• बचपन देखो •
(बच्चों की नादानियों पर बिना सोचे समझे punishments देते देख, कवि के मन में उठे जज़्बात)
*बचपन देखो*
कभी हम भी तो बच्चे हुआ करते थें ।
कभी हम भी तो बेवजह जिद्द किया करते थें ।।
कभी हम भी तो मनचाहें काम पूरा ना होने पर रोया करते थें ।
कभी हम भी तो चीजो को बर्बाद किया करते थें ।।
पर अब क्यूँ बच्चो की भावनाओ को नहीं समझते ?
बच्चो के जिद्द करने पर उन्हें डाँटा करते हैं ।
उनके रोने पर भी माँग पूरा करने के बजाय और ज्यादा रुलाया करते हैं ।
छोटे-मोटे चीजो के नुकसान पर भी बच्चो को मारा करतें हैं ।
क्या अब तक हम किन्हीं के भावनाओ को समझने के काबिल नहीं हो सके हैं ?
या फिर हम कहीं और का गुस्सा बच्चो पर उतारा करते हैं ?
पर क्यों ? वो तो नादान हैं ।
उन्होंने तो अभी जानना शुरू किया हैं ।
फिर वो कैसे सहीं और गलत का
फैसला कर सकते हैं ?
Be friendly to children....
One time you was also a child.....
Support happiness society.
Best environment makes better generation.
Better generation gives more satisfaction to society.
.
-AnAlone Krishna.
May 16, 2015
Post a Comment
I am glad to read your precious responses or reviews. Please share this post to your loved ones with sharing your critical comment for appreciating or promoting my literary works. Also tag me @an.alone.krishna in any social media to collab.
Thanks again. 🙏🏻