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"Life की परछाई: Chapter 4Chapter 5Chapter 6Chapter 7 • Chapter 8 • Chapter 9" has published on 8th August, 2025. अगर आपको online reading में असुविधा होती है, और आप इसे printed form में पढ़ना चाहते हो, तो post के bottom में दिए 'Download and Print' button को click करके आप उसका printout करवा लेना। जिसमें 'Download and Print' button नहीं है उसके लिए आप 'Google form' को भरकर मुझे send कर दो, मैं आपको pdf भेज दूंगा। इसके अलावा सबसे अंत में UPI QR code भी लगा हुआ है, अगर आप मेरे काम को अपने इक्षा के अनुरूप राशि भेंट करके सराहना चाहते हो तो, आप उसे scan करके मुझे राशि भेंट कर सकते हो। जो आप वस्तु भेंट करोगे, वो शायद रखा रह जाए, परंतु राशि को मैं अपने जरूरत के अनुसार खर्च कर सकता हूँ। ध्यानवाद !
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Life की परछाई : Chapter 4 (Perspectives of Life and Relationship)| Bilingual

● Life की परछाई ●

By AnAlone Krishna

Chapter 4

 (इस story में आप life and relationship को अलग-अलग perspectives के साथ समझोगे। साथ ही आप इस theory को जानोगे कि अधिकांश लोगों का प्यार आखिर क्यूँ अधूरा रह जाता है। )

Prelude | Chapter 1 2 | 3 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 

● Life की परछाई ●
Chapter 4 : Perspectives of Life and Relationship


अपने college campus के अंदर ही पर entrance gate के बाहर, parking में बैठकर माथा झुकाए उदय कुछ notes लिख रहा था। अभिषा बगल में आकर बैठी और उसके notes को झांकती हुई पूछी, "Sir, आप अकेले बैठकर क्या कर रहे हो ?"
उदय अपना माथा ऊपर उठाया, अभिषा को देखा, मुस्कुराया, फिर मुस्कुराते हुए बोला, "Upcoming event के लिए play तैयार कर रहा हूँ।"


जब अभिषा college में 1st year में थी, उदय 3rd year में था। वह college के NSS group का active volunteer था। उस वक्त अभिषा बस college के हाव-भाव, रंग-रूप, तौर-तरीकों को देख और समझ ही रही थी। उदय NSS group में play किया करता था। उसे play को direct करने का बड़ा शौक था। वो उन दिनों अपनी कला से समाज को बदलना चाहता था। इसलिए पूरे दिल से वह अलग-अलग साजिक कुरीतियों और परिवर्तन पर लिखे नाटकों और साहित्यों को पढ़ता, उसके concepts को अपने head को सुनाता और फिर उनकी सहमति से नुक्कड़ तथा stage पे perform करने के लिए छोटा सा नाटक तैयार करता था। जब अभिषा और सलोनी college में admission करवाकर पहली बार college गई, उस दिन class खत्म होने के बाद अभिषा उदय को अपने group के साथ ground में नुक्कड़ का practice करते हुए देखी। उस दिन तो वह उससे बात नहीं कर पाई। पर बाद में उनके activities को जानने और समझने के बाद वह भी NSS में join कर ली और सलोनी को भी अपने साथ join करवा दी। सलोनी को feminism और women empowerment ज्यादा fascinate करता था, इसलिए उसका झुकाव social-politics के तरफ ज्यादा था। क्योंकि वो दोनों बस उस वक्त नई-नई ही थी। तो वो इन सभी में से किसी में भी ज्यादा active नहीं थी, बस हर चीज को explore ही कर रही थी। इसलिए वो दोनों कभी-कभी उदय के group का हौसला बढ़ाने के लिए, cheers करने पहुंच जाती थी। और इसलिए उदय भी अभिषा को थोड़ा बहुत जानने लगा।

उस दिन जब उदय बैठा था और अभिषा उसके पास आकर बैठी, वह उदय से बोली, "मैं देखती हूं कि जितने भी individuality को lead करने और progressive सोच के साथ-साथ revolutionary attitude रखते है; आपके साथ volunteer करते हैं, आपके group के लोग; वो आपस में लगे हुए हैं एक-दूसरे को impress करने में, एक-दूसरे के साथ प्यार मोहब्बत में।..."

इससे पहले कि अभिषा आगे कुछ बोलती, उदय अपना pen रोककर बोला, "वो immature है।" और फिर से लिखने लगा।

अभिषा तंज कसते हुए बोली, "आपका मन ये सब करने को नहीं करता ? आप उनसे mature कैसे हो ?"

उदय अपना pen और notepad बंद करता है, और अभिषा को बोलता है, "वो बस students है, वो जितना चीजों को learn करते हैं, जितना उन्हें life का experience मिला, उनकी समझ उतनी है। वो अपने age के according ही दुनियां और जिंदगी को समझते हैं। इसलिए वो अपने age के according ही हरकतें कर रहे हैं।"

अभिषा बात काटते हुए पूछती है, "और आप उनसे अलग कैसे हो ? आप भी तो same age group के हो।"

उदय कहता है, "मेरा शुरू से interest अपने knowledge को समाज के साथ बांटने का रहा है। नुक्कड़ और नाटक में मुझे वो जरिया दिखा जिससे मैं अपनी समझ को लोगों के बीच समझा सकूं। मैं आम लोगों से पहले अपने group को अच्छे से समझाकर उनके बीच अपने concepts को रख सकूं, इसके लिए मैं बहुत सारे writers की किताबें पढ़ता रहता हूं। जिससे मुझे उनके life experience, समझ और नज़रिए को भी जानने का मौका मिलता है। जो कि मेरे experience, understanding, और perspective को औरों से बेहतर बनाता है। यही वजह है कि मैं उनसे ज्यादा mature हूं।"

अभिषा पूछती है कि, "वो बोलते हैं कि ये उनकी personal choice है, कि उन्हें कौन पसंद है या उन्हें किससे प्यार करना है। आपको नहीं लगता है कि आपका ऐसा comment, यह किसी को भी किसी के life के लिए नहीं करना चाहिए।"

उदय बीच में बात काटते हुए बोलता है, "It is true. This is their individuality. But इसका कोई future नहीं है। वो अगर commitment कर भी दे, फिर भी वो एक दूसरे के साथ हमेशा happily नहीं रह सकते हैं।"

अभिषा पूछती है, "ऐसा क्यों ? कोई चाहेगा तो क्यों नहीं रह सकता है ?"

उदय समझाता है, "क्योंकि उन्हें life का experience नहीं है। जब उन्हें इस समाज में रहकर अपनी निजी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ेगा, तो उन्हें समझ में आएगा कि उनकी पसंद और प्यार से ज्यादा भी कुछ जीवन में महत्व रखता है।"

अभिषा पूछती है, "और वो क्या ?"

उदय बताता है, "साथ रहने के लिए अपनी individuality को पीछे छोड़कर, togetherness के concept को अपनाना पड़ता है।"

अभिषा पूछती है, "क्या मतलब ?"

उदय explain करता है, "देखो, college में आए हर एक student की आंखों में ख्वाब है, उन्हें क्या पसन्द है, उन्हें क्या चाहिए, उन्हें आगे क्या करना है, ये individually सभी का अपना personal life है। But ये चीजें आपस में clash करेंगी जब वो एक दूसरे के साथ relationship में आएंगे। मुझे, उन्हें या किसी को भी एक-दूसरे के साथ रहने के लिए अपनी पसंद, आदतें, और ख्वाब को छोड़ना होगा। जिसकी एक limit है। हमारी जो उम्र है 18-20 साल-22 साल, हम किसी के सामने झुकना पसन्द नहीं करते हैं, अपनी individuality का हवाला देकर। ऐसे में इनका ego एक-दूसरे के साथ clash करेगा, कि कोई भी चीज sacrifice कौन करेगा।"

अभिषा पूछती है, "और आपको ऐसा क्यों लगता है कि वो तालमेल नहीं बिठा पाएंगे ? हो सकता है कि उनके बीच mutual understanding अच्छी बन जाए।"

उदय smile करके पूछता है, "अच्छा बताओ, हम ख्वाब क्यों बुनते हैं, किसके लिए देखते और कब देखते है ?"

अभिषा बोलती है, "आप ज्यादा इन सब चीजों के बारे में पढ़ते रहते हो, आप ही बताओ।"

उदय बताता है, "हम जिन चीजों को अपने आस-पास देखते हैं, अगर वो अच्छी चीजें है तो हम चाहते हैं कि वो हमारे life में भी हो, या फिर उससे better हो, या कोई बुरी चीज है तो हम चाहते हैं कि वो चीज ना हो। हम कोशिश करते हैं उनके अपने life में ना होने देने की। यानी कि हम अपने अच्छे और बुरे experience के कारण ख्वाब बुनते हैं, ताकि हम अपने life को better बना सके, और हम अपनों के साथ अच्छी life को enjoy कर सके। तुम एक बात बताओ, क्या इनके personal experience एक जैसे है ?"

अभिषा reply देती है, "नहीं, हर किसी का personal experience तो अलग होगा ना...?"

उदय पूछता है, "तो फिर अपने life को better बनाने का ख्वाब और इनकी planning same कैसे हो सकता है ?"

अभिषा बोलती है, "पर यही तो life है। लोग जब relationship में आते हैं तो उन्हें मिलकर ख्वाब देखना होता है, और future planning करनी होती है। आप यह कैसे बोल सकते हो कि कोई यह नहीं कर सकता है ?"

उदय बोलता है, "मै हर किसी के बारे में नहीं बोल रहा हूँ, पर जिन्हें मैं जानता हूँ, उनके बारे में sure हूँ कि उनका love life successful नहीं रहेगा।"

अभिषा बोलती है, "यह आपकी गलत सोच है, आप बस negative ही सोचते हो। आप अपनी mentality ठीक करो।"

उदय पूछता है, "ठीक है, मै यह topic को खत्म करता हूँ, पर मेरा एक last सवाल का जवाब दो। ये जो लड़के-लकड़ियाँ आपस में बैठकर ख्वाब बुन रहे हैं, क्या इनकी family नहीं है ? क्या इनके family members के individual ख्वाब नहीं है ? इन्हें क्या हक है उनके लिए ख्वाब देखने का ? क्या इनके family members की अपनी खुद की individuality नहीं है ? क्या वो accept कर लेंगे इनके ख्वाब को जो ये आपस में बैठ कर देख रहे हैं ?"

अभिषा चुप रह जाती है, उसके पास कोई जवाब नहीं होता है।"

उदय बोलता है, "तुम या तो उठ कर जा सकती हो। जिसके बाद मैं अपना काम शांति से बैठ कर continue करूं, या फिर बैठ कर इस विषय में और बात कर सकती हो। मुझे बहुत excitement रहता है कि मैं इन विषयों में खुल कर किसी से बात करूं, पर अगर bore हो रही हो तो तुम जा सकती हो।"

अभिषा पूछती है, "आपको क्या लगता है, ये ऐसा क्या करेंगे जो यह आगे भी हमेशा साथ रह सकते हैं ? जिससे इनका love successful हो...?"

उदय समझाता है, "देखो, किसी को पसंद करना इनका individual choice है। पर relationship में वो हर कोई शामिल होता है जो इनसे directly-indirectly जुड़े हुए है। तो इन्हें ख्वाब बुनने से पहले खुद को इनके अपनो के सामने express करने के लिए सीखना चाहिए था। जिससे वो जब अपनी families को अपने प्यार के बारे में बताते तो यह जाहिर सी बात है कि इनके family के कुछ लोग इनके प्यार को accept करते और कुछ लोग oppose करते। पर इन्हें clarity रहता कि कौन इनके साथ है और कौन नहीं। But इनकी problem यह है कि इनमें अपनों के सामने अपनी feelings को accept करने की हिम्मत ही नहीं है। यह बस assume करके अपना ख्वाब बुन रहे हैं, तो इनके ख्वाब को तो टूटना ही है।"

अभिषा हंसती है उदय की यह बात सुनकर और बोलती है, "आपको लगता है कि कोई अपनी family में यह कहेगा जाकर कि उसको किसी से प्यार हो गया है तो वो कुटायेगा नहीं ?"

उदय बोलता है, "That's my point. यह चोरी छुपे चाहे कितने दिन भी यह सब कर ले, पर कभी तो उन्हें सबके सामने accept करना होगा ना। कोई करना चाहेगा, और कोई डरेगी, इस बीच घरवाले इनकी शादी किसी और से करवा देंगे, और ये बस सोचते, ख्वाब देखते और डरते ही रहेंगे हमेशा।"

अभिषा पूछती है, "तो इसलिए आप इन झमेले में नहीं पड़ते हो...। अच्छा ही करते हो ।"

उदय बोलता है, "नहीं, ऐसा नहीं है। मैं try कर सकता हूँ अगर कोई मेरी जैसी मिले तो...।"

अभिषा पूछती है "आपकी जैसी का मतलब ? आपको लगता है जो आपकी तरह इतना ज्यादा intellectually सोचेगी उसको कभी प्यार होगा ? वो भी तो आपकी तरह ही इन झमेलों से बचने का कोशिश करेगी ना...।"

उदय smile करता है, "तुम्हारे पास time है ? क्योंकि जो मै बताने जा रहा हूँ उसे explain करने में वक़्त जाएगा।"

अभिषा बोलती है, "हाँ, आज की class suspend हो गई है तो next class के लिए अगले आधे घंटे के लिए free ही हूँ।"

उदय उसे explain करता है- 

"हमारे समाज में अलग अलग तरह की families है। उनमें से कुछ families अपनी progressive सोच के साथ अपने बच्चों से प्यार करते हैं और कुछ अपने communal सोच के साथ अपने बच्चों पर control करने का कोशिश करते हैं।

• जो families में customs and control बहुत ज्यादा मायने रखता है, और उस घर के बच्चे भी इसे अपना discipline, अपने घर का संस्कार समझते है। वो अपने parents के against कभी नहीं जाएंगे। उनसे अगर कोई प्यार करेगा, वो तड़प कर मर जाएगा मगर उसे उसका प्यार कभी भी उसे accept नहीं करेगा। उसका प्यार हमेशा अकेला ही दम तोड़ेगा।

• जो families में customs and control तो मायने रखता है, पर उस घर के बच्चों पर progressive सोच का प्रभाव है, वो या तो डरेंगे अपनी family के सामने अपनी feelings को accept करने से या वो जब accept करेंगे तो उन्हें दबा दिया जाएगा। इन दोनों case में भी प्यार अधूरा रह जाएगा। भले प्यार दोनों ने किया हो, पर पीछे तड़पना सिर्फ उसे पड़ेगा जो पीछे छूट जाएगा।

• फिर हो सकता है कि किसी family में progressive सोच का प्रभाव हो, बच्चे अपने life का discission खुद लेना चाहते हो, उनके समाज में communal सोच रखने वाले इनके family members को mentally/socially, may be physically भी pressure दे, ताकि इनको देखा- देखी उनके घरों के भी बच्चे उनके control से बाहर ना जाए। ऐसे में इनके family का कोई ना कोई member समाज के सामने हार मान लेगा और फिर इनका प्यार अधूरा रह जाएगा। इस situation में पूरी family suffer करेगी, और समाज को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

• फिर हो सकता है कि family और बच्चे दोनों progressive सोच के हो। Family अपने बच्चों की खुशी के लिए समाज से भी लड़ सकती हो। पर हो सकता है कि बच्चे अपने आस पास किसी और को उसकी family के साथ उनके प्यार की वजह से समाज से torcher होते हुए देख ले और वो ना चाहे कि उनकी family कभी भी वो सब suffer करे। तो वैसे में वो आधा प्यार करके बीच में एक दूसरे को छोड़ेंगे, और फिर अपने अधूरे प्यार में तड़पना उसे पड़ेगा जो पीछे छूट जाएगा।

• पर कोई family ऐसा हो कि उस घर के बच्चे अपनी जिंदगी भर अपने बड़ों को उनके progressive सोच के करना समाज से लड़ते हुए ही देखे हो। तो वैसे में उनके हिम्मत को और उनकी family पर उनके भरोसे को भला कौन तोड़ सकता है ! समाज भी पहले से जानेगा कि पूरी family ही progressive है, इनको समाज से कोई लेना-देना नहीं होता है, इसलिए समाज उस family पर अपना दबाव नहीं बना सकता है, तो समाज भी ज्यादा परेशान नहीं करेगा। और बच्चे भी अपने life को खुल कर अपने हिसाब से जी सकेंगे।

मैं नहीं जानता हूँ कि मेरी family मुझे support करेगी या मेरा oppose करेगी, पर मै यह नहीं चाहता हूँ कि अगर मेरे बाद कोई पीढ़ी आए, तो उसे हमारी या समाज की फिक्र करके अपनी खुशी को कुर्बान करना पड़े। हम जो भी करते हैं, अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए करते हैं। जिन संघर्षों से आज हम भागेंगे, कल जाकर फिर से वो अगली पीढ़ी के पास आएगी और फिर उन्हें वो झेलना होगा। इससे बेहतर है कि मैं आज stand लूं, ताकि आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर कल मिल सके।"

अभिषा बोलती, "तो आप चाहते हो कि आपको कोई ऐसी मिले जो अपके लिए पूरी दुनियाँ से लड़ जाए ?"

उदय बोलता है, "जरूरत पड़े तो अपनी family से भी।"

आप शायद यह सोच रहे होंगे कि ना कोई background, और ना कोई prologue, कृष्ण कहीं बीच से तो story नहीं बता रहा है, या कहीं कोई हिस्सा पीछे छूट तो नहीं गया। पर नहीं, आप आगे जो इस साहित्य में पढ़ने जा रहे हो यह उसकी भूमिका ही है। जिसपर जैसे-जैसे कहानी को आप आगे बढ़ते हुए पाओगे, आप इसके पात्रों की कहानियों को इस भूमिका का उदाहरण बनते हुए पाओगे। तो अब कहानी में हम आगे बढ़ते हैं।

Door bell बजती है। अभिषा, जो कि अपने पलंग पर बैठी अपने Life की परछाई, उसकी यादें, अपने photo album को देख रही थी; वह अपने रीड की हड्डी और झुकी हुई कंधों को सीधी करती है और आवाज देती है, "मेहक, बेटा देखो तो, पापा घर आ गए होंगे।" और फिर वह album के page को पलटती है। बाएं और दाएं, दोनों page पर उसके stage performance और उस team की तस्वीरें थी। जब वह अपने college के दिन में पहली और आखिरी बार stage में performance दी थी। मुझे आज भी याद है। रामायण के अध्याय को stage में दिखाया जा रहा था। अभिषा कैकेई बनी थी। श्री राम को वनवास भेजने के लिए कैकेई का दशरथ से अपने वचन को मांगने का scene था। वह दशरथ से अपने वचन बोली, और दशरथ बने पात्र के संकोच करते ही अपने दोनों हथेलियों को आपस में जोर से बजाकर अपनी कलाई की सारी चूड़ियां तोड़ दी। उसके बाल की जुड़ा खुल गई और टूटी हुई चुड़ीया stage में फैल गई। कुछ तो को तो stage का भी जगह कम पड़ गया। इस तरह वह कैकेई के रौद्र रूप को दिखाकर पूरे hall को चौका दी। वह अपने अभिनय से ऐसा समा बांध दी कि सभी उसके इस acting का काफी तारीफ किए। वो लड़के-लड़कियां, जो उदय के साथ रहते थे, वो अभिषा के acting से impress होकर उसके साथ pictures खिंचवाए। और इसके बाद जब वह college जाती, free होती, ground, canteen या garden में जाकर बैठती, तो उससे वो सभी बातें करने के लिए आ जाया करते थे।

एक दिन अभिषा, सलोनी और पूर्वी college के बाद एक साथ tempo में बैठकर घर आ रही थी।

सलोनी अभिषा को बोली, "आजकल नए friends क्या बने तुम हमलोग को भूलती जा रही हो।"

अभिषा चौक कर उसको बोली, "क्या ! तुम्हे ऐसा क्यों लगता है ?"

सलोनी बोली, "आजकल मैं जब भी देखती हूं तुम NSS वालो के साथ ज्यादा रहती हो। पूर्वी अकेली कहीं किनारे बैठी रहती है।"

अभिषा बोलती है, "वो तो मैं इसलिए जानबुझकर तुम दोनों को अकेले छोड़ती हूं, ताकि तुम दोनों के पास अकेले एक-दूसरे के साथ ज्यादा time spend करने का मौका मिले।"

पूर्वी बोलती है, "इसके साथ time spend ?"

सलोनी बोली, "मेरे साथ time spend करने में क्या खराबी है ?"

पूर्वी बोली, "तुम तो खुद अभिषा से ज्यादा busy रहती हो।"

आमतौर पर अभिभावक अपने बच्चों को college पढ़ने और सीखने के लिए भेजते हैं। पर college में कितना पढ़ाई होता है, और क्या सीखने को मिलता है, इसके बारे में अधिकांश लोगों को बस भ्रम है। जब बच्चे अपना secondary education पूरा कर लेते हैं, तब तक वो खुद से किताबें पढ़ना सीख चुके होते हैं। इसके बाद भी अगर उन्हें college में teachers के द्वारा books को खोलकर line by line पढ़ाना पड़े, तो समझो कि उसकी basic education अच्छी नहीं रही है। College में बच्चे जाते हैं ताकि उन्हें teachers का guidance मिले। बच्चों के class और standard के साथ-साथ उनकी किताबों की मोटाई और syllabus भी बढ़ता चला जाता है। ऐसे में किसी भी teacher के लिए उन सभी किताबों को line by line पढ़ाकर syllabus को पूरा कर पाना संभव नहीं होता है। इसलिए वो lecture hall में आते हैं, important points को पढ़ाते हैं और सिर्फ summary समझाते हैं, फिर lecture complete करके चले जाते हैं। College students का काम होता है कि वो खुद से किताबें पढ़े और फिर next day अपने doubts को वो professors से पूछे। यह तो हुई किताबी ज्ञान की बात, मगर इसके अलावा भी तीन चीजें students life में सीखने को मिलता है- 

१. discipline, जिसे बच्चे NCC join करके अपने जीवन में लाते हैं।

२. योग्यता, जब बच्चे NSS join करते हैं तो उन्हें समाज के प्रति कर्तव्यनिष्ठ बनाने के साथ-साथ उनको समाज के लिए कुछ करने के योग्य भी बनने को प्रेरित किया जाता है।

३. क्षमता, जो कि छात्र संघ में join करके वो समझ पाते हैं कि व्यक्ति के द्वारा बोले गए शब्दों का मूल्य, एकता का बल, और संविधान की ताकत क्या होती है।

यह तीनों में से एक इंसान को disciplined बनाता है, दूसरा काम को करना सिखाता है सामाजिक ज्ञान और अनुभव देकर, तीसरा काम को करवाना सिखाता है सामूहिक बल से दबाव बनाकर। College में students को ये सभी भी सीखने को मिलता है।

अभिषा पहले सलोनी के साथ women empowerment की बातें करने वाली seniors के साथ रहती थी। पर जब वो सब नारे, रैली और सामाजिक कार्यों में अपना जगह ढूंढने के जोर देने लगी, तो अभिषा का interest उस group से कम होने लगा। उसे यह बातें अच्छी तो लगती थी, पर उसे उनकी तरह आक्रोशित होना सही नहीं लगता था। पर वही सलोनी अपने सामाजिक परिवेश में बचपन से अपनी पसंद के लिए संघर्ष करते हुए बड़ी हुई। वह लोगों को उसके life में अपना पसंद थोपने का कोशिश करते हुए देखते हुए बड़ी हुई थी। इसलिए उसे वह group और उसके काम बहुत ज्यादा आकर्षित करता था। और जब अभिषा उस group से दूरी बना रही थी, सलोनी और ज्यादा घुल मिल रही थी। पर वहीं पूर्वी को इन सभी से कोई मतलब नहीं था। वह बस college अपना पढ़ाई करने आती थी। वह class आती, notes बनाती, किताबों के पन्नों को पलटती, पर doubts को पूछने में वह संकोच करती, उसे वह सलोनी या अभिषा से professors से पुछवाती। NCC, पूर्वी पतली दुबली, कमजोर शरीर वाली लड़की थी, उससे नहीं होता। और अभिषा और सलोनी को disciplined होने में कोई interest नहीं था। अभिषा मानती थी कि, "Life is nothing without a little chaos to make it interesting." और सलोनी सोचती थी कि "All great changes are preceded by chaos." Disciplined पूर्वी थी, उदय था। पर इन्हें किसी और के द्वारा नियम जानने की जरूरत नहीं थी, वो self-disciplined थे।

पूर्वी अभिषा को बोलती है, "तुम्हें उनलोग के साथ नहीं रहना चाहिए।"

सलोनी भी बोलती है, "यह सही कह रही है, तुम्हे उनके साथ ज्यादा नहीं रहना चाहिए।"

अभिषा tempo में बैठी मुस्कुराती हुई पहले बाई ओर पूर्वी को देखती है, आंखों में मायूसी, चेहरे में caring, और माथे पे चिंता की लकीरें। फिर वह दाई ओर सलोनी को देखती है, आंखों में शरारत, चेहरे में छेड़खानी, और अपने जुल्फों को अपनी उंगलियों से फेरकर गाल में हांथ लेकर smile करती हुई। अभिषा सलोनी को पूछती है, "क्या बात है ? आज बहुत खुश हो।"

सलोनी बोलती है, "आज DC आई हुई थी। वो जो road accident में अपने पति को खोई थी, वह महिला bank से case जीत गई। Bank loan का अपना पैसा वसूलने के लिए उस महिला को परेशान कर रहा था, और उसको कोई सुनने वाला भी नहीं था। हमलोग जो protest किए, उससे उसे insurance भी मिला और loan भी माफ़ हुआ। उसके लिए DC हमारे काम को सराह रही थी।"

अभिषा सलोनी को बोलती है, "तुम्हें क्या लगता है, तुम्हें भी उनलोग के साथ ज्यादा रहना चाहिए ?"

पूर्वी बोलती है, "तुम दोनों को उनलोग के साथ नहीं रहना चाहिए।"

अभिषा पूछती है, "क्यों, क्या खराबी है उनलोग में ?"

पूर्वी बोलती है, "उनलोग पढ़ाई-लिखाई में ध्यान नहीं देता हैं। माँ-बाप college पढ़ने के लिए भेजता है और वो सब लैला-मजनू बनल फिरता है।"

अभिषा बोलती है, "तो यह तो उनलोग का अपना personal life है। कोई कैसे जिए रहे यह हमे कहने का क्या हक है। और उनके साथ रहने से मैं उनके जैसी थोड़ी हो जाऊंगी।"

सलोनी बोलती है, "वो लोग तुम्हें अपना जैसा समझकर कोई ना कोई तुम पर try मरेगा ही। क्या पता कितना कोई कोशिश भी कर रहा होगा, हो सकता है कि तुम hint नहीं समझ रही होगी। क्योंकि जो जैसा होता है दूसरों को भी वैसा ही समझता है।"

पूर्वी इसपर चिढ़ जाती है, और सलोनी को बोलती है, "तुम भी जो संगत में रहती हो वो सब भी जहां तहां झगड़ते चलती है। अगर उनके साथ रहेगी तो तुम भी उन्हीं की तरह बाद में घरों में आग लगाने का काम सीख लोगी।"

सलोनी बोलती है, "देखो पूर्वी , मै जानती हूं कि तुम्हें दीदी सब पसंद नहीं है, मै इसपर कुछ बोलती नहीं हूं। पर उनके बारे में बुरा भला मत बोलो, तुम उन्हें जानती नहीं हो।"

पूर्वी बोलती है, "तुम दोनों को ये सब में अपना time waste करने से अच्छा अपने पढ़ाई और career में ध्यान देना चाहिए।"

सलोनी इसपर चिढ़कर बोलती है, "Career..? कौन सा career ?"

अभिषा इन्हें छेड़ते हुए बोलती है, "अरे वही। एक कमाने वाला कामयाब पति, एक बड़ा सा घर, एक प्यारा देवर, थोड़ी नकचिढ़ी ननंद, सास-ससुर और 4-5 छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे बच्चे…।"

अभिषा को पूर्वी और सलोनी दोनों, दोनों ओर से एक-एक करके मुक्का मारती है।

पूर्वी बोलती है, "कोई इतना पढ़ाई क्यूँ करता है ? मां-बाप इतना खर्च कर रहे है तो क्यों कर रहे हैं ? घर में बैठकर चूल्हा-चौका करने के लिए ?"

अभिषा मजाक में बोलती है, "बढ़िया कमाने वाला ज्यादा पढ़ी लिखी और समझदार wife चाहेगा ना...।"

पूर्वी बोलती है, "तो फिर पढ़ाई छोड़ दो। क्या जरूरी है daily college जाने का ? Degree तो घर बैठकर भी मिल जाएगा। यकीन नहीं होता कि तुम यह सब बोल रही हो।"

सलोनी समझाती है, "यह सिर्फ मजाक कर रही है। देखो आषा, तुम्हारा पति चाहे जितना भी कमा कर घर लाए। जब तुम्हें personal use के लिए उससे मांगना होगा ना, तकलीफ़ होगा। इसलिए उतना ज्यादा भले ही मत कमाओ, पर कम से कम इतना जरूर खुद कमाना कि अपनी जरूरत के लिए किसी के सामने गिड़गिड़ाना ना पड़े।"

पूर्वी अभिषा को बोलती है, "तुम जिनके साथ रहती हो, उन्हें अपने future की कोई परवाह नहीं है। वो सब चार-पाँच जगह मुंह मारेगी, फिर घरवाला उनका कहीं शादी करवा देगा और फिर सबकुछ भुला कर नया जिंदगी शुरू करेगी। तुम वैसी नहीं हो। एक बार किसी से लगाव हो जाएगा, तो तुम्हें उसे भूलकर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल होगा। इसलिए avoid करो उनको और उनसे दूर रहा करो।"

अभिषा पूर्वी को बोलती है, "तुम्हें मेरी इतनी फिक्र है !"

पूर्वी सलोनी को बोलती है, "और तुम भी जिनके साथ रहती हो, वो जैसा life style जीती है, वो कभी अपने family के साथ adjust नहीं कर पाएगी। इसलिए वो कभी personal life में सुखी नहीं रह पाएगी। इसलिए खुद को उनके जैसा मत बनाओ।"

सलोनी बोलती है, "ऐसा नहीं है। किसी का भी life सुखी नहीं होता है। हर किसी के life में problems होते हैं। हम कैसे जीते है इसपर निर्भर करता है कि हम सुखी रहेंगे कि नहीं। जो छोटी-छोटी खुशियों में भी जीना सीख लेते हैं, उन्हें जितना मिलता है उतने में ही सूखी रहते है। कोई बहुत सारी सुविधाओं के बाद भी दुःखी ही रहता है। मैं जिनके साथ रहती हूं, मै उनके साथ मुश्किल से मुश्किल हालात में भी लड़ना और जीना सीखती हूं। कई ऐसी महिलाएं मिलती है, जिन्हें देखकर यह लगता है कि ये सब इस हाल में कैसे जी रही है। मैं अगर उनके लिए कुछ कर पाऊं, तो मुझे इससे खुशी मिलती है।"

अभिषा बोलती है, "दूसरों के लिए कुछ करने से पहले खुद उस काबिल होना जरूरी होता है। तुम हर वो काम कर पाओगी, जो तुम करना चाहती हो, पर उससे पहले तुम खुद कुछ बन जाओ। इसलिए उनके साथ उतना ज्यादा time waste मत करो, खुद को वक्त दो।"

और अभिषा के आंखों से आंसू छलक गए। वह album का page पलटी, उसमें उसके जन्मदिन की कुछ तस्वीरें थी। जिसे celebrate करने के लिए सलोनी अभिषा को अनाथालय ले गई थी, वहां के बच्चों के बीच। जिनके लिए वो मिठाइयां अपने tuition पढ़ाकर कमाएं पैसों से खरीदी थी। सलोनी तो वैसे हमेशा कहती थी कि उन्हें बच्चे पसंद नहीं है। पर वो बच्चों की बहुत care करती थी। यह वही सलोनी थी, जो अपने tuition में बच्चों को बहुत कूटती थी, पर अनाथालय के बच्चों के लिए वह बहुत ज्यादा soft थी। जाहिर सी बात है वह tuition पढ़ाकर उसे अनुभव हो गया था कि कब बच्चों के साथ soft रहना है और कब उनके सामने rude हो जाना है।

अभिषा बोलती है, "पहले के समय में बच्चे बाहर पढ़ने नहीं जाते थे, उनका अपने परिवार से अलग ख्वाब भी नहीं था, इसलिए परिवार को देखकर उनकी शादियां करवा दी जाती थी। फिर वो school जाने लगे, पढ़ने और ख्वाब देखने लगे, तो उन्हें तस्वीरें दिखाकर उनसे पसंद पूछा जाने लगा। फिर जब वो थोड़े और बड़े हो गए तो वो दोस्ती करना शुरू किए, इसलिए परिवार वाले उन्हें अकेले में बैठकर बाते करने का permission देने लगे। पर अब जिस दौर में हमलोग है, हमारे अपने-अपने ख्वाब है, हमें भी अपने life में कुछ करना है, और हमारे ख्वाब को पूरा करने में हर कोई support भी नहीं कर सकता है। कोई चाहेगा तो भी हर कोई नहीं कर सकता है। क्या इसलिए हमारे parents को हमें उनके साथ शादी करने के लिए allow नहीं करना चाहिए जिनके साथ हम अपने ख्वाब को पूरा कर सके ?"

अभिषा indirectly love marriage के approval के बारे में बात कर रही थी। एक उम्र तक बच्चे और युवा अपनी बातों को express करने के लिए सही शब्दों का चुनाव नहीं कर पाते हैं। वो खुद को express करने में असमर्थ होते हैं। ये तीनों अभी जिस उम्र में थी, ये भी अभी तक खुद समझकर अपनी बातों को express कर पाना उस वक्त तक नहीं सीख पाई थी।

सलोनी बोलती है, "वो हमें यह permission कभी नहीं देंगे।"

अभिषा पूछती है, " ऐसा क्यूँ ?"

पूर्वी बोलती है, "वो हमें जन्म दिए, पाल-पोस कर बड़ा किए, पढ़ाए-लिखाए, फिर भी क्या उनका हक नहीं है हमारे life का इतना बड़ा फैसला करने का ?"

सलोनी बोलती है, "तो हम बोले थे क्या जनम देने के लिए ?"

पूर्वी बोलती है, "कैसी बात करती हो ? वो जन्मा कर छोड़ दिए क्या ? आज इस काबिल हुई हो, बिना उनके कुछ किए ? और इतना ज्यादा काबिल हो गई हो इतना बड़ा फैसला उनके बगैर खुद अकेले ले लो ?"

अभिषा उन दोनों को बोलती है, "चलो हटाओ ये सब। मुझे यह बताओ, कि अगर तुम्हारा कोई बच्चा होता है (सलोनी के तरफ देखकर) तो क्या तुम उतना छूट दोगी जितना तुम चाहती हो ? (पूर्वी की तरफ देखकर) या तुम भी उसके life का decision लेना अपना हक समझोगी जैसे parents हमारे life का decisions लेना अपना हक समझते है ?"

अभिषा उन दोनों को यह समझाना चाह रही थी कि हमें अपनी मर्यादा में रहना चाहिए, पर ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोई और आके बताए कि हमारी मर्यादा क्या है।

सलोनी पूछी, "तो क्या हमें औरों के forced limitations मान लेने चाहिए ?"

अभिषा बोली, "नहीं।"

पूर्वी बोली, "पर हमें self discipline में तो रहना ही चाहिए।"

अभिषा बोली, "हाँ।"


अभिषा album का page पलटी। उसमें कुछ तस्वीरें थी जिनमें वह सलोनी के साथ गांव के hill में बैठी थी। गांव के लोग, बच्चे और किशोर उधर अपना मवेशी चराने के लिए जाते थे। कभी-कभी सलोनी भी चली जाती थी, और इसके साथ टहलते हुए अभिषा भी। पूर्वी के घरवाले ये सब काम के लिए बच्चियों को नहीं जाने देते थे। आप सोचोगे कि उस time कौन इनका वहां photo click किया...। Actually photo उस time की नहीं है। वहां hill पर सबसे ऊपर एक शिवलिंग था, जिसपर सावन की सोमवारी में सभी जल चढ़ाने जाते थे। यह तस्वीरें उस समय की है।


तो उस दिन जब सलोनी college से घर आई, घर पर कुछ मेहमान आए हुए थे। इसलिए वह अपनी मां को भेजने के लिए hill चली गई। नीचे उसकी बकरियां चर रही थी और सलोनी ऊपर चोटी में बैठी, हल्की धूप, ठंडी हवाएं, कोयल का गूंजता कूक, और चिड़ियों की चढ़चड़ाहट का मजा ले रही थी।

अभिषा पीछे से आई और बोली, "तुम्हें ढूंढते हुए तुम्हारे घर गई थी, तो चाची बोली कि तुम बकरी चराने आई हो। आज बच्चों को छुट्टी दी हुई हो क्या ?"

सलोनी बोली, "नहीं। उनका tuition 5 बजे से है। तब तक मां आ जाएगी और मैं चली जाऊंगी।"

अभिषा सलोनी के बगल में आकर बैठ जाती है।

सलोनी पूछती है, "पूर्वी के सामने मुझे तुमसे पूछना सही नहीं लगा। Tempo में तुम्हारे बातों से मुझे ऐसा लगा कि तुम किसी को पसंद करने लगी हो।"

अभिषा बोलती है, "पता नहीं।"

सलोनी पूछती है, "पता नहीं का क्या मतलब ? 

तुम खुद तुम्हारे जज़्बात को अगर नहीं समझोगी 

तो फिर और कौन समझेगा !

कौन समझेगा दिल का हाल तुम्हारा,

तुम्हारे मन के भाव कौन समझेगा !

तुम खुद नहीं समझोगी धड़कन अपने दिल का,

तो तुम्हारे दिल का तड़पना और कौन समझेगा !"

अभिषा सलोनी को बोलती है, "तुम हो ना। तुम तो मुझे समझती ही हो"

सलोनी उसको आगे बोलती है,

"क्या तुम मानोगी कभी अपनी बेचैनी,

जो तुम्हें देखकर कोई और समझेगा ?

तुम जानोगी ही नहीं चाहते अपने दिल की,

तो कैसे तुम्हारा तन्हां रहना कोई और समझेगा ?"

अभिषा सलोनी को smile करते हुए देखती है, और बस देखते ही रहती है। कुछ seconds बीत जाने के बाद अभिषा सलोनी को बोलती है-


"जब मैं छोटी थी, दुनियाँ बिल्कुल black and white जैसा लगता था। या तो कोई चीज अच्छा है या बुरा। पर जब थोड़ी बड़ी हुई तो समझ आया कि completely black and white के बीच भी कई shades है। ना ही कोई चीज पूरी तरह से अच्छा है और ना ही पूरी तरह से बुरा। और अब जब लोगों को देखती हूँ, उनकी अच्छाई और बुराई के अलावा भी उनमें कई रंग मुझे दिखते हैं। कोई भी इंसान अगर अच्छा या बुरा है, तो इसपर depend करता है कि उसके हालात कैसे है।"

सलोनी अभिषा को कुछ नहीं बोलती है। बस शांत बैठी उसे सुनती है।

"हमारा character हमारे environment से बहुत ज्यादा affect करता है। हमें जैसा परिवार मिला, हमारी आदतें, व्यवहार उसके according हुई। जब हम school गए, हमने अपनी बुरी आदतों को जाना, समझा, तो हम अपनी आदतों को बदलना शुरू किए। हम जो पढ़े, वैसी हमारी सोच बनी। उस नजर से हम दुनियां को देखने लगे। पर जब हम समाज में गए, तो जाना कि उसके कई रंग है। पर अब जब हम और पढ़ रहे हैं, तो यह समझ रहे हैं कि समाज में भी कई बुराइयां है। मैं जिस जगह पर खड़ी हूं, अपने मनःस्थिति में, मैं अब किसी की भी नहीं रह गई हूँ। मैं अपने भाई को देखती हूँ, वो मेरे जैसा नहीं है। मैं अपने परिवार से अलग हो रही हूँ, अपनी अलग सोंच से, मुझे ऐसा लग रहा है। मैं तुमलोग को देखती हूँ, तुमलोग मेरे साथ पढ़ी, पर तुमलोग मेरे जैसी नहीं हो। तुम कुछ हद तक हो, फिर भी हम अलग सोंच रखते हैं। हमें जो ज्ञान मिला, हम उसे अलग समझे, हम उसे अलग तरीके से अपनाए। लोगों के साथ अब मै भी वैसे ही तर्क-वितर्क करने लगी हूँ, जैसे पापा और uncle सब को दादा-दादी के साथ करते देखती हूँ। किसी चीज की अगर मैं अपने अंदर सबसे ज्यादा तलब महसूस करती हूँ तो वह ज्ञान है, और उससे भी ज्यादा उस ज्ञान की अपने जीवन में उपयोगिता को जानने की और समझने की। इसलिए जब लोगों को शादी करते हुए देखती हूँ, यह बात मन में आ ही जाता है, कि अगर मैं भी यह चीज दूसरों पे छोड़ दूँ, तो क्या वह इंसान वैसा हो सकता है, जैसा सोंच मै रखती हूँ। अब ऐसे में अगर कोई इंसान ऐसा मिले, जिसको देखकर लगे कि वो मेरे जैसा है, तो तुम ही बताओ कि मैं क्या करूँ ? उसकी ओर दिल के खींचे चले जाना, उसके साथ समय बिताना, स्वभाविक ही अच्छा लगेगा ही। क्या मैं उससे सिर्फ इसलिए अपना मुँह फेर लूँ, क्योंकि मुझे अपने parents को यह pride देना है कि मैं अपने लिए life partner चुनने का हक़ उन्हें देना चाहती हूँ? या मुझे यह समझना चाहिए कि क्या मैं सच में सिर्फ वैसे ही इंसान के साथ रह सकती हूँ, या यह बस मेरा एक वहम है ? जबतक मैं आजमाऊंगी नहीं, खुद को, तो यह बात मै कैसे समझूंगी ?"

सलोनी पूछती है, "तो इसे मैं क्या मानूं- सिर्फ दोस्ती, प्यार या क्या ?"

अभिषा बोलती है, "कुछ नहीं। कोई मेरे अन्दर उसे जानने को interest जगाया, वह मुझे अपनी बातों से प्रभावित किया, वह अब फिलहाल धीरे-धीरे attract तो कर रहा है, पर पता नहीं कि वह मुझे दीवानी बना भी पाएगा या नहीं। जिनसे दोस्ती है, उनको लेकर वैसा कोई अहसास नहीं है। इसलिए मैं sure हूँ कि वो दोस्त ही है। पर वो दोस्त नहीं है बस मैं उससे प्रभावित हूं। अगर मुझे उससे प्यार नहीं हुआ तो फिर मैं उसकी दोस्त भी नहीं रहूंगी, मुझे वैसे वो कुछ खास पसंद भी नहीं है। मतलब मुझे उससे प्यार शायद ही हो, पर मेरी उससे दोस्ती कभी नहीं होगी। वह बस वैसा है, जैसा partner मुझे लगता है कि मुझे अपने लिए चाहिए।"

सलोनी बोलती है, "तुम मुझे बहुत confuse कर रही हो। तुम sure नहीं हो। इसलिए कहती हूँ कि उससे दूरी बना कर रखो। क्योंकि अगर तुम्हारे दिल में emotions जगे तो तुम उसे संभाल लोगी, पर लड़के खुद को संभाल नहीं पाते हैं। अगर उसे तुमसे प्यार हुआ तो फिर तुम उसे शायद रोक ना पाओ।"

अभिषा बोलती है, "बात तो तुम सही बोल रही हो।" कुछ seconds रुककर, "तुम्हें क्या लगता है ? तुम्हें कैसा लड़का चाहिए अपने लिए ?"

सलोनी बोलती है, "पता नहीं। मैं यह imagine कर ही नहीं पाती हूँ। मेरा experience अच्छा नहीं है। मैं यह बता सकती हूँ कि मुझे कैसा नहीं चाहिए, पर यह नहीं बता सकती हूँ कि मुझे कैसा चाहिए।"


आप सोच रहे होंगे कि क्यूँ, पर अभिषा सलोनी की बचपन की सहेली है तो वह यह बहुत अच्छे से जानती है। सलोनी अपने आसपास बस आपसी रिश्तों में कलह देखते हुए बड़ी हुई है। इसलिए वो नहीं चाहेगी कि वैसे लोग या वैसे चरित्र और व्यवहार वाले लोगों के साथ वो एक घर में रहे।

सलोनी अभिषा को explain करती है-

"जब कोई छोटा बच्चा बाजार से खिलौना लेकर आता है, खाना-पीना छोड़कर बस उसी खिलौने के साथ लगा रहता है। जिसके चलते वह अपने माता-पिता से डांट भी सुनता है और मार भी खाता है। पर जब उसका मन भर जाता है तो वह अपने उस प्रिय खिलौने को कहीं किनारे पर यूं ही छोड़ देता है, उसकी परवाह तक नहीं करता। फिर जब वह कहीं पड़ा हुआ खिलौना घर का कोई और बच्चा जाकर उठा लेता है तो वह उससे अपना खिलौना छीन लेता है, उससे झगड़े भी करता है। जब उसके माता-पिता उसे अपने खिलौनो को अपने भाई-बहन के साथ बांटने को कहते हैं तो वह गुस्से में उसे तोड़ देता है। वो बच्चे बड़े तो हो जाते हैं, पर उनकी हरकते बच्चों वाली ही होती है। लड़के शुरू-शुरू बहुत प्यार दिखाते हैं, फिर जब मन भर जाता है तो ध्यान देना बंद कर देते हैं। जब उनकी गैरमौजूदगी में वो अपनी wife को किसी और से बात करते हुए देखते हैं तो उन्हें ईर्ष्या होती है। वो अपनी wife को डांटते है, औरों से झगड़ा करते हैं, फिर अपनी wife को limitations में रखना शुरू कर देते हैं। जब उन्हें समझाया जाता है कि उसकी wife के साथ वो गलत कर रहा है, तो फिर अपनी wife से छोटी-छोटी बात पर झगड़े करना शुरू कर देते हैं, और उनके आपसी रिश्तों में दरारें बढ़ती चली जाती है।"

सलोनी बात कर रही है materialistic love की। जब कोई इंसान अपने partner को as a human नहीं बल्कि as a material/object की तरह treat करने लगता है। ऐसा नहीं है कि ऐसे कुछ लोग ही होते हैं। समाज में अधिकांश लोग ऐसे ही होते हैं। आप कब materialistic हो जाते हो, यह समझने के लिए आपका spiritually and intellectually समझदार होना जरूरी होता है। तब आप अपने अंदर की खामियों को देख और समझ पाओगे। आमतौर पर नव दंपत्तियों की नई-नई शादियों को लोग देखते हैं, इसलिए उन्हें सबकुछ अच्छा लगता है। पर कुछ समय/साल बीत जाने के बाद, बच्चे हो जाने के बाद अगर आप उन्हें देखोगे, तब आपको समझ में आएगा कि लोग romantic कम और materialistic ज्यादा है। सलोनी ऐसे life को पाने से डरती थी। पर वह अपने लिए कोई चुनाव भी नहीं कर सकती थी। इसलिए उसको शादी और relationship में कोई interest ही नहीं था। 


अभिषा सलोनी की बात सुनकर उससे कहती है, 

"वो सामने देख रही हो ? उन औरतों को, जो अपनी बकरियों के पास बैठी है, और आपस में गप्पे करते हुए sweater बुन रही है। वो जब छोटी थी, उस वक्त से उन्हें बकरियों के मेमने बहुत पसंद थे। वो उन्हें गोद में उठाती, उनके साथ खेलती, मेमने भी उसके आसपास उछल कूद करते तो उन्हें इससे बहुत खुशी मिलती। पर जब वह मेमने थोड़े बड़े हो गए, भूख लगने पर इधर उधर जाने लगे, तो वो रस्सी से बांध कर रखने लगी। यह कहकर कि कही वह चला ना जाए, किसी का फसल ना खा दे, कोई उसे ले ना जाए, या आवारा कुत्ते उसे नोच ना खाए। उसके बाद उसकी बकरियां खाना और पानी के लिए इनपर निर्भर हो गई। अब जब वह खाना देती, चराने के लिए लाती, तब इनका पेट भरता। उसमें भी आधे पेट फिर शाम को ये उन्हें वापस ले जाती। जब इन्हें बच्चे चाहिए होता, तो ये किसी बकरे को अपनी बकरियों के साथ बांध देती, बकरियों को गाभिन करने के लिए। फिर उसके बाद उन बकरों पर भला ध्यान देने की जरूरत ही क्या! उसके बाद अगर उन बकरों को इनके घर का कोई सदस्य बाजारों में बिकने और कटने के लिए ले जाए, इन्हें क्या ही फर्क पड़ता! ये भी बड़ी हो गई, पर बकरियों के साथ आज भी बैठी है, आज भी यही कर रही है। और अपनी जिंदगी में बच्चों के लिए शादियां की और दूसरों का करवाती है। जब तक बच्चा नहीं हुआ तब तक खूब ख्याल रखी अपने पति का। फिर बच्चा हो जाने पर उसे कमाने के लिए बैल की तरह दिनभर खटकर काम करने के लिए दवाब बनाना शुरू की। जो वो कमा कर लाते है वो यह उनके जेब से चुराकर छुपा लेती हैं, और अगले दिन उन्हें दोबारा काम पे जाने के लिए मजबूर करती है। जब इनके पति शाम को अपना थकान दूर करने लिए अपने दोस्तों के साथ शराब पीने के लिए निकलते हैं तो ये पीछे से तुरंत उन्हें ढूंढने निकल जाती है। इनके बच्चे इनकी आंगन में खेले-कूदे तो इन्हें बहुत अच्छा लगता है। पर इनके आंगन से निकलकर पड़ोसी के आंगन में उसके बच्चे के साथ खेलने चले जाए तो इन्हें गुस्सा आ जाता है। ये तय करती है कि किसके बच्चों के साथ खेलना है और किसके बच्चों के साथ नहीं रहना है। फिर इन्हें उनसे भी बच्चे चाहिए होगा, ये तय करेंगी कि इनके बच्चे किसके साथ शादी करके बच्चे पैदा करे। यह भी अपनी बहुओं की देखभाल तभी तक करेगी जब तक इन्हें घर का चिराग, बेटा ना मिल जाए। ये भी बच्ची से बड़ी तो हो गई, पर इनकी भी आदतें नहीं गई। क्या तुम भी इन्हीं की तरह हो ? चलो माना कि अपने बचपना से निकलकर समझदार बस वो लोग ही हो पाते हैं जिनका शारीरिक growth के साथ-साथ intellectual growth भी हुआ होता है। अगर तुम हो सकती हो, मैं हो सकती हूँ, तो क्या लड़के नहीं हो सकते हैं ? और कौन समझदार हुआ है और कौन नहीं, जबतक उन्हें आजमाओगी नहीं, उन्हें मौका नहीं दोगी, तुम यह कैसे समझोगी ? या कोई भी कैसे समझ सकता है ?"


सलोनी अभिषा को बोलती है, "कभी-कभी मै सोचती हूँ। अगर हमें अपने ख्वाब पूरे करने है, तो हमें उनका साथ चाहिए, जो वही ख्वाब देख रहे हो। यानी कि हमारे friends, जिनके साथ हम ख्वाब देखना शुरू करते हैं। या हम सभी तो यह चाहते ही हैं कि हम हमेशा उनके साथ रहे जिन्हें हम प्यार करते हैं। मतलब हमारी family, भाई-बहन। फिर कोई ये सब छोड़ कर किसी अंजान इंसान के साथ, अंजान घर में, अंजान लोगो के बीच क्यों जाती है ? क्या उनका कोई ख्वाब नहीं होता है अपने life में, या उनका ख्वाब उनके लिए मायने नहीं रखता है ? क्या उनका दिल ऊब गया होता है अपनो से, या उनके दिल की प्यास पूरी नहीं हो रही होती है उनसे ? अगर खुद का परिवार, खुद के बच्चे की चाह नहीं होती है, तो कोई क्यों करता है शादी ?"


सलोनी अभिषा को बोलती है, "पता है, छोटे बच्चे गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलते हैं। वो बाजार से उन्हें खरीद कर ले आते हैं। फिर अपनी गुड़ियों का शादी दूसरे के गुड़ियों के साथ करवाते हैं, फिर उनके बच्चों का करदार आता है, फिर वो बड़े होते हैं, फिर वो उनकी शादियां करवाते है, फिर वो bore हो जाते है। फिर वो अगल बगल देखते है अपनी बुआ को, चाचा को कि किनकी शादी नहीं हुई है, और उन्हें शादी के लिए तंग करना शुरू करते हैं। फिर एक-एक करके उनके सारे चाचा, बुआ, मामा, मौसी, भैया, दीदी खत्म हो जाते हैं तो वो अपनी शादी के लिए उतावले होते हैं। फिर अपनी शादी के बाद अपने छोटे भाई-बहन का, भतीजा-भतीजी का, अपने बच्चों का शादी एक के बाद एक करवाते ही चले जाते हैं, अपने बचपन के गुड्डे-गुड़ियों के खेल की तरह। फिर जब उन्हें अपने कराए शादियों में झगड़ों को सुलझाने जाना पड़ता है, तब उनका धीरे-धीरे इससे मन ऊबता है। पर तब तक ये बूढ़े हो चुके होते है और समाज में यह खेल कोई और खेल रहा होता है। क्या लगता है तुम्हें, यह खेल कभी रुक सकता है ?"

अभिषा कहती है, "यह तो कभी नहीं रुकेगा। पर क्या हम अब कभी यह खेल खेलेंगे ?"

सलोनी बोलती है, "हम तो नहीं खेलेंगे, पर ना जाने कितने हमें अपने खेल का पात्र बनाकर खेलने का कोशिश जरूर करेंगे।"

अभिषा हंस कर बोलती है, "तुम तो ऐसे बोल रही हो कि तुम्हें ये सब चाहिए ही नहीं।"


सलोनी अभिषा को एक किस्सा सुनाती है। वह बोली, "मै रीता दी से मिलने गई थी, जब वह बीमार थी। तुम तो जानती ही हो कि वह hostel join की हुई थी अपनी शादी से पहले और बस exam देने college आती थी। वहां जब वह बीमार पड़ी, मैं लक्ष्मी दी के साथ उसे देखने गई थी। वहां मै देखी कि वहां के staffs और बच्चे उनका काफी ख्याल रख रहे हैं, सभी उनसे प्यार करते हैं। वो बोले कि रीता दी उन्हें बहुत प्यार करती है, इसलिए वो दी का काफी फिक्र करते हैं। तुम सोचों जिंदगी कितनी खूबसूरत हो सकती है, अगर हम सिर्फ अपने में रहने का स्वार्थ छोड़ दे तो। अगर उनका खुद का बच्चा होता, तो शायद उस hostel के बच्चों को यह महसूस होता कि वो सबसे ज्यादा सिर्फ अपने बच्चे से प्यार करती है, या उनके बच्चे को उनसे यह शिकायत होती कि दी उससे ज्यादा hostel के बच्चों को priority देती है।"

अभिषा बोलती है, "पर वो उनकी जिंदगी तो नहीं थी ना। उनका क्या होता, जब वो बूढ़ी होती ? उनका अंतिम संस्कार कौन करता जब वो मरती ? वो बच्चे जिनसे उनको इतना प्यार था, वो कुछ साल बाद school छोड़ कर चले जाते। फिर वो भी अपनी family के साथ रहते, शायद ही वो बच्चे फिर रीता दी को याद करते।"

सलोनी बोली, "एक batch जाता, तो दूसरे आ भी तो जाता। अगर खुद के बच्चों की बात करोगी तो कौन सा उससे सुख ही मिलेगा ! दुःख भी तो मिल सकता है। पर उतने सारे बच्चों में, कम से कम कुछ बच्चे तो जरूर ही होते जो उन्हें प्यार करते। जब वो बूढ़ी होती, बीमार पड़ती, तो उनका देखभाल करते, जब तक at least वो hostel में होते। और मरने के बाद इस जिस्म का क्या होगा, वो जिंदा लोगों को फिक्र करने की क्या जरूरत है ! जिसके सामने यह शरीर लाश बनकर पड़ी हो, उनकी ना फिक्र होती है कि वो इसका क्रियाक्रम करे, जलाए, दफनाए, या कहीं फेंक आए।"

अभिषा चोटी से सलोनी की माँ को आते हुए देखती है। वह सलोनी को बोलती है, "चलो, तुम्हारे tuition का time हो रहा होगा।"

और फिर दोनों साथ में घर की ओर चल देती है।


अगले दिन जब सलोनी और अभिषा college पहुंचती है। वह देखती है कि उदय कृष्ण के साथ बैठकर बातें कर रहा है। वह करीब पहुंचती है, कृष्ण उदय को बोल रहा होता है, "किसी के होंठों की हँसी अच्छी लगती थी, किसी के आंखों का चमक/ख्वाब अच्छा लगता था, किसी का अपनेपन का भाव अच्छा लगता था, तो किसी का caring वाला गुस्सा अच्छा लगता था, किसी का साथ अच्छा लगता था, किसी की बातें अच्छी लगती थी; पर जब वो मिली, सब उसमें मिला। फिर मुझे ऐसा लगा कि मुझे कइयों के पास बंटने की जरूरत नहीं है, मै सिर्फ उसका होकर रह सकता हूँ। पर अब जब वो भी नहीं है, मुझे और किसी की चाहत ही नहीं है। अब मुझमें किसी की भी चाहत नहीं बची।"

और वह सुनाता है अपना कविता, "क्या दोबारा फिर कभी इश्क़ होगा !"


..........कहानी अभी खत्म नहीं हुई,

the story still continues..........


Note:- किसी भी इंसान का character development time के साथ होता है। इस story के characters का भी arc chapters के साथ change होगा। अभी वो सभी सिर्फ college students है, इसलिए उनकी समझ उतना mature नहीं हुई है। उन्हें जिंदगी में बहुत कुछ देखना है, और आपको अभी उनकी कहानियों को और भी पढ़ना है। क्योंकि इनकी कहानी अभी खत्म नहीं हुई, the story still continues.


Story by -AnAlone Krishna.
Completed on 5th July, 2025 A.D.
Published on 8th August, 2025 A.D.


● Life की परछाई ●
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