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"Life की परछाई: Chapter 4Chapter 5Chapter 6Chapter 7 • Chapter 8 • Chapter 9" has published on 8th August, 2025. अगर आपको online reading में असुविधा होती है, और आप इसे printed form में पढ़ना चाहते हो, तो post के bottom में दिए 'Download and Print' button को click करके आप उसका printout करवा लेना। जिसमें 'Download and Print' button नहीं है उसके लिए आप 'Google form' को भरकर मुझे send कर दो, मैं आपको pdf भेज दूंगा। इसके अलावा सबसे अंत में UPI QR code भी लगा हुआ है, अगर आप मेरे काम को अपने इक्षा के अनुरूप राशि भेंट करके सराहना चाहते हो तो, आप उसे scan करके मुझे राशि भेंट कर सकते हो। जो आप वस्तु भेंट करोगे, वो शायद रखा रह जाए, परंतु राशि को मैं अपने जरूरत के अनुसार खर्च कर सकता हूँ। ध्यानवाद !
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● उसे आगे बढ़ना अच्छा लगता है ●

उसे आगे बढ़ना अच्छा लगता है
(किसी को खोने के गम में हताश बैठे युवक के जिंदगी में उसके वापस लौट आने पर अनदेखा करके आगे बढ़ने के अहसास के साथ)
-कृष्ण कुणाल की कलम से

उसे आगे बढ़ना अच्छा लगता है

चलते चलते अचानक धीमा हो जाना।
बह रही हवाओं का रुकना।
सांसों का आभास ना हो पाना।
धडकनों का आवाज़ ना आना।
ढलते हुए सूरज के साथ
लौटती हुई पंक्षियो का
खुले गुलाबी आसमान से
घर लौटने का अहसास दे जाना।
यह एक किस्सा है किसी का किसी के पास लौट आने का।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा जोड़ने से ज्यादा 
टूटे रिश्तों को छोड़ना अच्छा लगता है।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा हाँथ थामने से ज्यादा
सब पीछे छोड़कर आगे बढ़ना अच्छा लगता है।

बैठा हुआ था इंतजार में शायद
उसी पल में जहाँ मैंने उसे छोड़ा था कभी।
बैठा हुआ था बीती लम्हों को याद करता हुआ,
कभी ना रुकने वाला एक लम्हें में ठहरा हुआ।
मुझमें इक्षा जगी यह जानने की
कि कहीं मेरे इंतजार में तो नही है वो...
कहीं वो मेरी कमी को महसूस करता हुआ,
कभी ना रुकने वाला एक लम्हें में ठहरा हुआ।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा जोड़ने से ज्यादा 
टूटे रिश्तों को छोड़ना अच्छा लगता है।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा हाँथ थामने से ज्यादा
सब पीछे छोड़कर आगे बढ़ना अच्छा लगता है।

किसी की यादों में तो था वह
मगर वह मेरे नही, वह खुद के था।
किसी की कमी महसूस होती थी उसे
मगर वह मेरी नही, उसे खुद का था।
जब खोया था उसने मुझे
उस पल वह खुद को भी खोया था।
उसके दिल का दर्द आज भी
उसके आँखों मे साफ़-साफ़ दिखता था।
मगर वह दो बूँद आँशु तक नहीं रोया था।

उसे इंतजार नहीं था मेरा कभी।
उसे चाहत नहीं थी मेरी लौट आने की।
वो तो खुद के दिल का सुकून चाहता था।
वह खुद को ही वापस बस पाना चाहता था।
हाँ ख़्वाहिश जरूर थी उसे
कुछ लम्हां साथ बिताने को मिले।
हाँ ख़्वाहिश जरूर थी उसे
वह जिंदगी दो पल दोबारा जीने को मिले।
लेकिन वह मेरा लौटना नही,
खुद का आगे बढ़ना चाहता था।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा जोड़ने से ज्यादा 
टूटे रिश्तों को छोड़ना अच्छा लगता है।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा हाँथ थामने से ज्यादा
सब पीछे छोड़कर आगे बढ़ना अच्छा लगता है।

मैं लौटा और फिर बहार आया।
मैं लौट और उसके चेहरे में मुस्कान छाया।
मैं सोंचता रहा, वह मुझे याद करता था।
मैं सोंचता रहा, उसे मेरा कमी खलता था।
मगर उसे मेरी नहीं खुद की कमी खलता था।
वह मुझे नहीं, खोये हुए खुद को याद किया करता था।

मैं लौटा और फिर बहार आया।
मैं लौटा और उसके चेहरे में मुस्कान छाया।
कहानी थोड़ी अटपटी है, पर जो है यही है।
कहानी थोड़ी समझ से परे है, पर जो है यही है।
मेरे लौटने के साथ-साथ, उसे खुद का याद आया।
चल उठ और आगे बढ़, उसके दिल से फरियाद आया।

वह बढ़ गया आगे, एक नई शुरुआत करने को।
वह बढ़ गया आगे, वह खुद से ही मुलाकात करने को।
वह जो चाहता था कभी, और भूल गया था।
उसे ख़्वाहिश थी कभी जो वह भूल गया था।
अपनी चाहतो की ख़्वाहिश किये, फिर से आगे बढ़ गया।
उसने नजरे उठाके देखा तो सही, पर अनदेखा करके चल गया।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा जोड़ने से ज्यादा 
टूटे रिश्तों को छोड़ना अच्छा लगता है।

हाँ, खुश तो हुआ था मैं भी बहुत मगर
उसे दोबारा हाँथ थामने से ज्यादा
सब पीछे छोड़कर आगे बढ़ना अच्छा लगता है।

-AnAlone Krishna.
6th December, 2019 A.D.

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