• पहली दिल्लगी - प्यार की गहराई •
(प्यार में एक दूसरे के हो जाने के अहसास के साथ)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता
*पहली दिल्लगी-प्यार की गहराई*
बाँहो में उसकी राहत है,
आँखो में उसकी चाहत है ।
अब उसके लिए मैं खुद को भूलता जा रहा हूँ,
यह जिन्दगी की मुझसे शिकायत है ।।
वह धूप में घनहरी छाया है,
हर अदा उसका मुझे भाया है ।
जिन्दगी में जो उमंग की कमी थी,
उन उमंगो को उसने मुझतक लाया है ।।
उसके आने पर मैंने है खुद को जाना,
जाना बेहतर से जिन्दगी को ।
लोग क्यूँ करते काम उल्टे-सीधे,
अब पहचाना मैंने बेखुदी को ।।
कोई कैसे करे भला अब उस शक्स को,
जो राहत बन गई उसे नजर-अँदाज खुद से ।
ऐ जिन्दगी, जो मुझमें कमी खलती थी,
शायद पूरा होता है, बस उसी से ।।
कभी आयने पे देखा तो वो दिखी,
कभी आँखे बन्द की तो वो दिखी ।
राह में मैंने कई बार है धोखे खाये,
अपने भविष्य में झाँका तो वो दिखी ।।
अब तू बता ऐ जिन्दगी मुझको,
मुझे तूने उससे मिलाया क्यूँ ?
अगर नही है मेरा कोई भविष्य उसके साथ,
तो इन सुनहरे सपनो को मुझे दिखाया क्यो ?
-AnAlone Krishna.
20/06/2017
This is expand form of 1st two lines of 3rd para of my own written poem,'पहली दिल्लगी-शुरूआत से अंत'|
इसके हर एक stage के अहसास के साथ लिखे गए कविता को पढ़ने के लिए blog के page 'पहली दिल्लगी' में जाएं। Link- http://krishnakunal.blogspot.com/p/poetry_11.html







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