Life की परछाई : Chapter 3 (The characters' growth) | Bilingual story by AnAlone Krishna.

● Life की परछाई ●

By AnAlone Krishna

Chapter 3

 (अपनी बेटी मेहक की वजह से रीमा का अभिलाषा के life में वापस आने से अभिलाषा अपनी बचपन की सहेली रीमा के साथ बिताए अपने पलों को लम्हां-लम्हां अनचाहे ही एक बार फिर से याद करने लगती है। जिसे एक side से एक बार दोबारा याद करने के लिए वह अपने बचपन से लेकर आज तक की सारी photo album को इकट्ठा करती हैऔर उन snapshots को पलटते हुए उन पलों को याद करती है।)

Prelude | Chapter 1 | 2 | 3 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 

Life की परछाई

Chapter 3 : The characters’ growth


अभिषा bed पे ही बैठे-बैठे album का page पलटती है। वह देखती है कि उसके तेरहवें जन्मदिन की कुछ तस्वीरें हैं। बाई side ऊपर cake को काटते हुई, नीचे अपने पापा की खिलाती हुई, दाहिने side ऊपर उसकी माँ उसे खिला रही है, और फिर नीचे सभी का group photo. उस photo में सलोनी तो थी बाकी बच्चों के बीच, लेकिन रीमा उनमें कहीं नहीं थी। कुछ हालात ऐसे होते हैं कि अच्छे को बुरा बना दिया करते हैं। उन तीनों का आखरी जो अनुभव रहा, उनके जीवन में बहुत कुछ बदल दिया।

रीमा के घरवालों ने पिछले incident के बाद रीमा को अभिषा और सलोनी से मिलने की या closeness रखने की permission नहीं थी। उन्हें लगता था कि उनके संगत में अगर रीमा रहेगी तो वह बिगड़ जाएगी। सिर्फ यह ही नहीं, अगर उसे बाजार से कोई सामान चाहिए हो तो भी घरवाले उसके लिए खरीद कर ला देते। सिर्फ बहुत जरूरत पड़ने पर ही वह अब school के बाद घर से बाहर निकलती, फिर भी किसी बड़े के साथ, कभी भी अकेले नहीं। जिसके चलते वह अपने इस सोने से पिंजरे में कैदी बनने के हालात के लिए सलोनी को जिम्मेदार मानने लगी। और धीरे-धीरे वह उससे नफ़रत करने लगी। दूसरी ओर शुरू में तो सलोनी के भी घरवालों ने उसे घर में कैद कर दिया। पर उसकी बंदिशें इतनी नहीं थी कि वो अभिषा को उससे मिलने आने से रोके और फिर कुछ दिनों के बाद उसे फिर अभिषा के साथ बाहर जाने से भी कोई नहीं रोकने लगा। यहाँ बात थी, भरोसे की। रीमा के घरवालों को अभिषा और उसके संस्कार पर भरोसा नहीं था, जबकि सलोनी के घरवालों को अभिषा पर भरोसा था, कि जबतक सलोनी अभिषा के साथ रहेगी, वह कुछ भी गलत नहीं करेगी। जिससे अभिषा के साथ सलोनी की दोस्ती और गहरी होती चली गई, और जबकि रीमा को तो अपने घरवालों का डर होता था जिसके कारण वह अब हमेशा उनसे दूरी बनाती थी। जिसके चलते अभिषा और सलोनी को साथ देखकर रीमा के अंदर सलोनी के लिए नफरत और ज्यादा बढ़ने लगा।

उस दिन drawing competition के बाद रीमा घर आई। उसके बाद शाम को अभिषा और सलोनी के साथ वह खेलने गई। वैसे तो वह अभिषा के समझाने पे फिर से एक दूसरे के साथ अच्छी friend की तरह रहने की कोशिश करने लगी। पर उस उम्र का दोष ही यह होता है कि teenagers को अपने शरीर में हो रहे बदलावों के कारण अपने emotions पर control नहीं रहता। वो किसी भी चीज को लेकर बहुत ज्यादा excited हो जाते हैं। फिर चाहे वह emotion fear का हो, happiness का, loneliness का, anger या frustration का, या फिर किसी भी चीज का... love या कोई भी other emotion...

रीमा जब उनके साथ खेल कर वापस आई, तो वह पड़ोसियों को उसी घटना के बारे में बात करते हुए सुनी। जब वह उनकी ओर देखी, तो बातें करते हुए रीमा की ओर देखती उनकी तीखी आँखें मानो रीमा को ही blame कर रही हो। इससे उसके दिल में पूरी तरह ना बुझी चिंगारी को फिरसे हवा लग गई। वह फिर से सलोनी को मन ही मन blame करने लगी, उसके प्रति नफ़रत महसूस करने लगी। ऐसे में जहाँ adults अपना ध्यान नकारात्मक चीजों से हटाने या यूँ कहें तो भटकने की कोशिश करते हैं, teenagers को अपने emotions की समझ नहीं होती, जिसके कारण वह अपने emotions को control करना नहीं जानते हैं और इसलिए वह बार-बार- लगातार उसी चीज के बारे में सोंचते चले जाते हैं। जिसके कारण उनके अंदर का वह negative emotion और ज्यादा बढ़ते चल जाता है। रीमा भी उसी तरह सलोनी के बारे में और ज्यादा negative चीजें सोंचती चली गई और उसका उसके प्रति negative attitude develop होना फिर से शुरू हो गया।

 

जब आधी रात को रीमा के पिता खाने के वक्त घर आए..। Wait, मैं उनका पहले व्यवसाय के बारे में बता दूँ। रीमा के पिता transporting के व्यवसाय से जुड़े हुए थे। वह गाँव में बनी ईंटों को, नदी से बालू, गिट्टी, etc. का supply जहाँ से demand हो वहाँ किया करते। फिर लौटते वक्त शहरों से cement, सरिया, and other products को आसपास के गाँव के खुदरा दुकानों में supply किया करते। दिनभर लोगों का रास्तों में आवागमन होता इसलिए दिन में कम और रात में ज्यादा तेजी से काम होता। इसलिए शाम को हर रोज routine checkup करते, फिर सभी transports के supply के लिए निकलने के बाद घर लौटते। इनके staffs भी midnight तक supply करके गाड़ियों में ही सोते, फिर सुबह शहरों से सामान लेते हुए आते और सुबह 10 बजे तक उन्हे अपनी जगह पर लाकर खड़े कर देते।

तो जब वह वापस घर लौटे और उन्हे पूरा वाकिए के बारे में पता चल, उन्होंने रीमा को अपने पास बुलाया। पर इससे पहले कि वह कुछ बोलते, रीमा अपने frustration में सारा वाकिया अपने perspective से सुनाना शुरू कर दी। वह लगातार खुद को innocent और इसके लिए सलोनी को दोषी बतलाने की कोशिश करती रही। पर उसके पिता के पास उम्र के साथ-साथ तजुर्बा भी था। वह समझ गए कि उस वाकिए में actual दोष किसका था।

किसी सभ्य समाज के बच्चों के लिए यह बात सबसे ज़्यादा अहम होती है कि उसे अपने भावनाओं की समझ हो ताकि वह अपने emotions को अपने control में रख सके। वह अपने गुस्से को, ईर्ष्या, आदि को अपने अंदर दबाकर रखना जानते हैं तभी तो वह औरों से अपने व्यवहार अच्छे रख पाते हैं। जल्दी उनका किसी से झगड़े नहीं होते और शांतिपूर्ण माहौल अपने आसपास बनाकर रख पाते हैं। अभिषा और सलोनी जिस माहौल में रहती वहाँ अपने emotions को लोग control नहीं किया करते, बल्कि बेहिझक खुद को express कर देते थे। और उनके साथ रह-रहकर रीमा का व्यवहार भी वैसा ही होता जा रहा था। जिसके चलते पहले रीमा उस लड़के से उलझ गई, फिर सलोनी से झगड़ा कर ली, और अब अपने पिता के सामने भी बिना लगाम के जो मन में आए वो सलोनी के बारे में बोले जा रही थी। इसलिए रीमा के पिता ने एक फैसला लिया कि अब रीमा अपने school के बाद सिर्फ घर में ही रहे और अभिषा और सलोनी के साथ ना रहे। रीमा आज्ञाकारी बच्ची थी इसलिए वह अपने पिता की बातों का विरोध नहीं कर सकती थी। हालांकि उसके पिता ने यह सिर्फ इसलिए किया ताकि रीमा दूसरे माहौल के प्रभाव में आकर ना भटके, अपने समाज के माहौल, रहन-सहन, व्यवहार को देखे, सीखे, और उसके अनुरूप खुदको ढ़ाले। पर वह बड़ी तो हो गई थी, फिर भी सिर्फ अभी बच्ची थी, उसके अंदर अभी यह सब समझने की छमता विकसीत नहीं हुई थी।

 

दूसरी ओर, अभिषा के पिता stenographer थे, वही जो court में judge के नीचे बैठकर typewriter में सारा वाकिया को type करते रहते हैं। साथ ही सलोनी के पिता वहीं civil court के judge का driver थें। जब अभिषा के पिता को वह वाकिया बताया जा रहा था, अभिषा वहीं पर थी। उससे पहले कि उसके पिता कुछ बोलते अभिषा ही रोष में आकार बोल पड़ी, “देखिए, पहली बात तो यह कि जो हुआ वह मेरे गैरमौजूदगी में हुआ। और दूसरी और सबसे important यह कि हमने कुछ भी गलत नहीं किया। ना ही सलोनी का उससे कोई लेना-देना है, ना ही आपलोग से छुपा कर हमलोग कोई गलत काम कर रहे हैं।“

अभिषा के पिता court में आए दिन अलग-अलग तरह के घरेलू मुद्दे देखते-सुनते-समझते रहते थे। जिससे उनका इस चीजों में अच्छा अनुभव और समझ था। वह इस बात को समझते थे कि- लोग झूठ इसलिए बोलते हैं क्यूंकि वह यह बात जानते हैं कि उनके सच को लोग accept नहीं करेंगे और उन्हे उनकी स्वतंत्र ईक्ष या क्रिया के लिए सजा दी जाएगी। वह धोखा तब देते हैं जब उनके पसंद-नापसंद को स्वीकार नहीं किया जाता है और अपनी पसंद-नापसंद को उनपर थोपने की कोशिश की जाती है। इसलिए अभिषा के ऊपर भरोसा दिखाते हुए उसके माथे पे हाँथ फेरते हुए उसके पिता उसको बोले, “पर तुम्हें मुझे पहले यह बताना चाहिए था ना..।“

इसपर अभिषा उनकी ओर माथा उठाकर नजरों से नजरें मिलाकर बोली, “पापा, इतना बड़ा issue यह था नहीं जितना इनलोग इसको बना दिए हैं। किसी लड़का इश्क का बुखार चढ़ा था, और हमने उसे भाव नहीं दिया। बस इतनी सी ही तो बात थी। हाँ, अगर इसके बाद भी वो अगर हमलोग को परेशान करता, तो आपको लगता है कि उसको ऐसे ही छोड़ देते ! पहले को अच्छे से सबक सीखा लेते, फिर आपको बताते”।

यह सुनकर उसके पिता मुस्कुराकर बोले, “हाँ-हाँ, मेरी बेटी तो है ही फुल्लन देवी। वो गधा ही होगा जो तुमसे उलझने आएगा।“ वह अपने अनुभव से अभिषा को कुछ-कुछ समझाए, फिर थोड़ा रुककर बोले, “अच्छा मैं सलोनी के घर हो आता हूँ। उसके पिता का मिजाज ठीक है कि नहीं यह भी तो देखना होगा।“

इसपर अभिषा भी साथ चलना चाही, पर उसके पिता उसे घर में ही रुकने को बोले। सलोनी के पिता के कानों में यह बात गई थी कि, “आखिर ये सब भाव दी होगी तभी तो किसी का हिम्मत हुआ इनके इनके सामने अपने प्यार का इजहार करने का।“ जो सुनकर वह सलोनी के ऊपर अपना दिनभर का भड़ास निकाल दिए और गंदी-गंदी गालियों के साथ सलोनी को खरी-खोटी सुना रहे थे। अभिषा के पिता उन्हे बहला-फुसलाकर अपने साथ घर से बाहर ले गए। फिर एकांत मे ले जाकर उसे समझाए, “लोगों की समझ ही कितनी है जो तुम उनकी बातों को इतना ज्यादा सिर पे ले रहे हो। वो तो कुछ भी बोलते हैं। और तुम हो कि बेचारी बच्ची के ऊपर अपने दिनभर का भड़ास निकाल रहे हो। अपना समय भूल गए, जब तुम भी पढ़ने-लिखने छोड़कर आशिकी करते फिरते थे। अभी मैं पूरा अतीत याद दिलाऊँ क्या !”

सलोनी के पिता अभिषा के पिता को घूरते हैं, फिर अभिषा के पिता आगे बोलते हैं, “देखो, तुम यह बात अच्छे से जानते हो कि इसमें इनका दोष नहीं है। देखा जाए तो इसमे उस लड़के का भी उतना दोष नहीं हैं, जितना दे रहे हो। यह उमर ही ऐसा होता है कि बच्चे बहक जाते हैं। पर बड़े होने के बाद यह सब कुछ भी मायने नहीं रखेगा। बल्कि यही सब अनुभवों के कारण तुम्हारे जैसे अपने-आप पर काबू करना ये सब सीखेंगे। इस समय जरूरी है कि हम उन्हे अपने अनुभव से guide करे। पर ऐसे दुश्मनों जैसा व्यवहार कोरोगे तो बच्चे डर नहीं जायेंगे ! वो तो डर से और हमसे बातों को छुपाने लगेंगे।“

फिर अभिषा के पिता समझा-बुझा कर सलोनी के पिता को शांत किये और बाद में अपने बच्चों को व्यस्त रखने के लिए छोटे और पढ़ाई में कमजोर बच्चों को tuition पढ़ाने का उपाय करते हैं।

वे अपने बच्चों को समझाते हैं कि, “तुमलोग जब आगे का class जाते हो तो पीछे की पढ़ी चीजें भूलते चले जाते हो। जिसके चलते तुम्हारा base कमजोर होते चला जाता है, जिसकी वजह से class में तुम्हें chapters समझ में नहीं आते हैं। अगर तुमलोग tuition में पढ़ोगे तो तुम्हें tutor सिर्फ काम भर ही पीछे की चीजें revise करवाएगा। पर बच्चों को पढ़ाओगे तो पीछे की सारी चीजें तुम्हें revise करने का मौका मिलेगा। और उससे जो पैसे कमाने का तुम्हें मौका मिलेगा उससे तुम अपने tuition में fee भरना, और अगर बच जाए तो अपने शौक पूरा करना।“ इस तरह वो इन्हें व्यस्त रखना चाहते थे, ताकि उनके पास भटकने के लिए वक्त ही ना हो। सलोनी को पढ़ना पसंद था, पर घर की आर्थिक स्थिति के कारण उसे ठीक से सुविधाएं नहीं मिल पाती थी। उसके books पुराने किसी से मांगे हुए होते थे, जिन्हें बाद में उसे लौटाना पड़ता था। वह अभिषा की तरह art and craft की चीजें नहीं खरीद पाती थी, इसलिए वह इनमें interest भी कभी नहीं दिखाती थी। इसलिए वह tuition पढ़ाने के लिए झट से मान गई। पर अभिषा पढ़ाई के अलावा बाकी curriculum activities में अपना वक्त देती थी इसलिए वह पढ़ाने से मना कर दी, यह बोलकर कि उसके पास वक्त ही कहाँ बचता है जो वह किसी और को दे..। उस मोहल्ले के माता-पिता भी अपने बच्चों को वक्त नहीं दे पाते थे, इसलिए वो भी चाहते थे कि किसी की निगरानी में बच्चे पढ़ने के लिए बैठे। और इस तरह सलोनी अपने सातवीं कक्षा में ही अपने से छोटे बच्चों की teacher बन गई। कभी-कभी जब अभिषा को वक्त मिलता या सलोनी का तबीयत खराब होता तो अभिषा भी बच्चों को पढ़ा दिया करती थी, वह भी guest teacher बन गई। इसका positive असर सलोनी के पढ़ाई में भी दिखने लगा और class में उसका performance बेहतर होने लगा।

वक्त बीतता गया और सलोनी के साथ उसके students की bonding बढ़ती चली गई। फिर teachers day आया तो बच्चे इसे celebrate करने का जिद्द करने लगे। सलोनी पैसे की कद्र जानती थी, इसलिए उन बच्चों को वह मना कर दी। यह बोलकर कि, “जाओ, फिजूलखर्ची के जो पैसे बचेंगे उन्हें अपने लिए खर्च करना।“ पर बच्चे को यह सब बड़ी-बड़ी और गहरी बातें कहाँ समझ में आती है ! वो तो बस अपने वर्तमान को जीने की कोशिश करते हैं। सलोनी अपने students से थोड़ी strict थी, पर अभिषा soft, इसलिए बच्चे अभिषा के पास जाकर जिद्द करने लगे सलोनी को मनाने के लिए। जब वो सभी सारी चीजें arrange कर रही थी तब सलोनी बोली, “काश ! रीमा भी हमारे साथ यह सब enjoy करती तो कितना अच्छा होता !“ यह सुनकर अभिषा को रीमा को वहाँ बुलाने का मन किया, वह सलोनी को बताकर वहाँ से चली गई।

जब अभिषा रीमा के घर गई तो वह रीमा को अपने घर के पहले मंजिले के अपने कमरे की खिड़की के पास बैठकर पढ़ाई करते हुए देखी। वह दरवाजे के पास आकर खटखटाई तो अंदर से बूढ़ी महिला की आवाज आई। वह दोबारा खटखटाई तो थोड़ी देर बाद रीमा की माँ दरवाजा खोली। अभिषा अंदर जाते हुए बोली, “Aunty, रीमा को बुलाइए ना। हमलोग हमारे tuition में teachers day celebrate कर रहे हैं”।

रीमा की माँ बीच में अभिषा की बात काटते हुए बोली, “उसका तबीयत खराब है वह अपने कमरे में सो रही है।“

अभिषा कुछ बोलने ही वाली थी कि वह सीढ़ियों से रीमा को उतरते हुए देखी।

रीमा की माँ अभिषा के बाजू को पकड़कर उसे बाहर ले जाते हुए बोली, “इसका तबीयत ठीक नहीं हैं, यह कहीं नहीं जाएगी।“ और उसे बाहर निकालकर पीछे से दरवाजा बंद कर दी। पहले तो अभिषा उतना गौर नहीं की, और वापस जाने लगी। पर दो कदम जाकर उसे यह ध्यान आया कि रीमा तो ठीक लग रही है। वह वापस मुड़कर दोबारा दरवाजे के पास जाकर फिर से खटखटाने के लिए अपना हाँथ उठाई ही थी कि उसे अंदर से रीमा की माँ का आवास सुनाई दिया, “तुमको यह बार-बार समझाना पड़ेगा कि उन दोनों बिगड़ैल लड़कियों के साथ तुमको नहीं रहना है। उन्ही के साथ तुम भी बिगड़ती जा रही हो। उनके माँ-बाप उनलोग को सिखाया नहीं है कि कब किसके सामने क्या बात करना चाहिए और क्या नहीं। और उन्हीं के संगत में रहकर तुमको भी तमीज नहीं है बात करने की। कब-क्या बोलना चाहिए यह अक्कल नहीं है।...“

यह सब सुनकर अभिषा का हाँथ रुक गया और उसकी गुस्से से मुट्ठी बंध गई। फिर उसे खयाल आया कि वह रीमा के घर के बाहर है, और सलोनी अकेले बच्चों को संभाल रही है। वह उसका इंतजार भी कर रही होगी। इसलिए अभी वहाँ तमाशा करना सही नहीं है। वह बिना वक्त गवाएं सलोनी के पास गई। फिर बच्चों के साथ उस day को celebrate भी की। दिन गुजरा, पर अभिषा के दिमाग से रीमा की माँ का बात जा ही नहीं रहा था। जाता भी कैसे ! वह उसके माँ-बाप और उसकी परवरिश के बारे में जो बोल दी थी। फिर कुछ दिन बाद उसका जन्मदिन आया, पर वह रीमा को दोबारा invite करने उसके घर कभी नहीं गई। अब वह रीमा के घर कभी जाना ही छोड़ दी थी। इसके बाद अभिषा सलोनी और उसके tuition के बच्चों के साथ वक्त बिताया करती। और रीमा इन्हें खुश और खुद को दुःखी देखकर अपनी हालत का जिम्मेदार सलोनी को मानकर उससे नफ़रत करने लगी।

 

अभिषा album का एक और page पलटती है। इसमें snapshots थीं उनकी 8th के February का, जब 10th के students को farewell दिया जा रहा था। बाई side ऊपर stage में अभिषा सलोनी के साथ नृत्य करती हुई, दाहिने side ऊपर अपने teachers से अपने performance के लिए दोनों सम्मान पाती हुई, और फिर दोनों के नीचे seniors के साथ group photos. उस दिन रीमा function में नहीं गई थी। उसे घर से permission नहीं मिली थी। और अगर वो जाती तो भी इसके album में नहीं होती, क्यूंकि अब उसका अलग ही group बन चुका था। खैर, function के बाद जब सभी एक-दूसरे से आखिरी बार मेल-मिलाप करने और photo खिंचवाने में busy थे, अभिषा देखी कि वीर सलोनी से फिर से बात करने आया।

वीर बोला, “पहले तो रीमा सीधी और समझदार लगती थी। पर बाद में मुझे realize हुआ की उस दिन park में अगर तुम बीच में नहीं पड़ती तो शायद बहुत बड़ा कांड हो जाता। तुम मुझे reject की, कोई बात नहीं। पर उसको मुझे इसके लिए जलील करने का कोई हक नहीं था। उसके सामने तुमको अपने love का इजहार ही तो किये थे, उसके या तुम्हारे साथ कुछ गलत तो करने का कोशिश नहीं किये थे। वैसी लड़की के साथ कभी कोई लड़का रहना नहीं चाहेगा। तुम सही लड़की हो, और अब तो teacher बनकर और समझदार भी हो गई हो। इसलिए अब मैं तुम्हें और पसंद करने लगा हूँ। पर तुम हो कि मुझे भाव ही नहीं देती हो।“
यह सुनकर सलोनी मन ही मन मुस्कुराई, और चेहरे का भाव देखकर वीर को भी यह अहसास हो गया कि लड़की पसंद कर रही है।

अभिषा कुछ बोलने ही वाली थी कि, “देखो,...” कि सलोनी उसका हाँथ पकड़कर बीच में ही रोक दी, और वीर को बोली, “आगे बोलो..।“

वीर आगे बोलत है, “मुझे लगता है शायद तुम भी मुझे पसंद करती हो। काश कि हमें एक-दूसरे के साथ वक्त बिताकर एक-दूसरे के करीब आने का मौका मिला होता...!”
तब सलोनी उसे reply करती है, “देखो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि हम लड़कियों को क्या अच्छा लगता है या हम किसे पसंद करतीं हैं। लड़के गधे होते हैं जो यह समझते हैं कि एक बार अगर हम मुस्कुरा दिए तो हम उनके साथ चल देंगे। यह तुम लड़कों की गलतफ़हमी है। हम किसी को तब तक चुनती हैं, जब तक कि उसके साथ safe, secure, and स्वतंत्र ना महसूस करें”।

वीर बोलत है, “मैं अच्छा लड़का हूँ, मैं तुम्हें कभी कोई चोट नहीं पहुचाऊँगा, हमेशा प्यार से रखूँगा। जो freedom तुम्हें तुम्हारे घरवाले नहीं देते हैं, तुम्हें वो भी दूँगा जिससे तुम अपने सपनों को पूरा कर सको। साथ ही लोगों और समाज की परेशानियों से मैं लड़ूँगा और तुम्हें बचाऊँगा।“

अभिषा मन ही मन बोली, “प्यार-मोहब्बत की ये बड़ी-बड़ी झूठे वादे...!”

वीर कुछ सुन नहीं पाया तो बोला, “क्या...!”

अभिषा बोली, “कुछ नहीं”। आगे सलोनी बोली, “देखो, तुम मेरी बात समझ नहीं पाए। हमारी family चाहे जैसी भी हो, हमारे साथ जैसा भी व्यवहार करे, पर फिर भी जब भी हम कोई गलती करतीं हैं या हमें डर लगता है तो हम भाग कर अपने family के पास जाते हैं। इस विश्वास के साथ कि हमें वो बचा लेंगे, हम वहाँ safe है। (बात तो सही कही सलोनी ने, पर काश यह सबके लिए सही होता !) हमें चाहे आगे के बारे में सोंच कर जितना भी डर लगे, पर फिर भी हम हिम्मत करतीं है कि जो कुछ भी होगा, हमारी family पीछे support करेगी, वो हमेशा हमारे साथ है। क्यूंकि हमें उनके साथ अपना future secure महसूस होता है। और जहाँ बात रही आजादी की, तो हर आजादी की कीमत होती है। उस आजादी का फायदा ही क्या जो अपनी मर्यादा को तोड़कर अपनों के खिलाफ़ जाकर उन्हें छोड़ने के बाद मिलें। इसके बाद हम अपनी खुद की छोटी-छोटी जरूरतों तक को खुद से पूरा करने में उलझी रहेंगी, समाज की problems से उलझी रहेंगी, इतना कि अपनी उस आजादी को जीने तक का हमें वक्त ना मिले। इससे बेहतर तो यही है कि हम अपनी मर्यादा में रहे, कम से कम उतना तो हम बेफिक्र होकर खुल कर जी पायेंगी जितना जीने का मौका मिल रहा है..”।

 

काश कि हर लड़की सलोनी के जैसी उस उम्र तक उतनी समझदार हो जातीं..! सलोनी की यह बात सुन कर वीर समझ गया कि उसकी दाल यहाँ नहीं गलने वाली है। वह गलत जगह try कर रहा है। साथ ही अभिषा भी समझ गई कि सलोनी को अभिषा के protection से ज्यादा अभिषा को सलोनी की समझदारी और साथ की जरूरत है। जिसके बाद हर गुजरते दिन और लम्हों के साथ उन दोनों की दोस्ती और भी गहरी होती चली गई।

 

हमारे character development में माना जाता है कि हमारे माहौल और हमें मिलने वाली शिक्षा का बड़ा important role होता है। पर उन तीनों को तो एक जैसी शिक्षा मिली, रीमा को तो सलोनी से अच्छा माहौल मिला, और सलोनी की तो अभिषा से भी खराब माहौल मिला, पर फिर भी कम उम्र मे सलोनी ज्यादा समझदार हो गई। क्यूंकि माहौल और शिक्षा के अलावा knowledge को समझ पाने की हमारी अपनी खुद की काबिलियत और हमारा व्यवहार भी character के growth मे बहुत ज्यादा मायने रखता है। रीमा अपने नकारात्मक सोंच की वजह से समाज और education से मिले knowledge को accept नहीं कर पा रही थी। जबकि सलोनी जब teacher बनी तो उसे मिला responsibility और experience उसे बकियों से इन सब के मामले में ज्यादा समझदार बना दिया। क्यूंकि वह अब खुद के बारे में, अपने future के बारे में सोंचने लगी थी। साथ ही कम उम्र में मिल रहा उपलब्धि और कामयाबी भी उसके सिर चढ़ने भी लगा। बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों की tutor होने की वजह से सलोनी से अब respectfully बात करते थे। और सलोनी बिना hesitation के किसी से भी कुछ भी frankly बात करने लगी। पर अपने school teachers के लिए तो वह अभी भी एक student ही थी। सलोनी अपने कम उम्र और अनुभव के कारण नहीं समझ पा रही थी कि वह teacher अपने घर में है, school में वह एक student ही है। और school teachers भी उसे समझने के बजाय उसके व्यवहार को उसका ego समझते थे। इसलिए वे उसे मुँहफट, बदतमीज, और झल्लाही लड़की समझते थे। और उनके इस रवैये के कारण सलोनी भी उन्हे नापसंद करती थी और उनसे काम भर ही मतलब रखती थी।

 

अभिषा album का एक और page पलटती है। इसमें snapshots थीं उनकी 9th के February का, जब फिर से उनसे पहले वाले batch यानि कि 10th के students को farewell दिया जा रहा था। इस बार उन्होंने कोई performance नहीं दिया, बल्कि वो इस बार management का part थीं। बाई side ऊपर-नीचे, दाहिने side ऊपर-नीचे बस अपने group और seniors के साथ group photos.

इस वक्त तक वो अपने class के लड़कों से भी दोस्ती करना शुरू कर चुकी थी। ज्यादा close नहीं थी, जैसे अभिषा और सलोनी आपस में थी, बस casual friendship ही। ये सब हुआ कुछ यूँ था कि किसी दिन कुछ लड़कों ने इनकी art and craft को देखकर इनकी तारीफ की। फिर अगली बार जब ये दोनों school assignments के लिए chart paper, colours, etc. खरीदने पहुँची, तो उनमें से कुछ लड़के उन्हे वहाँ मिल गए। जैसा कि यह आम बात है, आमतौर पर लड़कों को art and crafts में interest नहीं रहता है। उन्हे भी नहीं थी, बस मजबूरी में वो बना रहे थे। उन्होंने इनसे favor माँगा और बदले में इनकी wish पूरी करने का offer इन्हें दिया। इन्होंने भी सोंचा कि ये भी रोज-रोज तो गाँव से 3 Km दूर market जा नहीं सकती है, इसलिए अगर ये आज उनकी मदद करेंगी तो ये भी कल को उनसे help ले सकती है। फिर क्या था, बस वहीं से उनकी friendship शुरू हो गई। ये दोनों उनकी पढ़ाई में help करती, और वे इनके stationaries, art and craft के items और कभी-कभी इनके लिए बाजार से मिठाइयां ला देते। हालंकी ये उन चीजों के लिए उन्हें पैसे देती थी। पर वक़्त पड़ने पर वो अच्छे दोस्त की तरह मदद करते, यह भी आम बात नहीं थी। समाज को तो ऐसे मौके चाहिए होते हैं, बातें बनाने और अफवाहें उड़ाने के लिए। पर अब ये सब इनके और इनके घरवालों के लिए आम बात हो चुकी थी। वो इन्हे बीच-बीच में कहते कि थोड़ा हद में रहा करो। पर वो इनपर भरोसा भी करते थे, और लड़कों और लड़कों के families को भी जानते थे, इसलिए कभी ज्यादा दबाव नहीं दिए। पर यह बात रीमा के घरवलों को पसंद नहीं थी। इसलिए इस डर से कि कहीं रीमा भी इनकी तरह लड़कों से दोस्ती ना करने लगे, वो वक्त-वक्त पर रीमा की class लेते रहते थे। पर अब रीमा भी अपने परिवार का अपने ऊपर निगरानी रखने के तरीके से ऊब चुकी थी। अब वह तौर-तरीकों, लोगों के व्यवहारों को थोड़ा-थोड़ा समझने लगी थी। उउसके अंदर बगावत करने की ईक्षा तो अभी तक नहीं जगी थी, पर हाँ वह अब इन चीजों से आजाद होना चाहती थी।

 

अभिषा album का एक और page पलटती है। इसमें snapshots थीं उनके खुद के 10th के farewell का। बाई side ऊपर stage में सभी का teachers के साथ group photos, दाहिने side ऊपर में अपने school friends के साथ group photos, और फिर दोनों के नीचे बकियों के साथ group photos. इसके बाद वह page पलटी तो उस दिन के और भी photos थे। इस बार किसी group photo में रीमा भी थी। यह उसका school का last event था, तो उसके घरवालों ने इस बार उसे आने दिया। पर अभी तक उन तीनों में सुलह नहीं हुई थी।

इसके बाद 10th board का exam हुआ और फिर result भी आया। उसमें रीमा school topper थी, और सलोनी third topper. Second कोई लड़का था, उसका नाम अभिषा मुझे कभी बताई नहीं। और अभिषा का rank class के 43 बच्चों में सातवाँ या आठवाँ था। Class के बच्चों की कुल संख्या बता दिए, ताकि आप यह ना समझो कि class में कुल उतने ही बच्चे थे जितना अभिषा का rank था। रीमा मेहनत करके ऊब चुकी थी, इसलिए अपने intermediate में आसान subjects choose करना चाहती थी। पर उसके घरवालो ने तो उसका future पहले से ही तय कर रखा था, इसलिए ना चाहते हुए भी उसे science stream ही choose करना पड़ा। सलोनी को पता था कि उसके पिता science के लिए अलग से tuition के खर्च नहीं दे पायेंगे, और अगर वह खुद अलग-अलग tuition करेगी तो बच्चों को पढ़ा नहीं पाएगी। इसलिए वह arts stream choose कर ली। अभिषा confuse थी कि आगे क्या लें, इसलिए वह अपने पिता से बात करने गई। अपने पिता के साथ सोंच-विचार करके वह भी सलोनी के साथ arts ही ले ली। इसके अलावा अभिषा NSS भी join कर ली, और जबरदस्ती सलोनी को भी साथ में करवा दी। सलोनी उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि वह वक्त नहीं दे पाएगी, पर अभिषा उसकी बात मानती तब तो..।

 

NSS के volunteers colleges में active and sincere रहते हैं। इसलिए अभिषा और सलोनी की भी पहचान college staffs and student leaders से हो गया था। जहाँ tuition में कभी सलोनी बच्चों के साथ strict and अभिषा soft रहती थी, अब college में अभिषा bold और सलोनी polite रहती थी। अपने second year के शुरुआत में ही अभिषा college की women leaders के साथ अधिकारों के लिए fight करना शुरू कर दी, और उसका college के लड़के-लड़कियों के साथ जान-पहचान और ज्यादा बढ़ गया। और क्यूंकि सभी को पता था कि अभिषा और सलोनी दोनों अच्छी और गहरी सहेलियाँ है, इसलिए अभिषा के दबदबे के कारण उसके साथ-साथ सलोनी से भी सभी respect से बात करते थे। College में जब नया batch का admission हुआ, तो हर साल की तरह कुछ बदमाश लड़कों का भी admission हुआ। वो रास्ते में खड़े होकर आती-जाती लड़कियों को छेड़ रहे थे। उसी रास्ते से जब रीमा भी अपने मोहल्ले से new admission कराई लड़कियों के साथ जा रही थी, तो उनमें से किसी ने इनपर comment मार दिया। यह सुनकर रीमा को खराब लगा, तो वह उस लड़के को वहाँ झाड़ने से खुद को रोक नहीं पाई। फिर इनमें बहस होना शुरू हो गया। तभी अभिषा और सलोनी वहाँ से गुजर रही थी। रीमा को बहस करते देखी तो उसके पास आई, घटना के बारे में रीमा से पूछी और उसको बोली, “तुम्हारा यहाँ रहना ठीक नहीं है, तुम जाओ”।

यह सुनकर उस बिगड़े लड़के ने कहा, “यह हम दोनों के बीच का matter है, तुम बेकार में बीच में पड़ रही हो”।

तब अभिषा रोष में बोलती है, “अबे ओ ढक्कन, तू जानता है तू किससे बात कर रहा है ?”

वह बोला, “तुम कौन हो यह जानकार मैं क्या करूँ ?”

उसका दोस्त उससे कुछ बोलने की कोशिश करता है, पर वह उसे बोलने का मौका नहीं देता है और ताव में बोलत है, “तुम जानती नहीं कि मैं कौन हूँ, अभी एक बार बोलूँगा और मेरे पीछे लौंडों की भीड़ हो जाएगी।”

अभिषा भी ताव में बोलती है, “तो बुलाओ उन लौंडों को। जिनके दम पर तुम इतना उड़ रहे हो ना, वही आकार समझाएंगे कि तुम किससे बात कर रहे हो।”

तब तक छात्र संघ के नेता तक यह खबर पहुँच चुका था कि कुछ नए लड़के college campus में लड़कियाँ छेड़ रहे हैं और अब झगड़ा कर रहे हैं। वह आकार अभिषा और सलोनी को देखा तो बिना कुछ पूछे पहले उस बदमाश लड़के को खींच कर एक झाप दिया और बोला, “तुझे पता है तू किसके सामने खड़ा है ?”

उस बदमाश लड़के का दोस्त उसके कान में बोलत है, “यह अभिलाषा दीदी है, जिसके बारे में seniors admission के दिन बता रहे थे, यहाँ की lady don. अगर कोई भी लड़की complain लेकर इनके पास चली गई तो college वालों तक का जीना हराम कर देती है”।

वैसे इतना भी रोब नहीं था अभिषा का वहाँ। अभिषा बस महिलाओं के हक की लड़ाई में उनका साथ देती थी। उससे ज्यादा तो इसकी seniors active थी इन चीजों में। पर उनमें anti-male attitude रहता था। जबकि अभिषा तो school से ही लड़के-लड़कियों से एक जैसा friendly रहने लगी थी, इसलिए college में भी नेता type लड़कों से आसानी से दोस्ती हो गई और उसका नाम कुछ ज्यादा ही लड़के लेने लगे। Admission के time वो तो बस new लड़कों को discipline में रखने के लिए seniors अभिषा के नाम को use करके थोड़ा हवा-बाजी कर रहे थे।

Student leader उस लड़के को बोलत है, “बेटा new admission लिए हो इसलिए छोड़ रहा हूँ। Junior हो, junior की तरह discipline में रहो और seniors की respect किया करो। ये जो सामने खड़ीं है वो अभिलाषा दीदी है, (अभिषा के तरफ़ देखकर, मुस्कुराकर) और यह हमारी भी दीदी है। (फिर उस लड़के को) और इनके साथ जो बगल में खड़ी हैं वो सलोनी दीदी हैं। ये NSS की महिला fighter है, और इस college की भावी महिला leader.(हालांकि वह यह बस student election में अभिषा के through women support पाने के लिए बोल रहा था।) अगर आज के बाद college में इनसे क्या, अगर किसी भी लड़की से बदतमीजी करते या किसी को छेड़ते हुए धरा गए, तो बेटा जान लो की ये दीदी  ऐसे लड़कों को घसीट-घसीट कर मारती है”।

वह लड़का रीमा को घूर रहा था। अभिषा का ध्यान रीमा पर गया, वह उसे बोली, “तुम अभी तक गई नहीं..”

सलोनी उन लड़कों को बोली, “ये भी हमारी परम मित्र है। ये भी जब बात करे तो इज्जत के साथ बात करना”। (आखिर सलोनी काहे पीछे रहती ! वह भी मौका पे चौका मार के उन्हे धमकाते हुए बोल दी।)

तब तक teachers आ गए और भीड़ देखकर गुस्से में बोले, “क्या हो रहा है यहाँ पे ये सब ?”

तब student leader उन्हे शांत करते हुए बोला, “कुछ नहीं Sir. New students को हमारे college का discipline नहीं पता था, वही समझा रहे थे। कि यहाँ पढ़ना है तो teachers, seniors और लड़कियों की इज्जत भी करना है। पढ़ाई व्यवहार में ना झलके तो उस पढ़ाई का महत्व ही क्या !”

 

इसके बाद रीमा, अभिषा और सलोनी की पुरानी दोस्ती फिर से एक बार रंग भरने लगता है। अब रीमा अपने घरवालों की बातों को इतना importance नहीं देने लगी। अब वह दोहरा जिंदगी जीने लगी। अपने घरवालों के सामने वैसी रहती जैसा वो चाहते थे, और बाहर अभिषा और सलोनी के साथ वैसे जैसा वह रहना चाहती थी। महीने बीते, साल खत्म हुआ, और उनका intermediate भी।

 

जब अभिषा album का एक और page पलटी तो तीनों की साथ में volunteer करती snapshots थी। किसी में पौधा लगाते हुए, किसी में तख्ती पकड़े हुए, किसी में seminar attend करते हुए, तो किसी में झाड़ू पकड़े हुए। रीमा NSS volunteer नहीं थी और इसमें interest भी नहीं लेती थी। पर जब classes के बीच में break होता, और कोई NSS program हो रहा होता तो क्यूंकि उसे अभिषा और सलोनी के साथ वक्त बिताने का मौका मिलता इसलिए वो उन events मे चली जाती। हालांकि सलोनी भी खुद से active नहीं रहती, अभिषा उसे active रखती थी। इसके बाद अभिषा album का एक और page पलटी, जो अच्छे result आने की खुशी में अभिषा के घर में रखे party का था। अभिषा और सलोनी दोनों के पिता इनके result से बहुत खुश थें, और college में इनके नाम से इनपर proud भी करते थे। इसलिए graduation के लिए उसी college मे admission लेने के लिए वो उन दोनों को suggest किये। ताकि उन्हे और आगे बढ़ने का मौका मिले। पर इन दोनों की मायें इनकी बढ़ रहे नाम और उसके साथ-साथ लोगों की तरह-तरह की बातों से परेशान थी। आखिर समाज के बीच ज्यादातर समय वही दोनों रहती थी। अभिषा की माँ तो फिर भी अभिषा के अपनी पिता की लाड़ली और उनसे मिली छूट की वजह से कुछ हद तक खुद को रोक लेती थी। पर सलोनी के आगे कोई ढ़ाल नहीं था। उसे लगभग हर रोज अपनी माँ के ताने, तरह-तरह की बातें सुनना पड़ता था, और यतनाएं झेलना पड़ता था। उस दिन के snapshots में फिर से रीमा नहीं थी। वजह.., आप समझदार हो, समझ सकते हो।


••••••••••Let we take a long break before 
continue the next chapter.••••••••••

 

-AnAlone Krishna.

Finished on 7th July, 2023 A.D.
Published on 8th August, 2023 A.D.

 

Comments

Reader's mostly visited literary works in last 30 days:-

Life की परछाई : Chapter 2 (Understanding the characters) | Bilingual story by AnAlone Krishna.

Life की परछाई : Chapter 1 (An Introduction) | Bilingual Story by AnAlone Krishna

Life की परछाई : Prelude ("Loose her before you loose everything for her.") | Bilingual story by AnAlone Krishna

सब खत्म | Hindi poem by AnAlone Krishna

शाम की लालिमा, कृष्ण कुणाल की लिखी कविता

● हमदर्द सा कोई ● भाग-१२ ● Bilingual story written by AnAlone Krishna

Hope Without Hope | a bilingual story in Hindi with English text by AnAlone Krishna.

ऐ बारिश , कृष्ण कुणाल की लिखी कविता

● हमदर्द सा कोई ● भाग-६ , story by AnAlone Krishna.