● मत पलटो पन्ने मेरी जिंदगी के... ● कृष्ण कुणाल के द्वारा लिखी गई हिंदी कविता
मत पलटो पन्ने
मेरी जिंदगी के...
(उन सभी को उत्तर, जो पूछते रहते हैं कि "तेरे दिल का हाल क्या है ? तुम्हारे ऐसे होने का राज क्या है ?" अपनी गलती से किसी को खोने के गम में पछताते हुए अहसास के साथ।)
मेरी जिंदगी के...
(उन सभी को उत्तर, जो पूछते रहते हैं कि "तेरे दिल का हाल क्या है ? तुम्हारे ऐसे होने का राज क्या है ?" अपनी गलती से किसी को खोने के गम में पछताते हुए अहसास के साथ।)
● मत पलटो पन्ने मेरी जिंदगी के... ●
मत पलटो पन्ने मेरी जिंदगी के और..।
जितने खुले हैं उतने ही पढ़ लो तुम।
ये जो हाँथ में है, यह बस एक हिस्सा है
मेरी जिंदगी की छोटी सी।
किताबें ढूंढनी शुरू कर दोगे तुम वो सारे,
जिन्हें मैंने अपने दिल के अंधेरे कमरों में छुपा रखे हैं।
वो दर्द, वो मर्ज, और वो अर्जियां सारे...।
जो मिले, रहे, और ना सुने उसने कभी बेपरवाही में।
दफ़न रहने दो जो गुजर गया।
खोए रहने दो जो टूट गया था।
उन बेजान अहसासों से तकलीफ़ होती है अब।
उन अधुरेपनों में उसकी कमी खलती है अब।
हाँ, मैं भी चाहा था किसी को टूट कर कभी।
हाँ, मुझे भी छोड़ा था किसी ने रूठ कर कभी।
खैर इन पुरानी बातों को याद करना अब अच्छा नहीं लगता।
अब इन बातों से आगे बढ़ जाना ही अच्छा लगता है।
अक्सर मैंने देखा है शुरू-शुरू में
रवैया मुझे सुनने वाले लोगों का।
वो हमदर्दी जताते और ज्ञान दे जाते
कि भूल कर उसे दोबारा जिंदगी जियूँ मैं।
वो कहते थें कि, जो इश्क़ में बेवफ़ा होता है,
वो शख्स अच्छा नहीं, उसका ना होना ही अच्छा होता है।
ना कह सका मैं उनको कभी, यह बोझ है मुझे आज भी।
"बेवफ़ा मैं ही था इश्क़ में शायद", यह गम है मुझे आज भी।
वो कहते गए कि लड़कियाँ होतीं ही है ऐसी।
अरे मैं भी तो निकला बाकियों के जैसा ही।
जिस वक़्त वक़्त चाहिए था उसको मेरा,
उस वक़्त वक़्त ना देकर बाद में मैं रो रहा था।
जिस वक़्त साथ की जरूरत थी उसे मेरी,
उस वक़्त हाँथ ना थामकर, बाद में मैं उसका हो रहा था।
कुछ उलझने थीं मेरे मन में शायद।
उसे ना सुलझाकर, मैंने रिश्ते को उलझा दिया।
हाँ बेशक वह मेरी ही उस वक़्त गलती थी,
जिसके चलते मैंने उस वक़्त उसे खो दिया।
ना कह सका मैं उनको कभी, यह बोझ मेरे दिल में है आज भी।
बेवफ़ा मैं ही था इश्क़ में बेशक़, यह गम है मुझे आज भी।
तसल्ली हो गई सुनकर, जो तुम सुनना चाहते थे ?
मैं भी टूटा, बिखरा, बर्बाद हुआ था इश्क़ में...
हाँ, मैं फरेबी हूँ, जो आजतक फरेब करता रहा।
इस राज को सीने में दबाएं मैं सबके सामने,
मैं इन सब से अंजान बना फिरता था।
पर एक बात अपने दिल से पूछ कर बता ऐ मेरे दोस्त-
"क्या तुम्हें सच में यकीं है मेरे इस बात पे ?
या तुम्हें शक है कि यह भी मेरा कोई फरेब ही है...?"
क्या जाने कोई राज छुपाने को फिर से फरेब कर रहा हो यह दिल...।
या ना जाने कितने और कितनों के राज दफ़न है सीने में।
हाँ, मैं फरेबी हूँ और मैं आज भी फरेब ही कर रहा।
ऊब कर एक ही सवाल से बार-बार, आज मैं फिर से फरेब कर रहा।
••••• अंत एक मिथ्या है, शुरुआत तो
आखिर फिर वहीं से होती है। •••••
लेखक हूँ, मैं मन में आया हर एक ख़्याल लिखता हूँ।
कुछ सच तो होतें है कभी, पर अक़्सर मैं अपने मन में चल रहे ख्याल लिखता हूँ।
• कभी-कभी लोग लोगों के सवाल से इतने ऊब जाते हैं कि उनसे छुटकारा पाने के लिए झूठी कहानी सुना देते हैं, या जो उन्होंने कभी नहीं किया उस गलती को भी मान लेते हैं। ताकि लोगों के एक ही सवाल से वो और परेशान ना हो..।
-कृष्ण कुणाल
27वां जनवरी, 2021 ई.स.
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