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After "हमदर्द सा कोई", the ongoing stories of "Life की परछाई" starts from this 👇🏻 chapter.

Life की परछाई : Prelude ("Loose her before you loose everything for her.") | Bilingual story by AnAlone Krishna

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● Life की परछाई ● By AnAlone Krishna previous story  |  Preface & Index Page  |  next chapter Prelude ( Theme b ased on; Explaining the concept of, "Whatever we choose in our life, we will always go with their circumstances. May we choose to live as we like to, may we choose to live adjusting with our families, or may we rebel with our families, we will struggle in our life. So, it is in our hand to decide that which type of life we choose to live- in which we will take our own decisions by self, or in which someone other will take the decisions of our life." ) Prelude  |  Chapter   1  |  2   |   3   |  4  |  5  |  6  |  7  |  8  |  9  |  10  |  11  |  12   This story continue after  "Hope Without Hope" ● Life की परछाई ● Prelude : "Loose her before you loose everything for her." Sunday का दिन था। अभिलाषा सुबह के सारे काम निपटा कर ...

सब खत्म | Hindi poem by AnAlone Krishna

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सब खत्म (Move on करने की कोशिश में लिखा गया कविता) Witten by AnAlone Krishna सब खत्म चल अब सब खत्म करते हैं हम हांथ छोड़ते हैं हम हमारी यादों का  और अपने-अपने रस्ते आगे बढ़ते हैं हम अब मिलेंगे फिर तो मिलेंगे इस संसार के पार जाकर अब फिर कभी भी किसी मोड़ नहीं मिलते हैं हम। जहां टकराएंगी हमारी राहें  वहां खड़े होकर इंतजार  ना तुम करो और ना मैं करूं लौट कर इन गलियों में दोबारा हमें याद ना तुम करो और ना मैं करूं खोकर अपने-अपने जीवन में हम इस कदर सबकुछ भूल जाए चल सच में सबकुछ भूल जाते हैं और अपने-अपने रस्ते आगे बढ़ते हैं हम अब मिलेंगे फिर तो मिलेंगे इस संसार के पार जाकर अब फिर कभी भी किसी मोड़ नहीं मिलते हैं हम। टकरायेंगी निगाहें हमारी कभी किसी मोड़ पर अगर तो तुम भी किसी अजनबी की तरह मुझे पहचानने से इंकार कर देना कोई पूछे मेरे बारे में  मुझे तुमसे जानने को अगर तो तुम भी गैर-करीबी की तरह मुझे जानने से इंकार कर देना। चल अब सब खत्म करते हैं हम हांथ छोड़ते हैं हम हमारी यादों का  और अपने-अपने रस्ते आगे बढ़ते हैं हम। जब पल-पल की ख़बर रखा करता था, मैं बड़ा ही बेचैन रहा करता था...

"सलोनी की खुशबू" | A short story by AnAlone Krishna | Split story of "Life की परछाई"

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"सलोनी की खुशबू" The split story part of "Life की परछाई" , which is also place on the literary world of "हमदर्द सा कोई" written by AnAlone Krishna (यह कहानी एक तरह का social satire है। जो आपको तभी समझ आयेगा जब आप इसे एक बार में ध्यान से पढ़ोगे।) --------------------------- सच को ना कहने से शक पैदा होता है। शक को दूर ना करने से गलतफहमी होती है। गलतफहमी में जब बातें बनने लगती है तो अफवाह फैल जाता है। अफवाह की जब चर्चा होने लगती है तो वह किस्सा बन जाता है। फिर उस किस्से का लोग कहानी बना देते हैं। और फिर वह कहानी अगर कोई सामने खड़े इंसान से जुड़ा हो तो लोग इसे सच मानने लगते है। पर यही state जहां पर लोग यह तय ही ना कर पाए कि क्या सच है और क्या झूठ, उसे ही मिथ्या कहा जाता है- सच और झूठ के बीच की बारीक line. इस कहानी की पढ़ते समय आपको एक बाद ध्यान में रखना होगा, आप जो बोओगे वही पाओगी। लोग अपने भविष्य का निर्माण जाने-अनजाने खुद ही करते है। --------------------------- बाहर मुर्गा बोला। सलोनी की आँखें खुली। वह जैसे-तैसे अपने खटिए में अटकाए लकड़ी के सहारे उठकर बैठी।...

॥ The World of Two Realities ॥ Untitled poem : 1 | by AnAlone Krishna

(Suggest the title for this poem) कैसे चढ़ूं मैं उस महफिल के मंच पे जिसके दर्शक ही अभिनय करने वाले हो। वो जो होते तो कुछ और हो दिल में और  दुनियां को कुछ और ही दिखाने वाले हो। मैं शक्लें देखता हूं उनकी तो  मुझे उनके चेहरे दिखावटी लगता है। जब वो होंठों से खुद को खुश दिखाते हैं पर आंखों में खुशियों की कमी लगता है। मैं डरता हूं उन्हें गौर से देखने से, मैं एक नज़र देखते ही नजरे झुका लेता हूं। उन्हें पता ना चल जाए कि मैं पढ़ लेता हूं चेहरे, अंजान बनकर अपनी इस कला को छुपा लेता हूं। कल भी मैं पढ़ा था छः चेहरा जो हाल दिल का अपना वो मानेंगे नहीं। दिखावा इस खूब करते है वो महफ़िल में  जैसे कोई उनके मुखौटे पहचानेंगे ही नहीं। किसी के आंखों में सब खोने का एहसास था पर चेहरे में संतुष्टि था कि जो मिला वो भी काफी है। किसी के आंखों में दर्द था संघर्ष में होने का पर उनके भाव में हर मिले दर्द की माफी है। किसी की आँखें तकलीफ में दिखती है पर मुस्कुराहट ऐसी है कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं। किसी को देख के लगता है कि उसे मजा आ रहा है जैसे शायद दर्द ने उसे अभी तक छुआ ही नहीं। किसी की आंखों में उम्मीद ह...

मेरे अंदर बैठे शिव और मैं (कविता)

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 मेरे अंदर बैठे शिव और मैं (कोई भी आत्मा ईश्वर को प्रतिस्पर्धा करके प्राप्त नहीं कर सकता है। ध्यान-योग-साधना मन की स्थिरता से पनपते हैं। विचलित मन में उसकी स्मृति कैसे समाएगी भला !) मेरे अंदर बैठे शिव और मैं हसदेव काट कर चुप रहने वाले लोग, थैले भरकर तुलसी पूजा करते है। सुबह शाम भजन कीर्तन होती नहीं जिनसे, वो चर्च के आगे शोर शराबा करते हैं। क्या फर्क पड़ता है अगर किसी का सांता खाना पहुंचा रहा हो तो, खुद के शिव और कृष्ण को तो तमाशा बनने से रोक नहीं हैं पाते। दिल पे बसने वाले राम शायद मन की भावनाओं को सुन नहीं पा रहे, इसलिए प्रतिस्पर्धा में उनसे शोर शराबा करते है। जो दिल में बैठे है उस राम से मैं, बातें करता हूं,  उनके सामने शोर नहीं करता। जो नैनों में बसे उस शिव को मैं, उन विचलित लोगों की तरह कभी अनादर नहीं करता। वो कहते है मुझको कि क्यों तड़पते हो कृष्ण ? तुझमें भी हूं और उनमें भी तो मैं ही हूं। खुद को बर्बाद करोगे तो हम कहां रहेंगे ? हमें मूरतों में तो तुम पूजते हो, हम तो तुम्हारे दिल में रहा करते हैं॥ -AnAlone Krishna. 26th December, 2024 A.D.

"जीवन" | Hindi Poem by AnAlone Krishna

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 "जीवन"  (अपने कुछ होनहार दोस्तों का समाज तथा प्रकृति के प्रति बेपरवाही और केवल अपने परिवार के प्रति ही उत्तरदायी होने के स्वार्थी स्वभाव को देख नाउम्मीदी एवं दुःखी मन के साथ) कृष्ण कुणाल के द्वारा लिखी गई कविता जो मुड़कर देखता हूं मैं अपने पीछे, कोई पीछे नहीं मिलते मुझे, सभी अपनी उस धारा में बह गए। वहीं पुराने खयालात और आज्ञाकारिता, बड़ो की बात मानना और उनके ख्वाब पूरा करना, मैं उस नदी से निकल गया और वो धारा में बह गए। मैंने ख्वाब देखा है अपना अलग, अपनी जरूरतों को समझकर, उसके काबिल बनने के लिए। उस धारा में बहता तो संगम में खो जाता मैं भी, जैसे खो गए वो सभी जो धारा में बह गए, लेकिन मैं अलग हुआ खुद काबिल बनने के लिए। मेरा यह जीवन क्या सिर्फ कर्ज है मेरे परिवार का ? मुझसे कोई उम्मीद क्या नहीं है इस समाज का ? यह राष्ट्र जिसमें मैं महफूज खुद को करता हूं, यह श्रृष्टि जिसके भोग से मैं फलता-फूलता हूं, क्या नहीं है कोई कर्तव्य इनके प्रति, जो सभी उसी धारा में बह गए ? जो वो किए ख्वाब चंद लोगों का पूरा, और जाकर वो संगम में खो गए । जब मैं टकराया उन पत्थरों से बहते-बहते, जो मेरा वजूद उस न...

● हमदर्द सा कोई ● भाग-१२ ● Bilingual story written by AnAlone Krishna

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भाग-११   ॥   हमदर्द सा कोई   ॥   पद्य-१ भाग-१२  (Final Part) Bilingual story written by AnAlone Krishna. (अगर आप इससे पहले इसकी पिछली stories को नहीं पढ़े हो तो जाकर उसे पढ़ लो, ताकि characters से आप अच्छे से relate कर पाओ, साथ ही साथ मेरी writing style को भी ज्यादा अच्छे से समझ पाओ।) • The Imperfect Ending • "एक वक्त था, जब मैं बहुत छोटा था, वहीं लगभग जब मैं १२-१३ साल का रहा होऊंगा। उस वक्त मुझे अपनी जिंदगी बहुत बोझिल लगने लगा था। मेरी ख्वाहिशें तो छोड़ो, मेरी जरूरतें तक मेरी family पूरी नहीं कर पा रही थी। मुझे लगता था कि ऐसी जिंदगी जीने से अच्छा है कि यह जिंदगी ही ना रहे। तो मैं हमारे शहर के hill पे चढ़ गया। मैं नीचे देखा तो सोंचा, कि अगर मैं नीचे कूद जाऊं, और अगर मैं बच जाऊं, बस मेरी हड्डी पसली टूटे और अगर मैं अपाहिज़ बन जाऊं, तो... मेरी वह जिंदगी मेरी इस जिंदगी से भी बुरी होगी। मेरी आंखों में आंसू आ गए, कि मैं इस जिंदगी से छुटकारा भी नहीं पा सकता हूं। तो मैं आँहें भरते हुए नीचे एक पत्थर पर बैठ गया। मेरे सामने दूर - दूर तक सूखी धरती, बंजर जमीन, और मई की गर...