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● आखिरी ख़्वाहिश ● हिंदी कविता

● आखिरी ख़्वाहिश ●
(जिससे दिल को लगता हो कि उसका अधूरापन पूरा हो सकता है, उस आखिरी ख़्वाहिश को भी खोने के अहसास में)
By AnAlone Krishna
● आखिरी ख़्वाहिश ●

हां, गलतियां कई की थी मैंने पहले।
  मगर तू, तू मेरे दिल की आखिरी फरमाइश थी।
तुम्हें चाहना मेरे दिल की गलती नहीं,
  तू मेरी सोची-समझी ख्वाहिश थी॥

 हां, भटकता रहा है यह दिल
  कईयों की चौखट पर।
   मगर यह तेरे दर पर आकर
    हमेशा के लिए ठहरना चाहता था।
वह तू ही थी शायद जिसे
 मैं ढूंढता फिरा पूरा शहर भर।
  जब ठहर गई मेरी नजरें,
   तुमसे यह दिल कहना चाहता था॥

  हां, गलतियां कई की थी मैंने पहले।
   मगर तू, तू मेरे दिल की आखिरी फरमाइश थी।
 तुम्हें चाहना मेरे दिल की गलती नहीं,
   तू मेरी सोची-समझी ख्वाहिश थी॥

यूं तो हर लम्हा मैं,
 अधूरा सा रहता था।
   तुमसे यह दिल मिलने से पहले
    किसी पर नहीं ठहरता था।
उनकी मौजूदगी में भी इस दिल को
 एक खालिश रहा करती थी सदा।
   मन भटकता रहता था कहीं और,
    और दिल किसी पर नहीं ठहरता था॥

हां, गलतियां कई की थी मैंने पहले।
 मगर तू, तू मेरे दिल की आखिरी फरमाइश थी।
तुम्हें चाहना मेरे दिल की गलती नहीं,
   तू मेरी सोची-समझी ख्वाहिश थी॥

तुम्हें भूलकर आगे जमाने में
 बढ़ भी जाऊं मैं अगर,
  नहीं लगता कि दिल यह मेरा फिर कभी
   किसी और पर ठहर पाएगा।
जो अधूरापन पूरा होता हुआ
 महसूस होता है तुझसे,
  मेरा तन्हा दिल फिर से पहले की तरह
   अकेला और अधूरा रह जाएगा॥

हां, गलतियां कई की थी मैंने पहले।
 मगर तू, तू मेरे दिल की आखिरी फरमाइश थी।
तुम्हें चाहना मेरे दिल की गलती नहीं,
   तू मेरी सोची-समझी ख्वाहिश थी॥

अब रास्ते तो होंगे मेरे चलने को
 मगर मंजिल की ख्वाहिश
  इस दिल को ना होगी।
रोते हुए मिलेंगे कई
 सफर में चुभती कांटो से,
  उनसे हमदर्दी इस दिल को ना होगी।
अरे जब हम खुद ही तड़प रहे होंगे
  तो किसी और के दर्द की हमें परवाह क्या !
जिससे पूरा होते हो हम 
 और वह भी ना मिले,
  फिर किसी और के होने की
   ख्वाहिश कभी इस दिल को ना होगी॥

हां, गलतियां कई की थी मैंने पहले।
 मगर तू, तू मेरे दिल की आखिरी फरमाइश थी।
तुम्हें चाहना मेरे दिल की गलती नहीं,
   तू मेरी सोची-समझी ख्वाहिश थी॥

-AnAlone Krishna.
11th May, 2020 A.D.

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