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"Life की परछाई: Chapter 4Chapter 5Chapter 6Chapter 7 • Chapter 8 • Chapter 9" has published on 8th August, 2025. अगर आपको online reading में असुविधा होती है, और आप इसे printed form में पढ़ना चाहते हो, तो post के bottom में दिए 'Download and Print' button को click करके आप उसका printout करवा लेना। जिसमें 'Download and Print' button नहीं है उसके लिए आप 'Google form' को भरकर मुझे send कर दो, मैं आपको pdf भेज दूंगा। इसके अलावा सबसे अंत में UPI QR code भी लगा हुआ है, अगर आप मेरे काम को अपने इक्षा के अनुरूप राशि भेंट करके सराहना चाहते हो तो, आप उसे scan करके मुझे राशि भेंट कर सकते हो। जो आप वस्तु भेंट करोगे, वो शायद रखा रह जाए, परंतु राशि को मैं अपने जरूरत के अनुसार खर्च कर सकता हूँ। ध्यानवाद !
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Life की परछाई : Chapter 6 (Trail and Follies)| Bilingual story by AnAlone Krishna

 ● Life की परछाई ●

By AnAlone Krishna

Chapter 6

 (इस story में आप पढ़ोगे कि लोग कैसे अपने materialistic intension को पूरा करने के लिए अपनों के साथ भी साम, दाम, दंड और भेद नीति का प्रयोग करते हैं। इसे पढ़कर या तो आप लोगों के नकाबों के पीछे के चेहरे को आप देख पाओगे।)

Prelude | Chapter 1 2 | 3 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 


● Life की परछाई ●
Chapter 6 : Trial and Follies


सलोनी के पिता सलोनी से मिलने उसके hostel आते हैं। उनकी आँखें लाल होती है। चेहरे पे गुस्सा, दर्द, नाराजगी साफ झलक रहा होता है। Hostel की वार्डन यह समझ जाती है कि कुछ ना कुछ बखेड़ा खड़ा होने वाला है। वह इशारा करके सामने guard को बुला लेती है। पर जब सलोनी आती है, उसके पिता उसके सामने रोने लगते हैं। और उन्हें रोते देख सलोनी के भी आँखें डबडबा जाती हैं। वो रोते हुए कहते हैं, "मैं तो बदनाम हो गया। मैं अब किसी को क्या मुंह दिखाऊंगा ? तुम भी यह ख्याल नहीं की कि तुम्हारे घर से भागने से मुझे पीछे समाज क्या बोलेगा ? मैं उन्हें क्या जवाब दूँ ? तुम्हारी तो पूरी जिंदगी ही बर्बाद हो गई।" 

आपको इसका intense अभी समझ नहीं आ रहा होगा, पर आगे समझ में आएगा। 

सलोनी बोलती है, "मैं हजार बार बोल चुकी हूँ कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है। पहले मुझे अपनी पढ़ाई complete करनी है। फिर आप जिससे बोलेंगे मै उससे शादी कर लूंगी। फिर भी आप मेरे सामने ऐसा situation खड़ा कर दिए। तो आप ही बताइए कि मैं क्या करती ? मैं बैठ जाती घर में, exam ना देती, और पूरे साल भर की अपनी मेहनत बर्बाद कर देती...? आपको अगर यही चाहिए तो ठीक है, मै छोड़ देती हूँ सब कुछ, और मैं चली जाती हूँ आपके साथ, मैं नहीं देती हूँ अपना exam, और कर लेती हूँ उससे शादी जिसे आप चुनते हो। मैं मान लूंगी कि जो ख्वाब मैं बचपन से देखते आई हूँ, वो बस नींद में देखे गए ख्वाब थे। जो मेहनत मैं आज तक की, बस खेल था, मेरा बचपना और शौक था। पर आप मुझे देखो पापा, आपको क्या लगता है, इसके बाद आप मुझे कभी वैसे पाओगे, जो आप मुझे आज तक देखते आए हो ? आप खो दोगे मुझे, मैं मर जाऊंगी।"

यह सुनकर सलोनी के पिता शांत हो जाते हैं। वह थोड़ी देर चुप रहते हैं और खुद को संभालते हैं। वह सलोनी के बाल सहलाते हुए बोलते हैं, "मुझे तुम्हारे ऊपर भरोसा है। कुछ भी जरूरत हो तो मुझे बेझिझक बोलना, मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

सलोनी के पिता सलोनी को यह बात बोल तो देते हैं, पर अब भी समाज की बातें उनकी कानों को चुभ रही थी। उसे शर्मिंदगी अभी भी हो रही थी कि वह समाज को कैसे अपना मुंह दिखाएंगे। इसलिए वो लौटते वक्त खूब शराब पी लेते है।

जब वह वापस अपने घर पहुंचते है, तो लोगों के सामने बेइज्जत हुई सलोनी की मां गुस्सा कर सलोनी के पिता से उसके बारे में पूछती है। जिससे सलोनी के पिता पूरी तरह भड़क जाते है और अपनी पत्नी यानी कि सलोनी की मां को मारने-पीटने लगते है। शोर सुनकर आसपास के लोग आते हैं, तरह-तरह की बातें बोलते हैं। जो समझदार होते हैं वो इन्हें शांत करने का कोशिश करते है और अधिकांश सलोनी की मां का पक्ष लेते हैं। इसपर सलोनी के पिता उस दिन गुस्से में उन सभी को बोल देते हैं, "मेरी बेटी है, जो चाहेगी, वो करेगी। कोई कौन होता है उसे कुछ भी बोलने वाला ? वो जितना चाहेगी, उतना पढ़ेगी। उसे जो कमी होता है मै पूरा करता हूँ कमा कर। इसलिए किसी को हक नहीं है उसको कुछ भी बोलने का। सालों, तुम्हारे खुद के बच्चों का चाल-चलन ठीक नहीं है, जहां-तहां मुंह मारते फिरते हैं और आए हो मेरी बेटी पे उंगली उठाने के लिए। कोई मेरी बेटी के बारे में आगे कुछ भी बोलेगा और उसको अगर आगे से जबरदस्ती करेगा शादी करने के लिए तो उसे काट के रख देंगे।"

उसके इस रूप को देखकर सामने वाले डर गए, और शांत हो गए। मामला उस वक्त तो शांत हुआ। उसके बाद इतना तो हुआ कि फिर कोई हिम्मत नहीं किया उनसे life में कूटनीति करने का, पर पीठ-पीछे... लोगों की फुसफुसाहट को भला कौन ही रोक सकता है !


अभिषा अपने album का page पलटती है। अपने college के दूसरे साल के final exam की तस्वीरें, जिसमें सलोनी उदास थी, उनकी कुछ और batchmates थी, पर पूर्वी उसमें नहीं थी।


आमतौर पर exam के पहले दिन सभी students exam center time से पहले पहुंच जाते हैं, ताकि वो अपना roll number ढूंढ सके, room ढूंढ सके। पूर्वी भी अपने पति के साथ time से थोड़ी देर पहले पहुंची। पर gate पर उसके पति को रोक दिया गया, क्योंकि guard को सिर्फ students को ही अंदर जाने देने के लिए कहा गया था। जब वह notice board में अपना roll number देख रही थी, अभिषा आई, और पूर्वी को बोली, "तब Mrs., पूरा तो तैयारी कर के आई होगी ? यार, इस बार तुम तैयारी नहीं करवाई, पता नहीं कैसा exam जाएगा !"

अभिषा उसको ऐसा इसलिए बोली, क्योंकि अभिषा और सलोनी तो NSS और student politics वालो के साथ social activities में ज्यादा time देती थी। उनके बीच सबसे ज्यादा पूर्वी ही पढ़ाई को seriously लेती थी और जिससे discuss करके अभिषा और सलोनी अपना concept clear करती थी। पूर्वी जवाब दी, "नहीं।"

अभिषा पूछी, "क्यों ?"

पूर्वी बोली, "मुझे गुस्सा आया, और मैं सारे notes फाड़ कर जला दी।"

अभिषा पूछी, "कब ?"

पूर्वी बोली, "उसी दिन जब घरवाले नहीं माने, और शादी cancel नहीं किए।"

अभिषा हैरान हुई, और कटाक्ष के अंदाज में रुक-रुक कर गहरी सांस छोड़ते हुए हँसी। क्योंकि उसे याद आया कि जब वह पूर्वी की ओर से उसके घर पे बात करने गई थी तो पूर्वी उसे मना कर दी थी। वह ऐसे जता रही थी कि पूर्वी के पिता को लगे कि वह शादी से खुश है। तो वह किसको बोली थी ? पूर्वी के हिसाब से अपनी भाभी और मां को बताने का मतलब था पूरे घर को बताना। उसकी भाभी और मां का उसको support ना करने का मतलब था कि पूरे परिवार का उसके against होना। क्या सच में ऐसा था ? नहीं। जब पूर्वी अपनी मां को बताई तो उसकी मां उसके पिता से पूर्वी के शादी से इनकार करने की बात नहीं की। जब वह अपनी भाभी को बताई तो वह भी डरकर यह बात किसी से नहीं बोली। यह गलती अक्सर उन घरों में होती है जिन घरों में बच्चे खुलकर अपने parents से अपने मन के भाव नहीं कहते। क्योंकि पूर्वी के पिता और भाई से किसी ने नहीं कहा, उन्हें कभी पता ही नहीं चला कि पूर्वी अपने शादी से नाखुश थी। इससे भी बड़ी बात यह कि पूर्वी अभिषा के सामने तो ऐसे जता रही है कि उसके मर्जी के खिलाफ उसकी शादी हुई है। पर फिर जब वह अपने परिवार और पति के साथ होगी, तो ऐसे दिखाएगी कि वह बहुत खुश है। इसमें पिसाएगा कौन ? जो उसकी मदद करना चाहेगी, यानि कि अभिषा। अभिषा को ऐसा लगा, इसलिए अभिषा वैसे व्यंग्यात्मक smile दी। पूर्वी सलोनी के तैयारी के बारे में पूछी, तो अभिषा बोली, "पता नहीं। आजकल field में कम ही दिखाई देती है। महिला समिति वाली दीदी सब कुछ tuitions लगवा दी है, class के बाद तुरंत निकल जाती है, बच्चों को पढ़ाती है अपना खर्च निकालने के लिए और room में पढ़ाई करती है।"

पूर्वी पूछती है, "उससे खर्च पूरा हो जाता है ?"

अभिषा बोलती है, "नहीं। लड़की form भी नहीं भरी थी। मुझे उस दिन ma'am सारा form arrange करने के लिए अगर नहीं बोलती तो मुझे पता भी नहीं चलता।"

पूर्वी बोली, "हां मै सुनी, तुम दोनों जो की।"

अभिषा पूछी, "तुम तो मुझे डांटोगी ना, मेरी बद्तमीजी के लिए…?"

पूर्वी बोली, "नहीं। अब मुझे इतना फर्क नहीं पड़ता है।"

अभिषा पूछी, "क्यों ?"

सलोनी पीछे से आकर अभिषा के बाएं कंधे पर अपना हांथ रखी। और पूछी, "roll number check कर ली ? कौन सा room दिया है ?"


राजनीति/कूटनीति की चार नीतियां आम तौर पर बहुत प्रसिद्ध है- साम, दाम, दंड और भेद। साम- भावनात्म कमजोरी का फायदा उठाना, दाम- लोभ और अहंकार का फायदा उठाना, दंड- क्रोध दिखाकर और भय बनाकर व्यक्ति को वश में करना, और भेद जानकार कमजोरी का फायदा उठाना। आपको लग रहा होगा कि इसके बारे में मुझे बात करने की क्या आवश्यकता है। हां नहीं था, पर कृष्ण लिख दिया है ताकि आप यह समझो कि यह खेल आपके इर्द-गिर्द कोई भी खेल सकता है- गैर भी और आपके अपने भी। कृष्ण चाहता है कि मैं आपको यह समझाऊं, और मैं तो समय हूँ, मेरा काम ही है समय-समय पर लोगों को समझाना।


पूर्वी उनसे कहती है, "पता नहीं अब हमें आपस में वक़्त मिलेगा भी या नहीं। पर मेरे दिल में बोझ रहेगा, हमेशा, अगर मैं यह तुमको नहीं बोलूंगी। तुम्हें पता ही था कि मेरे घरवाले मुझे लड़के वालो से यह कहकर मिलवाते थे कि बस मिल लो, अभी शादी नहीं करवाएंगे। पर जब लड़के वालो को मै पसंद आ गई, मुझे वो मनाने की कोशिश करने लगे कि मैं शादी के लिए हां कर दूं। मैं मां को बोली, तो वो मुझे डांटी, धमकाई। जब मैं पापा के पास गई तो वो मुंह फूला लिए, वो मुझसे बात ही नहीं करने लगे। मैं कुछ बोलने की कोशिश करती तो किसी और को कुछ बोल कर खुद को busy होने का दिखावा करके वहां से निकल जाते। वो सप्ताह भर मुझसे रूठे रहे। मैं भैया से बहुत डरती हूं, उनसे बात करने पर वो डांटते, मै उनके सामने सहम जाती हूँ। जब मैं मन मार कर हां बोली तब सब ठीक से बात करने लगे। पापा मुझे पहले से ज्यादा, बहुत ज्यादा लाड़ करने लगे, भैया भी बहुत फिक्र दिखाने लगे। मैं मां को कहने की कोशिश करती कि अब सब ठीक हो गया है, अब तो बात करो कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है। वो मुझे लुभाने की कोशिश करती, कि इनका इतना बड़ा घर है, इतनी बड़ी family है, सब सुविधाएं है, मुझे किसी चीज की कमी नहीं होगी। भाभी को बोलती तो वो मुझे आश्वासन देती कि शुरू-शुरू में सभी को डर लगता है, पर सब सही हो जाता है। मुझे ज्यादा चिंता ना करने के लिए बोलती। अगर मैं सुबह उदास होकर निकलती तो पापा मेरे हाँथ से पानी का glass तक नहीं लेते, और मैं खुश रहती तो वो ऐसे जताते कि उनसे ज्यादा कोई भी खुश नहीं होगा दुनियां में। मैं पापा को दुःखी नहीं देख सकती थी, अब भी नहीं देख पाऊंगी।(सलोनी के कंधे पे हांथ रखकर) काश मैं वो कर पाती जो तुम की, काश मैं तुम्हारी जैसी हो पाती।"

जब लोग अपने आसपास दोहरी वास्तविकता वाली दुनियाँ बना लेते है, वो होते कुछ है और दिखाते कुछ और है। दूसरे लोग भी उनके दोहरे स्वभाव को समझ नहीं पाते हैं। दूसरे लोग उसी को सच मानते हैं जितना वो देख कर समझ पाते हैं। पर उनके दिखावे के कारण दूसरे काभी भी लोगों की असली और सही सच्चाई जान नहीं पाते हैं।

पूर्वी भावनात्मक तौर पर अपने पिता के मोह में कमजोर थी, और यह भेद उसके परिवार वाले जानते थे। उसे अपने पिता और भाई का भय था, और उसे ससुराल के सूख का प्रलोभन भी दिया गया। इसे पढ़ने के बाद पता नहीं कितने लोग कृष्ण से चिढ़ जाएंगे। अगर कोई नहीं भी तो एक है कृष्ण के writings की FAN, वह जरूर चिढ़ेगी। पर मुझे क्या, यह writer समझे और उसके readers समझे। मैं तो narrator हूँ, जो कृष्ण लिखा है, मैं बस narrate करता हूँ।


सलोनी पूर्वी को पूछी, "तुम्हारे ससुराल वाले कैसे है ? वो सब तो ठीक है ना ?"

पूर्वी बोली, "हां, वैसे ही, जैसे आमतौर पर सब होते हैं। जब तुम शादी करोगी तो तुम भी देख ही लोगी।"

इसपर अभिषा कहती है, "इसके लिए शादी करने की  क्या जरूरत ! जो हमारे आस-पास शादी करके आ रही है, उन परिवारों को हम नहीं देख रहे है क्या ? किसी चीज को जानने के लिए अपने साथ होने देना जरूरी है ?"

इसके बाद सभी को अंदर जाने का warning bell बजा और तीनो exam देने अपने exam hall चली गई।

Exam देखकर निकलते वक्त अभिषा पूर्वी को बोली, "हमलोग बहुत दिन बाद मिले हैं। चलो आज हमेशा की तरह party करते हैं।"

पर पूर्वी बोली, "नहीं, वो लेने आए होंगे।"

Gate से बाहर निकली तो उसका देवर उसे लेने आया हुआ था। पूर्वी उसके साथ बैठ कर चली गई।


Exam का result आया, अभिषा और सलोनी तो average से थोड़े better marks के साथ pass हो गई। पर पूर्वी fail हो गई। पूर्वी शादी के बाद class भी नहीं जाती थी। और result के बाद तो re-admission भी नहीं करवाई। सलोनी के लिए पढ़ाई को continue रख पाना बहुत मुश्किल था, पर अभिषा उसे बहुत support की। इसके बाद एक दिन अभिषा के घर उदय की मां आई, उदय के कुछ और relatives के साथ। वो अभिषा से उदय के रिश्ते के बारे में बात करने नहीं आए थे। बल्कि वो झगड़ने आए थे। क्योंकि बार-बार मना करने पर वो उदय के मर्जी के खिलाफ उदय की शादी तय करके आ गए थे, और उदय इसके बाद भी मान नहीं रहा था। पर क्या बुराई थी अभिषा में, वो उदय का शादी कहीं और करने के लिए क्यों force कर रहे थे ? यह भी समझना और मेरे लिए भी इसे समझाना आसान नहीं है। पर कृष्ण है ना, पर लोगों के लिए यह बात मान पाना भी आसान नहीं है। 


Modern साहित्य में अक्सर लेखक materialism and romanticism में अंतर को समझाने की कोशिश करते हैं। जिसे पढ़ने के बाद कुछ लोग अपना पक्ष चुन लेते हैं। कोई कहता है कि emotions बेकार चीज है, तो कोई कहता है वह materialistic नहीं है। पर ये सारी बातें बचकानी है। Life have not only a gray shades, where only colours of black and white exists. Life is a colourful, and uncountable shades of so many colours are exists in life. एक ही इंसान materialistic भी होता है और वह romantic भी होता है। एक ही इंसान एक ही वक्त पर अलग-अलग शख़्स को अपना अलग-अलग रूप भी दिखा सकता है और एक ही इंसान एक ही शख्स को अलग-अलग समय में अपना अलग-अलग रूप भी दिखा सकता है। ये सारी चीजें निर्भर करती है वक्त, हालात, उसके भाव, उसका संज्ञान, और उसके सामने खड़े इंसान पर। इसलिए वही इंसान जो अपने परिवार के लिए दुनियां की हर खुशियां लाने की कोशिश करता है, दुनियां के लिए रत्नाकर डाकू की तरह उनके हक की कमाई भी छीनता है और उनका शोषण भी करता है। वह किसी के लिए बहुत अच्छा बनने के लिए औरों के लिए बुरा भी बन जाता है। यानी कि जो गलत है, वह सबके लिए गलत नहीं है। और जो सही है, वह सबके लिए सही भी नहीं है। जबकि अगर उसमें कोई भी ideology होता, चाहे materialism का या romanticism का तो वह जो होता, वह सबके लिए वही होता, जो कि कोई भी इंसान नहीं होता है। एक ही इंसान जो अपने लिए idealistic होता है, अपनो के लिए अपने सारे ideologies को पीछे छोड़कर selfless हो जाता है। फिर वह selfish होकर उनके प्यार को पाने के लिए और उनपर अपना हक भी जताता है और अपनी पसंद को उनपर थोपने की भी कोशिश करता है। फिर कभी वह अपनो की खुशी के लिए अपने पसंद को छोड़ कर उनके पसंद को भी अपना लेता है। वह कब किसके लिए क्या करेगा, यह उसके mood और उसका emotional लगाव पर depend करता है। और वहीं इंसान अपने किस अपने लिए बस materialistic approach रखेगा, यह भी उसके mood, behavior और emotional detachment पर depend करता है। अगर आप intellectually बेहतर इंसान बनना चाहते हो, तो आपको खुद के emotions and actions को समझकर उसे अपने control में करने के लिए सीखना ही होगा।


इस कहानी में ऐसे philosophical बात करने की क्या जरूरत थी ? जरूरत थी, ताकि अब जो कृष्ण समझाने जा रहा है, वो आप समझ सको। लोग ख्वाब सजाते हैं, empire और legacy बनाते हैं, property खड़ी करते हैं, अपने पूरे जीवन भर। पर वो कभी भी इसके अंत/distinction को expect नहीं करते हैं। इसलिए वो अपने ख्वाब, legacy, etc. को अपने बच्चों पर थोपने की कोशिश करते हैं। इसमें से कुछ के बच्चे तो अपने parents की property and empire खुशी-खुशी ले लेते हैं, पर कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो किसी और की परछाई में जीना पसंद नहीं करते हैं और अपनी खुद की पहचान बनाने की कोशिश करते हैं। Business का rule है, कि जो अपना है, जिसपर trust कर सकते हो, उसे काबिल बनाओ; या फिर जो काबिल है, उसे अपना बना लो ताकि हमेशा उसपर trust बना रहे। उदय काबिल था, sincere भी था, इसलिए लड़की वालो को वह बहुत पसंद आ गया था। जिसके चलते उसे अपना बनाने के लिए, उदय की शादी के लिए हर संभव लालच देने का कोशिश लड़की वाले कर रहे थे। हर इंसान चाहता है कि उसका ख्वाब, legacy, empire/business, property और बड़ा हो; इसलिए उदय के घरवाले भी उदय को मनाने की पूरी कोशिश कर रहे थे। ताकि उस रिश्ते से उन्हें भी फायदा हो। पर उदय बाकी लड़कों की तरह नहीं था कि वह किसी और की कमाई पर उड़े, किसी और की पहचान को अपना पहचान बनाकर उसपर गर्व करे, किसी और की परछाई में जिए और खुद को साबित करने के लिए किसी का इस्तेमाल करे। वह बहुत सारी किताबें पढ़ चुका था, वो बहुत सारी philosophies को पढ़कर idealistic हो चुका था। वह individualistic हो चुका था, इसलिए तो अभिषा के जैसी modern सोच रखने वाली लड़की के साथ उसकी अच्छी बनती थी। 


उदय को अभिषा तो पसंद तो थी, पर उतनी नहीं कि वह अभिषा को पाने के लिए अपने घरवालों से लड़ जाए और अभिषा के पिता से आकर उसका हांथ मांगे। पर इतनी पसंद तो कम से कम अभिषा थी कि उसे अभिषा का साथ अच्छा लगता था। बाकी जिनसे भी उसके घरवाले उसे मिला रहे थे, वह उन्हें पसंद भी नहीं कर रहा था। वो आती भी कैसे, जैसी वह expect कर रहा था, वैसा समाज अपने किसी भी बच्चे को परवरिश देता ही नहीं है। आखिर समाज का कौन परिवार चाहेगा कि उनके बच्चे उनके ख्वाब को और legacy को आगे लेकर ना जाएं, उनके अर्जित संपत्ति को, खड़े किए empire/business को बड़े होकर ना संभाले ? इसके लिए हर परिवार अपने बच्चों को साम, दाम, दंड, भेद किसी भी तरह से अपने control में रखने का कोशिश तो करेगा ही। पर individuality जहां समझ आती है, बच्चे अपने ऊपर का control तोड़ देते हैं। उदय तोड़ चुका था, और उसे जितनी भी लड़कियां दिखाई गई थी, वो अब भी अपनी family का control अपने ऊपर माने हुई थी। इसलिए उदय को अपने लिए अभिषा से बेहतर कोई और लग ही नहीं रही थी। पर हां अब भी अभिषा उसे इतनी पसंद नहीं थी, कि वह उससे शादी करने के लिए कुछ भी कर जाए। उधर उदय का परिवार परेशान हो रहे थे कि "यह लड़का अपनी जिंदगी खराब कर रहा है।" उन्हें लगा कि उदय को अभिषा ही बिगाड़ रही है, इसलिए उदय की मां अभिषा के घर अपने कुछ कारीबियों के साथ झगड़ा करने के लिए चली आई। झगड़ा हुआ, बात बढ़ी, उदय और अभिषा को आमने-सामने बिठाया गया। उदय और अभिषा, सभी के सामने यह accept किए कि वो एक दूसरे को पसन्द तो करते हैं, पर वो अभी शादी नहीं करना चाहते हैं। पर उनके घरवालों को उनका यह decision मंजूर नहीं था। तो फिर फैसला हुआ कि इसके बाद अभिषा और उदय एक दूसरे को भूल जाए और इसके बाद कभी ना मिले। उस वक्त तो उदय और अभिलाषा घरवालों की शांति के लिए मान गए, पर जब दोबारा उदय को उसके घरवाले शादी करने के लिए बोलने लगे तो फिर उदय अभिषा से भाग कर शादी करने का मन बना लिया।


जब अभिषा उदय के साथ शादी करने के लिए अपने पिता से permission मांगने गई, तो उसके पिता permission देने से शख्त इनकार कर दिए। इसपर अभिषा अपना bag pack करके जाने लगी। पीछे से उसका दो साल छोटा भाई झगड़ते हुए उसे रोकने की कोशिश करने लगा। पर अभिषा के पिता दुःखी मन से उसके भाई को डांटते हुए अभिषा को रोकने से मना किए, "इसे जहां जाना है, जो करना है, करने दो। कोई इसे नहीं रोकेगा इसको मनमानी करने से।" इससे उसका भाई गुस्से में statue बनकर gate के पास खड़ा रहा और अभिषा घर छोड़कर चली गई। जब अभिषा का भाई अन्दर लौटा तो देखा कि उसके पिता यह दुःख सह नहीं पाए, और छाती पे हांथ रखकर तड़प रहे हैं। वह चिल्लाया, मदद के लिए लोग आए और उन्हें तुरंत hospital ले जाया गया। किस्मत से उनकी जान बची, पर वो बेहोश रहे। इसलिए Doctor hospital से तुरंत discharge नहीं दिया। इसके बाद कोई अभिषा को खबर देने पहुंचा, अभिषा खुशी-खुशी court में शादी करके सीढ़ियों से उतर रही थी। वह शादी के ही जोड़े में भागकर hospital पहुंची, पर उसे देखकर उसका भाई अपने गुस्से में उसे बरामदे में ही रोक लिया, और अभिषा से झगड़ने लगा। अभिषा का शरीर तो खा-खा कर ताकतवर था ही, वह एक धक्का दी अपने भाई को और वह दीवार में जा टकराया। उसके कंधे में चोट लगी। और तब तक nurse आकर इन्हें डांटी और hospital में शांत रहने के लिए बोली। तभी अभिषा की मामी आकर बोली, "भाईसाहब को होश आ रहा है, वो अभिलाषा का नाम ले रहे हैं।" Nurse किसी को भी उनके पास जाने से मना कर दी और दौड़ कर doctor को बुलाने चली गई। Doctor आया, वह nurse को अभिषा को बुलाने का इशारा किया। Nurse बाहर आकर बोली, "तुम में से कौन है आशा ? ध्यान रहे patient का health अभी critical है, इसलिए उन्हें कोई दुःख/सदमा ना लगे। Nurse अभिषा को अपने साथ अंदर लेकर गई, doctor अभिषा को अपने पिता का हांथ पकड़ने को बोला और थोड़ी देर बाद धीरे-धीरे अभिषा के पिता जागे। Situation control में देखकर अभिषा का भाई भी धीरे से उनके bed के करीब जाकर पैर के पास खड़ा हो गया। 

अभिषा के पिता आंसू भरी आंखों के साथ पूछे, "तुम शादी कर ली ?"

अभिषा चाहती तो अपने पिता की खुशी को सोचकर इस सच को छुपा सकती थी। पर वह यह बात जानती थी कि वह अभिषा के झूठ को जानकर और भी दुःखी होंगे। इसलिए वह मुस्कुरा कर "हां" में अपना माथा ऊपर-नीचे हिलाई।

उसके पिता बोले, "अब तुम मुझे छोड़कर चली जाओगी ?" और रोने का शकल बनाएं। उनके आंखों में आँसू डबडबाने लगे और छलकने लगे।

अभिषा अपने पिता का हांथ पकड़कर बोली, "नहीं पापा, मै आपको कभी छोड़कर नहीं जाऊंगी।"

और फिर धीरे-धीरे उनका मन हल्का हुआ, और वो शांत हुए। पर वो कस कर अभिषा का हांथ पकड़े रहे। वह normal होकर धीमी आवाज में ही अभिषा को बोले, "अब तुम कहां जाओगी ? क्या करोगी ? वापस घर आ जाओ।"

अभिषा उन्हें हामी भरते हुए बोली, "ठीक है पापा, जैसा आप कहे।"


आपको गुस्सा आ रहा होगा ना, अपनी मनमानी करके अपने पिता को hospital पहुंचा कर बोल रही है कि "जैसा आप कहे।" पर इससे जरूरी बात जो आपको समझनी चाहिए। माता-पिता अपने बच्चों के लिए जो भी करते हैं, उनका intention हमेशा सही ही होता है। अभिषा और उसके पिता की मेले वाली conversation याद करो। वो क्या समझा रहे थे अभिषा को ? माता-पिता खुश होंगे जब बच्चे उनकी बात माने, पर इसके बाद अगर वो अपने बच्चों के आंखों में आंसू देखेंगे तो उन्हें बहुत दुःख होगा। पर हो सकता है कि माता-पिता दुःखी हो जब बच्चे उनकी बात ना सुने, पर जब वो अपने बच्चों के चेहरे में खुशी देखेंगे तो वो अपने सारे दुःख भूल जाएंगे। अभिषा के पिता अभिषा को खुश देखकर उसकी सारी गलती माफ कर दिए। और वापस उसकी फिक्र दिखाकर उसे घर पे बुला लिए। ऐसा हर पिता नहीं करता है। यहां और एक चीज है जो आपके जानकारी में होनी चाहिए, मर्द अपने emotions अक्सर express नहीं कर पाते हैं। वो less expensive होते हैं। इसलिए जब उन्हें बहुत ज्यादा दर्द/तकलीफ होता है तो वो इसे सह नहीं पाते और उनका heart collapse कर जाता है। इसलिए हर किसी को expressive होने का कोशिश करना चाहिए। काश writer भी इस बात को समझता, वह लोगों के सामने minimum expressive रहता है। किसी दिन वो भी heart-attack से जाएगा। तो कहानी में आगे बढ़ते हैं। बाहर आकर अभिषा का भाई उसे घर वापस आने देने से इंकार करने लगा कि, "तुम्हारे वजह से आज पापा की यह हालत हुआ है। तुमको हम घर में घुसने नहीं देंगे।"

पर nurse उनको समझाई, "please ये आपसी कलह आप बाद में सुलझा लीजिएगा। अभी जो patient चाहता है, वैसे कीजिए और ऐसा कोई काम मत कीजिए जिससे उन्हें और तकलीफ हो।"


इसके बाद अभिषा वापस दूसरे album के page को पलटी। अभिषा के पिता अपने नाती (Rony) को पहली बार गोद में लिए हुए, उसे कंधे पे बिठाए हुए, उसके साथ खेलते हुए, उसके लिए घोड़ा बने हुए, और उसके साथ पंजा लड़ाते हुए। उस घोड़ा बने हुए photo में सलोनी भी थी, Rony को पकड़े हुए, ताकि वह गिर ना जाए।


घर से बिना बताए जाने के बाद जब पहली बार सलोनी त्यौहार में घर आई थी, उसकी मां उसका जीना हराम कर दी। वह दो दिन भी सुकून से घर में नहीं रह पाई। उसके बाद वह घर सिर्फ इसलिए आती थी क्योंकि छुट्टियों में hostel पूरा खाली हो जाता था, सभी घर चले जाते थे। और वह जब भी घर आती, उदास ही रहती थी और दिल बहलाने के लिए वह अभिषा के घर आ जाती, जब अभिषा ससुराल से घर आई हुई होती थी। हां अभिषा भी अपने ससुराल बाद में चली गई। पर उसे कैसे अपनाया गया, यह आप अगले chapter में पढ़ना।


-----Take a short break before

continues to read next chapter-----


Note:- इंसान का भविष्य वो खुद ही बनाते हैं, जाने या अनजाने। आपके लिए कोई और फैसले ले, ये भी आप ही का फैसला है। आपको लगता है कि आप सही फैसला नहीं ले सकते हो इसलिए किसी के लिए फैसले को अपनाना उसमें भी किसके फैसले को अपनाना, यह भी अप ही का फैसला होता है। तो अपने चुनाव का दोष किसी और को मत दो। आपका किसी चुनाव को ना चुनना भी आपका ही फैसला था। तो अंत मे जब दोष खुद का होता है तो क्यूँ ना खुद से ही गलती करके खुद की ही गलतियों का दोष लिया जाए। खुद से गलतियाँ करना जरूरी है, सीखने के लिए। जब तक आपके लिए फैसले कोई और लेंगे, आप सीख नहीं पाओगे, आप grow नहीं कर पाओगे।


Story by -AnAlone Krishna.
Completed on 20
th July, 2025 A.D.

Published on 8th August, 2025 A.D.


● Life की परछाई ●
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