* मेरी ईक्षा *
(जीवन में सुकून भरे पलों की ईक्षा रखते हुए)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता-
* मेरी ईक्षा *
दो गज जमीन तो मुझे भी चाहिए ,
दे सके चार कंधे ,ऐसे लोग मुझे भी चाहिए ,
उड़ लूँ खूले आसमाँ में जी भर कर मैं मगर ,
रहने को आशियाना तो मुझे भी चाहिए ।
दे सके चार कंधे ,ऐसे लोग मुझे भी चाहिए ,
उड़ लूँ खूले आसमाँ में जी भर कर मैं मगर ,
रहने को आशियाना तो मुझे भी चाहिए ।
मुस्कूराहट देखकर लोग मुस्कूरा देते हैं ,
उदास देखकर लोग सांत्वना देते हैं ,
जो लोग बिना मिले दुःख-सुख महसूस करे ,
ऐसे लोगो का साथ तो मुझे भी चाहिए ।
उदास देखकर लोग सांत्वना देते हैं ,
जो लोग बिना मिले दुःख-सुख महसूस करे ,
ऐसे लोगो का साथ तो मुझे भी चाहिए ।
इन बातों में मुझे अकेलापन लगता हैं ,
ढेर सारी आशाएँ भी जगता हैं ,
मन सुख-दुःख के बीच संतुलन बनाएँ रखे ,
ऐसी परीस्थितियाँ बस बनी रहनी चाहिए ।
ढेर सारी आशाएँ भी जगता हैं ,
मन सुख-दुःख के बीच संतुलन बनाएँ रखे ,
ऐसी परीस्थितियाँ बस बनी रहनी चाहिए ।
खुशी के पल खुल कर हसना चाहिए ,
गम में जी भर रोना चाहिए ,
पर जिसे मन की भावनाओं पर नियंत्रण ना हो ,
उनकी तूलना तो जानवर से ही करनी चाहिए ।
गम में जी भर रोना चाहिए ,
पर जिसे मन की भावनाओं पर नियंत्रण ना हो ,
उनकी तूलना तो जानवर से ही करनी चाहिए ।
ना किसी वस्तू की अधिक चाह रखनी चाहिए ,
ना ज्यादा संतोष करके रहना चाहिए ,
चीजो के मोह से दुःख कम रहें,
मुझे तो ऐसे मध्यम मार्ग में चलना चाहिए ।
ना ज्यादा संतोष करके रहना चाहिए ,
चीजो के मोह से दुःख कम रहें,
मुझे तो ऐसे मध्यम मार्ग में चलना चाहिए ।
-AnAlone Krishna.
01/02/2017
01/02/2017
this time I'm reading धार्मिक सुधार आँदोलन and inside it बौद्ध धर्म ।
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