• पहली दिल्लगी - सपनों की दिशा •
(शुरुआती प्यार में भटकाव वाले अहसास के साथ)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता
*पहली दिल्लगी-सपनों की दिशा*
कब बीता यह याद नहीं मुझको,
क्या बीत रहा ?, यह समझ आ रहा ।
यह समय रूका ना अब रूकेगा,
भविष्य की चिंता मे आज जा रहा ।।
कोई तो मंजिल दिखा दो मुझको,
जिसे पाने की हसरत हो, कोई ऐसा मुकाम ।
ऐ जिन्दगी, मैं जिसके खातिर,
निछावर कर दूँ खुशियाँ तमाम ।।
जोश भी हैं और जूनून भी हैं,
बस कुछ पाने की मुझमे कामना नही ।
ना हसीन लम्हें, ना डरावने पल,
किसी से अब तक मेरा हुआ सामना नहीं ।।
ये कौन सुनहरे जुल्फो वाली,
है किसका चमकता ये रौशन सा चेहरा ।
ऐ जिन्दगी, सामने अगर कोई रूखा रह जाएँ,
वो तो मूर्ख, नासमझ, बदकिस्मत ही ठहरा ।।
ये कैसा उसका अपना सा व्यवहार ?
मेरे दिल पर कर रहा मीठा प्रहार ।
अब मँजिल क्या हैं मेरा , नही जानना मुझको,
बस चाहता हूँ, उसके साथ दूँ जिन्दगी गुजार ।।
ये खुद ही प्रेरणा की श्रोत हैं खुद में,
उम्मीद की जगाती ज्योत हैं सब में ।
वह खिलखिलाती धूप में एक घनहरी छाया हैं ।
शायद इसलिए ऐ जिन्दगी, तूने मुझे उससे मिलाया हैं ।।
-AnAlone Krishna.
17/06/2017
This is the expanded form of 1st four lines of 2nd para of my poem, 'पहली दिल्लगी-शुरूआत से अंत'।
इसके हर एक stage के अहसास के साथ लिखे गए कविता को पढ़ने के लिए blog के page 'पहली दिल्लगी' में जाएं। Link- http://krishnakunal.blogspot.com/p/poetry_11.html
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