~अधूरी चाहतें~
(अपने अतीत में बीते यादों को इनको बिताए जगहों से गुजरते हुए याद करते हुए)
कृष्ण कुणाल की लिखी कविता-
कल गया मैं फिर एक बार उन्हीं गलियारों में।
जीने को एक बार फिर से अपने यारों में॥
सब मिले, बस तुम ना मिले।
मैं तुम में फिर से खो गया।
अपने कद्रदानों के बीच भी, फिर से तुम्हारा हो गया॥
कभी-कभी लगता है मैंने गलती की हो जैसे।
आदत खुद को दोषी मानने की बन गई हो जैसे॥
लगता है मैंने गुनाह किया।
सितम मैंने बेपनाह किया।
खुद को तुमसे, तुमको खुद से दूर किया॥
लेकिन एक बात कहूँ, तुम खुश हो तो मैं खुश हूँ।
तुम्हारी जिंदगी को खुशनुमा देखकर, हाँ मैं खुश हूँ॥
तुम हमेशा खिलखिलाती रहो।
हमेशा यूँ ही मुस्कुराती रहो।
अपने दिल खुश करने वाले राग, अपनों को सुनाती रहो॥
मेरे जीवन में खुशनुमा पल ही कितने थे !
बहार लाने वाले हमारे जीवन में कल ही कितने थे !!
मैं तो यूं ही चल रहा हूँ।
समय के साथ ढल रहा हूँ।
और अपने किस्मत को बदलने की कोशिश कर रहा हूँ॥
तुम सपना ना देखो लौट आने का।
फिर से हमारे रास्ते एक बार एक हो जाने का॥
हमारी मंजिले अलग हैं।
हमारी चाहते अलग हैं।
पाकर अपने सपनों को, राहतें अलग हैं॥
देखो ना, तुम्हारे पास हँसता-खेलता जिंदगी है।
इस जिंदगी को जीने का तुम्हारे पास बेखुदी है॥
मैं तो अब भी हारा हुआ हूँ।
हार के आँसू मैं पी रहा।
उम्मीद में सब कुछ ठीक हो जाने का, मैं जी रहा॥
ये जो हमारे अपने हैं ना, पागलपन कर रहे हैं।
हमारे बीच जो कुछ था, उसे दीवानापन कह रहे है॥
हमने कभी आशिक़ी नहीं की।
एक दूसरे से दिल्लगी नहीं की।
संग जीने-मरने, साथ चलने की कोई कसमें-वादे नहीं की॥
तुम जीयों अपनी जिंदगी, मैं जीयूँ अपनी जिंदगी।
तुम खुश रहो हमेशा, मैं करूंगा बंदगी॥
तुम हमेशा खिलखिलाती रहो।
हमेशा यूँ ही मुस्कुराती रहो।
अपने दिल खुश करने वाले राग, अपनों को सुनाती रहो॥
कल फिर मैं अगर जाऊँ उन्हीं गलियारों में।
जीने को एक बार फिर से अपने यारों में॥
सब मिले, और तुम ना मिलो...
मैं फिर से तुम में खो जाऊंगा।
अपने कद्रदानों के बीच भी, मैं फिर से तुम्हारा हो जाऊंगा॥
तुम जीयों अपनी जिंदगी, मैं करूंगा बंदगी।
मिलने की फिर से अगर आ भी जाए बेखुदी॥
तुम हमेशा खिलखिलाती रहो।
हमेशा यूँ ही मुस्कुराती रहो।
अपने दिल खुश करने वाले राग, अपनों को सुनाती रहो॥
-AnAlone Krishna.
12th June, 2018 A.D.
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