पढ़ना है, अभी अपने ख्वाब को पूरा करना है। तो उसे यह आश्वासन देकर नाश्ते और चाय की trolly थमा देते कि "बस देखने ही तो आए है। अभी शादी थोड़ी ना हो रही है।" सलोनी पूर्वी को समझाती कि पूर्वी उन्हें सीधा मना कर दें। पर पूर्वी कहती कि उन्हें बुरा लगेगा अगर वो मेहमानों के साथ misbehave करेगी तो। एक दिन खबर मिला कि  पूर्वी का रिश्ता तय हो गया। अभिषा उसको पूछी तो पूर्वी बोली कि वह अभी अपना पढ़ाई में ध्यान देना चाहती है पर घरवाले नहीं मान रहे हैं। अभिषा बोली कि "अगर कोई मदद चाहिए तो बोलो" पर पूर्वी बोली कि वह खुद संभाल लेगी। फिर कुछ दिन बाद पता चलता है कि date तय हो गया। अभिषा पूर्वी के घर गई, उसके घरवालों से बात करने। वह बात करने ही वाली थी कि पूर्वी मुस्कुराकर बोली, "जो हो रहा है होने दो, अपनी टांग मत अड़ाओ।" तब अभिषा को यह अहसास हुआ कि पूर्वी अपने घरवालों के सामने ऐसे जता रही है कि वो खुश है अपने घरवालों के फैसले से। मतलब, she is the part of "The World of Two Realities", ऐसे लोगों का समाज जो दूसरों के सामने कुछ और बनते हैं और अंदर से कुछ और ही होते हैं। वो बताते कुछ है और उनका सच कुछ और ही होता है। वो दिखाते कुछ और है और मानते कुछ और है। वो कहते कुछ और है और करते कुछ और ही है।

अभिषा समझ गई कि पूर्वी उसे धोखा दे रही है। पूर्वी अभिषा को बोली तो थी कि वह अपने घरवालों का विरोध कर रही है, पर वो अपने पिता के सामने खुश होने का नाटक कर रही थी। जिससे उसके पिता को यह लग रहा था कि पूर्वी खुश है उनके फैसले से। तो फिर पूर्वी विरोध किससे कर रही थी ? घर के उस सदस्य से जिसकी उस घर में ना के बराबर चलती है, अपनी भाभी से। घर के उस सदस्य से जो उसकी सुनती नहीं थी, अपनी मां से। और वो इनसे उम्मीद लगाकर रखी थी कि ये दोनों पूर्वी के पिता से बोलेंगे कि पूर्वी शादी नहीं करना चाहती है। उसकी मां अगर बोलती तो फिर भी वो पूछ लेते पर अगर उसकी भाभी यह बोलती तो क्या लगता है कि वो यह बात मानते ? पूर्वी जैसे जता रही थी, शायद वो इस बात से इंकार कर देती कि पूर्वी को शादी से कोई आपत्ति है। क्योंकि वो खुश होने का नाटक तो already कर ही रही थी। सलोनी अभिषा को बोली, "मै इसलिए तुम्हें कुछ करने से मना कर रही थी। वहां हमारे सामने कुछ और कहती है और अपने घरवालों के सामने कुछ और जताती है। हमेशा।" और पूर्वी की शादी college के दूसरे साल में ही हो गई। 

इसके बाद लोग सलोनी के पीछे पड़े, और वह इनसे तंग आकर hostel में रहने लगी। अभिषा कुछ महीने घर से अकेली college आना-जाना की। इस खालीपन में उसे अपनी पसन्द को आजमाने का और वक़्त मिला। वह उदय को और अच्छे से जानने लगी, वह उसके और करीब हो गई। पर तब तक उदय की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। उसके घरवाले उसके लिए भी लड़की देखना शुरू कर दिए। उदय तो कोई न कोई खोट निकालकर कईयों को मना कर दिया। पर हर बार तो उदय की चल नहीं सकती थी। कभी जबरदस्ती तो कभी बहाने से उसे लड़कियों से मिलाने लगे। अभिषा को लगा कि वह अगर इस तरह हांथ पे हांथ धरी रहेगी तो वह एक दिन उदय को खो देगी। इसलिए वह अपने पिता को मनाने की कोशिश की, कि वह उदय के घर रिश्ता लेकर जाए। पर अभिषा के पिता उसे मना कर दिए। इससे पहले किसी दिन उसे घर छोड़ने के लिए उदय आया था। गांव में जब लोग यह देखे तो लोगों को और ज्यादा मौका मिला सलोनी के घरवालों को बहकाने का। राखी के त्यौहार में जब सलोनी घर आई हुई थी, और जब उसके अगले दिन वो तैयार होकर वापस hostel जाने की तैयारी करने लगी, उसकी मां बोली कि वो उस दिन नहीं जा सकती है। क्योंकि उसे देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं। जब सलोनी की मां कुछ सामान लेने गई तो सलोनी किसी को बिना बताए चली गई। जब मेहमान आए, सलोनी अपने कमरे में नहीं थी। मेहमान हैरान हुए, और सलोनी के घरवालों को शर्मिंदगी हुई। लोग, वो बाते करना शुरू किए...

"जब लड़की वाले आए थे तब सलोनी नहीं थी।"

"नहीं थी ? कहां चली गई...?"

"भाग गई।"

"भाग गई ! क्यूँ भाग गई ?"

"शादी नहीं करना चाहती थी इसलिए।"

"शादी नहीं करना था तो मना कर देती। भागने की क्या जरूरत थी ?"

"किसी से चक्कर चल रहा था क्या ?"

"उसी के साथ भागी क्या ?"

"किसके साथ चक्कर चल रहा था ?"

"कितना दिन से चल रहा था ?"

"अरे बस...।" अपने दोनों कानों को हाथों से ढंककर अभिषा चिल्लाई। जब वह college से घर आई, और पैसे निकालने के लिए अपना good luck तोड़ी। और उसकी मां पूछी कि "क्यों तोड़ रही हो ? क्या तुम भी सलोनी की तरह किसी के साथ भागने की तैयारी कर रही हो ?" और फिर जब वो सारे सवाल सुनी जो लोग  सलोनी के बारे में बोल रहे थे। 

अभिषा बोली, "आज college में examination form भरने का आखिरी दिन था। अगर आज भी वह नहीं भरती तो फिर उसे exam देने नहीं दिया जाता। उसके पास पैसे नहीं थे। वह घर आई थी यह उम्मीद में  कि घर में कुछ पैसे मिलेंगे तो वो जाके form भरेगी। लेकिन घरवालों को तो अपना ही अलग तमाशा करना होता है। लड़के वालो को बुलाने से पहले सलोनी के घरवाले एक बार भी पूछे थे ? कोई ये सवाल कर रहा है ? जब मुझे H.O.D. Ma'am सारा form मिलाने बोली, तो मुझे सलोनी का form नहीं मिला। तब जाके पता चला कि वह form नहीं भरी है। तब जाके उसको ढूंढे, हांथ में form लेकर खड़ी थी। पर उस पगली को मुझसे भी पैसे मांगने में शर्म आता है।"

"तुम्हारे पास कहां से आया उतना पैसा ?"

"मैं किसी से उधार मांग कर दी थी।"

"तो पैसा तो दे दी ना। अब क्यों तोड़ रही इसे ?"

"पैसे लौटने भी तो होंगे ही ना...। वो क्या मेरा आशिक है जो ऐसे ही छोड़ देगा !"

"पैसा सलोनी ली है तो वो ना देगी।"

अभिषा गुस्से में बोलती है, "वो कहां से देगी ? पैसे मै ली हूं तो मैं ना लौटाऊंगा।"

तब तक सलोनी के पिता आए, अभिषा से पूछने के लिए कि क्या उसे पता है कि सलोनी कहां गई है। पर अभिषा, मुंहफट गुस्से में उनको भी चार बाते सुना दी- "लोग बच्चा पैदा करके सोचते है कि बहुत बड़ा तीर मार दिए हैं। बच्चों की खुशी की कोई परवाह ही नहीं बस सिर्फ अपनी खुशी सुझती है उन्हें। कहीं गई नहीं है आपकी बेटी, exam form भरने college गई थी, और पढ़ाई करने hostel गई है। दूसरे भरोसा नहीं करते हैं तो समझ में भी आता है, आपको भी भरोसा नहीं है अपनी खुद की परवरिश पे कि वो ऐसा कोई काम करेगी ?"

सलोनी के पिता कहते हैं, "मैं कुछ बोल रहा हूं उसे ? उसे बता कर जाना चाहिए था ना..। हमलोग कितना परेशान है उसके लिए।"

अभिषा रोष में जब बोलती है तो सामने किसी को फिर बोलने का मौका नहीं देती है, बस बोलती ही चली जाती है। वह बोलती है, "आप थे घर पे ? और जो थी घर में महारानी की तरह हुकुम चलाने वाली, बताई थी पहले उसको कि आज घर में मेहमान आ रहा है ? बताती तो सलोनी नहीं बताती कि आज form भरने का last date था। और इतनी बार मना करने के बावजूद जो बिना बताए घर में मेहमान बुला लिए, वो कितना भरोसा करती कि आज आपलोग उसे college जाने देते ?"

सलोनी के पिता बोलते हैं, "वो मेहमानों के जाने के बाद भी तो जा सकती थी।"

अभिषा बोलती है, "तब तक office खुला रहता ? कि मेरी एक student को आज लड़के वाले देखने आए होंगे। Office को आज late तक खुला रखो वो उनको लुभा कर आ ही रही होगी।"

अभिषा से ऐसी बातें सुनकर उसकी मां उसे खींच कर एक चाटा दी। सलोनी के पिता को बेइज्जती महसूस हुई। वह वहां से मुंह लटका के वापस चले गए। अभिषा के अंदर जो dominating parents को लेकर गुस्सा था, सब सलोनी के पिता पर निकल गया।  जब अभिषा के पिता को उसके इस व्यवहार का पता चला, वो बहुत ही आहत हुए। इसलिए उसके बाद वह अभिषा की हर बात मानना बंद कर दिए, और उसकी खामियों को भी अब नजरअंदाज नहीं करने लगे।

जब सलोनी के पिता अपने घर गए, सलोनी की मां उनसे पूछने आई कि "कुछ पता चला सलोनी के बारे में ?"

तब सलोनी के पिता उससे पूछे, "क्या तुम सलोनी को पहले बताई थी कि आज घर में मेहमान आ रहे हैं ?"

उसकी मां बात को घुमाने की कोशिश की, "तोहरा तो ऐसन लागों हो कि ओकरा बताइबे नाय करल हेलियय।"

सलोनी के पिता आँखें बड़ी करते हुए पूछते है, "कब बोली थी तुम उसको ?"

सलोनी की मां बोली, "आईज बिहाने तो बोलले हेलियय।"

सलोनी के पिता उसकी मां को एक तमाचा खींच के मारते हैं, और कहते हैं, "तोर चलते हाम समाज के सामने बेइज्जती भेल हियय। सब तोर चलते।"

लोग कूटनीति करते हैं। सलोनी की मां को लगा कि अगर वो पहले बताएगी तो सलोनी फिर मना करेगी। अगर वो पूछ लेती तो ये सब नहीं हुआ होता। उसके पिता को ऐसे भ्रम में रखी कि सलोनी की सहमति से वो लड़के वालो को बुला रही है। सलोनी के पिता सीधे मुंह सलोनी से नहीं पूछे। वह इतने frank नहीं थे सलोनी के साथ। वो इसको पूछने में संकोच किए और खुलकर सलोनी से इस विषय में बात नहीं किए थे, जिसके चलते सलोनी समझ नहीं पाई कि घर में किस matter में बात हो रही है। जब सलोनी को सुबह अपनी मां से पता चला तो, सलोनी को अपने पिता के hints समझ में आया, पर उसको गलत समझ में आया। उसे लगा कि उसके पिता भी उसकी मां के साथ मिलकर उसे force कर रहे हैं। जिसे clear करने के लिए उसके सामने उसके पिता नहीं थे। और वह इंतजार भी नहीं कर सकती थी। इसलिए उसके पास बिना बताए घर से जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था।


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Note:- हर कोई दूसरों को अपने तराजू में तौलकर उसे अच्छा या बुरा कहता है। किसी के नजर में अच्छा होना और वास्तव में अच्छा होना, दो अलग बातें हैं। उसी तरह किसी की नजर मे बुरा होना और वास्तव मे बुरा होना भी अलग बात है। हर कोई छोटी-छोटी ही गलती करते हैं, पर उसका नतीजा आपस मे मिलकर बड़ा हो जाता है।


Story by -AnAlone Krishna.
Completed on 13th July, 2025 A.D.
Published on 8th August, 2025 A.D.


● Life की परछाई ●
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