~इंतजार~
तू रूठ गया, जग रूठ गया,
अंदर ही अंदर, मैं टूट गया ।
सोचा कि संभाल लूँ, बाकी रिश्तों को,
पर धीरे-धीरे, सब छूट गया ।।
तू ही बता, कि कौन है तू ?
क्यूँ मुझसे रूठा, फिर मौन है तू ।
तू जब तक था, मेरा दोस्त ही सही,
उम्मीद जगाकर, क्यूँ लूट गया !!
मैं पागल हूँ, मैं आवारा,
मैं घायल हूँ, मैं बेचारा ।
कर लूँ मुहब्बत, किसी से कैसे,
मुझे अब ना भाता, यह जग सारा ।।
कैसे रोकूँ ? अब मैं खुद को,
याद करता हूँ, अब बस तुझको ।
मेरा इन्तज़ार है, फिर मिलने की,
तेरा साथ है, लगता प्यारा ।।
अब गुस्सा छोड़ो, और आजा तू,
कैसे जीयूँ मैं, बतलाजा तू ।
लोग कैसे जीते हैं ? अपने चाहत से दूर,
इन झलकियों को, दिखलाजा तू ।।
बस एक बार, हाँ बस एक बार ,
कितना है मुझमें, तेरा एतबार ।
देख ले मुझमें, और मेरे गुनाह की,
माफी खुद की, मुझे दिलाजा तू ।।
-AnAlone Krishna.
02/12/2017
Yah unke liye hai, jinke friends ruthkar chale gaye.
Post a Comment
I am glad to read your precious responses or reviews. Please share this post to your loved ones with sharing your critical comment for appreciating or promoting my literary works. Also tag me @an.alone.krishna in any social media to collab.
Thanks again. 🙏🏻