~करो नई शुरुआत~
(हार मानकर बैठ जाने के जगह नई शुरुआत करने की प्रेरणा देने के लिए)
-कृष्ण कुणाल की लिखी कविता-
~करो नई शुरुआत~
कहाँ गया तुम्हारा खिलखिलाता चेहरा..,
वो मुस्कान जिसमें मैं खो जाता था ?
क्यूँ सूना है तुम्हारी सपनों की दुनियाँ..,
ये आँखे जिनमें कभी मैं खो जाता था ?
तुम हँसती थी तो हँसी में मैं
अपने दुःखों को भूल जाता था।
तुम्हारी आँखों से झलके सपनों में मैं
अपने आप को भूल जाता था॥
तुम्हारे माथे पे बन रही चिंता की लकीरों से
कितना बेचैन मैं होने लगा हूँ।
तुम्हारे होंठों की उदासी को देखने के बाद
मैं अपनी खुशी को खोने लगा हूँ॥
क्यूँ तड़प रही हो तुम इस कदर जान..,
आओ न तुम्हारे दिल को मैं सुकून देता हूँ।
क्या हो गया अगर कुछ खो दिया है तुमने..,
आओ न तुमको मैं फिर से पाने की जुनून देता हूँ॥
क्या करोगी तुम यूँही मयूष बैठे रहकर ?
आओ न मिलकर फिर से एक सफर शुरू करते हैं।
फिर चली जाना तुम अपने रास्ते में...।
आखिर क्यूँ लोग नई शुरुआत करने से डरते हैं !!
-AnAlone Krishna.
12th January, 2019 A.D.
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