भाग -१०.१
From Diary of Agrima
By, AnAlone Krishna
By, AnAlone Krishna
(किसी के, खासकर लड़कियों के individuality के साथ आज के नव युवा वर्ग के मन के भटकाव को और उनसे जुड़े भावनाओ, आशाओं, कारणों, परिणाम को समझाने की लेखक के द्वारा की गई एक छोटी सी कोशिश)
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• हमदर्द सा कोई •
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सोंच रही हूँ - मैं कहाँ से शुरू करूँ... पर शायद शुरू से ही शुरू करना I think कि सही होगा। May sometime I shall jumble my past. But, if I can start it from the beginning, I shall understand myself while I shall read in this dairy. 19yrs. Ago, I born on 24th September. Year...? वो मैं नहीं बताने वाली। लड़कियाँ अपना perfect age नहीं बताती। अच्छा ठीक, मैं तो खुद के लिए ही लिख रही हूँ ना। यह मेरी dairy है जिसे कोई पढ़ने वाला है ही नही बाद में। मैं शायद ख़ुद को ही पढ़ रही होऊँगी अपने हाँथो में लिए अपने past को याद करते हुए अपनी इस dairy को। तो, I'm 21yrs old now. बाकी which calendar year, यह calculate कर लेना। शुरुआत में ही जिस तरह बक-बक करना शुरू कर दी, शायद आपको लगता होगा कि मैं कितना बोलती होऊँगी या मैं बहुत frank हूँ। नहीं, मैं ऐसी बिल्कुल भी नहीं हूँ। मुझे ज्यादा लोगों के साथ रहना पसंद नहीं है। सबसे ज्यादा मैं खुद की ही company को enjoy करती हूँ। मैं ज्यादा दोस्त नहीं बनाती। जैसे रवि, सतीश, कोमल, रुद्र, हिमाद्रि, राजेश का grouping है, मेरी कोई group नही हैं। मैं हमेशा अपने-आप से मतलब रखती हूँ। उनकी तरह मैं मटरगश्ती नहीं करती।
खुदा बनाकर मुझे इस धरती में भेजने के बाद
कभी तो सोंचा होगा कि
देखूँ कैसी है इस दुनियाँ की भीड़ में।
खुदा देख कर मुझको और मेरी जिंदगी को
कभी तो सोंचा होगा कि
क्यूँ अकेली रहती है इस दुनियाँ की भीड़ में।
सब दिया, family दिया, किस्मत दिया, मोहब्बत दिया
फिर क्यूँ मैं ऐसी हूँ
फिर क्यूँ मैं तन्हां रहती हूँ इस दुनियाँ की भीड़ में॥
मैं किसी को अपने close जल्दी आने नहीं देती। मैं जल्दी किसी से घुल-मिल नहीं पाती। दिल में बहुत कुछ रहता है, share करने के लिए। मन करता है कि जो कुछ भी इस दिल में है उसे किसी के सामने पूरी तरह निकाल दूँ। मगर ऐसा कोई है नहीं जिसपे मैं blindly trust कर सकती हूँ। अभी भी डर लग रहा है, अगर इस dairy को किसी ने पढ़ लिया, जो मैं लिख रही हूँ, उसे अगर कोई पढ़ लिया, तो क्या होगा। मेरे दिल की धड़कन थोड़ी शायद बढ़ गई है। मुझे महसूस हो रहा है। मन मुझे समझा रहा है,
"sweetheart, don't worry.
No one give such importance
to you. So, s/he get interested
in giving time to understand you.
They think you're senseless,
you're still not mature
for take even your own decision
for your own life.
So, don't worry.
No one will read this diary
except you."
मेरे पैदा होने पर कोई surprise नहीं हुआ। मैं expected थी। मेरे भैया सबके दुलारे थे और वो एक बहन चाहते थे। इसलिए सबने यही भगवान से prayer किया कि घर में एक बेटी ही हो। तो जब मैं हुई, उनका happiness और भी बढ़ गया। मुझे भी सबने प्यार से अपनाया और मुझे खूब प्यार दिया। लोग इसे मेरी good luck मानते हैं। उन्हें लगता है कि "आप कितने lucky हो। अगर आपको सभी प्यार करते हैं। आपकी सब care करते हैं। आपको सब support करते हैं। आपको सब promote करते हैं।" आप कितना lucky हो ना..? अगर आपको यह सब मिले तो... आखिर जिसे पाने के लिए लोग अपनी whole life stuggle करते हैं, आपको जन्म के साथ मिल गया होता है..! But dear friend, here remember only a single statement, "You're not me. You're not in my place. You can't understand my feelings. You can't understand my problem/situation."
भैया ने पहले से ही सोंच रखा था, मेरा नाम होगा मिस्टी। बांग्ला भाषा में इसका मतलब होता है मिठाई। वैसे भी मैं थी ही बचपन से बहुत sweet. लेकिन माना कि भैया को यह नाम बहुत पसंद था, इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि मेरा नामकरण नहीं होता। पुरोहित ने मेरा नाम रखा अग्रिमा जिसे बाकियों ने भी accept किया। भैया उस वक़्त जिद्द पर अड़ गए कि मेरा नाम मिस्टी ही होगा। फिर सबने उस situation को संभालने के लिए भैया के बात को उस वक़्त मान लिया। सभी मुझे मिस्टी के नाम से ही पुकारने लगें। मगर, जब आप बच्चे होते हो तो आपको life black and white जैसे दो ही colour की लगती है। एक जो आपके favour में होती है और दूसरी जो आपके oppose में। कोई चीज हमारे favour में हो तो हम खुश हो जाते हैं और oppose में हो तो upset होकर रूठ जाते हैं। बस इतनी सी ही तो जिंदगी होती है हमारी। कितना खूबसूरत लगता है ना, बचपन की यादें, मगर यह कोई fairy tales की तरह ही नहीं है तो फिर क्या है ? Life में decision बस अपने पसंद-नापसंद के basis पे तो हम ले नहीं सकते। किसी का नाम, आगे चलकर उसका पहचान बनते हैं। इसलिए किसी का नाम बहुत सोंच समझकर रखना चाहिए। मुझे घर में भले सब मिस्टी बुलाते हो मगर school में admition के time मेरे parents ने मेरा नाम अग्रिमा ही form पर भरा। भैया रूठ गए, पर इस बार अपने desire के साथ compromise करने की बारी मम्मी-पापा की नहीं, बल्कि भैया की थी। कमाल की बात पता है ? ये सारा problem मेरे नाम को लेकर हुआ, मगर मुझसे किसी ने मेरे पसंद-नापसंद के बारे में जानना जरूरी नहीं समझा। मेरी feelings पर किसी का ध्यान ही नहीं गया कि उस वक़्त मैं कैसा महसूस कर रही थी। जब मेरे अपने मेरे लिए ही आपस में एक दूसरे को oppose कर रहे थे। यह first time था, जिसे याद करके मुझे यह अहसास हुआ कि अपनो का प्यार जब मोह बन जाता है तो वो हमपर अपना हक़ जताने लगते हैं। वो यह भूल जाते हैं कि जितना अधिकार उनका आप पर है, उतना ही आपके ऊपर किसी और का भी हो सकता है। उससे ज्यादा आपकी खुद की भी individuality होती हैं। ख़ैर, उस वक़्त तो मैं बस गोद में खेलने वाली एक बच्ची थी। इसलिए मेरी individuality की बात को side में रख देते हैं। मगर उस वक़्त भैया भी तो बच्चे ही थे। भले वो अपनी पैरों पे खेल कूद लेते थे, मगर थे तो वो भी बच्चे ही। तो उस वक़्त किसी के बात की सबसे ज्यादा priority अगर होती तो वहाँ होती हमारे guardians की। मगर फिर भी भैया जिद्द पे अड़ गए की मेरा नाम मिस्टी ही होगा। इस बार कोई उनकी जिद्द को मानने वाले थोड़ी थे। कुछ दिन नाराज रहे, फिर खुद को compromise कर लिए बड़ो के decisions को मानकर। वैसे मैं एक बात बताऊँ ? मुझे मिस्टी नाम बिल्कुल पसंद नहीं था। दिनभर भैया मेरा गाल खींचकर "Misty is so sweet", "Misty is so sweet" करते रहते। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। जैसे कि मैं उनकी doll हूँ। मेरी कोई individuality है ही नहीं। अग्रिमा, नाम कोई खास लगा नहीं, पर काम चलाऊँ ठीक ही था।
मेरा school में admission बहुत जल्दी करवा दिया गया। ऐसा नहीं था कि मेरे मम्मी-पापा बहुत ज्यादा मत्वकांक्षी थे। उन्हें मुझसे कुछ ज्यादा ही expectations थी। They are understanding. सारी फ़साद के जड़ भैया ही थें। वो school late से जाते और जल्दी भाग आते। वो भी सिर्फ मेरे साथ खेलने के लिए। जैसे कि मैं उनकी बहन नहीं, उनकी doll थी। कई बार तो मम्मी को teachers से डाँट सुनना पड़ता था, क्योंकि भैया school prayer के बाद पहुँचते थे। वो मेरी care बहुत ज्यादा करते थे। इतने ज्यादा कि एक पल भी वो मुझसे दूर नहीं रह पाते। उनको school time पर regular करने के लिए मेरा भी admission करवा देना चाहिए, ऐसा teachers ने मेरे मम्मी-पापा को suggest किया। उन्होंने इस चीज को मान लिया और मेरी लग गई। मुझे ठीक से अपना बहता हुआ नाक पोंछने की तो रहने दो, ठीक से किसी का नाम तक नहीं ले सकती थी और मुझे school में डाल दिया गया। भैया हर period के break में मुझसे मिलने आते। उस वक़्त थोड़ी राहत होती। वरना उन सभी अंजान बच्चो के बीच मुझे डर लगता था। मैं धीरे-धीरे बड़ी होती गई। साथ ही मेरी कई friends भी बनती गई। जैसे-जैसे मेरी friendlist बढ़ती गई, मुझे उनके साथ अच्छा लगने लगा। मैं उनके साथ खेलने लगी, regular school जाने लगी। जिस दिन school बंद होता, या किसी कारण मैं school नहीं जाती, मुझे बिल्कुल boring महसूस होता। उनके बीच मुझे अहसास होता कि मैं किसी की गुड़ियाँ नहीं हूँ, बल्कि मेरी भी कोई individuality है। मेरी भी अपनी पसंद-नापसंद है। मेरी भी अपनी इक्षाएँ होती है। जिसे मैं कभी बोल नहीं पाती। क्योंकि मेरे लिए मेरे बड़े सबकुछ मेरे कुछ भी wish करने से पहले ही पूरी कर दिया करते और रही-सही कसर भैया अपनी पसंद-नापसंद से कर देते। हम बड़े तो हुए, मगर भैया की caring में कोई अंतर नहीं आया। वो अब भी हर interval में मुझसे मिलने आते और मेरी छोटी सी छोटी चीज का ध्यान रखते। वो कोशिश करते कि मेरे आँखों से एक कतरा आँशु तक ना बहे। बिल्कुल अपनी doll की तरह care करते। कोई भी कहता कि देखो एक भाई अपनी बहन से कितना प्यार करता है, उसके बगैर एक पल भी नहीं रह सकता। मगर आप ही सोंचो, कि यह जरूरत से ज्यादा होने लगे तो कोई addiction नहीं है ? हर वक़्त मुझे अपने नजरो के सामने देखना चाहना। हाँ, मानती हूँ कि उन्हें फ़िक्र होती है। मगर क्या मेरी खुद की privacy नहीं है। मेरे भी friends थे। मुझे भी खेलना अच्छा लगता था। ख़्वाहिशें करना अच्छा लगता था। अपनी पसंद के खेल खेलना अच्छा लगता था। एक time आया जब मैंने ठान लिया कि "enough, अब बहुत हो गया।" और अपनी ख्वाहिशों को भैया के oppose जाकर भी बड़ो के सामने रखने लगी। मेरी याद से वो ही वह पल था जब भैया और मेरे बीच दरार आना शुरू हो गया। शायद..। क्यूँकि इसके बाद से ही वह पहले की तरह अब मुझपर हक़ नहीं जताते, मगर indirectly मुझसे बिना कुछ बोले या बताये ही जो मेरे लिए करते, मुझे महसूस होता था कि वो अंदर से अब भी नहीं बदले। बस बाहर अब पहले की तरह show नहीं करते।
भैया को अब कम समय मिल पाता मेरे साथ spend करने के लिए। ज्यादातर समय मैं अपनी सहेलियों के साथ time spend करती। मुझे उनके बीच important होने का अहसास होता था। घर में सभी मुझे guide करते रहते, ये करो, ये ना करो। मुझे उनके बीच openly बिना किसी के guidance में रहकर decision लेने का मौका मिलता। मुझे risk लेने का मौका मिलता। अपनी गलतियों से सीखने का और उन्हें सुधारने का मौका मिलता। मगर मेरे भैया को.., उन्हें तो कभी मुझे हारते हुए देखना ही नही था ना... मेरी हर एक mistake पर उसकी वजह find करके सबसे पहले तो मम्मी-पापा से डाँट सुनवाते ताकि मै risk लेने की कोशिश ही ना करूं। फिर खुद ही उसका solution बिना मुझसे पूछे ही कि मैं ठीक कर सकती भी हूँ कि नहीं, वह उसका solution कर देते। साथ ही उन्हें बस मौका मिलना चाहिए होता था, जब वह यह complain करे कि, मैंने इस friend के बहकावे में आकर ये काम किया, या फिर इसके कारण मुझसे यह mistake हुआ, या मेरी यह friend के संगत में रहकर मैं बिगड़ रही हूँ। ताकि मैं उनसे दूर रहूं और ज्यादातर समय उनको ही दूं। देखने में कितना अच्छा लगता है, आपको एक ऐसा भाई मिला हो किस्मत से जो आपका इतना ज्यादा care करता हो। मगर problem भी तो यही है कि कोई आपकी care इतनी ज्यादा करते हो कि आपके लिए हर वो काम करने की कोशिश करे जो उनके हिसाब से सही लगें। यह भी बहुत अच्छी बात होती है कि आपको आपके अपने हमेशा जीतते हुए देखना चाहते हो। वे आपको हमेशा एक winner की तरह देखना चाहते हो। लेकिन इसके लिए मुझे risk लेने के लिए भी सीखना चाहिए था ना..? जीतने से पहले मुझे हार कर भी खुद को संभालने के लिए सीखना चाहिए था ना..? क्या situation हमेशा वैसी होती है जैसा हम सोंचते हैं ? हो सकता है जो मुझे मेरे अपने सपने दिखा रहे हो, वो बाद में उसे पूरा ना कर पाए या मुझे पूरा करने के लिए support ना कर पाए। क्या पता..! मुझे उस situation के लिए ढलने देना चाहिए था ना..? मुझे risk लेने देना चाहिए था ना..? मुझे भैया की caring से ज्यादा उनकी मेरी friends से jealousy दिखता था। इसका असर मेरे friend circle में भी पड़ा। कुछ को इस तरह का disrespect बर्दाश्त नही होता, वो मुझसे दूरी बनाने लगीं। इस तरह मेरे अपनो की interfere मेरी independency के लिए खतरा बनने लगा। मुझे अब limitations महसूस होने लगा।
दोस्ती, एक ऐसा रिश्ता जिसे हम अपनी choice से बनाते हैं। ना कि खून का ऐसा रिश्ता जिसे निभाना हमारी मजबूरी होती है। हाँ, शादी भी खून का रिश्ता नहीं होता। मगर हम उसे independently choose कहाँ करतीं हैं। हम, खासकर की लड़कियाँ। किससे करना है, कहाँ करना है, कब करना है, दूसरे decide करते हैं। हमारी तो बस रजामंदी माँगी जाती है। वो भी formality के लिए। जिसे अगर ना मानो तो, emotional drama शुरू। प्यार से, जिद्द से, ताने मारकर, किसी किसी को जबरदस्ती, मगर हमें तो किसी ना किसी तरह मना ही लिया जाता है। यहाँ तक कि हम उनके decision को मानकर खुश रहेंगे, हमें यह समझाने से पहले यह तक नहीं समझा जाता कि हमारी खुशियाँ किसमें हैं। शुरुआत में जब भी हम किसी को अपना friend बनातें हैं, तो हमारे मन में उनको जानने की, उनको समझने की, उनके करीब जाने की excitement होती है। इसके लिए हम उन्हें अपना ज्यादा से ज्यादा वक़्त देने की कोशिश करते है। उनकी मदद करने या लेने की कोशिश करते हैं। ताकि इसी बहाने ज्यादा से ज्यादा उनके साथ वक़्त मिले। जब मेरी teenage शुरू हुई तो ठीक इसी तरह मैं भी ज्यादा वक़्त अपनी सहेलियों के साथ बिताने लगी। फिर आई वही बात, कि मैं उनके साथ साथ रहने से बिगड़ जाऊँगी। भैया इस बात को मन में बिठाकर मुझे हमेशा टोकते रहते। पर अंदर की बात बताऊँ ? उनकी आँखों में मुझे इस बात का डर से ज्यादा मेरे साथ maximum से maximum time spend करना चाहते थे। अब तक वो मुझे ही सबसे ज्यादा priority देते थे। मुझसे दूर भी नही रह पाते। वो चाहते कि मैं हमेशा खुश रहूँ, इसलिए मेरे life के descisions भी लेते। और मैं अपनी सहेलियों के साथ वक़्त बिताती थी इसलिए वो उनसे जलते भी थे। मगर अब जो हमारा age था, मुझे सहेलियों के साथ ज्यादा time रहना अच्छा लगता था और उन्हें किसी ऐसे person की कमी खलती थी जो उन्हें समझे। पर मैं भैया की इस situation को उस वक़्त समझती नहीं थी ना। ऊपर से जैसे सभी मुझे हमेशा से एक गुड़िया की तरह treat करते थे, मुझे घुटन होती थी। इसलिए मुझे भी मौका चाहिए होता था जब इनसे निकलने का मौका मिले और मैं भी feel करूँ कि, "I'm not a doll. I'm a living human being." I think कि teenage के last में जब हमारा mind maturity को पा रहा होता है, सभी को loneliness सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। क्यूँकि loneliness is best for understanding ourself, our feelings and problems. सबसे पहले अपने उस age में मेरे भैया, फिर मैं, और बाकियों को भी same activities करते हुए मैं देखी हूँ। Loneliness पसंद करने के अलावा, अपनी problems को खुद में छिपाना, किसी से अपने thoughts share ना करना, हमेशा सीखने को attract होना, बातों में uncertainty होना means अपनी बात पे टिके ना रह पाना, किसी से अपनी problems share करने से डरना, अपनी feelings को peak पे बेकाबू महसूस करना जैसे कि - डर, अहं, चाहत, लत, गुस्सा, पछतावा, बहकावे में बहना, instantly ऐसे decisions लेना या कोई काम करना जिससे बाद में पछतावा होना। School के last days में भैया बिल्कुल ही अकेले रहने लगे और मुझे किसी की feelings की उस समय उतनी समझ नही थी तो मैं भी उनके situation को नही समझ पाई और अपने friend circle में ही खुश रहती थी। भैया के साथ साथ time ना के बराबर ही spend करती थी। लेकिन अब जब बीतें पालो को याद करती हूँ तो मुझे भी guilty महसूस होता है कि जब मेरे भैया को किसी ऐसे person की जरूरत थी जो उन्हें समझे, मैं, जिनकी वो हमेशा से अपने जान से भी ज्यादा care करते आये है, उन्हें मैं वक़्त नहीं दी।
I'm sorry, शायद मैंने अभी तक अपने भैया का नाम नहीं बताया। His name is Abhimanyu. But, सभी उन्हें मनु ही बुलाते हैं। भैया और मेरे age में 5 yrs. का difference है। मगर, जैसा कि मैंने पहले ही बताया - भैया school से भागा करते थे। उनको पढ़ने से ज्यादा मेरे साथ खेलना अच्छा लगता था। तो वह 1 साल fail हो गए। तो मुझे कम उम्र में ही school भेजा जाने लगा। खैर, वो बातें तो अब बहुत पुरानी हो गई। जब मैं 10th के बाद intermediate में arts लेना चाहती थी तो भैया का suggestion था कि मैं science लूँ। उस वक़्त भी बहुत बड़ा scene create हुआ था। ऊपर से women's college में मेरा admission करवाना चाहते थे। ऐसा नहीं है उनके मन में मैं एक लड़की हूँ इस बात से हीनभावना है। मगर patriarchy सोंच तो हावी था। उन्होंने देखा था कि कैसे लड़के लड़कियों को तंग करते थे। वो मुझे इन सब से बचाना चाहते थे, सही है। मगर यह वह कब तक करेंगे ! मुझे खुद से लड़ने के लिए सीखने देना चाहिए था ना ? वो मेरी खुशियों की चाहत रखते हैं, मेरी फिक्र करते हैं, अच्छा है। मगर मेरी अपनी भी तो likeness/dislikes है। मेरी खुद की भी desires होती है। हाँ, अच्छा लगता है कि कोई जब आपको इतनी care करे। But, किसी की care आपकों काबिल ही ना बनने दे, वो करने ही ना दे जो आप करना चाहते हो, वो बनने ही ना दे जो आप बनना चाहते हो, वो भी सही नहीं है ना। ऐसे situations में अपनो का प्यार ही हमारी कमजोरी बन जाती है। जिसे दूर करना बहुत जरूरी होता है। मैंने जब भैया के opposite decision लिया, उनके ego को ठेस लगा, कि वो मेरे लिए जो भी decision लेते है, सही ही होता है। इस वजह से उनके मन एक गुस्सा का भाव दबा हुआ था, जो बाहर आने का हमेशा से मौका ढूंढ रहा था। इसलिए जब उन्हें मेरे और ध्रुव के बारे में पता चला, मेरे ऊपर वो बहुत भड़के। उसके बाद वही गुस्सा जो कुछ बचा रहा वो रवि के ऊपर भी निकला होगा।
ध्रुव से दोस्ती मेरी I.A. के second year में हुई। जो धीरे-धीरे close होते चली गई। दरअसल हुआ कुछ ऐसा था कि उसका एक friend मेरी एक सहेली को पसंद करता था। वो अच्छा nature का था, इसलिए मेरी सहेली भी उसे line देती थी। मगर उसने कभी उससे कहने की हिम्मत नहीं की, ना मेरी सहेली ने अपना limit cross किया। जैसे कि, जिसे भी कभी किसी से सच्चा वाला प्यार हो तो वो अपने beloved को पाने के लिए सबसे पहले उसके नजर में अच्छा बनकर उसके दिल में जगह बनाते हैं, फिर सही मौका देखकर अपने दिल की बात उसके सामने रखते हैं। लेकिन कुछ दोस्तो को इतना सब्र होता कहाँ है। वो अपने excitement में आकर जरूर कुछ ऐसा कर देते हैं कि उनका मामला बनने की जगह खराब हो जाए। ध्रुव ने हमसे दोस्ती की। ज्यादा भाव कभी उसे हमने दिया नही। पर मेरी सहेली के भी मन में ध्रुव के दोस्त के लिए हमदर्दी था, इसलिए थोड़ा close आने दिया। इस expectation में कि शायद यह उनके complicated life को solve कर दे। ऐसा इसने किया भी। ध्रुव का दोस्त मेरी सहेली को like करता है, सब जानते थे। लेकिन ना तो वो कभी बात करता, ना class के बीच कभी पढ़ा रहे teacher के जगह चोरी छुपे उसे घूरते हुए देखता, ना वो उसका नाम सुनकर excited होता, हाँ थोड़ा शर्माता, मगर उसके बारे में कभी कोई discuss भी नही करता। हमेशा खुद में रखता था। मगर ध्रुव, वो इन्हें अक्सर tease किया करता। जब हमारा 12th के final exams हुआ, उसके बाद हमारा farewell था। जहाँ ध्रुव अपने दोस्त के पास एक 'Dairy-Milk-Silk' chocolate bar देखकर उससे पूछा कि, किसके लिए है। जो उसने बताया कि मेरी सहेली के लिए है, मैंने सुना था। वो उसे बार-बार उकसा रहा था कि वो मेरी सहेली को propose करे। मगर वो बार बार refuse कर रहा था कि सही वक़्त देखकर बात करेगा। मेरी सहेली पहले आई थी इसलिए आगे बैठी हुई थी। जबकि मैं अपनी बाकी सहेलियों के साथ पीछे बैठी हुई थी। इसलिए मैं उनकी बात को सुन रही थी। ध्रुव को लगा कि वह बोल नही पाएगा, डर रहा है। जैसे ही event खत्म हुआ और teachers चले गए। हम अपने last पल को cameras में कैद करने लगे। ध्रुव mic पे announce कर दिया कि उसका दोस्त उसे(मेरी सहेली को उसका नाम लेकर) propose करने वाला है और gift भी लाया है। अब उसके दोस्त के पास कोई another option नहीं था सबके सामने accept करने के अलावा। मेरी सहेली ने आगे आकर पूछा कि क्या यह सच है ? जैसे ही उसके दोस्त ने हाँ कहा तो मेरी सहेली ने एक थप्पड़ मार दिया और कहा, "अब तक मैं तुम्हें एक अच्छा लड़का समझती थी मगर तुम... किसी भी लड़की के लिए उसका respect सबसे ज्यादा मायने रखता है। और इस तरह से जो तुमने तमाशा बनाया.., मैं इसे कभी नहीं भूलूँगी।" और वह वहाँ से चली गई। उसके जाते ही उसके सभी friends उसे अपना ज्ञान देने लगे, जिसमे ध्रुव भी था। वह ऐसी है, वैसी है, तुम्हें उससे बेहतर मिल जाएगी, उसे दिखा देना.., वगैरह-वगैरह। उसने बस गुस्से में कहा, "leave me alone" और सब उसे ताने मारकर कि भांड में जाओ, ठीक हुआ, वह इसी लायक़ है; सब चले गए। वह कुर्सी में बैठा, rapper फाड़ा और chocolate खाने लगा। मैं उसके सामने जाकर उससे पूछी कि वह सफाई दे सकता था कि ध्रुव उसके मर्जी के खिलाफ जो किया अपने मर्जी से किया, उसमें उसका कोई दोष नही था। मगर वह इसका जवाब बड़े आराम से दिया- "बात यह नहीं है कि जो ध्रुव ने किया उसमें मेरी मर्जी थी कि या नहीं। बात यह है कि जो कुछ भी हुआ, वह मेरा ही fault था। वह मेरे side से ही हुआ और आगे और भी ऐसे ही disrespect हो सकता है। आज पता चला कि क्यूँ लोग जब किसी को चाहना शुरू करते हैं तो अपने दोस्तो से दूर हो जाते हैं। क्यूँकि उनके friends उनसे बिना कहे पूछे उनके लिए कुछ करने के चक्कर में उनके personal life influence/interfere करके problems create कर देते है। ऊपर से उन्हें समझ नही आता कि उन्होंने गलती क्या की और यही मानते हैं कि उन्होंने जो किया सही ही किया।" उसने बताया मुझे कि जब exams center से वह ध्रुव के साथ निकलता तो ध्रुव जैसे ही मेरी सहेली को देखता उसका पीछा करने के लिए cycle तेज चलाने लगता। मना करने के बाबजूद। इसलिए दूसरे दिन के बाद ध्रुव के साथ आना ही उसने छोड़ दिया। उसने बताया कि जब ध्रुव यह first दिन किया उसी दिन उसने notice कर लिया कि मेरी सहेली के नजर में उसका character खराब हो गया। इस बात का भी खुन्नस था मेरी सहेली को जो उस दिन थप्पड़ के साथ निकल गया। आपने वो कहावत तो सुना ही होगा, "अगर किसी की ताकत जाननी हो तो दुश्मनों से मिलो और character/चरित्र जाननी हो तो उसके दोस्तों से मिलो।" हमारे दोस्त हमारा character पर ऐसे ही दाग लगा सकते हैं इसलिए दोस्त हमेशा सोंच-समझकर चुनने चाहिए। साथ ही साथ, If you love somebody and wanting to be together, make space with your those types of friends who cares you more.
Result निकलने के बाद class के बाकी सारे बच्चों के साथ-साथ मेरी सहेली और ध्रुव का दोस्त भी अपने ambition के साथ दूसरे जगह चले गए। मैंने इसी college में English hons ले लिया, और ध्रुव अपने intrest के हिसाब से Geography. हम पहले से एक दूसरे को जानते थे, तो normally बात तो हमेशा होती ही थी। पर जैसा कि समाज की सोंच होती है, जो नए batchmates थे, उन्होंने assume करना शुरू कर दिया कि हम दोनों के बीच कुछ है। कुछ लड़के भी होते हैं ना, जो खूबसूरत और single लड़कियों पे try मारते रहते हैं। मुझे भी कुछ के हरकतों को देखकर ऐसा ही लगता था कि, they were liking me. जिसमें रवि भी एक था। अब उनके सामने यह accept करूँ कि मैं single हूँ, फिर तो वो सब मुझे परेशान करने से पीछे नहीं हटते। इसलिए मैंने कभी किसी के doubts को clear नहीं किया। जो उनके मन में मेरे और ध्रुव को लेकर था। मैं just as a friend उससे पहले बात करती थी। बाकी लड़के chance मारने पे लगे रहते, इसलिए कोई ऐसा काम जो मुझे उसके through easily possible हो, उससे मदद भी ले लेती। जैसे कि घर में रहकर classes के बारे में पता करना। लड़को का तो complex friend circle होता है ना, हम लड़कियाँ उतना किसी से मतलब कहाँ रखतीं है। एक बार मैं ऐसे ही जब उससे मिलने गई तो उसके एक दोस्त ने उससे पूछा कि "कौन है, girlfriend है ?" बार बार कई लोग इस question को पूछ चुके थे। इस topic से मेरा दिमाग खराब हो गया था। इसलिए मेरे mouth से slip कर गया, "हाँ हूँ, तो..?" मेरे मुँह से गुस्सा में निकला था, but फिर भी it was only a joke. But may Dhruv assumed that I aspect relationship with him. वह धीरे-धीरे closeness बढ़ाना शुरू कर दिया। यह माना जाता है ना, लड़कियाँ अपने दिल की बात कह नहीं पाती इसलिए लड़को को ही बात शुरू करनी पड़ती है। यह सही भी है। और वही तो हो रहा था। लेकिन जो हो रहा था, सही नहीं हो रहा था। मेरे case में तो बिल्कुल भी नहीं। पर मुझे उस वक़्त इतनी समझ कहाँ थी ! एक डर मन में तो था कि कहीं मैं अपने घरवालों को cheat तो नहीं कर रही हूँ। लेकिन एक उमंग भी था कि भगवान मौका दे रहे हैं अपने love के हाँथो को hold करने का। भटकाव, बहकते तो लोग ऐसे ही हैं ना... जब दिमाग कुछ और सोंच रहा हो, और दिल कुछ और कह रहा हो। दिमाग आपको चेतावनी दे रहा हो और दिल कुछ और ही चाह रहा हो। मैं ध्रुव के साथ relationship में आ गई। शुरुआत में कुछ दिन तो ठीक था मगर... मगर कुछ दिन बीतने के बाद दिल को इतना कुचला हुआ महसूस होने लगा जितना whole life में नहीं हुआ। हर जगह मुझपे हक़ जताना (मोह), जब-तब disturb करना (काम), मेरी बाकी friends से जलना (ईर्ष्या), उनके जहग उसे time दूँ यह चाहना (लोभ), वो जो सोंचता है वह सही ही सोंचता है (अहंकार), मैं उसकी बात ना मानू तो झगड़े करना (क्रोध)। भैया से डर लगता था फिर भी लड़ लेती थी मगर इससे लड़ने में एक डर यह भी था कि सबको पता चल जाएगा। भैया को पता चल जाएगा तो वो और ज्यादा भड़केंगे..! (भय) एक चीज तो समझ आ ही गई थी कि किसी को किसी से pure love नहीं होता। उन्हें बस love होता है, चाहे जो अहसास के साथ हो। Pure तो उन्हें अपनी understanding से बनानी होती है। हमारे हिंदी साहित्य के teacher, शैलेन्द्र आचार्य ने हमें बताया था कि "प्रेम छः प्रकार के होते हैं। मातृ प्रेम (माता-पिता का बच्चो से), भ्रातृ प्रेम (भाई-बहन एवं दोस्तो के साथ), वात्सल्य प्रेम (बड़ो और छोटो का), दास्य प्रेम (नौकर और मालिक के बीच का भवनात्मक संबंध), वस्तुनिष्ठ प्रेम (अपने वस्तुओं से जुड़ा लगाव कि मेरा है या मुझे प्रिय है), और अंत में दाम्पत्य प्रेम (पति-पत्नी अथवा प्रेमी-प्रेमिका का)|" इसके साथ ही English literature में दो term आता है - Oedipus complex & Electra complex. इसके अलावा Psychology भी कहता है कि opposite gender feels attraction towards each others. But हम अगर mature हो जाए तो अपनी feelings पर control रख सकते है। इसके लिए knowledge, understanding and practice की जरूरत होती है। जिसमें कि अपनी-अपनी छमता के अनुसार वक़्त लगता है।
जहाँ बात love की आती है, वहाँ jealousy, ego, expectations and dissatisfaction, angriness, fear, attractions and affections, possessiveness, etc आते ही हैं। मगर दोस्ती, दोस्ती में इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। प्यार में ये चीजें जरूरी भी लगती हैं। मगर एक बार दिमाग में बस जाएं कि we're friends then चाहे कुछ भी हो जाए, हम इन चीजों को अपने life me आने ही नहीं देते। हम खुद पर हमेशा control करते हैं और फिर अपने आप पर, अपनी feelings par control रखना सीखते हैं। यह सब मैं जानती तो पहले से भी थी। मगर इसे feel करके इसे समझी रवि से दोस्ती करने बाद हूं। अगर भैया सिर्फ care करने की जगह मुझे दोस्त बनकर समझते, अपनी doll के जगह एक friend की तरह treat करते, तो शायद मैं कभी ध्रुव से close होती ही नहीं। मैं कभी भटकती ही नहीं। अगर रवि के जैसा कोई ईमानदार दोस्त से दोस्ती पहले हुई होती, जो love and feelings को बाकियों की तरह ज्यादा care करने की जगह बस as a friend care करता हो, तो कभी मैं relationship में भी नहीं आती। कभी love जैसे मोह में नहीं फंसती। कोई प्यार करने वाला मिले, जिसकी बांहों में मुझे सुकून मिले, ऐसी चाहतों के मायाजाल में नहीं फंसती।
Semester 4 के exams के दो सप्ताह के बाद मेरे भैया की शादी थी। जिसमें शादी की तैयारी के लिए पापा मुझे पहले घर बुलाए थे क्यूंकि मां की तबीयत उस समय खराब ही रहती थी। तो मैं last exam को देकर exam center से जल्दी निकल गई ताकि थोड़ा आराम करके packing करके अगले दिन घर के लिए निकल सकूं। लेकिन ध्रुव अपना अलग ही planning करके था। वही प्यार , मोहब्बत में आवारगी- Theatre, park, bike riding, restaurant, etc. रात भर पकाया। फिर भी जितना हो सके boyfriend-girlfriend के इस relationship को बचाने की कोशिश की। Earphone लगाकर बात करते हुए सुबह का preparation की। But फिर emotional drama, ego, trust issue, वगैरह के चोंचले... काफी रात हो गई और मुझे बहुत तेज नींद आने लगी तो मैं phone switch off करके सो गई। सुबह उठी तो काफी late हो चुकी थी। मै अगर बिना fresh हुए भी station के लिए अगर भागती तो train miss ही करती। इसलिए फिर आराम से bus Ka option choose करना ही मुझे बेहतर लगा। Bus stop के लिए निकलते समय मैं mobile on की तो आधा रास्ता travel करने से पहले ही ध्रुव का फिर से call आ गया। मैं call cut करके mobile silent में कर दी और bus stop पहुंचने के बाद side में stall के बगल में जाकर बात करने लगी। ध्रुव मेरा दिमाग खा रहा था - "बहुत ज्यादा भाव हो गया है। भाव खा रही हो। अब मेरी कोई परवाह नहीं ना। लगता है आजकल मुझसे ज्यादा कोई और अहमियत रखने लगा। जाओ उसी के साथ रहना। मुझे सीधा सीधा छोड़ दो ना। क्या लगता है मुझे कोई मिलेगी नहीं। तुम्हारे जैसी एक से एक मेरे पीछे पड़ी रहती है। जाओ, मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं। मै ही तुम्हें छोड़ता हूं। Go to hell." मेरा भी दिमाग सटक गया और मैंने भी बोल दिया, "देखो, तुम्हें जो समझना है, समझो। तुमसे दोस्ती करके मैंने ही गलती की। अगर इसे तोड़ना हो, तो शौक से तोड़ो। मेरे घर से call करके mammy-papa बुला रहे है, और मुझे जाना है। अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे साथ कुछ दिन घूमने-फिरने के लिए अपने parents की बात ठुकरा दूँ, तो तुम गलत हो। भाँड में जाओ...! मुझे तुम्हारी कोई परवाह नहीं। आज के बाद मुझे कभी call नहीं करना। बेहतर होगा कि मुझे भूल कर अब किसी और को ढूंढ लो।" फिर जब बाहर निकली bus की ओर तो मुड़ते ही stall के कोने में मैं रवि से टकराने वाली थी। मेरे दिमाग में ये सवाल आया कि यह यहां क्या कर रहा है, मगर why does I care सोंचकर आगे बढ़ गई। बस के करीब पहुंची तो मुझे रोना आने लगा। मैं किसी तरह से अपने आँसुओ को रोकने की कोशिश कर रही थी। मैं conductor से पूछी, bus आधा घंटा late था। मुझे बहुत बुरा feel हो रहा था इसलिए मैं bus shed पे चली गई। थोड़ी देर बाद कोई मेरे सामने पानी का बोलत लिए खड़ा था। मैं नजर उठाकर देखी, वह रवि था। मैंने सामने से पानी के बोतल पकड़े हुए उसके हाँथ को हटाते हुए इशारा किया कि नहीं चाहिए। तो वह मेरे बगल में बैठकर मुझसे बात करने की कोशिश करने लगा। मुझे रोने का मन कर रहा था। उस वक़्त मेरे मन में गुस्सा नहीं था, इसलिए उसे rudely बात नहीं कर पाई जो वह भागे। उसने मुझसे पूछा कि क्यूँ मैं और हिमाद्रि उसे भाव नहीं देती। दरसल हिमाद्रि और मैं उस time काफी अच्छी सहेलियाँ थी। वक़्त बीतता है, और हमारे रास्ते अलग हो जाते हैं। दूरियाँ हो जाती है लोगो के बीच। मगर दिल में जो जगह थी उस time, हिमाद्रि के लिए आज भी वह है और उसे कोई नहीं ले सकता। हिमाद्रि ने ही मुझे बताया था कि उसे लगता है कि रवि मुझे like करता है। रवि दूसरों के life में intrest बहुत रखता था। influence भी करने का कोशिश करता था। और हमें यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि कोई हमारे जीने के तौर-तरीकों पर अपनी राय दे। after all हममें इतनी समझदारी तो तब आ ही गई थी कि अपनी जिंदगी का फैसला हम खुद ले सके। ऐसा मुझे लगता था। जो कि अब लगता है कहीं ना कहीं मुझमें भी कमी थी, जिसे समझने के लिए किसी समझदार और अच्छे दोस्त की मुझे हमेशा से जरूरत थी। जैसे कि हिमाद्रि और रुद्र एक दूसरे के life में थे, बचपन से। उसने मुझे वहीं बोल दिया, "मैं तुम्हें पसंद करता हूँ। कितना पसंद करता हूँ, यह तो नहीं बता सकता। पर तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ। तुम जिसके भी साथ रहो, boyfriend बनाओं, मुझे इस से फर्क नहीं पड़ता। तुम मुझसे दोस्ती करो, चाहे ना करो, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं बस इतना जानता हूँ कि तुम्हें मैं पसंद करता हूँ। That's it. And I doesn’t need to think anymore." फिर उसने मेरा ticket कटा दिया। Bus में हम दोनों साथ ही आए। मगर मैं उसके पास नहीं बैठी। मैं आगे women's coach में बैठी थी और वो bus के front glaas के बगल वाली seat पे door के बगल में। मैंने notice किया, जब भी उसका नजर मेरे ऊपर पड़ता वह इधर-उधर देखने लगता।
मानी, मेरी भाभी को भैया इसी नाम से हमारे सामने introduce करवाये थे। वैसे तो उनका नाम बचपन से मानवी था। मगर अब हमलोग भी मानी कहकर ही उन्हें पुकारते हैं। भैया से मैं जल्दी बात नहीं करती, और graduation में admission करवाने के बाद से घर में ज्यादा time भी नहीं देती। इसलिए मुझे भैया-भाभी की पूरी कहानी तो नहीं पता, मगर उनकी arrange नहीं, बल्कि love marriage है। भैया-भाभी एक दूसरे के साथ हमेश रहने के लिए अपने graduation के 2nd year में ही commitment कर लिए। But हमसे introduce करवाये आने final exam के last वाले दिन। Exam देने के बाद। मम्मी-पापा को वह अच्छी लगी तो वो उनके family के बारे में पूछे। इससे उन्हें भाभी के family से far वाला ही, मगर connection मिल गया, जिससे बात आगे बढ़ाया जा सके। दोनों family बैठकर decide किये कि जब तक at least भैया अपने life में कुछ बन ना जाए, उनकी शादी नहीं होगी। मगर भैया, वो तो एक साल के अंदर ही Army का job निकाल दिए। Army में बस 2 महीने की छुट्टी होती है, continuous छुट्टी होती है। अगर कोई emergency ना हो तो, वरना उन्हें बीच में ही बुलाया जा सकता है। इसलिए दोनों family ने decide किया कि भैया के training में जाने से पहले ही जल्दी से शादी करवा दो। एक बार लड़का अगर job पे चला गया तो उसकी फिर duty ही सबसे पहली जिम्मेदारी होगी। जब मैं घर पहुँची तो मेरे पास 3 problems थें। 1st मम्मी की खराब तबियत की वजह से भैया की शादी की सारी shopping and तैयारी मुझे करनी थी। 2nd मेरे और ध्रुव के बीच जो कुछ भी उस वक़्त चल रहा था उसका tension. 3rd इन चीजों की वजह से सुबह से ठीक से कुछ मैं खाई नहीं थी, मुझे बहुत जोर से भूख लग रही थी। मै mobile side में रखी, खाना खाई और सो गई। मेरी सीधा रात में ही नींद खुली। मैंने सोंचा कि ध्रुव से बात करके sorry बोल दूँ। मगर उसका busy tune आया। मैं kitchen में गई तो हमेशा की तरह refrigerator के दरवाजे पे एक note चिपकाया हुआ था। उसमे लिखा था, "खाना ढंका हुआ है, गरम कर लेना।" और नीचे "तुम्हारी favorite खीर बनाई है।" यह काम मेरे भैया के अलावा और किसी का हो ही नहीं सकता। यूँ तो हर लड़को की एक से एक फरमाइशें होती है खाने को लेकर। लेकिन मेरे भैया, वो तो मेरे लिए खाना बनाने के लिए खुद kitchen में घुस जाते और जब तक बन ना जाए, किसी को अंदर जाने नहीं देते। वह तो फरमाइशें करने की जगह सबसे यह बोलते हैं कि कोई उनकी तरह खाना बनाकर तो दिखाए। मैं खाकर सो गई। सुबह उठी तो फिर से ध्रुव को try किया। जब अभी भी busy बताया तो मैं समझ गई कि उसने मुझे blacklist में डाल दिया है। मैं fresh होने गई। वापस आई तो भैया बहुत भड़के हुए थे। बहुत सुनाए। मेरे जाने के बाद ध्रुव call कर रहा था। 4-5 लगातार call के बाद भैया call recieve कर लिए। उसके बाद क्या हुआ होगा, मुझे नहीं लगता कि इसे लिखने की जरूरत है। मेरा mind अभी भी half-half divided था। भैया जो बोल रहे हैं वो सही बोल रहे हैं। मगर "He is not in my place. So he can't understand my situation and it's problems." उस वक़्त मेरे दिमाग में यही आया। शादी के बाद वापस आई तो अभी भी मैं चाहती थी कि ध्रुव के साथ सबकुछ अच्छा हो जाए। मगर गलती तो उसी की ही ना थी। उसने मुझे समझने की कोशिश ही नहीं की। फिर पहल मैं ही क्यूँ करूँ ! उल्टा उसने तो मुझे जलाने और नीच दिखाने की भी कोशिश शुरू कर दी।
जब मैं घर से वापस आ रही थी तो मेरी भाभी ने मुझसे कहा था कि, "Not everyone understand real love. Not everyone does real love. Not everyone understand caring of real love. So, not everyone deserve love." उन्होंने बताया था कि एक बार उन्होंने मेरे भैया से पूछा था कि उन्हें कैसी life partner चाहिए। तो मेरे भैया ने जवाब दिया था कि, "जो मेरी बहन के लिए भाभी से बढ़कर एक best friend की तरह साबित हो। जिससे मेरी बहन अपने दिल की बात कह सके जो वह मुझसे कहने से डरती है। जो मेरी बहन को समझे, जो वह अपनी नापसंद को मेरे सामने बोल नहीं पाती। जितना प्यार और जितना care मैं अपनी बहन को करता हूँ, वह उसे समझे और मुझे मेरी बहन से जुड़ी हर जिम्मेदारियों को पूरा करने में मदद करे।" मेरी भाभी मानती है कि अगर किसी को किसी की भी सच में care है, वह सच में उससे दिल से जुड़ा है, उससे प्यार करता है, तो वह बाकियों के भी भावनाओ की अहमियत को समझेगा। उसके साथ कोई भी रिश्ता निभाना, उसके साथ रहना आसान होता है। भैया को job के साथ-साथ army residency में quarter भी मिला। उन्होंने भाभी और मेरे career को देखते हुए हमें उसी में sift करने को सोंचा। ताकि हमारी safty के साथ साथ हमें privacy भी मिले। ताकि hostle की disturbance और insecurity हमें ना हो। उसी दौरान रुद्र की सतीश से दोस्ती होने से उनके साथ साथ हिमाद्रि, रवि, कोमल, राजेश की friendship भी धीरे-धीरे गहरी होने लगी। इसी बहाने रवि भी किसी ना किसी बहाने अक्सर मेरे इर्द-गिर्द आ ही जाने लगा। पूरे group में दोस्ती होने की वजह से उसे मैं ignor भी नही कर सकती थी। रवि पहले ही बोल चुका था कि he does likes me. So, मेरी नजर उसकी हरकतों पर तो रहतीं ही थी। उसने उस दिन मुझसे सीधा तो कहा था कि मुझे वह like करता है, मगर मेरे इर्द-गिर्द घूमना, मेरा पीछा करना, ऐसा कुछ नहीं करता। Means अब situation ही कुछ ऐसा होता कि ना चाहते हुए भी वह मेरे इर्द गिर्द होता। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं उसे भाव नहीं देती, या किसी के साथ रहूँ, उसे jealous feel नहीं होता। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर मैं उसके बारे में कोई tount मारूँ। उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अगर मैं उसे किसी का care करते हुए देखूँ तो मैं क्या सोंचूंगी। उसकी यही बात धीरे-धीरे दिल को भाने लगी। वह straight forward है, जो दिल में होता है सीधा accept करता है। मगर वह कभी अपनी feelings को खुद के ऊपर हावी नहीं होने देता। खुद के emotions पर control रखता है। उसके सारे friends भी वैसे ही थे। सतीश और कोमल के बीच के closeness को देखकर कभी मुझे भी उनपर dought था। मगर अब जैसा सतीश है वैसा राजेश भी। रुद्र और हिमाद्रि बचपन से दोस्त है, मगर फिर भी कभी उन्होंने अपनी limits को cross नहीं किया। मुझे लगता था कि मैं mature हो गई हूँ, अब अपने life के decisions खुद ले सकती हूँ। मगर मेरा यह सोंचना ही मेरी immaturity का symbol है। कोई इंसान कभी पूरी तरह से mature नहीं होता। वह हमेशा सीखता रहता है, time, situation, problems के साथ आगे बढ़ते हुए। ऐसे में guide करने के लिए हमें अच्छे दोस्तों की life में जरूरत होती है। जो हमें time दे, जब भी हमें उनकी जरूरत महसूस हो। जो हमारी situation को समझने में हमारी मदद करे, अपने different ways of perspective and experience से। जो हमारे problems के solution find करने में सही राह दिखाए। जो life में हमें भटकने से बचाये। बेशक मैं भटक गई थी ध्रुव के साथ। मगर मेरा यह past, एक ऐसा mistake है जो मेरे present को influence कर रहा है।
अभी कुछ सप्ताह पहले ही की बात है। मै रवि से बात कर रही थी। उसका group class में sincerest में से एक था। इसलिए अगर पढ़ाई में कोई भी help अगर चाहिए होता तो वो best option था। क्यूंकि अगर एक help अगर ना कर पाते तो कोई और कर देता। वैसे भी रवि ने कहा ही था कि वह मुझे like करता है, तो वह बाकियों की तरह भाव नहीं करता। मेरे सामने कोई आना कानी नहीं करता। उसी वक़्त ध्रुव आ गया और मुझे झाड़ने लगा, "तो तुम इसी के लिए मुझे cheat कर रहीं हो !" मगर सच क्या थी ? उसने मुझे नहीं समझा, इसलिए मैं उसे छोड़ने का decision ली थी। रवि उससे बात करने और शांत करने की कोशिश किया तो उसपर हांथ उठाने वाला था। मैं उसका हांथ पकड़कर बीच में रोक ली। उस समय तो situation शांत हो गया। मगर उस दिन जो हुआ, अब कुछ भी पहले की तरह ठीक नहीं रहने वाला था। मैं शाम में रवि को call करके उसके मन को शांत करने की कोशिश की। उसने उस वक़्त मुझसे कहा, "तुम्हारा और ध्रुव के बीच जो कुछ भी है, मुझे उससे कोई मतलब नहीं। मुझे तुमलोग के बीच में नहीं आना है। तुम अपने life में क्या करती हो, अपने life को कैसे जीती हो, यह तुम्हारी खुद की individuality है। इसमें मैं interfere नहीं कर सकता। मैं तुम्हें like करता हूं। मगर मेरे life के कुछ motives है। मेरी responsibilities है अपने family के प्रति। इसलिए मैं नहीं चाहता कि इसमें किसी भी तरह का influence create हो। उम्मीद है कि तुम समझ रही होगी। तुम अपने problems को कैसे solve करोगी, इसमें मैं interfere नहीं कर सकता। मगर मैं चाहूंगा कि मेरा life ऐसे किसी भी चीज से disturb ना हो। इसलिए sorry, but please, हो सके तो मुझसे दूर रहने की कोशिश करना। और हां, सतीश कल सुबह की train से घर जाने वाला है। जिसके लिए हमें उसे सूरज निकलने से पहले station छोड़ने जाना होगा। इसलिए मैं अभी और बात नहीं कर सकता। Bye..." इससे पहले कि मैं उससे कुछ बोलती, उसने call काट दिया। मैं दोबारा call करने ही वाली थी कि किसी ने मुझे पीछे से गले लगाकर कहा, "surpris..!" मैं पीछे मुड़ी तो भैया थें। भाभी ने बताया कि 2 month के vacation पे आए हैं। मैं दोबारा फिर रवि से बात नहीं कर पाई। मैं खाना खाई और सोने चली गई। पर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मुझे रोना आ रहा था, मैं तो रही थी। पता नहीं कब भैया आए और मेरी सिसकियों को सुनकर मुझसे बोले, "क्या हुआ मिस्टी ? तुम क्यूं तो रही हो ?" मैंने कहा, "मैं कहां रो रही हूं ? वो तो थोड़ी सर्दी लग गई है शायद। बस और कुछ नहीं। वह रजाई के ऊपर और एक कम्बल मेरे ऊपर ढंक कर चले गए। उसके अगले दिन से फिर से रवि पहले की तरह मुझसे अजनबियों की तरह ignor करने लगा।
मैं आज एक कोशिश ही करती रह गई कि जैसे रवि अपने दिल की बात, जो भी उसके मन था, उसने मुझे उस दिन call पे कह दिया, मैं भी अच्छा मौका पाकर उससे कह दूं। लेकिन, आज जो tution के बाहर कोमल ने मुझे बुलाई और सभी मेरे सामने जो discussion कर रहे थे, मुझे पता चला कि उसी रात की अगली सुबह भैया ने call करके रवि को धमकाया। यह उनका मुझे लेकर insecurity और मेरे pasts के वजह से मुझपर गुस्सा भी था जो रवि के ऊपर एक बार फिर से निकला। क्रोध, भैया को जब भी गुस्सा आता है, वह मेरे ऊपर सीधे सीधे उसे नहीं निकलते। लेकिन कहीं ना कहीं तो निकलता ही है। खासकर उसपर, जिसे वह मेरी गलतियों का वजह समझते हैं। मै अब तक समझती थी कि रवि बस अपने career को लेकर insecure हो गया है इसलिए वह मुझसे दूर रहने की कोशिश कर रहा है। मगर अब, मुझसे दूर रहना उसके लिए मेरी वजह से किसी भी तरह से आने वाली possible problem से खुद बचाना है। किस्मत भी कितनी कमिनी है ना। हम जिस problem को सच समझ कर उससे बाहर निकलने के लिए preparation करते हैं, वह facts ही change कर देती है। एक पल में हमारी reality बस एक perspective बन कर रह जाती है। सच, सिर्फ उतना नहीं होता जितना हम जानते हैं, सच उससे कहीं परे होता है।
सच वो नही होता जो लोग बताते हैं।
ना ही कहानी सिर्फ उतना होता है जो हम जानते है।
कुछ किस्से होते हैं जो लोग बताते हैं।
तो कुछ लोग बढ़ा चढ़ा कर इसे पेश करते हैं॥
मेरे भैया को पता था कि मुझे कोई भटका रहा है। वह ध्रुव को नहीं जानते थे। उन्होंने जब मुझे रोते हुए सुना, जरूर मेरे phone के call list को check किया होगा। जब उन्हें उसमे last call पे रवि का नाम दिखा होगा। बाकी call history, messages भी जरूर चेक किए होंगे। फिर उन्होंने रवि को victim समझकर जो किया सो वो किया। उन्होंने कुछ करने से पहले फिर से मुझसे कुछ भी पूछना तक जरूरी नहीं समझा। और अब, मै इसे solve करूं तो कैसे करूं ? भैया का perspective change करूं तो कैसे करूं ? रवि की insecurity अगर दूर करूं तो कैसे करूं ? अगर ध्रुव का किस्सा ख़त्म करूं तो किसकी मदद से ? मुझे अब अपनी life को सही करने का बस एक ही option दिखा, कि मैं घरवालों की बात मानकर वो करूं जो वो चाहते हैं। इसलिए जब आज घरवाले मेरी शादी के लिए मेरे लिए लड़का देखने की बात कर रहे थे, मैंने भी हामी दे दी। मुझे पक्का यकीन है, इस decision को मुझसे मनवाने के लिए भैया ही पापा को यहां बुलाए होंगे। पर अब मेरे पास और option ही क्या है ! मेरी whole life शायद एक object की तरह ही होकर रह जाएगी। पहले भैया की doll, फिर boyfriend के लिए toy, और अब husband के लिए कोई खूबसूरत सी trophy. शायद मेरी यही किस्मत है। मुझे कभी individuality नहीं मिलेगी। कभी कोई नहीं समझेगा कि I'm not an object, I'm a human being. I also have my individual identity, ideas, feelings, emotions, different problems and perspectives as understood by any others. I also feels need and want to get decisions of my own life.
-AnAlone Krishna.
Published on, 13th February, 2020 A.D.
Completed on, 8th February, 2020 A.D.
Re-edited on, 9th February, 2020 A.D.
भाग - १०.० | भाग - १०.१ | भाग - १०.२
From Diary of Agrima____________________
सोंच रही हूँ - मैं कहाँ से शुरू करूँ... पर शायद शुरू से ही शुरू करना I think कि सही होगा। May sometime I shall jumble my past. But, if I can start it from the beginning, I shall understand myself while I shall read in this dairy. 19yrs. Ago, I born on 24th September. Year...? वो मैं नहीं बताने वाली। लड़कियाँ अपना perfect age नहीं बताती। अच्छा ठीक, मैं तो खुद के लिए ही लिख रही हूँ ना। यह मेरी dairy है जिसे कोई पढ़ने वाला है ही नही बाद में। मैं शायद ख़ुद को ही पढ़ रही होऊँगी अपने हाँथो में लिए अपने past को याद करते हुए अपनी इस dairy को। तो, I'm 21yrs old now. बाकी which calendar year, यह calculate कर लेना। शुरुआत में ही जिस तरह बक-बक करना शुरू कर दी, शायद आपको लगता होगा कि मैं कितना बोलती होऊँगी या मैं बहुत frank हूँ। नहीं, मैं ऐसी बिल्कुल भी नहीं हूँ। मुझे ज्यादा लोगों के साथ रहना पसंद नहीं है। सबसे ज्यादा मैं खुद की ही company को enjoy करती हूँ। मैं ज्यादा दोस्त नहीं बनाती। जैसे रवि, सतीश, कोमल, रुद्र, हिमाद्रि, राजेश का grouping है, मेरी कोई group नही हैं। मैं हमेशा अपने-आप से मतलब रखती हूँ। उनकी तरह मैं मटरगश्ती नहीं करती।
खुदा बनाकर मुझे इस धरती में भेजने के बाद
कभी तो सोंचा होगा कि
देखूँ कैसी है इस दुनियाँ की भीड़ में।
खुदा देख कर मुझको और मेरी जिंदगी को
कभी तो सोंचा होगा कि
क्यूँ अकेली रहती है इस दुनियाँ की भीड़ में।
सब दिया, family दिया, किस्मत दिया, मोहब्बत दिया
फिर क्यूँ मैं ऐसी हूँ
फिर क्यूँ मैं तन्हां रहती हूँ इस दुनियाँ की भीड़ में॥
मैं किसी को अपने close जल्दी आने नहीं देती। मैं जल्दी किसी से घुल-मिल नहीं पाती। दिल में बहुत कुछ रहता है, share करने के लिए। मन करता है कि जो कुछ भी इस दिल में है उसे किसी के सामने पूरी तरह निकाल दूँ। मगर ऐसा कोई है नहीं जिसपे मैं blindly trust कर सकती हूँ। अभी भी डर लग रहा है, अगर इस dairy को किसी ने पढ़ लिया, जो मैं लिख रही हूँ, उसे अगर कोई पढ़ लिया, तो क्या होगा। मेरे दिल की धड़कन थोड़ी शायद बढ़ गई है। मुझे महसूस हो रहा है। मन मुझे समझा रहा है,
"sweetheart, don't worry.
No one give such importance
to you. So, s/he get interested
in giving time to understand you.
They think you're senseless,
you're still not mature
for take even your own decision
for your own life.
So, don't worry.
No one will read this diary
except you."
मेरे पैदा होने पर कोई surprise नहीं हुआ। मैं expected थी। मेरे भैया सबके दुलारे थे और वो एक बहन चाहते थे। इसलिए सबने यही भगवान से prayer किया कि घर में एक बेटी ही हो। तो जब मैं हुई, उनका happiness और भी बढ़ गया। मुझे भी सबने प्यार से अपनाया और मुझे खूब प्यार दिया। लोग इसे मेरी good luck मानते हैं। उन्हें लगता है कि "आप कितने lucky हो। अगर आपको सभी प्यार करते हैं। आपकी सब care करते हैं। आपको सब support करते हैं। आपको सब promote करते हैं।" आप कितना lucky हो ना..? अगर आपको यह सब मिले तो... आखिर जिसे पाने के लिए लोग अपनी whole life stuggle करते हैं, आपको जन्म के साथ मिल गया होता है..! But dear friend, here remember only a single statement, "You're not me. You're not in my place. You can't understand my feelings. You can't understand my problem/situation."
भैया ने पहले से ही सोंच रखा था, मेरा नाम होगा मिस्टी। बांग्ला भाषा में इसका मतलब होता है मिठाई। वैसे भी मैं थी ही बचपन से बहुत sweet. लेकिन माना कि भैया को यह नाम बहुत पसंद था, इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि मेरा नामकरण नहीं होता। पुरोहित ने मेरा नाम रखा अग्रिमा जिसे बाकियों ने भी accept किया। भैया उस वक़्त जिद्द पर अड़ गए कि मेरा नाम मिस्टी ही होगा। फिर सबने उस situation को संभालने के लिए भैया के बात को उस वक़्त मान लिया। सभी मुझे मिस्टी के नाम से ही पुकारने लगें। मगर, जब आप बच्चे होते हो तो आपको life black and white जैसे दो ही colour की लगती है। एक जो आपके favour में होती है और दूसरी जो आपके oppose में। कोई चीज हमारे favour में हो तो हम खुश हो जाते हैं और oppose में हो तो upset होकर रूठ जाते हैं। बस इतनी सी ही तो जिंदगी होती है हमारी। कितना खूबसूरत लगता है ना, बचपन की यादें, मगर यह कोई fairy tales की तरह ही नहीं है तो फिर क्या है ? Life में decision बस अपने पसंद-नापसंद के basis पे तो हम ले नहीं सकते। किसी का नाम, आगे चलकर उसका पहचान बनते हैं। इसलिए किसी का नाम बहुत सोंच समझकर रखना चाहिए। मुझे घर में भले सब मिस्टी बुलाते हो मगर school में admition के time मेरे parents ने मेरा नाम अग्रिमा ही form पर भरा। भैया रूठ गए, पर इस बार अपने desire के साथ compromise करने की बारी मम्मी-पापा की नहीं, बल्कि भैया की थी। कमाल की बात पता है ? ये सारा problem मेरे नाम को लेकर हुआ, मगर मुझसे किसी ने मेरे पसंद-नापसंद के बारे में जानना जरूरी नहीं समझा। मेरी feelings पर किसी का ध्यान ही नहीं गया कि उस वक़्त मैं कैसा महसूस कर रही थी। जब मेरे अपने मेरे लिए ही आपस में एक दूसरे को oppose कर रहे थे। यह first time था, जिसे याद करके मुझे यह अहसास हुआ कि अपनो का प्यार जब मोह बन जाता है तो वो हमपर अपना हक़ जताने लगते हैं। वो यह भूल जाते हैं कि जितना अधिकार उनका आप पर है, उतना ही आपके ऊपर किसी और का भी हो सकता है। उससे ज्यादा आपकी खुद की भी individuality होती हैं। ख़ैर, उस वक़्त तो मैं बस गोद में खेलने वाली एक बच्ची थी। इसलिए मेरी individuality की बात को side में रख देते हैं। मगर उस वक़्त भैया भी तो बच्चे ही थे। भले वो अपनी पैरों पे खेल कूद लेते थे, मगर थे तो वो भी बच्चे ही। तो उस वक़्त किसी के बात की सबसे ज्यादा priority अगर होती तो वहाँ होती हमारे guardians की। मगर फिर भी भैया जिद्द पे अड़ गए की मेरा नाम मिस्टी ही होगा। इस बार कोई उनकी जिद्द को मानने वाले थोड़ी थे। कुछ दिन नाराज रहे, फिर खुद को compromise कर लिए बड़ो के decisions को मानकर। वैसे मैं एक बात बताऊँ ? मुझे मिस्टी नाम बिल्कुल पसंद नहीं था। दिनभर भैया मेरा गाल खींचकर "Misty is so sweet", "Misty is so sweet" करते रहते। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। जैसे कि मैं उनकी doll हूँ। मेरी कोई individuality है ही नहीं। अग्रिमा, नाम कोई खास लगा नहीं, पर काम चलाऊँ ठीक ही था।
मेरा school में admission बहुत जल्दी करवा दिया गया। ऐसा नहीं था कि मेरे मम्मी-पापा बहुत ज्यादा मत्वकांक्षी थे। उन्हें मुझसे कुछ ज्यादा ही expectations थी। They are understanding. सारी फ़साद के जड़ भैया ही थें। वो school late से जाते और जल्दी भाग आते। वो भी सिर्फ मेरे साथ खेलने के लिए। जैसे कि मैं उनकी बहन नहीं, उनकी doll थी। कई बार तो मम्मी को teachers से डाँट सुनना पड़ता था, क्योंकि भैया school prayer के बाद पहुँचते थे। वो मेरी care बहुत ज्यादा करते थे। इतने ज्यादा कि एक पल भी वो मुझसे दूर नहीं रह पाते। उनको school time पर regular करने के लिए मेरा भी admission करवा देना चाहिए, ऐसा teachers ने मेरे मम्मी-पापा को suggest किया। उन्होंने इस चीज को मान लिया और मेरी लग गई। मुझे ठीक से अपना बहता हुआ नाक पोंछने की तो रहने दो, ठीक से किसी का नाम तक नहीं ले सकती थी और मुझे school में डाल दिया गया। भैया हर period के break में मुझसे मिलने आते। उस वक़्त थोड़ी राहत होती। वरना उन सभी अंजान बच्चो के बीच मुझे डर लगता था। मैं धीरे-धीरे बड़ी होती गई। साथ ही मेरी कई friends भी बनती गई। जैसे-जैसे मेरी friendlist बढ़ती गई, मुझे उनके साथ अच्छा लगने लगा। मैं उनके साथ खेलने लगी, regular school जाने लगी। जिस दिन school बंद होता, या किसी कारण मैं school नहीं जाती, मुझे बिल्कुल boring महसूस होता। उनके बीच मुझे अहसास होता कि मैं किसी की गुड़ियाँ नहीं हूँ, बल्कि मेरी भी कोई individuality है। मेरी भी अपनी पसंद-नापसंद है। मेरी भी अपनी इक्षाएँ होती है। जिसे मैं कभी बोल नहीं पाती। क्योंकि मेरे लिए मेरे बड़े सबकुछ मेरे कुछ भी wish करने से पहले ही पूरी कर दिया करते और रही-सही कसर भैया अपनी पसंद-नापसंद से कर देते। हम बड़े तो हुए, मगर भैया की caring में कोई अंतर नहीं आया। वो अब भी हर interval में मुझसे मिलने आते और मेरी छोटी सी छोटी चीज का ध्यान रखते। वो कोशिश करते कि मेरे आँखों से एक कतरा आँशु तक ना बहे। बिल्कुल अपनी doll की तरह care करते। कोई भी कहता कि देखो एक भाई अपनी बहन से कितना प्यार करता है, उसके बगैर एक पल भी नहीं रह सकता। मगर आप ही सोंचो, कि यह जरूरत से ज्यादा होने लगे तो कोई addiction नहीं है ? हर वक़्त मुझे अपने नजरो के सामने देखना चाहना। हाँ, मानती हूँ कि उन्हें फ़िक्र होती है। मगर क्या मेरी खुद की privacy नहीं है। मेरे भी friends थे। मुझे भी खेलना अच्छा लगता था। ख़्वाहिशें करना अच्छा लगता था। अपनी पसंद के खेल खेलना अच्छा लगता था। एक time आया जब मैंने ठान लिया कि "enough, अब बहुत हो गया।" और अपनी ख्वाहिशों को भैया के oppose जाकर भी बड़ो के सामने रखने लगी। मेरी याद से वो ही वह पल था जब भैया और मेरे बीच दरार आना शुरू हो गया। शायद..। क्यूँकि इसके बाद से ही वह पहले की तरह अब मुझपर हक़ नहीं जताते, मगर indirectly मुझसे बिना कुछ बोले या बताये ही जो मेरे लिए करते, मुझे महसूस होता था कि वो अंदर से अब भी नहीं बदले। बस बाहर अब पहले की तरह show नहीं करते।
भैया को अब कम समय मिल पाता मेरे साथ spend करने के लिए। ज्यादातर समय मैं अपनी सहेलियों के साथ time spend करती। मुझे उनके बीच important होने का अहसास होता था। घर में सभी मुझे guide करते रहते, ये करो, ये ना करो। मुझे उनके बीच openly बिना किसी के guidance में रहकर decision लेने का मौका मिलता। मुझे risk लेने का मौका मिलता। अपनी गलतियों से सीखने का और उन्हें सुधारने का मौका मिलता। मगर मेरे भैया को.., उन्हें तो कभी मुझे हारते हुए देखना ही नही था ना... मेरी हर एक mistake पर उसकी वजह find करके सबसे पहले तो मम्मी-पापा से डाँट सुनवाते ताकि मै risk लेने की कोशिश ही ना करूं। फिर खुद ही उसका solution बिना मुझसे पूछे ही कि मैं ठीक कर सकती भी हूँ कि नहीं, वह उसका solution कर देते। साथ ही उन्हें बस मौका मिलना चाहिए होता था, जब वह यह complain करे कि, मैंने इस friend के बहकावे में आकर ये काम किया, या फिर इसके कारण मुझसे यह mistake हुआ, या मेरी यह friend के संगत में रहकर मैं बिगड़ रही हूँ। ताकि मैं उनसे दूर रहूं और ज्यादातर समय उनको ही दूं। देखने में कितना अच्छा लगता है, आपको एक ऐसा भाई मिला हो किस्मत से जो आपका इतना ज्यादा care करता हो। मगर problem भी तो यही है कि कोई आपकी care इतनी ज्यादा करते हो कि आपके लिए हर वो काम करने की कोशिश करे जो उनके हिसाब से सही लगें। यह भी बहुत अच्छी बात होती है कि आपको आपके अपने हमेशा जीतते हुए देखना चाहते हो। वे आपको हमेशा एक winner की तरह देखना चाहते हो। लेकिन इसके लिए मुझे risk लेने के लिए भी सीखना चाहिए था ना..? जीतने से पहले मुझे हार कर भी खुद को संभालने के लिए सीखना चाहिए था ना..? क्या situation हमेशा वैसी होती है जैसा हम सोंचते हैं ? हो सकता है जो मुझे मेरे अपने सपने दिखा रहे हो, वो बाद में उसे पूरा ना कर पाए या मुझे पूरा करने के लिए support ना कर पाए। क्या पता..! मुझे उस situation के लिए ढलने देना चाहिए था ना..? मुझे risk लेने देना चाहिए था ना..? मुझे भैया की caring से ज्यादा उनकी मेरी friends से jealousy दिखता था। इसका असर मेरे friend circle में भी पड़ा। कुछ को इस तरह का disrespect बर्दाश्त नही होता, वो मुझसे दूरी बनाने लगीं। इस तरह मेरे अपनो की interfere मेरी independency के लिए खतरा बनने लगा। मुझे अब limitations महसूस होने लगा।
दोस्ती, एक ऐसा रिश्ता जिसे हम अपनी choice से बनाते हैं। ना कि खून का ऐसा रिश्ता जिसे निभाना हमारी मजबूरी होती है। हाँ, शादी भी खून का रिश्ता नहीं होता। मगर हम उसे independently choose कहाँ करतीं हैं। हम, खासकर की लड़कियाँ। किससे करना है, कहाँ करना है, कब करना है, दूसरे decide करते हैं। हमारी तो बस रजामंदी माँगी जाती है। वो भी formality के लिए। जिसे अगर ना मानो तो, emotional drama शुरू। प्यार से, जिद्द से, ताने मारकर, किसी किसी को जबरदस्ती, मगर हमें तो किसी ना किसी तरह मना ही लिया जाता है। यहाँ तक कि हम उनके decision को मानकर खुश रहेंगे, हमें यह समझाने से पहले यह तक नहीं समझा जाता कि हमारी खुशियाँ किसमें हैं। शुरुआत में जब भी हम किसी को अपना friend बनातें हैं, तो हमारे मन में उनको जानने की, उनको समझने की, उनके करीब जाने की excitement होती है। इसके लिए हम उन्हें अपना ज्यादा से ज्यादा वक़्त देने की कोशिश करते है। उनकी मदद करने या लेने की कोशिश करते हैं। ताकि इसी बहाने ज्यादा से ज्यादा उनके साथ वक़्त मिले। जब मेरी teenage शुरू हुई तो ठीक इसी तरह मैं भी ज्यादा वक़्त अपनी सहेलियों के साथ बिताने लगी। फिर आई वही बात, कि मैं उनके साथ साथ रहने से बिगड़ जाऊँगी। भैया इस बात को मन में बिठाकर मुझे हमेशा टोकते रहते। पर अंदर की बात बताऊँ ? उनकी आँखों में मुझे इस बात का डर से ज्यादा मेरे साथ maximum से maximum time spend करना चाहते थे। अब तक वो मुझे ही सबसे ज्यादा priority देते थे। मुझसे दूर भी नही रह पाते। वो चाहते कि मैं हमेशा खुश रहूँ, इसलिए मेरे life के descisions भी लेते। और मैं अपनी सहेलियों के साथ वक़्त बिताती थी इसलिए वो उनसे जलते भी थे। मगर अब जो हमारा age था, मुझे सहेलियों के साथ ज्यादा time रहना अच्छा लगता था और उन्हें किसी ऐसे person की कमी खलती थी जो उन्हें समझे। पर मैं भैया की इस situation को उस वक़्त समझती नहीं थी ना। ऊपर से जैसे सभी मुझे हमेशा से एक गुड़िया की तरह treat करते थे, मुझे घुटन होती थी। इसलिए मुझे भी मौका चाहिए होता था जब इनसे निकलने का मौका मिले और मैं भी feel करूँ कि, "I'm not a doll. I'm a living human being." I think कि teenage के last में जब हमारा mind maturity को पा रहा होता है, सभी को loneliness सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। क्यूँकि loneliness is best for understanding ourself, our feelings and problems. सबसे पहले अपने उस age में मेरे भैया, फिर मैं, और बाकियों को भी same activities करते हुए मैं देखी हूँ। Loneliness पसंद करने के अलावा, अपनी problems को खुद में छिपाना, किसी से अपने thoughts share ना करना, हमेशा सीखने को attract होना, बातों में uncertainty होना means अपनी बात पे टिके ना रह पाना, किसी से अपनी problems share करने से डरना, अपनी feelings को peak पे बेकाबू महसूस करना जैसे कि - डर, अहं, चाहत, लत, गुस्सा, पछतावा, बहकावे में बहना, instantly ऐसे decisions लेना या कोई काम करना जिससे बाद में पछतावा होना। School के last days में भैया बिल्कुल ही अकेले रहने लगे और मुझे किसी की feelings की उस समय उतनी समझ नही थी तो मैं भी उनके situation को नही समझ पाई और अपने friend circle में ही खुश रहती थी। भैया के साथ साथ time ना के बराबर ही spend करती थी। लेकिन अब जब बीतें पालो को याद करती हूँ तो मुझे भी guilty महसूस होता है कि जब मेरे भैया को किसी ऐसे person की जरूरत थी जो उन्हें समझे, मैं, जिनकी वो हमेशा से अपने जान से भी ज्यादा care करते आये है, उन्हें मैं वक़्त नहीं दी।
I'm sorry, शायद मैंने अभी तक अपने भैया का नाम नहीं बताया। His name is Abhimanyu. But, सभी उन्हें मनु ही बुलाते हैं। भैया और मेरे age में 5 yrs. का difference है। मगर, जैसा कि मैंने पहले ही बताया - भैया school से भागा करते थे। उनको पढ़ने से ज्यादा मेरे साथ खेलना अच्छा लगता था। तो वह 1 साल fail हो गए। तो मुझे कम उम्र में ही school भेजा जाने लगा। खैर, वो बातें तो अब बहुत पुरानी हो गई। जब मैं 10th के बाद intermediate में arts लेना चाहती थी तो भैया का suggestion था कि मैं science लूँ। उस वक़्त भी बहुत बड़ा scene create हुआ था। ऊपर से women's college में मेरा admission करवाना चाहते थे। ऐसा नहीं है उनके मन में मैं एक लड़की हूँ इस बात से हीनभावना है। मगर patriarchy सोंच तो हावी था। उन्होंने देखा था कि कैसे लड़के लड़कियों को तंग करते थे। वो मुझे इन सब से बचाना चाहते थे, सही है। मगर यह वह कब तक करेंगे ! मुझे खुद से लड़ने के लिए सीखने देना चाहिए था ना ? वो मेरी खुशियों की चाहत रखते हैं, मेरी फिक्र करते हैं, अच्छा है। मगर मेरी अपनी भी तो likeness/dislikes है। मेरी खुद की भी desires होती है। हाँ, अच्छा लगता है कि कोई जब आपको इतनी care करे। But, किसी की care आपकों काबिल ही ना बनने दे, वो करने ही ना दे जो आप करना चाहते हो, वो बनने ही ना दे जो आप बनना चाहते हो, वो भी सही नहीं है ना। ऐसे situations में अपनो का प्यार ही हमारी कमजोरी बन जाती है। जिसे दूर करना बहुत जरूरी होता है। मैंने जब भैया के opposite decision लिया, उनके ego को ठेस लगा, कि वो मेरे लिए जो भी decision लेते है, सही ही होता है। इस वजह से उनके मन एक गुस्सा का भाव दबा हुआ था, जो बाहर आने का हमेशा से मौका ढूंढ रहा था। इसलिए जब उन्हें मेरे और ध्रुव के बारे में पता चला, मेरे ऊपर वो बहुत भड़के। उसके बाद वही गुस्सा जो कुछ बचा रहा वो रवि के ऊपर भी निकला होगा।
ध्रुव से दोस्ती मेरी I.A. के second year में हुई। जो धीरे-धीरे close होते चली गई। दरअसल हुआ कुछ ऐसा था कि उसका एक friend मेरी एक सहेली को पसंद करता था। वो अच्छा nature का था, इसलिए मेरी सहेली भी उसे line देती थी। मगर उसने कभी उससे कहने की हिम्मत नहीं की, ना मेरी सहेली ने अपना limit cross किया। जैसे कि, जिसे भी कभी किसी से सच्चा वाला प्यार हो तो वो अपने beloved को पाने के लिए सबसे पहले उसके नजर में अच्छा बनकर उसके दिल में जगह बनाते हैं, फिर सही मौका देखकर अपने दिल की बात उसके सामने रखते हैं। लेकिन कुछ दोस्तो को इतना सब्र होता कहाँ है। वो अपने excitement में आकर जरूर कुछ ऐसा कर देते हैं कि उनका मामला बनने की जगह खराब हो जाए। ध्रुव ने हमसे दोस्ती की। ज्यादा भाव कभी उसे हमने दिया नही। पर मेरी सहेली के भी मन में ध्रुव के दोस्त के लिए हमदर्दी था, इसलिए थोड़ा close आने दिया। इस expectation में कि शायद यह उनके complicated life को solve कर दे। ऐसा इसने किया भी। ध्रुव का दोस्त मेरी सहेली को like करता है, सब जानते थे। लेकिन ना तो वो कभी बात करता, ना class के बीच कभी पढ़ा रहे teacher के जगह चोरी छुपे उसे घूरते हुए देखता, ना वो उसका नाम सुनकर excited होता, हाँ थोड़ा शर्माता, मगर उसके बारे में कभी कोई discuss भी नही करता। हमेशा खुद में रखता था। मगर ध्रुव, वो इन्हें अक्सर tease किया करता। जब हमारा 12th के final exams हुआ, उसके बाद हमारा farewell था। जहाँ ध्रुव अपने दोस्त के पास एक 'Dairy-Milk-Silk' chocolate bar देखकर उससे पूछा कि, किसके लिए है। जो उसने बताया कि मेरी सहेली के लिए है, मैंने सुना था। वो उसे बार-बार उकसा रहा था कि वो मेरी सहेली को propose करे। मगर वो बार बार refuse कर रहा था कि सही वक़्त देखकर बात करेगा। मेरी सहेली पहले आई थी इसलिए आगे बैठी हुई थी। जबकि मैं अपनी बाकी सहेलियों के साथ पीछे बैठी हुई थी। इसलिए मैं उनकी बात को सुन रही थी। ध्रुव को लगा कि वह बोल नही पाएगा, डर रहा है। जैसे ही event खत्म हुआ और teachers चले गए। हम अपने last पल को cameras में कैद करने लगे। ध्रुव mic पे announce कर दिया कि उसका दोस्त उसे(मेरी सहेली को उसका नाम लेकर) propose करने वाला है और gift भी लाया है। अब उसके दोस्त के पास कोई another option नहीं था सबके सामने accept करने के अलावा। मेरी सहेली ने आगे आकर पूछा कि क्या यह सच है ? जैसे ही उसके दोस्त ने हाँ कहा तो मेरी सहेली ने एक थप्पड़ मार दिया और कहा, "अब तक मैं तुम्हें एक अच्छा लड़का समझती थी मगर तुम... किसी भी लड़की के लिए उसका respect सबसे ज्यादा मायने रखता है। और इस तरह से जो तुमने तमाशा बनाया.., मैं इसे कभी नहीं भूलूँगी।" और वह वहाँ से चली गई। उसके जाते ही उसके सभी friends उसे अपना ज्ञान देने लगे, जिसमे ध्रुव भी था। वह ऐसी है, वैसी है, तुम्हें उससे बेहतर मिल जाएगी, उसे दिखा देना.., वगैरह-वगैरह। उसने बस गुस्से में कहा, "leave me alone" और सब उसे ताने मारकर कि भांड में जाओ, ठीक हुआ, वह इसी लायक़ है; सब चले गए। वह कुर्सी में बैठा, rapper फाड़ा और chocolate खाने लगा। मैं उसके सामने जाकर उससे पूछी कि वह सफाई दे सकता था कि ध्रुव उसके मर्जी के खिलाफ जो किया अपने मर्जी से किया, उसमें उसका कोई दोष नही था। मगर वह इसका जवाब बड़े आराम से दिया- "बात यह नहीं है कि जो ध्रुव ने किया उसमें मेरी मर्जी थी कि या नहीं। बात यह है कि जो कुछ भी हुआ, वह मेरा ही fault था। वह मेरे side से ही हुआ और आगे और भी ऐसे ही disrespect हो सकता है। आज पता चला कि क्यूँ लोग जब किसी को चाहना शुरू करते हैं तो अपने दोस्तो से दूर हो जाते हैं। क्यूँकि उनके friends उनसे बिना कहे पूछे उनके लिए कुछ करने के चक्कर में उनके personal life influence/interfere करके problems create कर देते है। ऊपर से उन्हें समझ नही आता कि उन्होंने गलती क्या की और यही मानते हैं कि उन्होंने जो किया सही ही किया।" उसने बताया मुझे कि जब exams center से वह ध्रुव के साथ निकलता तो ध्रुव जैसे ही मेरी सहेली को देखता उसका पीछा करने के लिए cycle तेज चलाने लगता। मना करने के बाबजूद। इसलिए दूसरे दिन के बाद ध्रुव के साथ आना ही उसने छोड़ दिया। उसने बताया कि जब ध्रुव यह first दिन किया उसी दिन उसने notice कर लिया कि मेरी सहेली के नजर में उसका character खराब हो गया। इस बात का भी खुन्नस था मेरी सहेली को जो उस दिन थप्पड़ के साथ निकल गया। आपने वो कहावत तो सुना ही होगा, "अगर किसी की ताकत जाननी हो तो दुश्मनों से मिलो और character/चरित्र जाननी हो तो उसके दोस्तों से मिलो।" हमारे दोस्त हमारा character पर ऐसे ही दाग लगा सकते हैं इसलिए दोस्त हमेशा सोंच-समझकर चुनने चाहिए। साथ ही साथ, If you love somebody and wanting to be together, make space with your those types of friends who cares you more.
Result निकलने के बाद class के बाकी सारे बच्चों के साथ-साथ मेरी सहेली और ध्रुव का दोस्त भी अपने ambition के साथ दूसरे जगह चले गए। मैंने इसी college में English hons ले लिया, और ध्रुव अपने intrest के हिसाब से Geography. हम पहले से एक दूसरे को जानते थे, तो normally बात तो हमेशा होती ही थी। पर जैसा कि समाज की सोंच होती है, जो नए batchmates थे, उन्होंने assume करना शुरू कर दिया कि हम दोनों के बीच कुछ है। कुछ लड़के भी होते हैं ना, जो खूबसूरत और single लड़कियों पे try मारते रहते हैं। मुझे भी कुछ के हरकतों को देखकर ऐसा ही लगता था कि, they were liking me. जिसमें रवि भी एक था। अब उनके सामने यह accept करूँ कि मैं single हूँ, फिर तो वो सब मुझे परेशान करने से पीछे नहीं हटते। इसलिए मैंने कभी किसी के doubts को clear नहीं किया। जो उनके मन में मेरे और ध्रुव को लेकर था। मैं just as a friend उससे पहले बात करती थी। बाकी लड़के chance मारने पे लगे रहते, इसलिए कोई ऐसा काम जो मुझे उसके through easily possible हो, उससे मदद भी ले लेती। जैसे कि घर में रहकर classes के बारे में पता करना। लड़को का तो complex friend circle होता है ना, हम लड़कियाँ उतना किसी से मतलब कहाँ रखतीं है। एक बार मैं ऐसे ही जब उससे मिलने गई तो उसके एक दोस्त ने उससे पूछा कि "कौन है, girlfriend है ?" बार बार कई लोग इस question को पूछ चुके थे। इस topic से मेरा दिमाग खराब हो गया था। इसलिए मेरे mouth से slip कर गया, "हाँ हूँ, तो..?" मेरे मुँह से गुस्सा में निकला था, but फिर भी it was only a joke. But may Dhruv assumed that I aspect relationship with him. वह धीरे-धीरे closeness बढ़ाना शुरू कर दिया। यह माना जाता है ना, लड़कियाँ अपने दिल की बात कह नहीं पाती इसलिए लड़को को ही बात शुरू करनी पड़ती है। यह सही भी है। और वही तो हो रहा था। लेकिन जो हो रहा था, सही नहीं हो रहा था। मेरे case में तो बिल्कुल भी नहीं। पर मुझे उस वक़्त इतनी समझ कहाँ थी ! एक डर मन में तो था कि कहीं मैं अपने घरवालों को cheat तो नहीं कर रही हूँ। लेकिन एक उमंग भी था कि भगवान मौका दे रहे हैं अपने love के हाँथो को hold करने का। भटकाव, बहकते तो लोग ऐसे ही हैं ना... जब दिमाग कुछ और सोंच रहा हो, और दिल कुछ और कह रहा हो। दिमाग आपको चेतावनी दे रहा हो और दिल कुछ और ही चाह रहा हो। मैं ध्रुव के साथ relationship में आ गई। शुरुआत में कुछ दिन तो ठीक था मगर... मगर कुछ दिन बीतने के बाद दिल को इतना कुचला हुआ महसूस होने लगा जितना whole life में नहीं हुआ। हर जगह मुझपे हक़ जताना (मोह), जब-तब disturb करना (काम), मेरी बाकी friends से जलना (ईर्ष्या), उनके जहग उसे time दूँ यह चाहना (लोभ), वो जो सोंचता है वह सही ही सोंचता है (अहंकार), मैं उसकी बात ना मानू तो झगड़े करना (क्रोध)। भैया से डर लगता था फिर भी लड़ लेती थी मगर इससे लड़ने में एक डर यह भी था कि सबको पता चल जाएगा। भैया को पता चल जाएगा तो वो और ज्यादा भड़केंगे..! (भय) एक चीज तो समझ आ ही गई थी कि किसी को किसी से pure love नहीं होता। उन्हें बस love होता है, चाहे जो अहसास के साथ हो। Pure तो उन्हें अपनी understanding से बनानी होती है। हमारे हिंदी साहित्य के teacher, शैलेन्द्र आचार्य ने हमें बताया था कि "प्रेम छः प्रकार के होते हैं। मातृ प्रेम (माता-पिता का बच्चो से), भ्रातृ प्रेम (भाई-बहन एवं दोस्तो के साथ), वात्सल्य प्रेम (बड़ो और छोटो का), दास्य प्रेम (नौकर और मालिक के बीच का भवनात्मक संबंध), वस्तुनिष्ठ प्रेम (अपने वस्तुओं से जुड़ा लगाव कि मेरा है या मुझे प्रिय है), और अंत में दाम्पत्य प्रेम (पति-पत्नी अथवा प्रेमी-प्रेमिका का)|" इसके साथ ही English literature में दो term आता है - Oedipus complex & Electra complex. इसके अलावा Psychology भी कहता है कि opposite gender feels attraction towards each others. But हम अगर mature हो जाए तो अपनी feelings पर control रख सकते है। इसके लिए knowledge, understanding and practice की जरूरत होती है। जिसमें कि अपनी-अपनी छमता के अनुसार वक़्त लगता है।
जहाँ बात love की आती है, वहाँ jealousy, ego, expectations and dissatisfaction, angriness, fear, attractions and affections, possessiveness, etc आते ही हैं। मगर दोस्ती, दोस्ती में इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। प्यार में ये चीजें जरूरी भी लगती हैं। मगर एक बार दिमाग में बस जाएं कि we're friends then चाहे कुछ भी हो जाए, हम इन चीजों को अपने life me आने ही नहीं देते। हम खुद पर हमेशा control करते हैं और फिर अपने आप पर, अपनी feelings par control रखना सीखते हैं। यह सब मैं जानती तो पहले से भी थी। मगर इसे feel करके इसे समझी रवि से दोस्ती करने बाद हूं। अगर भैया सिर्फ care करने की जगह मुझे दोस्त बनकर समझते, अपनी doll के जगह एक friend की तरह treat करते, तो शायद मैं कभी ध्रुव से close होती ही नहीं। मैं कभी भटकती ही नहीं। अगर रवि के जैसा कोई ईमानदार दोस्त से दोस्ती पहले हुई होती, जो love and feelings को बाकियों की तरह ज्यादा care करने की जगह बस as a friend care करता हो, तो कभी मैं relationship में भी नहीं आती। कभी love जैसे मोह में नहीं फंसती। कोई प्यार करने वाला मिले, जिसकी बांहों में मुझे सुकून मिले, ऐसी चाहतों के मायाजाल में नहीं फंसती।
Semester 4 के exams के दो सप्ताह के बाद मेरे भैया की शादी थी। जिसमें शादी की तैयारी के लिए पापा मुझे पहले घर बुलाए थे क्यूंकि मां की तबीयत उस समय खराब ही रहती थी। तो मैं last exam को देकर exam center से जल्दी निकल गई ताकि थोड़ा आराम करके packing करके अगले दिन घर के लिए निकल सकूं। लेकिन ध्रुव अपना अलग ही planning करके था। वही प्यार , मोहब्बत में आवारगी- Theatre, park, bike riding, restaurant, etc. रात भर पकाया। फिर भी जितना हो सके boyfriend-girlfriend के इस relationship को बचाने की कोशिश की। Earphone लगाकर बात करते हुए सुबह का preparation की। But फिर emotional drama, ego, trust issue, वगैरह के चोंचले... काफी रात हो गई और मुझे बहुत तेज नींद आने लगी तो मैं phone switch off करके सो गई। सुबह उठी तो काफी late हो चुकी थी। मै अगर बिना fresh हुए भी station के लिए अगर भागती तो train miss ही करती। इसलिए फिर आराम से bus Ka option choose करना ही मुझे बेहतर लगा। Bus stop के लिए निकलते समय मैं mobile on की तो आधा रास्ता travel करने से पहले ही ध्रुव का फिर से call आ गया। मैं call cut करके mobile silent में कर दी और bus stop पहुंचने के बाद side में stall के बगल में जाकर बात करने लगी। ध्रुव मेरा दिमाग खा रहा था - "बहुत ज्यादा भाव हो गया है। भाव खा रही हो। अब मेरी कोई परवाह नहीं ना। लगता है आजकल मुझसे ज्यादा कोई और अहमियत रखने लगा। जाओ उसी के साथ रहना। मुझे सीधा सीधा छोड़ दो ना। क्या लगता है मुझे कोई मिलेगी नहीं। तुम्हारे जैसी एक से एक मेरे पीछे पड़ी रहती है। जाओ, मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं। मै ही तुम्हें छोड़ता हूं। Go to hell." मेरा भी दिमाग सटक गया और मैंने भी बोल दिया, "देखो, तुम्हें जो समझना है, समझो। तुमसे दोस्ती करके मैंने ही गलती की। अगर इसे तोड़ना हो, तो शौक से तोड़ो। मेरे घर से call करके mammy-papa बुला रहे है, और मुझे जाना है। अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे साथ कुछ दिन घूमने-फिरने के लिए अपने parents की बात ठुकरा दूँ, तो तुम गलत हो। भाँड में जाओ...! मुझे तुम्हारी कोई परवाह नहीं। आज के बाद मुझे कभी call नहीं करना। बेहतर होगा कि मुझे भूल कर अब किसी और को ढूंढ लो।" फिर जब बाहर निकली bus की ओर तो मुड़ते ही stall के कोने में मैं रवि से टकराने वाली थी। मेरे दिमाग में ये सवाल आया कि यह यहां क्या कर रहा है, मगर why does I care सोंचकर आगे बढ़ गई। बस के करीब पहुंची तो मुझे रोना आने लगा। मैं किसी तरह से अपने आँसुओ को रोकने की कोशिश कर रही थी। मैं conductor से पूछी, bus आधा घंटा late था। मुझे बहुत बुरा feel हो रहा था इसलिए मैं bus shed पे चली गई। थोड़ी देर बाद कोई मेरे सामने पानी का बोलत लिए खड़ा था। मैं नजर उठाकर देखी, वह रवि था। मैंने सामने से पानी के बोतल पकड़े हुए उसके हाँथ को हटाते हुए इशारा किया कि नहीं चाहिए। तो वह मेरे बगल में बैठकर मुझसे बात करने की कोशिश करने लगा। मुझे रोने का मन कर रहा था। उस वक़्त मेरे मन में गुस्सा नहीं था, इसलिए उसे rudely बात नहीं कर पाई जो वह भागे। उसने मुझसे पूछा कि क्यूँ मैं और हिमाद्रि उसे भाव नहीं देती। दरसल हिमाद्रि और मैं उस time काफी अच्छी सहेलियाँ थी। वक़्त बीतता है, और हमारे रास्ते अलग हो जाते हैं। दूरियाँ हो जाती है लोगो के बीच। मगर दिल में जो जगह थी उस time, हिमाद्रि के लिए आज भी वह है और उसे कोई नहीं ले सकता। हिमाद्रि ने ही मुझे बताया था कि उसे लगता है कि रवि मुझे like करता है। रवि दूसरों के life में intrest बहुत रखता था। influence भी करने का कोशिश करता था। और हमें यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि कोई हमारे जीने के तौर-तरीकों पर अपनी राय दे। after all हममें इतनी समझदारी तो तब आ ही गई थी कि अपनी जिंदगी का फैसला हम खुद ले सके। ऐसा मुझे लगता था। जो कि अब लगता है कहीं ना कहीं मुझमें भी कमी थी, जिसे समझने के लिए किसी समझदार और अच्छे दोस्त की मुझे हमेशा से जरूरत थी। जैसे कि हिमाद्रि और रुद्र एक दूसरे के life में थे, बचपन से। उसने मुझे वहीं बोल दिया, "मैं तुम्हें पसंद करता हूँ। कितना पसंद करता हूँ, यह तो नहीं बता सकता। पर तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ। तुम जिसके भी साथ रहो, boyfriend बनाओं, मुझे इस से फर्क नहीं पड़ता। तुम मुझसे दोस्ती करो, चाहे ना करो, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं बस इतना जानता हूँ कि तुम्हें मैं पसंद करता हूँ। That's it. And I doesn’t need to think anymore." फिर उसने मेरा ticket कटा दिया। Bus में हम दोनों साथ ही आए। मगर मैं उसके पास नहीं बैठी। मैं आगे women's coach में बैठी थी और वो bus के front glaas के बगल वाली seat पे door के बगल में। मैंने notice किया, जब भी उसका नजर मेरे ऊपर पड़ता वह इधर-उधर देखने लगता।
मानी, मेरी भाभी को भैया इसी नाम से हमारे सामने introduce करवाये थे। वैसे तो उनका नाम बचपन से मानवी था। मगर अब हमलोग भी मानी कहकर ही उन्हें पुकारते हैं। भैया से मैं जल्दी बात नहीं करती, और graduation में admission करवाने के बाद से घर में ज्यादा time भी नहीं देती। इसलिए मुझे भैया-भाभी की पूरी कहानी तो नहीं पता, मगर उनकी arrange नहीं, बल्कि love marriage है। भैया-भाभी एक दूसरे के साथ हमेश रहने के लिए अपने graduation के 2nd year में ही commitment कर लिए। But हमसे introduce करवाये आने final exam के last वाले दिन। Exam देने के बाद। मम्मी-पापा को वह अच्छी लगी तो वो उनके family के बारे में पूछे। इससे उन्हें भाभी के family से far वाला ही, मगर connection मिल गया, जिससे बात आगे बढ़ाया जा सके। दोनों family बैठकर decide किये कि जब तक at least भैया अपने life में कुछ बन ना जाए, उनकी शादी नहीं होगी। मगर भैया, वो तो एक साल के अंदर ही Army का job निकाल दिए। Army में बस 2 महीने की छुट्टी होती है, continuous छुट्टी होती है। अगर कोई emergency ना हो तो, वरना उन्हें बीच में ही बुलाया जा सकता है। इसलिए दोनों family ने decide किया कि भैया के training में जाने से पहले ही जल्दी से शादी करवा दो। एक बार लड़का अगर job पे चला गया तो उसकी फिर duty ही सबसे पहली जिम्मेदारी होगी। जब मैं घर पहुँची तो मेरे पास 3 problems थें। 1st मम्मी की खराब तबियत की वजह से भैया की शादी की सारी shopping and तैयारी मुझे करनी थी। 2nd मेरे और ध्रुव के बीच जो कुछ भी उस वक़्त चल रहा था उसका tension. 3rd इन चीजों की वजह से सुबह से ठीक से कुछ मैं खाई नहीं थी, मुझे बहुत जोर से भूख लग रही थी। मै mobile side में रखी, खाना खाई और सो गई। मेरी सीधा रात में ही नींद खुली। मैंने सोंचा कि ध्रुव से बात करके sorry बोल दूँ। मगर उसका busy tune आया। मैं kitchen में गई तो हमेशा की तरह refrigerator के दरवाजे पे एक note चिपकाया हुआ था। उसमे लिखा था, "खाना ढंका हुआ है, गरम कर लेना।" और नीचे "तुम्हारी favorite खीर बनाई है।" यह काम मेरे भैया के अलावा और किसी का हो ही नहीं सकता। यूँ तो हर लड़को की एक से एक फरमाइशें होती है खाने को लेकर। लेकिन मेरे भैया, वो तो मेरे लिए खाना बनाने के लिए खुद kitchen में घुस जाते और जब तक बन ना जाए, किसी को अंदर जाने नहीं देते। वह तो फरमाइशें करने की जगह सबसे यह बोलते हैं कि कोई उनकी तरह खाना बनाकर तो दिखाए। मैं खाकर सो गई। सुबह उठी तो फिर से ध्रुव को try किया। जब अभी भी busy बताया तो मैं समझ गई कि उसने मुझे blacklist में डाल दिया है। मैं fresh होने गई। वापस आई तो भैया बहुत भड़के हुए थे। बहुत सुनाए। मेरे जाने के बाद ध्रुव call कर रहा था। 4-5 लगातार call के बाद भैया call recieve कर लिए। उसके बाद क्या हुआ होगा, मुझे नहीं लगता कि इसे लिखने की जरूरत है। मेरा mind अभी भी half-half divided था। भैया जो बोल रहे हैं वो सही बोल रहे हैं। मगर "He is not in my place. So he can't understand my situation and it's problems." उस वक़्त मेरे दिमाग में यही आया। शादी के बाद वापस आई तो अभी भी मैं चाहती थी कि ध्रुव के साथ सबकुछ अच्छा हो जाए। मगर गलती तो उसी की ही ना थी। उसने मुझे समझने की कोशिश ही नहीं की। फिर पहल मैं ही क्यूँ करूँ ! उल्टा उसने तो मुझे जलाने और नीच दिखाने की भी कोशिश शुरू कर दी।
जब मैं घर से वापस आ रही थी तो मेरी भाभी ने मुझसे कहा था कि, "Not everyone understand real love. Not everyone does real love. Not everyone understand caring of real love. So, not everyone deserve love." उन्होंने बताया था कि एक बार उन्होंने मेरे भैया से पूछा था कि उन्हें कैसी life partner चाहिए। तो मेरे भैया ने जवाब दिया था कि, "जो मेरी बहन के लिए भाभी से बढ़कर एक best friend की तरह साबित हो। जिससे मेरी बहन अपने दिल की बात कह सके जो वह मुझसे कहने से डरती है। जो मेरी बहन को समझे, जो वह अपनी नापसंद को मेरे सामने बोल नहीं पाती। जितना प्यार और जितना care मैं अपनी बहन को करता हूँ, वह उसे समझे और मुझे मेरी बहन से जुड़ी हर जिम्मेदारियों को पूरा करने में मदद करे।" मेरी भाभी मानती है कि अगर किसी को किसी की भी सच में care है, वह सच में उससे दिल से जुड़ा है, उससे प्यार करता है, तो वह बाकियों के भी भावनाओ की अहमियत को समझेगा। उसके साथ कोई भी रिश्ता निभाना, उसके साथ रहना आसान होता है। भैया को job के साथ-साथ army residency में quarter भी मिला। उन्होंने भाभी और मेरे career को देखते हुए हमें उसी में sift करने को सोंचा। ताकि हमारी safty के साथ साथ हमें privacy भी मिले। ताकि hostle की disturbance और insecurity हमें ना हो। उसी दौरान रुद्र की सतीश से दोस्ती होने से उनके साथ साथ हिमाद्रि, रवि, कोमल, राजेश की friendship भी धीरे-धीरे गहरी होने लगी। इसी बहाने रवि भी किसी ना किसी बहाने अक्सर मेरे इर्द-गिर्द आ ही जाने लगा। पूरे group में दोस्ती होने की वजह से उसे मैं ignor भी नही कर सकती थी। रवि पहले ही बोल चुका था कि he does likes me. So, मेरी नजर उसकी हरकतों पर तो रहतीं ही थी। उसने उस दिन मुझसे सीधा तो कहा था कि मुझे वह like करता है, मगर मेरे इर्द-गिर्द घूमना, मेरा पीछा करना, ऐसा कुछ नहीं करता। Means अब situation ही कुछ ऐसा होता कि ना चाहते हुए भी वह मेरे इर्द गिर्द होता। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं उसे भाव नहीं देती, या किसी के साथ रहूँ, उसे jealous feel नहीं होता। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर मैं उसके बारे में कोई tount मारूँ। उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अगर मैं उसे किसी का care करते हुए देखूँ तो मैं क्या सोंचूंगी। उसकी यही बात धीरे-धीरे दिल को भाने लगी। वह straight forward है, जो दिल में होता है सीधा accept करता है। मगर वह कभी अपनी feelings को खुद के ऊपर हावी नहीं होने देता। खुद के emotions पर control रखता है। उसके सारे friends भी वैसे ही थे। सतीश और कोमल के बीच के closeness को देखकर कभी मुझे भी उनपर dought था। मगर अब जैसा सतीश है वैसा राजेश भी। रुद्र और हिमाद्रि बचपन से दोस्त है, मगर फिर भी कभी उन्होंने अपनी limits को cross नहीं किया। मुझे लगता था कि मैं mature हो गई हूँ, अब अपने life के decisions खुद ले सकती हूँ। मगर मेरा यह सोंचना ही मेरी immaturity का symbol है। कोई इंसान कभी पूरी तरह से mature नहीं होता। वह हमेशा सीखता रहता है, time, situation, problems के साथ आगे बढ़ते हुए। ऐसे में guide करने के लिए हमें अच्छे दोस्तों की life में जरूरत होती है। जो हमें time दे, जब भी हमें उनकी जरूरत महसूस हो। जो हमारी situation को समझने में हमारी मदद करे, अपने different ways of perspective and experience से। जो हमारे problems के solution find करने में सही राह दिखाए। जो life में हमें भटकने से बचाये। बेशक मैं भटक गई थी ध्रुव के साथ। मगर मेरा यह past, एक ऐसा mistake है जो मेरे present को influence कर रहा है।
अभी कुछ सप्ताह पहले ही की बात है। मै रवि से बात कर रही थी। उसका group class में sincerest में से एक था। इसलिए अगर पढ़ाई में कोई भी help अगर चाहिए होता तो वो best option था। क्यूंकि अगर एक help अगर ना कर पाते तो कोई और कर देता। वैसे भी रवि ने कहा ही था कि वह मुझे like करता है, तो वह बाकियों की तरह भाव नहीं करता। मेरे सामने कोई आना कानी नहीं करता। उसी वक़्त ध्रुव आ गया और मुझे झाड़ने लगा, "तो तुम इसी के लिए मुझे cheat कर रहीं हो !" मगर सच क्या थी ? उसने मुझे नहीं समझा, इसलिए मैं उसे छोड़ने का decision ली थी। रवि उससे बात करने और शांत करने की कोशिश किया तो उसपर हांथ उठाने वाला था। मैं उसका हांथ पकड़कर बीच में रोक ली। उस समय तो situation शांत हो गया। मगर उस दिन जो हुआ, अब कुछ भी पहले की तरह ठीक नहीं रहने वाला था। मैं शाम में रवि को call करके उसके मन को शांत करने की कोशिश की। उसने उस वक़्त मुझसे कहा, "तुम्हारा और ध्रुव के बीच जो कुछ भी है, मुझे उससे कोई मतलब नहीं। मुझे तुमलोग के बीच में नहीं आना है। तुम अपने life में क्या करती हो, अपने life को कैसे जीती हो, यह तुम्हारी खुद की individuality है। इसमें मैं interfere नहीं कर सकता। मैं तुम्हें like करता हूं। मगर मेरे life के कुछ motives है। मेरी responsibilities है अपने family के प्रति। इसलिए मैं नहीं चाहता कि इसमें किसी भी तरह का influence create हो। उम्मीद है कि तुम समझ रही होगी। तुम अपने problems को कैसे solve करोगी, इसमें मैं interfere नहीं कर सकता। मगर मैं चाहूंगा कि मेरा life ऐसे किसी भी चीज से disturb ना हो। इसलिए sorry, but please, हो सके तो मुझसे दूर रहने की कोशिश करना। और हां, सतीश कल सुबह की train से घर जाने वाला है। जिसके लिए हमें उसे सूरज निकलने से पहले station छोड़ने जाना होगा। इसलिए मैं अभी और बात नहीं कर सकता। Bye..." इससे पहले कि मैं उससे कुछ बोलती, उसने call काट दिया। मैं दोबारा call करने ही वाली थी कि किसी ने मुझे पीछे से गले लगाकर कहा, "surpris..!" मैं पीछे मुड़ी तो भैया थें। भाभी ने बताया कि 2 month के vacation पे आए हैं। मैं दोबारा फिर रवि से बात नहीं कर पाई। मैं खाना खाई और सोने चली गई। पर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मुझे रोना आ रहा था, मैं तो रही थी। पता नहीं कब भैया आए और मेरी सिसकियों को सुनकर मुझसे बोले, "क्या हुआ मिस्टी ? तुम क्यूं तो रही हो ?" मैंने कहा, "मैं कहां रो रही हूं ? वो तो थोड़ी सर्दी लग गई है शायद। बस और कुछ नहीं। वह रजाई के ऊपर और एक कम्बल मेरे ऊपर ढंक कर चले गए। उसके अगले दिन से फिर से रवि पहले की तरह मुझसे अजनबियों की तरह ignor करने लगा।
मैं आज एक कोशिश ही करती रह गई कि जैसे रवि अपने दिल की बात, जो भी उसके मन था, उसने मुझे उस दिन call पे कह दिया, मैं भी अच्छा मौका पाकर उससे कह दूं। लेकिन, आज जो tution के बाहर कोमल ने मुझे बुलाई और सभी मेरे सामने जो discussion कर रहे थे, मुझे पता चला कि उसी रात की अगली सुबह भैया ने call करके रवि को धमकाया। यह उनका मुझे लेकर insecurity और मेरे pasts के वजह से मुझपर गुस्सा भी था जो रवि के ऊपर एक बार फिर से निकला। क्रोध, भैया को जब भी गुस्सा आता है, वह मेरे ऊपर सीधे सीधे उसे नहीं निकलते। लेकिन कहीं ना कहीं तो निकलता ही है। खासकर उसपर, जिसे वह मेरी गलतियों का वजह समझते हैं। मै अब तक समझती थी कि रवि बस अपने career को लेकर insecure हो गया है इसलिए वह मुझसे दूर रहने की कोशिश कर रहा है। मगर अब, मुझसे दूर रहना उसके लिए मेरी वजह से किसी भी तरह से आने वाली possible problem से खुद बचाना है। किस्मत भी कितनी कमिनी है ना। हम जिस problem को सच समझ कर उससे बाहर निकलने के लिए preparation करते हैं, वह facts ही change कर देती है। एक पल में हमारी reality बस एक perspective बन कर रह जाती है। सच, सिर्फ उतना नहीं होता जितना हम जानते हैं, सच उससे कहीं परे होता है।
सच वो नही होता जो लोग बताते हैं।
ना ही कहानी सिर्फ उतना होता है जो हम जानते है।
कुछ किस्से होते हैं जो लोग बताते हैं।
तो कुछ लोग बढ़ा चढ़ा कर इसे पेश करते हैं॥
मेरे भैया को पता था कि मुझे कोई भटका रहा है। वह ध्रुव को नहीं जानते थे। उन्होंने जब मुझे रोते हुए सुना, जरूर मेरे phone के call list को check किया होगा। जब उन्हें उसमे last call पे रवि का नाम दिखा होगा। बाकी call history, messages भी जरूर चेक किए होंगे। फिर उन्होंने रवि को victim समझकर जो किया सो वो किया। उन्होंने कुछ करने से पहले फिर से मुझसे कुछ भी पूछना तक जरूरी नहीं समझा। और अब, मै इसे solve करूं तो कैसे करूं ? भैया का perspective change करूं तो कैसे करूं ? रवि की insecurity अगर दूर करूं तो कैसे करूं ? अगर ध्रुव का किस्सा ख़त्म करूं तो किसकी मदद से ? मुझे अब अपनी life को सही करने का बस एक ही option दिखा, कि मैं घरवालों की बात मानकर वो करूं जो वो चाहते हैं। इसलिए जब आज घरवाले मेरी शादी के लिए मेरे लिए लड़का देखने की बात कर रहे थे, मैंने भी हामी दे दी। मुझे पक्का यकीन है, इस decision को मुझसे मनवाने के लिए भैया ही पापा को यहां बुलाए होंगे। पर अब मेरे पास और option ही क्या है ! मेरी whole life शायद एक object की तरह ही होकर रह जाएगी। पहले भैया की doll, फिर boyfriend के लिए toy, और अब husband के लिए कोई खूबसूरत सी trophy. शायद मेरी यही किस्मत है। मुझे कभी individuality नहीं मिलेगी। कभी कोई नहीं समझेगा कि I'm not an object, I'm a human being. I also have my individual identity, ideas, feelings, emotions, different problems and perspectives as understood by any others. I also feels need and want to get decisions of my own life.
----- end of this diary part,
now you have to take a rest
and continue the story on
"Perspected Endings" -----
Published on, 13th February, 2020 A.D.
Completed on, 8th February, 2020 A.D.
Re-edited on, 9th February, 2020 A.D.
॥ हमदर्द सा कोई ॥ भाग :- १ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९•० | ९•१ | ९•२ | १०.० | १०.१ | १०.२ | ११.० | ११.१ | ११.२ | १२
Onother ends of this part 10 of "हमदर्द सा कोई : Perspected Endings" has released on 14th February, 2020 A.D. For getting updates of it and also of this series and my other literary works, like my page "हमदर्द सा कोई" on Facebook. Link is https://facebook.com/humdard.sa.koi.by.an.alone.Krishna
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