भाग-७
"hello..!"
"…"
"अरे सुनो तो..."
"..."
"अरे मेरी बात तो सुनो..."
"..."
"hello...!"
"..."
"please यार...!"
Stall पर कुरकुरे के packets खरीदते समय रवि को stall के बगल से आवाज आती हुई सुनाई दी। सतीश दुकानदार से रास्ते में थोड़ा भूख शांत करने के लिए वह दोनों के लिए खरीद रहा था। रवि ने चार कदम दहीने होकर थोड़ा झुक कर धीरे से देखनी चाही। अरे रुको, यह क्या ! इसे तो रवि पहचानता है। पीछे से सतीश रवि को आवाज देते हुए पूछा, "रवि, तुम्हें और कुछ चाहिए क्या ?" रवि साथ में cracker biscuit और साथ में पानी की बोतल लेने को कहा और दोबारा चुपके से बात सुनने लगा।
"देखो, तुम्हें जो समझना है, समझो। तुमसे दोस्ती करके मैंने ही गलती की। अगर इसे तोड़ना हो, तो शौक से तोड़ो। मेरे घर से call करके mammy-papa बुला रहे है, और मुझे जाना है। अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे साथ कुछ दिन घूमने-फिरने के लिए अपने parents की बात ठुकरा दूँ, तो तुम गलत हो। भाँड में जाओ...! मुझे तुम्हारी कोई परवाह नहीं। आज के बाद मुझे कभी call नहीं करना। बेहतर होगा कि मुझे भूल कर अब किसी और को ढूंढ लो।"
पीछे से सतीश की कंधों पर हाथ रखा और थोड़ा आश्चर्य के साथ पूछा, "उधर क्या देख रहे हो...?"
रवि जवाब देता है, "कुछ नहीं। बस, bus देख रहा था। कहीं खुलने तो नहीं जा रहा।"
तभी सामने से अग्रिमा निकलती है। वह stall से पानी की बोतल खरीदती है और चली जाती है। जिसे देखकर मुसकुराते हुए सतीश बाद में रवि को बोलता है,
"इन आँखों को बता कि खता ना करे।
संभाले नहीं संभलता दिल, जब यह दीदार करती है।
हो जाना कहीं का भी हो, जो अपना मन...
कदमें तो अपने-आप ही बस उनकी ओर ही चलती है॥"
सतीश रवि के कंधे पर हाथ रखकर बोलता है, "तुम्हें जहाँ जाना हो बाद में चले जाना। अभी mere bus खुलने का time हो रहा है। पहले sweetheart मुझे see-of करके आओ।"
रवि बेचारा थोड़ा स मायूस होकर, लेकिन सतीश को bus तक छोड़ने साथ में चला गया।
सतीश-रवि के 4th semester के exams हो चुके थे, ऊपर से दुर्गा पूजा का त्योहार...। इसलिए दोनों अपने-अपने घर जा रहे थे, बाकियो की तरह। रवि के बस का time सतीश के बस का time से एक घंटा late था। पर अब सतीश के जाने का समय आ गया था, जिसे see-off करके उसे जाना था। दोनों बस पर चढ़े। पीछे seat पर जाते वक़्त एक खिड़की के बगल में एक सुंदर सी लड़की बैठी हुई दिखी। जिसे देखते ही सतीश मन ही मन मुसकुराया और मन में ही बोला,
"हे ऊपर वाले, तू इतना तो मुझपर रहम ना कर।
हो ख्वाहिश जो मन में, उसे हर बार तो पूरा ना कर।
कुछ तो तलब बचने दे अंदर, पाने की ख्वाहिश रहने दे...।
कमी पूरा करने की होड में, खुद की आजमाइश करने दे॥"
वह लड़की खिड़की के बाहर देख रही थी। उसे सतीश ने टोका, "excuse me, can I seat here ?" वह लड़की सतीश को आश्चर्य से देख कर बोली, "sure ?" सतीश मुसकुराते हुए जवाब दिया, "yaa Ma'm..." और वह बैठ गया। तभी वहाँ पर एक दूसरी लड़की आई। जो उम्र में करीब सतीश से 2-3 साल बड़ी ही होगी। वह सतीश को बोली कि वह seat उसका है। तो सतीश ने उनसे अपनी seat में बैठने का आग्रह किया। वह कुछ बोलने ही वाली थी कि, "लेकिन..." तभी बगल में बैठे लड़की ने भी आग्रह करते हुए कहा, "please..." और वह माँ गई। सतीश ने अपना ticket exchange कर लिया ताकि दिक्कत ना हो। रवि ये सब देख कर shocked हो रहा था, आखिर यहाँ पर चल क्या रहा है।
उस लड़की ने सतीश से रवि के तरफ इशारा करते हुए पूछा, "यह तुम्हारा friend है ?"
रवि ने जवाब दिया, "हाँ ।"
उस लड़की ने अपना intro. देते हुए कहा, "hi, myself…"
"Priyadarshi" , सतीश बीच में बोला।
"पर लोग मुझे 'प्रिया' कहते हैं।" उसने आगे कहा।
रवि को अब बात समझ में आया, "अच्छा बेटा... !"
सतीश मुसकुराते हुए कहा, "coincidence..."
रवि बुदबुदाया, "lier" फिर उसने कहा, "या फिर expectation ?"
सतीश ने हामी भरते हुए कहा, "हाँ" फिर रवि का mind divert करने के लिए बोला, "अब जाओ नहीं तो अग्रिमा चली जाएगी।"
रवि गुस्साते हुए घूरा । फिर "journey safe" बोल कर चला गया।
प्रिया पूछी, "अग्रिमा...?"
सतीश बताया, "शायद यह पसंद करता है।"
प्रिया आगे पुच्छी, "तुम confirm नहीं हो ?"
सतीश बोला, "कभी खुल कर बोला नहीं। पर मुझे ऐसा महसूस होता है।"
सतीश प्रिया से बोला, "अगर तुम चाहती तो मुझे मेरी seat पर भेज सकती थी।"
प्रिया पूछती है, "क्यों ? तुम्हें मेरे बगल में बैठने का मन नहीं है क्या ?
सतीश मुसकुराते हुए बोला, "अगर ऐसा होता तो मैं अपनी seat छोड़ कर तुम्हारी seat पर क्यों बैठता !"
प्रिया बोली, "वैसे तुम मेरे बगल में बैठे हो तो मेरा फायदा ही होने वाला है।"
सतीश मुसकुराते हुए पूछा, "कैसे ?"
प्रिया जवाब देती है, "मुझे सफ़र के दौरान नींद आ जाती है। तुम साथ हो तो मुझे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुम मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचा ही दोगे।"
रवि सतीश को bus में बिठाकर उतरा और सीधा waiting shed के पास गया। उसके घर को जाने वाली बस को आने में अभी आधा घंटा late था। वो बस आधा घंटे ही bus stop पर रुकती और निकल जाती थी। वहाँ पर अग्रिमा बैठी हुई थी, पहले से। एक banch पर अकेले। रवि के वहाँ जाते ही अग्रिमा ने नजर उठाकर देखा, पर कुछ नहीं बोली और उसपर से नजर हटा ली। रवि वहीं पर बैठ गया।
कुछ देर के बाद अग्रिमा बोली, "तो तुम भी आज ही अपने घर जा रहे हो या फिर बस सतीश को bus बिठाने आए थे ?"
रवि जवाब दिया, "तुम्हें क्या लगता है ? मेरे पास bag नहीं दिख रहा ?"
अग्रिमा बोलती है, "क्या फर्क पड़ता है कि मुझे क्या लगता है ! और क्या जरूरी है bag लटकाए हुए हर शख्स कहीं जा ही रहा हो ?"
रवि पूछता है, "लगता है आज तुम्हारा mood ठीक नहीं है। वजह जान सकता हूँ क्या ?"
अग्रिमा rude होते हुए बोलती है, "मैं अपने mood के बारे में तुम्हें क्यूँ बताऊँ ? तुम क्या करेगा इसकी वजह जान कर ?"
रवि बोलता है, "अच्छा बस एक बात बता दो कम से कम। आखिर तुम दोनों सहेलियाँ अपने आप को समझती क्या हो ? जो मुझे कभी भाव नहीं देती। ना हिमाद्रि और ना तुम।"
अग्रिमा बोलती है, "क्योंकि तू दूसरों के life में interest बहुत रखता है। influence भी करने का कोशिश करता है। और हमें यह बिल्कुल भी पसंद नहीं कि कोई हमारे जीने के तौर-तरीकों पर अपनी राय दे। हममें इतनी समझदारी है कि अपनी जिंदगी का फैसला हम खुद ले सके।"
रवि एक पल गहरी साँस लेकर बोलता है, "देखो, मुझे शायरी वगैरह कुछ आती नहीं। और घूमा-फिराकर कुछ बोलने से अच्छा तुमसे सीधा एक बात बोलना चाहूँगा। मैं तुम्हें पसंद करता हूँ। कितना पसंद करता हूँ, यह तो नहीं बता सकता। पर तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ। तुम जिसके भी साथ रहो, boyfriend बनाओं, मुझे इस से फर्क नहीं पड़ता। तुम मुझसे दोस्ती करो, चाहे ना करो, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं बस इतना जानता हूँ कि तुम्हें मैं पसंद करता हूँ। That's it. And I doesn’t need to think anymore. और जहाँ तक दूसरों के life को जानने का सवाल है, मैं एक student हूँ और मेरा mind इस तरह से लोगों के life and nature को जानने को बहुत curious रहता है।"
सतीश और प्रिया bus में एक साथ बैठे तो थे, शांत ही थे। प्रिया लगातार खिड़की से बाहर देखे जा रही थी। और सतीश अपने एक कान में earphone लगाकर गाना सुन रहा था। साथ ही अपने बीते दिनों को याद करने लगा, जो उसने प्रिया के साथ बिताए थे। दरअसल, प्रिया के साथ होने से वो यादें फिर से ताजा होने लगी। वो रोज coaching class मिलने के आस में जाना। पढ़ाई के वक़्त अगर tutor की बात समझ ना आने लगे तो, बस प्रिया में अपना मन लगा लेना। उसे निहारना। उसमें खो जाना। बाकी समय बस यादों में ही खोए रहना। फिर अचानक सतीश के आँख डबडबा गये। उसने अपना earphone निकाला और पानी पिया। जब बोतल का ढक्कन tight कर रहा था तब सतीश ने पाया कि प्रिया उसे देख रही है। सतीश ने प्रिया से पूछा कि उसे भी पानी चाहिए क्या, पर प्रिया अपने आँखों से ही नहीं चाहिए का इशारा कर दी और वापस खिड़की से बाहर देखने लगी। सतीश देखकर मुसकुराने लगा। आखिर इन्हीं अदाओं के पीछे तो वह कभी पागल रहा करता था।
बात सतीश के उन 9th-10th के दिनों की थी, जब उसे अपनी school के पढ़ाई से पूरा satisfaction ना मिलने की वजह से coaching classes join करनी पड़ी थी। ऐसा इसलिए क्योंकि school की पढ़ाई से उसे पूरे अच्छे से समझ में नहीं आता था, और teacher के समझाने के तरीके से सतीश को समझ में नहीं आता था। सतीश का पहला class आमतौर पर बाकी बच्चों की तरह ही था। first class में किसी भी teacher के हिसाब से खुद का mind set करना difficult होता है। इसके लिए कम से कम 3-4 classes तो लगते ही हैं। सतीश का मन जब teacher की बातों पर ना ठहर पाया, तो class के बाकी बच्चों के चेहरों के ऊपर दौड़ने लगा। Then suddenly his eyes stayed at a face, that was of Priyadarshi. सतीश को कुछ अजीब लगा। अब ऐसा नहीं था कि प्रिया के चेहरे पर कुछ लगा हुआ था। वैसे भी पीछे से अगर आप किसी को देखो भी तो तिरछे होकर कितना clear देख पाओगे। But he feel something different when he looked at her. जब सतीश का ध्यान बगल में बैठे लड़के के तरफ गया, जो इसे देख रहा था। उस लड़के ने कहा, "प्रिया।"
सतीश ने आश्चर्य से पूछा , "क्या ?"
उस लड़के ने जवाब दिया, "प्रिया सब उसे बोलते हैं, पर पूरा नाम प्रियदर्शी है।"
सतीश फिर question करता है, "किसका नाम ?"
वह लड़का इसका माथा सहलाते हुए बोल, "बाबू, उसी का, जिसको तुम board पर समझाया जा रहा topic छोड़ कर देख रहे हो।"
एक लंबा समय तक अपने दोस्तों की कमी को महसूस करते रहने के बाद, सतीश को ऐसा महसूस हुआ कि वह इस नए जगह में अपना life नए सिरे से शुरू कर सकता है। उसने उस लड़के से दोस्ती कर ली। धीरे-धीरे उसके पूरे ग्रुप से सतीश की दोस्ती हो गई। सतीश ने उनको यह बताया की प्रिया उसकी school में पहले साथ में पढ़ती थी। (प्रिया भी उसी समय उस school से गायब हुई थी, जब हर्ष हुआ था। इसलिए हर्ष प्रिया को जानता था।) बस यही तो उसने गलती कर दी। लड़कों को तो बस बहाना चाहिए होता है किसी को परेशान करने के लिए। वहाँ पर सभी लड़कों ने प्रिया को भाभी बोलना और उसे तंग करना शुरू कर दिया। वैसे तो अभी तक सतीश के मन में प्रिया as a classmate ज्यादा कुछ भी नहीं थी, पर फिर भी अपने दोस्तों को वह नहीं रोकता था। क्योंकि उसका मानना था कि if there is nothing between them, then why does they care about these things. Caring of him should proved others that there must be something between them. That's why, वह औरों की बातों को इतना तवज्जोह दे रहा है।
Bus stop पर wait कर रहे रवि और अग्रिमा आपस में बातें कर रहे थे।
रवि बोलता है, "देखो अगर तुम लोग को तुम्हारे life में किसी का दखलंदाजी पसंद नहीं तो तुम सतीश से भी दूर रहो। क्योंकि वह तो मुझसे भी ज्यादा करता है।"
अग्रिमा बोलती है, "पर तुम्हारे जैसा नहीं। तुम annoying लगते हो but not he."
रवि पूछता है, "ठीक है, ऐसा क्यों यही बता दो..."
अग्रिमा चिड़चिड़े ढंग से बोलती है, "यही। यही जो तुम्हारा बात करने का अंदाज है न, इसी से तुम annoying लगते हो। यार क्या जरूरत है किसी के बारे मे जानना। जो चीज हमें पसंद नहीं वो पसंद नहीं, और जो पसंद है तो है। क्या जरूरत है इसकी वजह जानने की।"
रवि पूछता है, "पर फिर भी आखिर वजह पता चलेगा तब ना मैं खुद में सुधार करूंगा। पर तुम लोग तो मुझसे चिढ़ती हो। फिर मैं सुधरूँगा कैसे...!"
अग्रिमा समझाती है, "देखो, तुम चीजों तो technically समझते हो। उसे अपने हिसाब से analyse करते हो, और फिर राय देते हो। और तुम चाहते हो की वो implement । जो की तुम्हारे हिसाब से सही है, पर सब के life के problems अलग होते है। अगर तुम सही से किसी के problems को understood नहीं करते हो तो वह कभी तुम्हारी राय पसंद नहीं करेगा।"
रवि बीच में टोकता है, "और सतीश...?"
अग्रिमा जवाब देती है, "सतीश को कितना किसी को suggestion देते हुए देखे हो ? वो उनके बीच घुल-मिल कर पहले situation को समझने की कोशिश करता है। फिर problems को ऐसे arrange कर देता है कि चीजें अपने आप solve होने लगते हैं।"
यह सुन कर रवि के दिमाग में उस दिन का घटना याद आने लगता है जिस दिन कोमल का relationship हर्ष से टूटा था। सतीश ने कोमल से बिना पूछे उसके घर पर दावत fix कर दिया। कोमल के engagement टूटने की बात घर पर बता दी, जिसे कोमल घरवालों से छिपाना चाहती थी। फिर कोमल के dream के बारे में उसके parents को बता दिया। जिसके बाद कोमल सतीश से दूरी रखने लगी । लेकिन इन घटनाओं के कारण जो कोमल के खामोश रहने से problem उसके life में लगातार बढ़ते जा रहा था, वह solve हो गया।
रवि और अग्रिमा के root की bus stop पर या गई। दोनों ticket 🎫 counter पर गए। रवि ने दो ticket कटवाई, जिसे देखकर अग्रिमा पूछी, "ये दो tickets ,किसके लिए एक ?"
रवि बोला , "of course तुम्हारे लिए। लेकिन अगर तुम्हें odd लगता हो, तो पैसे दे दो।"
बस क्या था, अग्रिमा तुरंत अपने purse से पैसे निकाल कर रवि के हाथ में रख दी।"
रवि बोला, "मगर यह तो ज्यादा है।"
अग्रिमा request करते हुए बोली, "बाकी का मेरे लिए 'lays' ला दो न।"
रवि बोला, "मेरे पास 'kurkure' है।"
अग्रिमा बोलती है, "पर मुझे 'lays' ही पसंद है।
रवि अपने पैर जाने के लिए मोड़ ही रही होती है कि अग्रिमा बोलती है, "पर इसे तुम कुछ..."
जिसपर रवि बीच में ही बात काटते हुए बोलता है, "ना ना । मैं कहाँ कुछ...। मैं तो बस तुम्हारा classmate हूँ। coincidence से साथ मे घर का सफर करने जा रहे हैं। इस से ज्यादा तो कुछ भी नहीं।"
अग्रिमा मुसकुराने लगती है।
रवि आगे बोलता है, "हाँ, अगर इस गरीब पर दया आ जाए तो अपना problem सुना सकती हो। एक अच्छे बच्चे की तरह कहानी सुनूँगा। और कुछ suggestion नहीं दूंगा।"
अग्रिमा मुसकुराते हुए बोलती है, "पागल...!"
रवि ticket अग्रिमा को देकर stall पर चला जाता है, और अग्रिमा बस पर चढ़ जाती है।
सतीश को ध्यान आया कि प्रिया उसके कंधे पर सर रखकर सो गई है। बिना खौफ के कि कुछ उसके साथ बुरा भी हो सकता है। Actually सतीश था ही कुछ ऐसा कि जिसपर अगर एक बार भरोसा आ जाए तो फिर कभी नहीं जाने वाला। सतीश के दोस्त जब प्रिया को तंग करने लगे, तो प्रिया teacher के पास complain कर दी। teacher से सतीश को बहुत कुछ सुनना पड़ा। पर जब सतीश को सुनाया जा रहा था, सतीश बजाए इसके कि उसके दोस्तों की बदमाशी की सजा इसे मिल रहा था, वह अंदर ही अंदर खुश हो रहा था। क्योंकि सतीश प्रिया को यूँ ही पसंद थोड़ी ना करता था। प्रिया जो इस तरह से दिलेर थी, जो भी बात हो बिना हिचकिचाए सीधा बोल देती थी, सतीश को अच्छा लगता था। क्योंकि सतीश independent and frank लोगों को पसंद करता था। जो अपने दिल की बात बाहर निकाल सके। क्योंकि वह खुद भी तो वैसा ही था। सतीश teacher की डाँट सर झुकाकर मुसकुराते हुए सुनता रहा। जब सब खतम हुआ, और teacher बाहर गए, वह अपना मुसकुराता हुआ चेहरा ऊपर उठाया। वह मुसकुराते हुए अपने दोस्तों को देखने लगा, पर जैसे ही नजर प्रिया पर पड़ा तो उसकी मुस्कुराहट गायब ही हो गई।
प्रिया, जिसका मदमस्त, मुसकुराता हुआ चेहरा देखकर कोई अपना गम भूल जाए। उसके चेहरे की हँसीं गायब थी। जिसको किसी बात की फिक्र करने की जरूरत नहीं लगता था, उसके माथे पर चिंता की लकीरें थीं। जिसके सामने खुद सतीश खड़ा होने से घबराता था, वह खुद घबराई हुई थी। इसलिए नहीं कि सतीश प्रिया से डरता था बल्कि इसलिए कि कहीं उसे प्यार ना हो जाए। That was the time and day from where he started caring of herself and people declared that there is a existence of something among them. सतीश अपने दोस्तों को डांटा-समझाया की वह आगे से तंग ना करे। कुछ ने माना, पर सब कहाँ मानने वाले थे। उनका जो मजाक था, अब तो हकीकत बनता दिख रहा था ना। अमायरा, यह हमेशा अपने life में serious रहने वाली लड़की थी। वैसे तो कभी-कभी कुछ खास खुशनुमा पलों मे वह भी हँसती थी। पर हमेशा नहीं, जैसे की प्रिया। पर मुस्कुराहट उसके चेहरे पर भी हमेशा ऐसे बना रहता था, जैसे कि ऊपर वाले ने उसे बनाया ही ऐसा हो कि जो हर परिस्थिति में मुसकुराती रहे। वह सतीश की classmate होने के साथ-साथ पड़ोसी भी थी। वह घर पर जाकर सतीश की बहन को सब कुछ बता दी। वह सतीश के साथ बचपन से ही लड़ते-झगड़ते रहती थी, पर इसे देखकर मुसकुराते भी रहती थी। जिस वजह से सतीश इस से चिढ़ता था, और बात-बात पर गुस्सा भी करता था। लेकिन अमायरा सतीश की नाराजगी को कभी दिल से नहीं लेती थी। वह साफ दिल की, समझदार लड़की थी।
Bus सतीश और प्रिया दोनों को अपने-अपने मंजिल तक पहुंचा दी। सतीश घर पर आते ही अपनी माँ से पूछता है, "माँ, सृष्टि कहाँ है ?"
माँ बोलती है, "घर आते ही बच्चे माँ को ढूंढते है, और यह लड़का छोटी को..."
सतीश चापलूसी करते हुए बोलता है, "माँ, जब मुझे घर आते ही अपनी प्यारी सी माँ के दर्शन हो गए तो अब बची भी तो बस लाड़ली बहन ही ना..."
अंदर से आवाज आती है, "कभी अपने बाबूजी का भी ख्याल कर लिया करो...।"
अंदर से सतीश के पिता निकलते है। सतीश उन्हें प्रणाम करता है। वह सतीश को सिंचाई करने बोल कर अपने बैलों की चरवाही करने चले जाते हैं।
सतीश फिर पूछता है, "माँ, सृष्टि कहाँ है ?"
माँ बोलती है, "कुछ लेकर आया है क्या रे उसके लिए, जो इतना ढूंढ रहा है। अमायरा से मिलने गई है। तुम हाथ-पैर धो लो। मैं भेज देती हूँ।"
सतीश पूछता है, "और आप कहाँ जा रही हो ?"
माँ जवाब देती है, "खेत देखने।"
सतीश अपने कमरे में जाता है और बिना जूते खोले ही bed पर लेट जाता है। यह सतीश की बचपन की आदत होती है कि वह जब भी कहीं से थका-हारा आता, सीधा अपने बिस्तर पर बेजान होकर लेट जाता। उसके school के दिनों की तो यह रोज की बात थी। कभी-कभी तो वह अपना bag भी नहीं उतारता था और सीधा bed पर धड़ाम। फिर सृष्टि आती, उसके जूते उतारती, फिर उसे खाने के लिए उठाती। और जब सतीश ज्यादा आलस दिखाता तो उसे कानों में सृष्टि धीरे से बोलती, "लगता है आज प्रिया भाभी से मिलने का मन नहीं है।" फिर क्या था...! सतीश हक्के-बक्के उठता, खाना खाता और फिर सीधा coaching class पहुँच जाता। यह trick सृष्टि अमायरा के सतीश के हरकतों के बारे में बताने के बाद से use करने लगी। क्योंकि उसे यह करने में मजा बहुत आता था।
सृष्टि सतीश की फुफेरी बहन थी। राकेश के देहांत के बाद सृष्टि की माँ का भी death हो गया। घरवालों के pressure में उसके पिता ने दूसरी शादी तो कर ली थी, पर वह घर से बाहर काम करते थे। जिसके चलते सृष्टि की परवरिश उसके uncomfortable zone में हो रहा था। सृष्टि और सतीश की माँ का रिश्ता ननद-भाभी के साथ-साथ अच्छी सहेलियों सा हो गया था। इसलिए जब एक त्योहार में सतीश की माँ सृष्टि से मिलने गई, उसको अपने साथ अपने घर ले आई। उसके बाद सृष्टि का भी admission सतीश के ही school में करवा दी। और तब से उसका पालन-पोषण सब सतीश के ही घर पर हुआ।
सतीश ने महसूस किया कि कोई उसके बगल में बैठ कर कुछ कहा रहा है। आँख खोला तो देखा कि वह सृष्टि थी। सतीश बोला, "आज मेरे जूते नहीं खोली रे...?"
सृष्टि जवाब दी, "क्यों ! बाहर में क्या भाभी खोल देती है जब मैं नहीं होती हूँ ? अपने काम खुद किया करो।"
सतीश थोड़ा गुस्साते हुए बोलता है, "बहुत बिगड़ते जा रही हो उस मुंहफट अमायरा के साथ रहकर। और मुझसे बिना पूछे मेरे bag से 'kitkat' कैसे निकाली ?"
सृष्टि बोली, "यह मेरे हक का है। मेरे हिस्से के पैसे आप ले जाते हो और मुझे घर पर सड़ने के लिए छोड़ दिये।"
सतीश मुसकुराने लगा। वह सृष्टि के दोनों गालों को pinch किया फिर बोला, "बस इस साल अपना inter qualify कर लो उसके बाद तुम्हें घर से विदा कर देंगे।"
सृष्टि गुस्साते हुए बोलती है, "क्या मतलब ?"
सतीश प्यार से समझाता है, "अरे तुम्हारा भी admission बाहर करवा देंगे रे पगली। छोटी-छोटी बात पर ऐसे भड़क जाती है। तुम्हें क्या लगा, घर से निकाल देंगे मतलब विदाई दे देंगे क्या ?"
सृष्टि सतीश को घूरने लगी। उसके आँखों में आँसू डबडबा गए। वह बोली, "मुझे कहीं नहीं जाना। मुझे यहीं रहना है।"
सतीश मुसकुराने लगा। वह सृष्टि के आँसू पोंछते हुए बोला, "पगली रो क्यों रही हो ? जा मैं अपने सारे जमीन जायदाद तुम्हारे नाम कर दूंगा। अब तो खुश।"
सृष्टि बोली, "पहले तो खुद ही आँसू निकालते हो और..."
सतीश बोलता है, "तुम्हें उदास चेहरे को खिलाना। तुम्हें मनाना। तुम्हारी care करना मुझे अच्छा लगता है ना रे पगली।" उसका नाक हिलाते हुए बोलता है, "इसलिए तुम रोओगी नहीं, गुस्सा नहीं होगी, परेशान नहीं होगी तो मैं अपनी ख्वाहिश कैसे पूरा करूँगा...!"
सतीश की दोस्ती बाकी लड़कों से धीरे-धीरे कम होने लगा और प्रिया से नजदीकियाँ बढ़ने लगा। अमायरा की दोस्ती प्रिया से पहले से ही अच्छी थी। इसलिए सतीश को एक और बहाना मिल जाता था प्रिया के करीब रहने का। अमायरा पढ़ने में अच्छी थी। सतीश को जब प्रिया के करीब रहने का मन होता तो वह अमायरा से question समझने के बहाने चला जाता। वैसे तो अमायरा और सतीश में बनती नहीं थी इसलिए वह पहले उसे वहाँ से भगाने की कोशिश करती। पर प्रिया अमायरा को मना लेती यह बोल कर कि, "थोड़ा हमें भी समझा दो, हम भी पढ़ लेंगे तुमसे।" दोस्ती बड़ी ही कमाल की चीज है। कोई चीज ना चाहते हुए भी करवा देती है। आखिर दो राँझो के बीच best-friends ही तो पीसते हैं। यही हाल अमायरा का प्रिया और सतीश के बीच हो रहा था। बेचारी अमायरा, समझाने के लिए सृष्टि को बोलती की सतीश को समझाओ। पर सतीश किसी की माने तब ना।
सृष्टि समझाती कि, "भैया, यह सब नहीं कीजिए। मामी को पता चलेगा तो अच्छा नहीं होगा।"
सतीश इसके बारे में बोलता, "पगली तू ज्यादा ही सोच रही है। वह बस दोस्त है, उस से ज्यादा कुछ नहीं। अपने भाई पर भरोसा रख, तुम्हें सच में लगता है कि मैं किसी के साथ कुछ गलत करूँगा, या होने दूंगा।"
सृष्टि पूछती है, "तो फिर अमायरा कैसे बोलती है कि आप प्रिया के आगे पीछे बहुत मंडराते रहते हो ?"
सतीश बोलता है, "वो बस मुझसे चिढ़ती है इसलिए ऐसा बोलती है।"
सृष्टि यह सुन कर सतीश को घूरने लगती है।
फिर सतीश बोलता है, "देखो, प्रिया को सारे लड़के तंग करते हैं, मेरा नाम लेकर। क्योंकि उसकी smile मुझे attract करती है तो मेरी नजर उसकी ओर अपने-आप ही चला जाता है। Because they thinks that if nothing is among us, then why am I looking at her. इसलिए मैंने उससे दोस्ती कर ली। ताकि if we are friends, then what is add thing if I am looking at her."
सृष्टि पूछती है, "मतलब आपको उसकी परवाह है ?"
सतीश बोलता है, "आखिर उसके life की problem भी तो मेरे खुद में control न होने की वजह से है।"
सतीश अपने घर के बगल पर सिंचाई के लिए pump set कर रहा था। तभी वहाँ पर अमायरा आयी। बर्तन लेकर पानी भरने के लिए। दोनों ने एक-दूसरे का हाल-चाल पूछा।
अमायरा सतीश से पूछी, "उस दिन तुम प्रिया को flower दे ही देते तो अच्छा होता।"
सतीश बोलता है, "तुमने सही समय पर मेरा ध्यान हमारे relationship में आने की वजह से होने वाले problems की ओर दिलाया। प्रिया मेरे लिए कमजोरी बनते जा रही थी। मैं तो किसी तरह खुद को संभाल लेता, क्योंकि मैं पहले भी कर चुका था। पर उसके लिए अगर मैं कमजोरी बन जाता तो... शायद उसके लिए बहुत मुश्किल होता।"
अमायरा बोली, "पर तुम तो इतने समय बीतने के बाद भी उसे भूल नहीं पाया। कोई हमेशा के लिए छोड़ कर चला जाता है तो उसके पीछे उसकी याद में लोग तड़पते है। तुम तो उसके होने के बावजूद उसकी याद में तन्हा होकर तड़पता रहता है।"
सतीश बोलता है, "तो इससे क्या फर्क पड़ता है। शायद मेरे life का lesson ही यही हो। क्या पता जिंदगी ने मेरे लिए कुछ खास plan कर रखा हो। और वैसे भी, if she is in my fate, somehow and anyhow we will become only and only of each other. But in present time, it is not good. We have to live our life separately from each other and independently. I am doing that thing which I found necessary."
पानी भरने के बाद सतीश अमायरा को बोला, "घर पर जाकर सृष्टि से अपनी सहेली का भेजा हुआ gift ले लेना।"
अमायरा पूछी, "किसका ?"
सतीश बोला, "प्रिया का।"
अमायरा surprise होने वाला expression दी और वहाँ से चली गई। इधर सतीश भी सिचाई करने लगा।
अमायरा जब सृष्टि से प्रिया का भेजा हुआ gift सतीश के bag से निकलवाई तो दोनों देखकर sock हो गई। वह friendship वाला greeting card था। जिसपर लिखा हुआ था, "missing you lot. I can understand that situation now. I'm sorry. I wish you for meeting this vocation."
दरअसल बात कुछ यूँ था कि जिस दिन इनका विदाई समारोह था, प्रिया को miss-understanding हो गया था। उस दिन प्रिया late से पहुँची थी। वह जाकर girls row में अमायरा के साथ बैठ गई। उसने अपनी नजर सतीश के तरफ दौड़ाया तो वह शांत बिल्कुल अपने खयालों में खोया हुआ था। उसने अमायरा से इसके बारे में पूछा, तो अमायरा ने कहा कि, "कुछ खास नहीं।" और वह प्रिया का ध्यान सतीश के तरफ ना देकर function मे देने का suggestion दी। function खतम होते ही सभी प्रिया कि तारीफ करने लगे। क्योंकि प्रिया भी पूरा सज-सँवर कर आयी थी। सतीश अमायरा के पास गया। अपने beg से yellow flower निकाला और उसे दे दिया। उसने अमायरा से कहा कि वह situation संभाल ले। फिर वहाँ से चला गया। प्रिया जब सतीश को बिना मिले ही जाते हुए देखी तो अमायरा के पास आयी और सतीश के बारे में पूछी। अमायरा ने बताया कि वह चला गया। प्रिया बोल ही रही थी कि, "ऐसे कैसे बिना बताए चला गया..." कि तभी वह अमायरा के हाथों में सतीश का दिया flower देख ली। प्रिया अमायरा से पूछी, "यह सतीश दिया ?" अमायरा हामी भर दी। फिर प्रिया पूछी, "तुम्हारे लिए लाया था ?" अमायरा इसपर भी हामी भर दी। प्रिया अमायरा से गुस्सा हो गई। उसको बिना कुछ सोचे समझे में सुना दी, "best-friends गद्दार निकलते है। सुना था। पर आज देख भी लिया। अच्छा होगा कि अगर हम आज के बाद ना मिले। मैं तुम्हारा सकल आज के बाद फिर कभी नहीं देखना चाहूँगी।"
Greeting card देखने के बाद सृष्टि सतीश के पास आयी। और पूछी, "भैया आपको यह greeting card कहाँ से मिला ?"
सतीश बोला, "वही दी थी देने के लिए।"
सृष्टि पूछी, "तो आप इसलिए आपका bag बिना पूछे check करने से भड़के थे ?"
सतीश हस्ते हँसते हुए बोला, "तुम्हें क्या लगा ! मैं तुम्हारे लिए लाये kitkat के लिये भड़कूँगा क्या ?"
सृष्टि पूछी, "पर वो आपको मिली कहाँ ?"
सतीश जवाब दिया, "बस में साथ में आये। इत्तिफाक से।"
सृष्टि चिढ़ाती है, "बड़े इत्तिफाक़ घटते है आपके life में भैया..."
सतीश चिढ़ते हुए बोलता है, "जा, अपना काम कर।"
अपने गंतव्य तक पहुँचने से पहले सतीश प्रिया को उठता है। और उसे बताता है कि बहुत जल्द ही वो अपने-अपने घर पहुँचने ही वाले है। प्रिया सतीश को बोलती है, "हम अब पहले जैसे दोस्त तो कभी शायद नहीं ही बन पाएंगे। अगर अब हम कभी मिले तो ऐसे ही अजनबीयों की तरह ही अगर मिले, तो हमारे लिए अच्छा होगा। वैसे उम्मीद तो नहीं थी। पर फिर भी सोचा कि अगर इत्तिफ़ाक़ से हम मिले, तो यह तुम्हें दे दूँ। अमायरा को देने के लिए।" वह greeting card निकाल कर सतीश को दे देती है। "wish कि तुम दोनों हमेशा खुश रहो।" Bus stop पर रुकता है। सतीश प्रिया को बोलता है, "हैप्पी D.P." प्रिया भी reply देती है, "हैप्पी D.P."
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• खामोश रहने से problems solve नहीं होते बल्कि बढ़ते चले जाते हैं। इसलिए आपस में बात करके problems solve कर लो।
• खुद के दिल में सामने वाले शख्स के लिए क्या feelings है, उसे यह पता होनी चाहिए।
• If there is nothing between them, then why does they care about these things. Caring of him should proved others that there must be something between them.
• Do always that thing which you found necessary. If you found necessity of leave your desire you like most, you have to must.
• Destiny examines by trials, are you have capability of holding it or not. Give always your best attempts.
-AnAlone Krishna
Published on, 20th October, 2018 A.D.
Working on, from 13th October to 19th October, 2018 A.D.
॥ हमदर्द सा कोई ॥ भाग :- १ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९•० | ९•१ | ९•२ | १०.० | १०.१ | १०.२ | ११.० | ११.१ | ११.२ | १२
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