I, Krishna, present you here, my 100+ literary works—poems and stories. I hope, I shall plunder your heart by these. Let you dive into my imaginary world. I request you humbly to give your precious reviews/comments on what you read and please share it with your loved ones to support my works.

🙏🏽 Thanks...! 🙏🏿

What's new/special message for the readers...👇🏿

"Life की परछाई: Chapter 4Chapter 5Chapter 6Chapter 7 • Chapter 8 • Chapter 9" has published on 8th August, 2025. अगर आपको online reading में असुविधा होती है, और आप इसे printed form में पढ़ना चाहते हो, तो post के bottom में दिए 'Download and Print' button को click करके आप उसका printout करवा लेना। जिसमें 'Download and Print' button नहीं है उसके लिए आप 'Google form' को भरकर मुझे send कर दो, मैं आपको pdf भेज दूंगा। इसके अलावा सबसे अंत में UPI QR code भी लगा हुआ है, अगर आप मेरे काम को अपने इक्षा के अनुरूप राशि भेंट करके सराहना चाहते हो तो, आप उसे scan करके मुझे राशि भेंट कर सकते हो। जो आप वस्तु भेंट करोगे, वो शायद रखा रह जाए, परंतु राशि को मैं अपने जरूरत के अनुसार खर्च कर सकता हूँ। ध्यानवाद !
Specials
-------------------->Loading Special Works...
📰 Random, Popular, Featured Posts
Loading...

Life की परछाई : Chapter 7 (Feet in the Swamp)| Bilingual story by AnAlone Krishna

● Life की परछाई ●

By AnAlone Krishna

Chapter 7

 (इस story में आप पढ़ोगे कि समाज समाज कर संभव कोशिश करता है नई पीढ़ी को अपने control मे रखने का। पर जब परिवार बच्चों के साथ खड़ा रहता है, या बच्चों को अपने परिवार के लिए जब झुकना पड़ता है, तो उन्हे उनकी भविष्य कि कैसी दिशा मिलती है।)

Prelude | Chapter 1 2 | 3 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 


● Life की परछाई ●
Chapter 7 : Feet in the Swamp


अभिलाषा अपने bed में बैठी अपनी यादों के album को देख रही थी। उसके पास मेहक आई और बोली, "मम्मी, हमलोग आज अभी movie देखेंगे। आपका wait कर रहे हैं ?"

यह अभिलाषा के परिवार की आम बात है। उन्हें जब भी mood करता है, वो पूरी family साथ बैठकर घर में movie देखते है।

अभिषा कहती है, "तुमलोग शुरू करो, मैं आती हूँ।"

और फिर मेहक के जाने के बाद फिर से अभिलाषा album के page को पलटती है, अभिषा और उदय की शादी की। पर वो court वाली शादी की नहीं, पूरे विधि-विधान से की गई घर में शादी की। यह कैसे हुआ ? वो तो भागकर शादी किए थे... चलो बताता हूँ।

वैसे तो समाज के लोगों की हिम्मत नहीं होती थी अभिषा और उसके family के बीच उनके family matters में कुछ भी बोलने की। पर जो अभिषा की, भाग कर शादी, यह हद पार हो गया। इससे समाज को मौका मिल गया इनके घर में भी बोलने का। जब 2 दिन बाद अभिषा के पिता को घर वापस लाया गया। तब अगल-बगल के लोग उन्हें देखने घर आए। वह भीड़ जब एक जगह मिली, बाते होना शुरू हो गया, और फिर सभी मिल कर अभिषा के family को बोले, "हमलोग जानते है कि हमें आपके family matter में बोलने का कोई हक नहीं है। पर जो आपके घर में हुआ, वह हद ही पार हो गया। आपके बच्चों का भविष्य का क्या होगा, यह हमलोग तय नहीं कर सकते हैं, इसका अधिकार आपको ही है। पर समाज की एक मर्यादा है- आपके बच्चे आपकी पसंद के साथ शादी करेंगे या आप अपने बच्चों के पसंद को अपनाएंगे, ये आपका फैसला है। पर जो करना है वो आपको भी समाज के रीति-रिवाज को मानते हुए ही करना होगा। जिस तरह आज आपके दुःख का समय में हमलोग शामिल हुए है, क्या आपके सुख में भी हमें शामिल होने का हक नहीं है ? (सुख, जैसे कि अभिषा के भागने से परिवार को सुख मिला हो !) इस तरह अगर इनके देखा-देखी हर घर के बच्चे भागकर अपने घरवालों की मर्जी के खिलाफ अगर शादी करने लगेंगे तो परिवार, मां-बाप, और उनके जिम्मेदारियों का महत्व ही क्या रह जाएगा ? आपकी बेटी किसी के साथ भागी, उसे आप अपना रहे हो या इन्हें त्याग दो, इसमें हम कुछ नहीं बोलेंगे। पर हम समाज के लोग इस भाग कर की गई शादी को कभी भी नहीं अपनाएंगे। अगर आपको इन्हें अपनाना है तो समाज के रीति-रिवाज के अनुसार आपको इनका शादी करवाना ही होगा। आप इस तरह से अपने बच्चों को भगाकर समाज के प्रति अपनी उत्तरदायित्वों से भाग नहीं सकते हो।" जिससे अंत में यह तय हुआ कि 15 दिन बाद के शुभ मुहूर्त में पूरे विधि-विधान के साथ अभिषा और उदय की शादी को संपन्न किया जाएगा। 

पर यह तो बात सिर्फ वधू पक्ष की हुई। वर यानी कि उदय के घर में यह बात पहुंचते-पहुंचते लगभग सप्ताह भर का समय लग गया। बाते उस जमाने में भी फैलती थी, पर आज के social media के जमाने की तरह इतनी जल्दी नहीं कि घटना घटा नहीं कि मीलों दूर ख़बर पहुंच जाए। और इस बात की पुष्टि भी हो जाए कि किसके बारे में बात हो रही है। उदय के घरवालो के कानों में पहुंचते-पहुंचते तीन दिन लग गए। शुरू में जब उदय घर से भागा था तो उसके घरवाले गुस्सा में उसे छोड़ दिए थे। कि "जाने दो जहां जाना है, जब जीने के लिए संघर्ष करना होगा और भागने का भूत उतरेगा तो खुद वापस आएगा।" पर जब उनके कानों में ख़बर पहुंची कि फलाने गांव में किसी की लड़की भाग गई थी, और गांव वाला के दबाव में उनका शादी होने वाला है। तो इन्हें फिक्र हुआ, कि कहीं जिस लड़के के बारे में बात लोग कर रहे हैं वह उदय ही तो नहीं है। और जब पुष्टि हुई कि हां वह उदय ही है, तब उसके घरवालों को गुस्सा आया। वो फिर से अभिषा के घर उनसे और उसके समाज से झगड़ा करने के लिए आ गए। और इस बार अपने साथ-साथ वो अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधि को भी साथ ले आए। पंचायती बैठी, बात रखी गई, कि "लड़का के घर में कोई नहीं है जो बिना उदय के घरवालों की सहमति और उनकी मौजूदगी के अभिषा का परिवार और समाज अभिषा के साथ उदय का शादी करवा रहा है ?" यह सवाल जायज भी है। कि अगर जब सब विधि-विधान से शादी करने की बात वो कर रहे थे, तो फिर उदय के परिवार और उसके समाज की भागीदारी इसमें क्यों शामिल नहीं था ? क्या उनके कहने का मतलब सिर्फ इतना था कि उनके समाज के किसी tent वाले से एक शादी का tent मंगवाओ, बाजे मंगवाओ, घर सजवाओ, तरह-तरह का व्यंजन बनवाओ, शराब पिलाओ और दावत देकर मौज कराओ ? अगर नहीं, तो फिर उदय के घरवालों को इस विधि-विधान में शामिल क्यों नहीं किया जा रहा था ?

सही सवाल है। यह सवाल अभिषा के घरवालों और उसके समाज से पूछा ही जाना चाहिए था। पर एक सवाल तो उदय से भी पूछा जाना चाहिए था कि, जब अभिषा का परिवार और समाज बेमन हो कर ही सही इनके प्यार को स्वीकृति देखकर इनकी शादी करवाने जा रहा था, तो क्या उसे मन नहीं किया कि वह भी अपने समाज को ना सही कम से कम अपने परिवार को इसमें शामिल करे, उन्हें भी बताए। एक सवाल का जवाब आप उदय के परिवार के साथ खड़ा होकर जानना चाहोगे, एक सवाल का जवाब आप समाज के साथ खड़ा होकर जानना चाहोगे, और एक सवाल आप अभिषा के परिवार के साथ खड़ा होकर भी जानना चाहोगे। पर इनका कोई भी उत्तर आपको संतुष्ट नहीं कर सकता है। क्योंकि उस पंचायती में खड़े हर एक पक्ष की अपनी-अपनी इक्षा थी, लोभ था, स्वार्थ था। जिसे पूरा करने के लिए सभी अपने-अपने चाल को चल रहे थे। और समाज के हर व्यक्ति के चल रहे दांव में अभिषा-उदय और अभिषा का परिवार बस मोहरे बने हुए थे। आप ही बताओ कि क्या आपको लगता है कि अगर उदय अपने घरवालों को मनाने जाता, तो क्या उसे फिर वापस अभिषा से शादी करने के लिए आने दिया जाता ? हो सकता है कि उसे घर में बंद कर दिया जाता या गायब कर दिया जाता। क्या उदय को इस बात को लेकर डरना नहीं चाहिए था ? अभिषा का समाज अगर उदय के समाज को शामिल करना चाहता तो क्या उदय के समाज के लोग इस बात को मानते, या वो अपना हर संभव कोशिश करते इस शादी को ना होने देने की ? पर क्या इससे अभिषा और उदय के रिश्ते को कुछ फर्क पड़ता ? वो तो already court marriage कर ही चुके थे। फिर क्या अभिषा के समाज को अभिषा के घरवालों से अपनी बात मनवाने का मौका मिलता ? एक मौका जो उन्हें मिला अभिषा के परिवार पर अपना दबाव बनाने का वो भी चला जाता। और अंत में अभिषा के परिवार में उस वक्त जो स्थिति थी, उनके पिता जिनके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ था वो अस्वस्थ थे। अभिषा का भाई छोटा था, उसकी समझ उतनी नहीं थी, और वो इस शादी से खुश भी नहीं था। इसलिए वो अपने नाखुश मिजाज से अपना सब काम को कर रहा था, जो लोग उसे बोल रहे थे। पूरा परिवार हर चीज को लेकर इतना उलझा हुआ था कि अगर उस घर के बड़ों को ध्यान आ भी जाए तो फिर दूसरे काम के चक्कर में फिर से यह बात भूल जाए, कि उदय के घरवालों की सहमति के बिना यह काम करना गलत है।


खैर, जब जनप्रतिनिधि उनके बीच बैठा था, तो वहाँ कोई भी एकतरफा फैसला नहीं ही होना था। इसमें सभी की कुछ ना कुछ गलती थी। इसलिए यह फैसला लिया गया कि सभी को एक दूसरे की गलती को भुलाकर साथ मिल कर इस शादी को संपन्न करना चाहिए। पर उदय की मां इस फैसले से खुश नहीं थी। वो जो अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटे के लिए ख्वाब सजाकर रखी थी, वो इस तरह अगर समाज तोड़ दे तो वो कैसे कुछ नहीं करती ! वो इस शादी को सहमति देने के लिए अपना demand रखना शुरू कर दी। कि कहीं तो अभिषा के घरवाले पीछे हटे और शादी ना हो। पर अभिषा के पिता के पास इतना धन था कि वो अपनी समधन के हर demand को मान गए। अभिषा के घरवाले इससे नाखुश थे, पर वो अभिषा के पिता के निर्णय का विरोध नहीं करना चाहते थे। उदय की मां को आखिर कहीं ना कहीं जाकर तो रुकना ही नहीं था। वो समाज के बीच खड़ी थी, एक हद के पार जाकर अगर वो कुछ demand करती तो उन्हें अत्यधिक लोभी कहा जाता। और फिर इस तरह सभी की सहमति के साथ आगे के शुभ मुहूर्त में अभिषा और उदय का शादी हो गई।

इससे पहले जब अभिषा का समाज उसके परिवार पर अपना दबाव बनाया और उदय के घरवाले झगड़ा करने पहुंचे, उस बीच उदय अभिषा के घर में उसके परिवार के साथ ही रहता था। उसके परिवार की मदद करने की कोशिश करता, जो कि वो नहीं करने देते थे। पर क्योंकि अभिषा के पिता hospital में उदय और अभिषा की शादी को अपना चुके थे, तो उसके परिवार के बाकी सदस्य उदय को ना अपनाकर अभिषा के पिता को नाराज नहीं करना चाहते थे। पर वो दिल से उदय को अपना भी नहीं पा रहे थे। क्योंकि अभिषा के पिता अस्वस्थ थे और उसका भाई उतना काबिल नहीं था, उसके परिवार को उदय का help लेना ही पड़ता था। फिर जैसे-जैसे उदय का सहयोग मिला, अभिषा के परिवार को उदय के व्यवहार, स्वभाव, आचरण को समझने का मौका मिला। जिससे उनका ego उदय को नापसंद करने को कहता, पर उनका दिल उदय के ऊपर अपनापन जताने को कहता। और आप तो जानते ही हो कि स्वाभाविक तौर पर दिल और दिमाग में कौन अक्सर जीतता है। एक दिन शाम को जब अभिषा अपने पिता की सेवा कर रही थी, उदय अभिषा के भाई के साथ कहीं से आया। उन्हें साथ देखकर अभिषा के पिता उन दोनों को बुलाए और अपनी बाई हांथ में अभिषा का हांथ पकड़ लिए और दाई में उदय का। यह देखकर अभिषा का भाई वहां से जाने लगा, तब अभिषा के पिता उसे रोककर उन तीनों को मुस्कुराकर बोले-

"सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने के लिए; हमें अपने निर्णय स्वयं लेने की आदत बनाने की जरूरत होती है। क्योंकि जो कुछ भी हम अपने जीवन में चुनते हैं, हमें हमेशा आगे चलकर उनके परिणामों को जीना पड़ता है। जब भी हम अपने निर्णय खुद से लेना शुरू करते हैं, तो हम उन निर्णयों के पूर्वानुमानों को भी समझना और सीखना शुरू करते हैं और उन परिस्थितियों के लिए स्वयं को तैयार करना भी शुरू करते हैं। लेकिन, अगर हम अपने स्वयं के निर्णयों को लेने की अपनी जिम्मेदारियों को हम छोड़ने की आदत बना ले, तो हम भविष्य के पूर्वानुमानों के बारे में नहीं सीख सकते हैं, जिससे बाद हमें हमेशा उन निर्णयों के परिणामों के साथ स्वयं को समायोजित(adjust) करना होगा।"

आपको कुछ समझ में आया ? हां, उन्हें भी थोड़ा-थोड़ा ही समझ में आया। पर tension की कोई बात नहीं है। इसे आसान करके कृष्ण समझाया है, मै बताता हूँ ना आपको। आप tension मत लो। जो फैसले अभिषा और उदय ने लिए, उसके परिणाम आगे चलकर उन्हें मिलने वाले थे। ठीक वैसे ही जैसे जब अभिषा के पिता अभिषा और उदय को अपनाने का फैसला लिए, और उनकी family अभिषा के पिता की इक्षा को पूरा करने का फैसला किया, तो इसके परिणाम स्वरूप उन सभी को समाज के विरोध और दबाव के सामने झुकना पड़ा। ठीक वैसे ही, अभिषा और उदय के life में इसके परिणाम स्वरूप बाद में भी कई घटनाएं घटनी थी। पर ऐसा नहीं था कि ये दोनों love marriage किए तो सिर्फ इन्हें ही इसके परिणामों को आगे झेलना था। उनकी family और उनसे जुड़े लोगों पर भी उसका असर तो होता ही। अगर अभिषा के पिता इन चीजों को नजरअंदाज कर देते, वह अभिषा से अपना मुह फेर लेते; तो अभिषा आगे अकेले उन हालातों का सामना करती और उनके परिवारों को भी समाज का अकेले करना पड़ता। इसके अलावा पूर्वी, जो कि अपनी family की खुशी को अपनाने का फैसला ली, उसे भी तो उसके consequences से गुजरना ही पड़ा। अभिषा के पिता इसी बात को समझाने की कोशिश कर रहे थे। ताकि वो सभी अपने आने वाले situations के लिए तैयार रहे।

अभिषा के पिता अपने बच्चों को अपने life के फैसले खुद लेने और अपनी जिंदगी उन्हें अपने हिसाब से जीने की स्वतंत्रता दिए, क्योंकि वो चाहते थे कि उनके बच्चे बाद में काबिल बने और उन्हें जीवन भर उनके life की छोटी बड़ी चीजों का ख्वाब ना रखना पड़े। उनके बच्चे आत्मनिर्भर हो जाए, और वो अपने बच्चों की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए। जिसके बाद वो अपनी पत्नी के साथ अपने retirement का सुख भोगे खुशी-खुशी और आनन्द के साथ। आप समझ ही रहे होंगे कि अभिषा के माता-पिता के बीच आपस का प्रेम इनकी वजह से नहीं था। उनके बीच का प्रेम स्वतन्त्र था, pure था।


जब दो लोगों की शादियां होती है, तो आमतौर पर लोग चाहते हैं कि इसके बाद जल्द से जल्द उनका पहला बच्चा हो। क्योंकि उनके बच्चे दो लोगों को बांधने का काम करते हैं। जिस शादी में शादी से पहले प्रेम ना हो, उसमें प्रेम उत्पन्न होने के लिए तो यह जरूरी होता ही है। पर जब दो लोग शादी से पहले से भी प्रेम करते हो, वो भी आमतौर पर चाहते हैं कि उनका पहला बच्चा जल्द से जल्द हो। ताकि उस बच्चे के कारण ही सही, पर उनके घरवाले उनके रिश्ते को अपना ले। उदय और अभिलाषा के घरवाले उन्हें पहले ही अपना चुके थे। पर जब अभिषा शादी के बाद अपने ससुराल गई, उसे ऐसा जताया गया कि वह जबरदस्ती उनके घर में आई है। जो कि सही भी था, उनके पास अभिषा को अपनाने के अलावा और कोई चारा ही क्या था ! पर इस समस्या का एक उपाय था कि अभिषा जल्द से जल्द अपनी सास को उस घर का चिराग दे। पर क्या आपको सच में लगता है कि अभिषा अपने पहले बच्चे को इस सोच के साथ जन्म दी होगी ? मुझे नहीं पता। पर शायद ऐसा नहीं ही होगा। जितना मैं अभिषा को समझता हूँ, वो इस तरह की कूटनीति करने वाले लोगों में से नहीं है और ना कभी थी। उदय और अभिषा की नई-नई जवानी उफान मार रही थी। उनके इस उफान की वजह से Rony जल्दी हुआ। 


उदय के घर में अभिषा के लिए खाना तो बनता था, पर उससे कोई खाने के लिए पूछता नहीं था। उसके हाथों के बने खाने को उंगली चाट कर खाते सभी थे, पर फिर भी नुक्स निकालते थे। जब उसे तकलीफ़ होता, तो उसकी मदद भी करते, पर उसमें अपनेपन का अहसास नहीं था। एक भाव होता है इंसानों के व्यवहार में, जिससे लगता है कि सामने वाला शख़्स आपकी फिक्र करता है। अभिषा का जब वो हांथ थामते थे तब उसे वह फिक्र महसूस नहीं होता था। खैर, ये सब उनके परिवार का internal matter था, इससे हमें क्या ! हमारे लिए यह important है कि जब अभिषा का छठा महीना चल रहा था, वह तब भी अपने ससुराल को खुश करने का कोशिश कर रही थी। वह सुबह उठती, खाना बनाती, सभी को खिलाने के बाद खाती, घर के काम करती, वगैरह-वगैरह...। पर इन सब में अभिषा खुद का ध्यान नहीं रख पाती थी। जिससे उसे कमजोरी हो गया और वह एक दिन चक्कर खाकर गिर गई। पर उसके लिए अच्छी बात यह थी कि उसका पति उससे प्रेम करता था। वो उसे उठाकर hospital ले गया। ज्यादा कुछ नहीं हुआ था, बस कमजोरी का असर था। Doctor अभिषा की हालत देखते हुए उसे वैसे हाल में कम काम करने और खुद का ज्यादा ध्यान रखने की सलाह दिया। अभिषा की सास बोली कि वो तो कुछ बोलती ही नहीं, वह खुद काम करते फिरती है। जिसके बाद अभिषा के माता-पिता उसके delivery तक उसका ध्यान रखने के लिए उसे अपने साथ उसके मायके ले गए। वैसे तो अभिषा की सास पहले थोड़ा आनाकानी की, पर उदय उसे मना लिया, और अभिषा की ननंद भी उसकी सास के कान में फुसफुसाई, "जाने दो ना मां, नहीं तो हमें ही इसका ध्यान रखना होगा।"


अभिषा अपने माता-पिता के घर Rony के जन्म तक रही। फिर Rony के जन्म के बाद अपने ससुराल गई। पर जब भी उसका तबियत खराब होता तो वह वापस आ जाती। जब अभिषा pregnant थी और घर आई हुई थी, उसे पूर्वी के बारे में पता चला। पूर्वी के आठवें महीने में उसका पहला बच्चा गिर गया था। जिसे उसके घरवाले पूर्वी का दोष समझ रहे थे। जिसे कटवाने के लिए वो ओझा-भगत कर रहे थे। कभी यहां तो कभी वहां। ताकि पूर्वी का स्वास्थ्य ठीक हो और वह फिर से अपने परिवार को चिराग देने के लिए स्वस्थ हो जाए। पता नहीं क्यों, पर जितने भी रूढ़िवादी सोच के लोग होते हैं, रीति-रिवाजो को कुछ ज्यादा ही पकड़ कर चलते हैं, उनके स्वास्थ को कुछ होता है तो वो doctor को दिखाने के बजाए, ओझा-भगत और ठगो पर क्यों ज्यादा विश्वास करते हैं। अभिषा अगर पहले जैसा आजाद होती, जैसे वह शादी से पहले थी, तो वह पूर्वी का हांथ पकड़कर उसके पति के साथ किसी अच्छे gynecologist/sexologist के पास ले जाती। पर अब तो उसका भी अलग ही हाल था। वो अपना देखे या पूर्वी को...? सलोनी, अभी भी कुंवारी थी, पर सलोनी को पूर्वी के घरवाले तो बचपन से ही नापसंद किया करते थे। तो वो क्या करती ! वैसे भी इस तरह हक जताकर किसी के लिए कुछ करने का आदत अभिषा का था, सलोनी का नहीं।


जब सलोनी का graduation पूरा हुआ, उससे पहले से भी सलोनी की शादी की बात उसके घर में हो रहा था, पर पिछली बार जो हुआ था उसके वजह से कहीं भी बात बन नहीं रहा था। तो खाली बैठी सलोनी क्या करती, इसलिए वह masters में अपना नाम लिखवा ली। सलोनी के पिता भी उसे आगे पढ़ने से नहीं रोके। पर उनके लिए सलोनी को आगे पढ़ाना आसान नहीं था, इसलिए वह भी अब सलोनी की शादी की सोच रहे थे। सलोनी भी इस बात से दुखी थी कि उसके घर से भागने की वजह से उसके घरवालों को इतना सब कुछ सहना पड़ रहा था। इसलिए अब वो भी हामी दे दी अपनी शादी के लिए। पर कहीं भी उसका रिश्ता बन नहीं पा रहा था। बात बनते-बनते रह जाता। वो कहीं ना कहीं से सुन लेते सलोनी के भागने की बात और वो रिश्ता करने से मना कर देते। सलोनी के घरवाले कई कोशिश करते उन्हें समझाने की कि सलोनी बस उस वक्त शादी नहीं करना चाहती थी, इसलिए भागी थी। पर कोई यह बात मानने को तैयार नहीं था। उन्हें लगता था कि कोई न कोई जरूर होगा, बस सलोनी के घरवाले बात को छिपा रहे हैं। 


देखते-देखते दो साल भी बीत गया। सलोनी का masters भी पूरा हो गया। इस बीच जब अभिषा मायके आती, तो सलोनी अपना मन बहलाने के लिए Rony के साथ खेलने के लिए उसके घर आ जाती थी। सलोनी के घरवालों को बहुत मुश्किल से एक ऐसा रिश्ता मिला जिसका दूर-दूर तक कोई भी पहचान सलोनी के गांव वालो में से किसी से नहीं था। वरना वो भी इन्हें जानने वालों से सलोनी के बारे में पूछते, और लोग बक देते कि सलोनी किसी के साथ भागी थी। जो कि भले ही सच नहीं था। पर जब वह सच को अधूरा ही लोग जाने, तो उन्हें गलतफहमी हुई। वह गलतफहमी जब दूर नहीं हुआ और लोग उसके बारे में चर्चा करने लगे, जिससे अफवाह फैली। वह अफवाह जब पूरी तरह से दबाया ना जा सका, तो वह लोगों की जुबां का किस्सा बन गया। वह किस्सा जिसका एक हिस्सा सच था, इसलिए उसके बारे में कहा नहीं जा सकता था कि कितन हिस्सा सच है और कितना झूठ, तो वह मिथ्या बन गया। मिथ्या, जिसके बारे में आप तो जानते ही हो कि आमतौर पर जब लोग मिथ्या के सच और झूठ में फर्क नहीं कर पाते हैं तो वो उसे सच ही मान लेते हैं, वो उसे इतिहास मान लेते हैं। लोग, जो यह नहीं मान पा रहे थे कि सलोनी सिर्फ शादी ना करने के चलते उस दिन बिना बताए घर से hostel चली गई थी, वो सलोनी का किसी लड़के के साथ भागने की बात को उसका इतिहास मानते थे। इसलिए जब सलोनी के घरवालों को एक ऐसा रिश्ता मिला जो उनके गांव वालो की वजह से अभी तक हांथ से नहीं छूटा था, वह किसी भी हाल में इस रिश्ते को हांथ से जाने नहीं देना चाहते थे। जिसके चलते वो अपना हर संभव कोशिश किए, कि वह रिश्ता हो ही जाए।

घरवालों को, specially सलोनी की मां को लगता था कि सलोनी एक बार पहले भी भाग चुकी है, कहीं वह दोबारा ना भाग जाए इसलिए वो सलोनी की चट मंगनी, पट ब्याह कर दी। पर ऐसे कैसे ? आपको यह जानकर अच्छा नहीं लगा ना ? आपको संतुष्टि नहीं हुई ना इस information से ? क्यूंकि यह किस्सा इनकी कहानी का बस एक पहलू है। चलो सलोनी के life को थोड़ा और गहराई से बताता हूँ। जब जल्दबाजी मे सलोनी के भविष्य को लिखा जा रहा था, उसकी शादी कारवाई जा रही थी, उस वक्त सलोनी को बचाने की कोशिश उसकी सबसे ज्यादा फिक्र करने वाली उसकी सहेली अभिषा भी की। पर सत्ता को बनाए रखने के लिए समाज इनके ऊपर भी साम, दाम, दंड और भेद इन चारों कूटनीतियों का बहुत ही अच्छे से उपयोग किया। अभिषा अपने पिता की तरह खुले विचारों वाली थी। उसके साथ रहकर सलोनी भी खुले विचारों वाली हो गई थी। पर उनके समाज का एक वर्ग ऐसा भी था जिसमें अपने बच्चों पर पूरी तरह से नियंत्रण रखा जाता था। क्योंकि वो मान-सम्मान, मर्यादा, प्रतिष्ठा, जैसी बातों का कुछ ज्यादा ही बात करते थे। ऐसे ही समाज की बच्ची थी पूर्वीजिसको लेकर उसके घरवालों और उसके अड़ोस-पड़ोस को भी काफी चिंता रहती थी कि अगर वो पूर्वी को अभिषा और सलोनी के संगत में छोड़ दिए तो एक-एक करके उनके सारे बच्चे बागी हो जाएंगे। फिर उनके बच्चे भी अपनी मनमानी करने लगेंगे और उनका बात नहीं सुनने लगेंगे। इसलिए उनके लिए बहुत जरूरी हो गया था कि वो अभिषा, सलोनी और पूर्वी की दोस्ती को किसी तरह से तुड़वा दे और उनसे अपने समाज को छुटकारा दिलाए। इसलिए एक वर्ग ऐसा अब भी था जो सलोनी के परिवार की बात को दबाने मे मदद कर रहा था। ताकि पूर्वी और अभिषा के बाद सलोनी भी उनके समाज का अंग ना रहे और बाकी बच्चे इनके बारे मे उडी अफवाहों में आकर उलटे-सीधे काम ना करने लगे। पूर्वी को तो उसके ससुराल वालों की सम्पन्नता, लड़के की कमाई और उस घर में मिलने वाली सुख का प्रलोभन देकर और उसके अपने परिवार के प्रति भावनात्मक कमजोरी का फायदा उठाकर उसे शादी के लिए मना लिए। पर अभिषा जो की, उसे वो लोग रोक नहीं पाए। फिर भी वो उसके घरवालों पर अपना दबाव बनाकर उनसे भी अपनी बात मनवा लिए, और यह जता दिए कि समाज मे रहने के लिए समाज को लेकर ही चलना पड़ता है। वो लोग सलोनी के परिवार के साथ सबसे पहले भेद नीति का प्रयोग किए। सलोनी के माता-पिता को डराए, कि "अभी तो कम लोग ही जानते हैं। अगर यह बात और ज्यादा फैली तो कौन सा अच्छा रिश्ता सलोनी को मिलेगा! कौन सा खानदान सलोनी को अपनाना चाहेगा !" जिस डर की वजह से फिर सलोनी के घरवाले दंड नीति का प्रयोग किए, सलोनी के पिता की गैर-मौजूदगी मे सलोनी को मारे, उसकी सारी सुविधाएं चीन ली गई, फिर उसे घर में ऐसा महसूस भी करवाया गया कि वह उसके परिवार वालों के लिए कलंक है। और कम से कम वक्त में सलोनी की शादी हो जाए, इसके लिए समाज ने मिलकर दाम नीति का भी प्रयोग किया। सलोनी के ससुराल वालो को दहेज का प्रलोभन दिया गया जिससे शादी तुरंत हो सके। सलोनी के दहेज के लिए समाज से भी थोड़ा-थोड़ा मदद मिला। ताकि किसी भी हाल मे सलोनी की शादी हो ही जाए। पर जब सलोनी के दरवाजे पर बारात आई, तो दूल्हे के कुछ दोस्तों को शराब पीने का मन किया। वो गाँव मे उसके तलाश मे निकले। जिस वक्त उनमे से किसी दोस्त के कानों तक यह बात पहुंच ही गया कि कुछ साल पहले सलोनी घर से भागी थी। वह जाकर दूल्हे को बता दिया कि सलोनी कुछ समय पहले घर से भागी थी। Miscommunications, जो कि बातें फैलते time होती ही है। फिर क्या था, शादी में हंगामा हो गया। दूल्हा शादी से मना करने लगा, और समाज घर से बारात कैसे वापस जाने दे सकता है। वो सलोनी के ससुर के साथ बड़े लोगों को उसे हंगामे से अलग लेकर असली बात समझाए। पर वो लोग इसे समझकर भी क्या करे, वो जबरदस्ती हाँथ पकड़कर तो दूल्हे के हाँथ से सलोनी का माँग नहीं भरवाते। इस मुद्दे को सुलझाने का एक ही उपाय था समाज के पास, कूटनीति का दाम नीति। दहेज बढ़ाने की बात होने लगी, पर सलोनी के घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी थी नहीं, समाज के वो लोग जो पहले बहुत हितैषी बन रहे थे वो भी आर्थिक रूप से और मदद करने के लिए संकोच करने लगे, तो अंत में वो जितना सक्षम हो सके उतना में ही वर पक्ष को मानना पड़ा। फिर वो दूल्हे को समझाने की कोशिश किए, पर दूल्हे के दोस्त उसे और चढ़ा दिए कि "ये लोग second hand माल चिपकाने के लिए बहला-फुसला रहे हैं।" इससे दूल्हा सलोनी से शादी करने को मान नहीं रहा था। पर जब सलोनी के ससुर दूल्हे पर दबाव बनाए सलोनी से शादी करने के लिए, तो बस भीड़ मे अपने पिता का मान रखने के लिए दूल्हा सलोनी से शादी कर लिया। लेकिन उसी वक्त से सलोनी के पति और ससुर के बीच के रिश्ते मे दरार भी आ गई। पर इन सब के दौरान जब सलोनी इस झमेले को देखकर कमरे में अपने घरवालों के सामने इस शादी को करने से मना की, तो उसकी माँ और भाई उसे मारकर शांत किए, और सलोनी से बोले कि, "अगर ये आज बारात लेकर वापस लौट गए तो फिर तुमसे शादी कौन करेगा ! फिर क्या जिंदगी भर हमारे साथ घर में बैठी रहोगी ?" और जब सलोनी के पिता यह सब सुने और देखे तो वह सलोनी के कमरे में दीवार से सटकर tension में रोने लगे। फिर जब वही समाज के उनके हितैषी लोग उसके पिता को आकर बोले कि लड़के वालों से सुलह हो गया है, तो वो उठकर वहाँ से जाने लगे। तब सलोनी अपनी सिसकियों की घूँट अपने गले मे ही दबाकर अपने पिता को बोली, "आप मत रों, मैं शादी कर लूँगी।" क्यूंकि लड़कियों का पहला प्यार उसके पिता होते हैं। वो उनके आंखों में आंसू नहीं देख पाती है। वो उनके लिए कुछ भी कर सकती है। वह अपने प्यार को भी छोड़ सकती है और वो जीना भी छोड़ सकती है।


आज जब इस बात को अभिषा याद करती है, तो उसे अब कोई पछतावा नहीं होता है। उस दिन जो सलोनी के साथ हुआ, उसका होना तो पहले ही तय हो चुका था। एक तरह से अच्छा ही हुआ कि वह उस दिन सलोनी के शादी में नहीं जा पाई। अगर होती तो वो जरूर कुछ ना कुछ करती, और वह जो करती उससे मामला सुधरता नहीं बल्कि और खराब हो जाता। क्योंकि लोग और सलोनी के घरवाले फिर भी कोशिश करते कि सलोनी की शादी हो जाए। जिसके बाद अभिषा के विरोध का सलोनी से प्रतिशोध लिया जाता। या हो सकता था कि सलोनी का शादी उस दिन टूट ही जाता। मगर सलोनी घरवाले तो उसे घर में नहीं बिठाते। हो सकता था कि अभिषा से छुपाकर सलोनी की शादी उससे भी खराब परिवार में हो जाता। कुछ भी हो सकता था। क्योंकि सलोनी के life का वो event एक दलदल की तरह था। कोई जितना हिलते-डुलते, कुछ करते सलोनी को बचाने के लिए तो उसकी जिंदगी और धंसती चली जाती।


सलोनी की शादी हुई, बारात सलोनी को लेकर उसका ससुराल पहुंचा। रात में हुए हंगामे की वजह से सभी बारातियों को मुद्दा पता था। जिससे सभी सलोनी के पति को ताने मारने लगे। जिसकी वजह से सलोनी का पति खुद को बहुत ही ठगा हुआ महसूस करने लगा। वह शाम को जब दोस्तो के साथ बैठा, तो उनकी बातें सुन-सुनकर खूब शराब पिया, और पीकर अपने सुहागरात में सलोनी के पास गया। फिर वह सलोनी के इक्षा के बिना जबरदस्ती उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाया। वैसे भी समाज का वर्ग जिसमे पिता अपनी बेटी के, भाई अपने बहन के, और पति अपनी पत्नी के life का decision लेने को अपना अधिकार समझते हो, वहां पर सलोनी का इसका विरोध करने से भी क्या हो जाता। वैसे भी आमतौर पर immature समाज के पुरुष अपनी पत्नी और उसके शरीर पर अपना मालिकाना हक समझते हैं। सलोनी इस बारे में किसी से कुछ भी नहीं बोली पर उस वक्त सलोनी का मासिक धर्म चल रहा था। जिसके चलते अगले ही दिन से सलोनी को उल्टियां आनी शुरू हो गई। पर बहुत ज्यादा शराब पीने की वजह से उसके पति को यह याद ही नहीं रहा कि उन दोनों के बीच रात को कुछ हुआ भी है। उसके दोस्ती-यारी में यह कोई मानने को भी तैयार नहीं था कि उनके बीच सच में ऐसा कुछ हुआ भी हो। उनके हिसाब से उस रात सलोनी का पति उस हालत में था ही नहीं कि वह कुछ करें। दूसरी बात यह भी थी कि यौन शिक्षा की कमी की वजह से उन्हें लगता था कि महीना भर लगातार कोशिश करने के बात उल्टी होता है। वरना बाबा जी का चूर्ण लेना पड़ता है। दूसरे ही दिन उल्टी होने से वो किसी चमत्कार की तरह यकीन नहीं कर पा रहे थे। और पहले से ही यह धारणा तो थी ही कि सलोनी किसी के साथ भागी हुई है। बस... उनके लिए यह मान लेना बहुत आसान था कि यह बच्चा किसी और का होगा, जिसके लिए सलोनी शादी से भागी थी। क्योंकि बड़े तो समझते थे कि सलोनी की सच्चाई क्या है, पर एक वर्ग ऐसा भी था, जिसमें अधिकांश युवा ही थे, वे मानते थे कि बस शादी किसी तरह हो जाने के लिए उन्हें ठगा गया है। और क्यूंकि सलोनी का पति यह मानने से इनकार कर दिया कि सलोनी के कोंक में उसका बच्चा है, सलोनी की सास भी सलोनी और उसके बच्चे को अपनाने से इनकार करने लगी। उसकी ननंद उससे घृणा करने लगी और दोनों मिलकर सलोनी को सताने लगी, यतनाएं देने लगी की सलोनी उन्हें छोड़कर, उस घर को छोड़कर कहीं भाग जाए।


-----Take a short break before

continues to read next chapter-----

Note:- जहाँ विश्वास ना हो, सम्मान ना हो, वहाँ रिश्ता नहीं जोड़ना चाहिए। क्यूंकि सम्मान से भी ज्यादा कीमती होता है जिंदगी। जब मौत आती है तो इंसान एक बार मरता है, पर जब वह सम्मान खोता है तो वह हर रोज मरता है। कई जिंदगियाँ सिर्फ इसलिए तबाह होती हैं क्यूंकि उन्हें किसी का अभिमान बचाना होता है। पर अगर आप गहराई से सोंचो तो, मौत आने से पहले उसे मौत कि तरफ धकेलने वाले अपने ही होते हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि आप इन्हे पढ़ने के बाद कम से कम अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जीने की आजादी दोगे।

Story by -AnAlone Krishna.
Completed on 21st July, 2025 A.D.
Published on 8th August, 2025 A.D.

● Life की परछाई ●
previous chapter | Preface & Index Page | next chapters
Prelude | Chapter 1 2 | 3 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 

0 Comments

I am glad to read your precious responses or reviews. Please share this post to your loved ones with sharing your critical comment for appreciating or promoting my literary works. Also tag me @an.alone.krishna in any social media to collab.
Thanks again. 🙏🏻

Newer Post Older Post
WhatsApp Logo