इंतजार, कृष्ण कुणाल की लिखी कविता
~इंतजार~
तू रूठ गया, जग रूठ गया,
अंदर ही अंदर, मैं टूट गया ।
सोचा कि संभाल लूँ, बाकी रिश्तों को,
पर धीरे-धीरे, सब छूट गया ।।
तू ही बता, कि कौन है तू ?
क्यूँ मुझसे रूठा, फिर मौन है तू ।
तू जब तक था, मेरा दोस्त ही सही,
उम्मीद जगाकर, क्यूँ लूट गया !!
मैं पागल हूँ, मैं आवारा,
मैं घायल हूँ, मैं बेचारा ।
कर लूँ मुहब्बत, किसी से कैसे,
मुझे अब ना भाता, यह जग सारा ।।
कैसे रोकूँ ? अब मैं खुद को,
याद करता हूँ, अब बस तुझको ।
मेरा इन्तज़ार है, फिर मिलने की,
तेरा साथ है, लगता प्यारा ।।
अब गुस्सा छोड़ो, और आजा तू,
कैसे जीयूँ मैं, बतलाजा तू ।
लोग कैसे जीते हैं ? अपने चाहत से दूर,
इन झलकियों को, दिखलाजा तू ।।
बस एक बार, हाँ बस एक बार ,
कितना है मुझमें, तेरा एतबार ।
देख ले मुझमें, और मेरे गुनाह की,
माफी खुद की, मुझे दिलाजा तू ।।
-AnAlone Krishna.
02/12/2017
Yah unke liye hai, jinke friends ruthkar chale gaye.
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