पहली दिल्लगी - दिशा प्यार की ,कृष्ण कुणाल की लिखी कविता
• पहली दिल्लगी - दिशा प्यार की •
(प्यार में एक दूसरे के करीब आ रहे अहसास के साथ)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता
*पहली दिल्लगी-दिशा प्यार की*
ऐ आसमां पर बैठा खुदा,
मुझको बस तू इतना बता ।
एक बहुत ही नायाब नूर के जैसे,
कैसे तूने ली हूर बना ?
कौन भला अब रोकेगा खुद को,
हर्ष-उल्लास सब है उसमें ।
ऐ जिन्दगी, क्या मै झूठ बोल रहा,
दिखता मुझको रब है उसमें ।।
चाँद भी ला दूँ,
और तारें भी ला दूँ ।
दुनियाँ में है जितनी खुशियाँ,
वो सारे भी ला दूँ ।।
वो बस झूम जाये
जो मौसम के मिजाज से ।
मैं गरमी की धूप में,
बहारें भी ला दूँ ।।
कैसा है ये साथ उसका ?
उसकी हर बात मुझे अब भाता है ।
उसकी हर एक ख्वाहीश के लिए,
दिल हद से गुजर जाता है ।
ऐ जिन्दगी बस ईतना बता दे मुझको,
कि वह बन गई है अब मेरी मँजिल ।
मै तुझको सोचू या उसको सोचू,
यह मुझको समझ नही आता है ।।
है कितनी हसीन ये उसकी नसीहत,
मैं वो करूँ जो तू चाहता है ।
ऐ जिन्दगी, अब मैं जान गया हूँ ।
मैं उसका हो जाऊँ, तू यही चाहता है ।।
-AnAlone Krishna.
18/06/2017
This is expand form of last four lines of 2nd para. of my poem, 'पहली दिल्लगी-शुरूआत से अंत' ।
इसके हर एक stage के अहसास के साथ लिखे गए कविता को पढ़ने के लिए blog के page 'पहली दिल्लगी' में जाएं। Link- http://krishnakunal.blogspot.com/p/poetry_11.html
Comments