*इस बार की मुलाकात*
(अपने बिछड़े हुए दोस्त को अपने सपनों में देखने के बाद)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता-
*इस बार की मुलाकात*
हर सुबह और हर एक शाम,
उस सूरज को देखता हूँ ,
और ठहर सा जाता हूँ ।
पहले तुम फिर तुम्हारी बातें,
उन्हे महसूस करता हूँ ,
फिर लम्हों को दोहराता हूँ ।।
तुम्हे याद है वो ढलते सूरज,
जो सुबह फिर मिलने का उम्मीद दिलाते थे,
आज वो नही है ।
हम अपने सपनो के पीछे भागे,
अलग हो गये और वैसे ही रहे,
अब यही सही है ।।
थोड़ा सा कमी है, पर जी रहा हूँ ,
जब आते हैं आँसू, उन्हें पी रहा हूँ,
जिन्दगी गुजारना जरूरी हैं ।
तुम्हारे सपने अलग थे, मेरे सपने अलग थे,
हम साथ रहकर भी अलग-थलग थें,
सपनो को हमें सवारना जरूरी है ।
लेकिन सच कहूँ कुछ अपने बारे में,
जो बीत रहे उन लम्हें सारे में,
मैं खुद को खोया सा रहता हूँ ।
पता नही क्या दर्द है सीने में,
आँसू होते है मेरे भौंहो में,
जब रात मे मैं सोया रहता हूँ ।।
बस अब इतना ही रहने दो,
अब आगे कुछ बोल ना पाऊँगा ।
क्या-क्या रहता है मेरे मन में,
इसे मैं कभी खोल ना पाऊँगा ।।
मुझे लगता है कि मैं अपनी बातो को लोगो को समझा नही पाता ।
-AnAlone Krishna.
09/07/2017
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