• मेरे उदाशी के कारण •
(उदाशी में जो करने को मन करता है, उन अहसासों को बयां करते हुए)
-कृष्ण कुणाल की लिखी कविता
सूरज के साथ ढल जाने को जी करता हैं,
नदी के साथ बह जाने को जी चाहता हैं ।
बहुत हैं लोग जो जलाते हैं दूसरो को मगर,
मुझे मोमबत्ती की भाँति जल जाने को जी चाहता है ।।
टूटते हैं तारें तो खुशी होता है ,
गरजते हैं बादल तो खुशी होता है ।
पहले मनभावन बारिश देखकर जो मन खुश होता था ,
आज रीमझिम बरसता पानी देखकर दुःखी होता है ।।
कल था मैं अकेले अँधेरे बंद कमरे में ,
ना डर लगा मुझको, ना दिल को बेचैनी हुई ।
कल टूटा था मैं फिर से अपनो के ही हाँथो से ,
ना उम्मीद टूटा इस बार, ना फिर से कोई हैरानी हुई ।।
जो रहते हैं चार दीवारी में बंद ,
दुसरो की बँदीश में नही बल्कि खुद अपनी चाह से ।
उनकी मँजिल भले हो अलग-अलग ,
पर गुजरते है सभी एक ही राह से ।।
कोई समाज का ठुकराया होता है,
तो किसी को अपनो ने लूटा होता है ।
उसका परिवार उसपर उम्मीद करें ना करें ,
वह खुद में टूटा होता हैं ।।
कोई भले चढ़ जाए चोटी पे ,
कोई जाके छू ले ये नीला गगन ।
जिसको अपनो के ही आँखो में साथ ना दिखता हो ,
वो कैसे लायेगा अपनी जिन्दगी में अमन ।।
-AnAlone Krishna.
03/06/2017







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