"जीवन"
(अपने कुछ होनहार दोस्तों का समाज तथा प्रकृति के प्रति बेपरवाही और केवल अपने परिवार के प्रति ही उत्तरदायी होने के स्वार्थी स्वभाव को देख नाउम्मीदी एवं दुःखी मन के साथ)
कृष्ण कुणाल के द्वारा लिखी गई कविता
जो मुड़कर देखता हूं मैं अपने पीछे,
कोई पीछे नहीं मिलते मुझे,
सभी अपनी उस धारा में बह गए।
वहीं पुराने खयालात और आज्ञाकारिता,
बड़ो की बात मानना और उनके ख्वाब पूरा करना,
मैं उस नदी से निकल गया और वो धारा में बह गए।
मैंने ख्वाब देखा है अपना अलग,
अपनी जरूरतों को समझकर,
उसके काबिल बनने के लिए।
उस धारा में बहता तो संगम में खो जाता मैं भी,
जैसे खो गए वो सभी जो धारा में बह गए,
लेकिन मैं अलग हुआ खुद काबिल बनने के लिए।
मेरा यह जीवन क्या सिर्फ कर्ज है मेरे परिवार का ?
मुझसे कोई उम्मीद क्या नहीं है इस समाज का ?
यह राष्ट्र जिसमें मैं महफूज खुद को करता हूं,
यह श्रृष्टि जिसके भोग से मैं फलता-फूलता हूं,
क्या नहीं है कोई कर्तव्य इनके प्रति,
जो सभी उसी धारा में बह गए ?
जो वो किए ख्वाब चंद लोगों का पूरा,
और जाकर वो संगम में खो गए ।
जब मैं टकराया उन पत्थरों से बहते-बहते,
जो मेरा वजूद उस नदी के अलावा भी मुझे बता दिए,
मैं उस नदी से निकल गया,
और बाकी सब वो धारा में ही बह गए॥
Written on 27th September, 2024 A.D.
Published on 27 September, 2024 A.D.
(published first in my facebook profile on same day of written)
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