● Life की परछाई ●
By AnAlone Krishna
Chapter 9
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● Life की परछाई ●
Chapter 8 : To the Sisters, Brothers and Friends
Mehak अभिषा को लेकर घर के hall में आई। रॉनी और उदय 55" के TV के सामने बड़े वाले sofe पर बैठकर movie देख रहे थे। मेहक रॉनी के सामने आई, और सामने खड़े होकर बोली, "उठो।"
रॉनी अपने पैर से मेहक के घुटने के नीचे छुते हुए उसे इशारा किया, "चल हट।"
मेहक एक तकिया उठाई और रॉनी के माथे में मारी, और बोली, "एक बार बोलते हैं तो सुनाई नहीं देता है।"
रॉनी मेहक को रूखे स्वर में बोला, "तुमको हमेशा वही चीज क्यूँ चाहिए होता है जो मेरे पास होता है ? तुम वहाँ (बगल के छोटे सोफे की तरफ इशारा करते हुए बोला) नहीं बैठ सकती हो ?"
मेहक उसपर धीमे आवाज में चिल्ला कर बोली, "यहाँ मम्मी बैठेगी, तुम उठो।"
अभिषा सोची कि वही बगल के छोटे सोफे में बैठ जाए, पर फिर ध्यान आया कि फिर ये दोनों अगल-बगल बैठकर आपस में लड़ते रहेंगे। इसलिए वह कुछ नहीं बोली। रॉनी उठा, ताकि अभिषा सोफे में आराम से बैठ सके, और अभिषा के बैठते ही बिना समय गंवाए मेहक अभिषा और उदय के बीच बैठ गई। रॉनी यह देखता रह गया और मेहक उसको देखकर अपनी जीत पर मुस्कुराई। रॉनी इस वक्त लड़ने के mood में नहीं था, इसलिए पीछे हटकर छोटे सोफे में जाकर बैठ गया। उसके बाद रॉनी मेहक को बोला, "तुमको हर चीज मुझसे छिनना होता है। वहाँ मैं नहीं बैठ सकता था ?"
अभिषा ताने मारते हुए रॉनी को बोली, "मेरे जाने के बाद तो हर चीज तुम्हारा हो ही जाएगा भैया। मम्मी-पापा और इनके साथ-साथ इनकी सारी संपत्ति भी। इससे पहले थोड़ा सा प्यार क्या लूट लिए आपको तो तकलीफ हो रही है ?"
अभिषा मेहक के माथे में धीरे से मारी। उदय, जो अभी तक इन सभी को ignore करके सिर्फ अपना ध्यान movie पे दिए हुए था, वह property की बात सुनकर बोला, "कोई property किसी को नहीं दूँगा। यह सब मैं अपने बुढ़ापे में सुख से ऐश करने के लिए मेहनत करके कमाकर बनाया हूँ।"
यह सुनकर मेहक अभिषा को मुँह लटकाकर देखती है। और अभिषा कहती है, "अगर बच्चे काबिल हो तो उन्हें अपने parents की संपत्ति की क्या जरूरत ! Parents पढ़ा-लिखाकर बड़ा करते हैं, काबिल बनाते हैं। बच्चों को अपनी काबीलियत साबित करने के लिए खुद अपनी सम्पत्ति बनानी चाहिए। और अगर उन्हें खुद को साबित करने के लिए अपने Parents की संपत्ति, पहचान और सहारे की जरूरत पड़ रही है, मतलब वो काबिल नहीं है।"
मेहक रॉनी को जीभ निकालकर दिखाती है, जिसपर रॉनी दाँतो से नीचे का होठ दबाकर गुस्से में घूरता है। यह देखकर फिर से अभिषा मेहक के माथे पे धीरे से मारती है, पर इन्हें कुछ कहती नहीं है। यही तो हैं भाई-बहन का नोंक-झोंक, जो आगे चलकर ये दोनों याद करेंगे।
रॉनी बोलता है, "आपलोग को कभी यह मन नहीं करता है कि जो आप कमाए हो, जो आप बनाए हो, आपके बच्चे और आगे लेकर जाए ? जैसे बाकी parents अपने बच्चों से चाहते हैं।"
अभिषा रॉनी को कहती है, "अपनी दादी को तुम कुछ ज्यादा ही सुनते हो, इसलिए उनकी तरह सोचते हो।"
उदय topic से भटकाने की कोशिश करते हुए रॉनी से मजाक में बोलता है, "सब समझ रहे हैं। अभी से ही हमें ठगने का कोशिश कर रहे हो ?"
अभिषा थोड़ा रुककर बोली, "ख्वाब तो हमारे parents ने भी हमें लेकर कई देखे ही होंगे। पर हम दोनों अपने autonomy के लिए अपने parents के खिलाफ जाकर शादी किए, और कई काम किए। जब हम खुद दूसरों का control अपने ऊपर नहीं चलने दिए हैं कभी, तो फिर हम तुम्हारे ऊपर अपना decisions कैसे थोपे ? हाँ, जो खुद दूसरों का decisions संस्कार मानकर पूरा करते आए हैं, उन parents का भी अपने बच्चों से expectations पालना स्वाभाविक है।"
उदय इसको complete करता है, "पर दूसरों से की जाने वाली उम्मीदें, उसके लिए बोझ की तरह होती है, जो उसे बांध देती है। हम खुद आजादी के लिए लड़ते आए हैं, हम तुम्हें अपनी इक्षाओं और महत्वाकांक्षाओ में क्यूँ बांधे ?"
उदय अपने दोनों बच्चों को आगे समझाता है, "जब कोई व्यक्ति किसी जानवर को बांधकर उसकी डोर अपने हांथ में लेता है, तो क्या सिर्फ वह जानवर बंधता है ? या वह व्यक्ति भी मानसिक रूप से उस जानवर के साथ बंध जाता है। जब तक उस डोर की वजह से वह जानवर उस व्यक्ति के हिसाब से चल रहा है तब तक तो ठीक है। पर जब वह जानवर अपने हिसाब से चलने लगे, इधर-उधर जाने लगे, और उस व्यक्ति को खींचने लगे, तब ? क्या वह व्यक्ति उसके पीछे-पीछे नहीं खींचा चला जाएगा ? अगर वह जानवर तेज दौड़ा, और वह व्यक्ति उतना तेज पीछे उस जानवर के साथ ना चल पाए तो ? उस डोर के वजह से उसके हाँथ में झटका पड़ेगा। या वह व्यक्ति उस डोर को पकड़े रहे और ना छोड़े तो वह गिर भी सकता है। जिससे उसे चोट लग सकती है। तो उसे खुद को मुक्त रखने के लिए क्या करना चाहिए ? उस जानवर को अपने बंधन से मुक्त कर देना ना...। ठीक इसी प्रकार जब हमलोग अपने बच्चों से महत्वकांक्षाएं पालते हैं, और वो हमारे डोर को तोड़कर अपनी इक्षा के हिसाब से जीना चाहते हैं, तो हमें उनसे निराशा मिलती है। हमारी भावनाओं को चोट पहुंचती है, हमारे ego को। पर हमारे उस निराशा का असली कारण कौन हैं, हम स्वयं ही ना ? इसलिए कहा जाता है कि, अगर हमें स्वयं को उलझाना नहीं है, खुद को मुक्त रखना है, तो दूसरों को अपनी महत्वाकांक्षाओ से, ख्वाबों से मुक्त कर दो। तुम दूसरों को अपनी इक्षाओं के बंधन से मुक्त कर दोगे तो तुम्हारा मन स्वतः ही दूसरों से बनाए उम्मीदों के बंधन से मुक्त हो जाएगा।"
[Reference: "Loose her before you loose everything for her."
उदय उदाहरण देने के लिए बोलता है, "मेरा गला सूख रहा है, बेटा एक glass पानी लाना।"
रॉनी मेहक की तरफ देखता है और उसको बोलता है, "ए, चल जा पानी लाओ।"
मेहक रॉनी को बोलती है, "भैया, पापा तुमको बोले हैं ना। तो तुम जाओ। Tension मत लो, (उसको छेड़ते हुए) एक glass डेगची जितना भारी नहीं होता है।"
तब अभिषा उठते हुए बोलती है, "तुम कोढ़ी लोग, बैठे रहो। मैं ही जाती हूँ।" और वह पानी लाने गई।
तब उदय रॉनी को समझाता है, "मैं खुद उठकर पानी जाकर पी सकता था। पर मेरी महत्वाकांक्षा तुमसे पानी मंगवाने का, जो कि तुम मेहक के भरोसे टाल दिया और तुम्हारी मम्मी को उठकर जाना पड़ा। यही है, मानसिक बंधन, जो किसी पर निर्भर होने की वजह से दो लोगों के बीच बनता है। इसलिए किसी से महत्वाकांक्षा नहीं रखता चाहिए।"
इसपर अभिषा पानी लाते हुए, उदय को ताना मारते हुए बोलती है, "और अपना काम खुद करना चाहिए। किसी और को नहीं बोलना चाहिए...। तुम्हारे पापा बस इसी तरह बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, पर खुद छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी दूसरों पर खुद को dependent रखते हैं।"
होते हैं, ऐसे आलसी लोग भी होते ही हैं। जो बोलते कुछ है, और करते कुछ है। ये लोग बैठ कर movie देख रहे हैं ? तभी से बकर-बकर किए जा रहे हैं। खैर इन्हें बैठ कर आराम से TV देखने दो। मैं कृष्ण की लिखी इनकी कहानी आपको सुनाता हूँ।
जब दो दिन की मेहक को लेकर अभिषा और उदय अपने घर पहुंचे, और उदय की माँ अभिषा के गोद में किसी अंजान की बच्ची को देखी, तो वह आग बबूला हो गई। वह गुस्से में पूछी, "यह किसकी बच्ची है?"
तब ढाई साल का रॉनी खुशी से झूमता हुआ उनके पास जाकर बोला, "दादी, यह मेरी बहन है।"
उदय की माँ तुरंत समझ गई, कि उसका मजाक कैसे उसी पे भारी पड़ रहा है। छोटे रॉनी को कुछ समझ नहीं था, इसी का फायदा अभी तक वो उठा रही थी रॉनी को बहकाकर, उदय और अभिषा के सामने रॉनी को जिद्द करवाकर, उनको दूसरे बच्चे के लिए; और इसी का फायदा अब अभिषा और उदय उठा रहे थे, किसी अनाथालय से लाए बच्ची को अपनाकर। उदय की माँ यह समझ गई कि रॉनी को अपने और पराए का भेद नहीं है इसलिए वह उसे अभी नहीं समझा सकती है कि इस तरह किसी को भी बस मान लेने से कोई उसकी बहन नहीं बन जाएगी। इसलिए वह उदय को डांटते हुए बोलती है, "यह किसकी बच्ची उठा लाए हो ? जिसकी है जाकर वापस करके आओ।"
उदय उनको कहता है, "माँ, किसी की नहीं बल्कि अब यह हमारी बच्ची है। अगर कोई इसे अपना मानने वाला होता तो यह हमें अनाथालय में नहीं मिलती।"
उदय कि माँ हैरान होते हुए गुस्से में बोलती है, "तो तुम अनाथालय गया था, बच्चा गोद लेने ?(अभिषा के तरफ उंगली दिखाते हुए) या इसको दूसरा बच्चा नहीं करना है इसलिए यह तुमको अनाथालय लेकर गई थी ?"
उदय जवाब दिया, "मुझे नहीं करना है दूसरा बच्चा, और आप दो दिन से मेरा दिमाग खराब की हुई हो।"
उदय की माँ उससे रोष में बोलती है,"क्यों ? क्या दिक्कत है तुमको दूसरा बच्चा करने में ?"
उदय जवाब में थोड़े ताव में बोलता है, "खाली बच्चा पैदा करने से होता है या उसका ढंग से परवरिश भी करना पड़ता है ? मुझे कब करना है, नहीं करना है, क्या मैं उतना सक्षम भी हूँ कि नहीं, यह सब कभी कुछ आप जानने का कोशिश की ?"
उदय की माँ बोलती है, "तो हमलोग नहीं थे ? बाकी लोग कैसे करते हैं ? अभी कैसे पाल रहा है ? और जिसको उठा कर लाया है, उसका अब कैसे पालन-पोषण करेगा ?"
उदय जवाब देता है, "कर लूंगा जैसे-तैसे। जैसा आप चाहती हो।"
उदय की माँ चिल्लाते हुए बोलती है, "तुम जिद्द करेगा तो तुम्हारी मां हूँ मैं। मैं तुमसे भी ज्यादा जिद्दी हूं। इसे वापस करके आओ।"
उदय भी ताव में बोलता है, "नहीं। कम से कम आप इसी को देखकर मुझसे आगे से बच्चा करने का जिद्द नहीं करोगी।"
उदय की मां अपने गुस्से को पीते हुए बोलती है, "ठीक है, अब से नहीं बोलूंगी दूसरा बच्चा करने के लिए। जाओ इसको वापस करके आओ।"
उदय जवाब दिया, "नहीं, यह एक बार आ गई तो यह अब वापस नहीं जाएगी। यह अब हमारी बच्ची है।"
अब उदय की मां का सब्र का बांध टूटा जा रहा था। वह गुस्से में अभिषा और अभिषा के गोद में Mehak को देखती है। यह देखकर रॉनी अभिषा से Mehak को अपने गोद में लेने के लिए खींचने लगता है। अभिषा उसे डर से नहीं देती है, कि वह ठीक से संभाल नहीं पाएगा। पर वह जबरदस्ती खींचता है, "मम्मी, दो ना।" Mehak को ज्यादा तकलीफ ना हो इसलिए अभिषा थोड़ा ढील देते हुए छोड़ती है, और रॉनी जैसे-तैसे Mehak को अपने गोद में लेकर जोर से पकड़कर बोलता है, "यह मेरी बहन है। मैं किसी को ले जाने नहीं दूँगा।"
पर रॉनी के असहज पकड़ से Mehak को तकलीफ होती है, और वह रोने लगती है, तब अभिषा उसे वापस अपने गोद में लेते हुए बोलती है, "देखो, रुला दिया ना ?" और Mehak को वापस अपने गोद में ले लेती है।
जब शाम हुई और उदय के पिताजी घर वापस लौटे, तो उन्हें उदय की माँ, बहन और भाई, तीनों उदय और अभिषा के इस काम के बारे में शिकायत किए। वो बुजुर्ग आदमी थे, समझदार थे। उन्हें भी उदय और अभिषा का यह काम पसंद नहीं आया, उन्हें भी गुस्सा आया, पर वो यह बात बहुत अच्छे से समझ रहे थे कि जवान बेटे और बहु के ऊपर गुस्सा निकालने से कुछ गलत हो सकता है। इससे पारिवारिक रिश्तों में दरारें पड़ सकती और और घर टूट सकता है। इसलिए वो उदय को गुस्से में तुरन्त तो बुलाए पर उससे शांति से बात किए। वो पूछे कि, "तुम इस बच्ची को हमसे बिना पूछे क्यों लेकर आए हो ?"
उदय इसपर अपना जवाब दिया, "आप तो देख ही रहे थे कि दो दिन से मुन्ना कितन तंग किया हुआ था। इसको बस डराने लेकर गए थे अनाथालय, ताकि आगे से यह इस तरह जिद्द ना करे।"
उदय के पिता गुस्से में तो थे, वह सब्र नहीं कर पा रहे थे, पर शांति से ही पूछे, "पर तुम इस बच्ची को आखिर लाए क्यूँ ?"
उदय इसपर जवाब दिया, "यह बच्ची सिर्फ दो दिन की है, और इस बच्ची को वहां कोई छोड़ गया था।"
उदय के पिता बोले, "तो उसे कोई और गोद ले लेता, तुम क्यों उठा लाए ?"
इसपर उदय बोला, "इसे जब मैं देखने गया तो यह मेरा उंगली पकड़ ली, और छोड़ ही नहीं रही थी। मुझे भी इसे देखकर प्यार आ गया, इसलिए मैं इसे ले आया।"
उदय के पिता यह सुनकर अपने गुस्से को पी गए। और फिर वह बोले, "किसी बच्चे को पालना कितना मुश्किल है, तुम मुन्ने को देख ही रहे हो। इसपर तुम किसी का बच्चा गोद ले आए हो; तुम्हें, इस बच्ची को, बहु को, हम सभी को कितना कुछ झेलना पड़ सकता है, तुम्हें इसका कोई अंदाजा भी है ? क्या तुम इसे वापस नहीं कर सकते हो ?"
उदय बोला, "नहीं पापा, अगर हम यह करेंगे तो आप ही सोचिए, क्या इसे लाकर वापस अनाथालय में भेजना ठीक होगा ? मुझे माफ करिए कि मेरी वजह से अपलोग को हमेशा परेशानी होती है। पर अब जो होगा हम उसे देख लेंगे।"
उदय के पिता समझ जाते हैं कि उदय Mehak को वापस नहीं करने वाला है। पर वह आखिरी कोशिश करते हुए बोलते हैं, "इसको देखकर समाज के लोग कई सारी बातें बनायेंगे। लोगों के मुंह को तो तुम जानते ही हो। वो तिल का ताड़ कर देते हैं। इस बच्ची को कितना तंग करेंगे। और ये सब कुछ, जो तुम्हारा है, और तुम्हारे बाद तुम्हारे बच्चों का होना चाहिए था, वो इसके साथ भी बांटना होगा।"
इसपर उदय गंभीर होकर जवाब देता है, "पापा, लोग क्या कहेंगे, मुझे इसकी परवाह नहीं है। आपलोग क्या कहेंगे या करेंगे मेरे लिए बस यह मायने रखता है कि इसके बाद मैं क्या करूंगा।"
इसपर उदय के पिता यह इशारा समझ जाते हैं कि यह लड़का उदय एक बार पहले भी घर से भाग चुका है अभिषा के लिए, अगर इसपर दबाव बनाया जाएगा तो यह फिर से ऐसा कुछ कर सकता है। बच्चा करने का दबाव बनाया गया तो वह अनाथालय से बच्ची उठा लाया। इसका कोई भरोसा नहीं कि यह कब क्या कर दे। इसलिए उदय के पिता इसके बाद कुछ नहीं बोले। पर उदय उन्हें आगे समझाया, "पापा, हमारी दो तरह की विरासत यानी कि सम्पत्ति होती है- पहली हमारी कमाई को खर्च करने के बाद बचा हमारा धन और दूसरा हमारा ज्ञान, काबीलियत, हमारा व्यक्तित्व और हमारा व्यवहार। जो हमारे रिश्ते से जन्म लेगा वो मेरी अर्जित संपति, और मेरी विरासत में पाई गई सम्पत्ति का वारिस स्वतः ही हो जाएगा। लेकिन जो मेरा ज्ञान है, व्यक्तिव है, व्यवहार है, जरूरी नहीं कि वो उसे भी ले पाए। इसका rightful heir(उत्तराधिकारी) तो सिर्फ वह ही बन सकता है जो इसके काबिल होगा। जरूरी नहीं कि मेरा खून बड़ा होकर इस काबिल हो ही। और यह भी हो सकता है कि इसके काबिल कोई और भी हो। वह मेरे खुद के बच्चे के अलावा, यह बच्ची भी हो सकती है, मेरे भाई-बहन के बच्चे भी हो सकते हैं, जैसे teachers के ज्ञान का असली वारिस उसके सबसे अच्छे विद्यार्थी होते हैं, हो सकता है कि मेरे गली-मोहल्ले में खेलने कूदने वाले मेरे आस-पड़ोस के बच्चे, या मेरे इतने students रहे बच्चों में मुझे ideal मानने वालों में से कोई भी हो सकता है। सबसे अच्छी बात है कि यह विरासत जिसको भी मिलेगा, इससे यह घटेगा नहीं बल्कि अगर कोई दूसरा इसके काबिल होगा, कोई जितना काबिल होगा उसे उतना हिस्सा मिलेगा।"
उदय के पिता अपना माथा को घुमाते हुए बोलते हैं, "पर ये सब संपत्ति तो बंटेगा ना ?"
इसपर उदय बोलता है, "आपको पता है कि मैं इन चीजों को इतना महत्व नहीं देता हूँ। अगर मैं उसे काबिल बनाने में कामयाब होऊंगा तो वह मुझसे भी ज्यादा, वह आपसे भी ज्यादा बड़ी संपत्ति अपने दम पर खड़ी कर देगा, और अगर नालायक निकलेगा तो वो आपकी भी पूरी कमाई अपने ऐशो-आराम में फूंककर फिर पूरी जिंदगी हमपर बोझ बनेगा।"
उदय के पिता समझ जाते हैं कि इसको समझा पाना उनके बस का अब नहीं रहा। उदय अपने आखिरी line पूरा करता है, "पापा, मै आपको इतना परेशान किया हूँ, कभी आपका बात नहीं मानता हूँ, हमेशा सवाल करता हूँ, और अपनी मनमानी करता हूँ। आप चाहो तो आप मुझे बेदखल करके ये सब मेरे छोटे को दे सकते हो। पर आप अभी तक ऐसा कुछ कभी बोले भी क्यों नहीं ? क्या यह सिर्फ इसलिए कि आपको मुझसे बहुत प्यार है, या इन सभी के बाद भी आपके नजर में मै इनके काबिल अभी भी हूँ ?"
उदय के पिता बात को घुमाने के लिए बोले, "बच्चे भले ही नालायक हो, पर बड़े अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भागते। अच्छे माँ बाप तब भी अपनी संपत्ति को अपने बच्चों में बराबर बांटते है, चाहे वो उसे बर्बाद कर दे, इस उम्मीद में कि शायद वो सुधर जाए।"
पर यह जवाब उदय को satisfy नहीं किया। वह बोलता है, "क्या आपको लगता है कि मैं आपकी विरासत के काबिल नहीं ? अगर ऐसा है तो आप बोल दो। मैं खुद ही सबकुछ छोड़ दूँगा।"
इसपर झुंझलाकर उदय के पिता उससे बोलते हैं, "छोड़ दूंगा, छोड़ दूंगा करते रहते हो। अगर नहीं चाहिए तो खुद क्यों नहीं छोड़ देते हो, मुझसे ऐसा क्यों कहलवाना चाहते हो ?"
और यह कहकर वो उठ कर वहां से चले जाते है। पर उदय यह सुनकर मुस्कुराता है। वह अपने पिता को समझाता है कि वह बस ऐसा उससे irritate होकर बोल रहे हैं। क्योंकि वह यह बात जानता था कि वह एक काबिल बेटा था। वहां सभी को लेकर सोचता था, वही सभी के भलाई के लिए किसी के भी against हो जाता था। वह अच्छे भविष्य का ख्वाब देखकर जिद्द पर अड़ता था, और किसी भी हद तक चला जाता था, इसलिए वह गलतियां नहीं करता था। क्योंकि गलतियां तो उनसे होती है जो बिना समझे बस देखा-देखी करते हैं, जैसे उसके छोटे भाई-बहन, कि अगर उदय को कुछ मिल रहा है तो उन्हें भी चाहिए। या उन्हें नहीं मिल रहा तो वो उदय को भी नहीं मिलने देंगे। जैसे कि आजादी, अपने पसंद और अपने हिसाब से जीने की, जैसे उदय अपनी मनमानी करता है और उसे कोई कुछ नहीं कहता। जबकि उसके छोटे भाई-बहन जो उसका देखा-देखी करते थे, वो उदय की तरह clear objective and vision ना होने के कारण अक्सर गलतियां करते थे, और इसलिए उनको बात-बात पर टोका जाता था। जिसके चलते वो हमेशा ही उदय से जलते थे कि सिर्फ उदय को छूट मिलती है, और उन्हें दबाया जाता है।
जब उदय की उससे पिता से बातें हो रही थी तब अभिषा भी पीछे खड़ी होकर सुन रही थी। उसे लग रहा था कि उसके बारे में भी कुछ बोला जाएगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अभिषा के ससुर उसको कुछ नहीं बोले। उदय सब संभाल लिया। यहां तक कि Mehak के identity के बारे में भी बात नहीं हुआ। और नहीं हुआ यह अच्छा हुआ। क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती थी। क्या हो सकता था ? शायद इस घर के भी वो लोग जो Mehak को अपनाना नहीं चाह रहे थे, वो Mehak को वापस उसके परिवार को सौंपने की कोशिश करते। फिर बात वहीं पर पहुंच जाती, जहां से मेहक को नई जिदंगी देने के लिए अनाथालय में उसकी मां छोड़ आई थी। इसलिए अच्छा हुआ कि इस बारे में कोई जिक्र नहीं हुआ और यह आगे भी नहीं ही हो तो अच्छा।
जब रॉनी थोड़ा बड़ा हुआ, और वह school जाने लगा, उदय और अभिषा शहर में shift हुए, वह कैसे shift हुए और क्या-क्या उन्हें झेलना पड़ा वह आगे के chapter में, इसमें सिर्फ Mehak और Rony के life की important सीख है। क्योंकि यह Chapter तो रक्षाबंधन special है ना...। तो जब अभिषा और उदय शहर में रहने लगे। छुट्टियों में रॉनी अपने दादा-दादी के पास जाने लगा। लंबी छुट्टियों में आधा समय दादा-दादी के पास और आधा समय नाना-नानी के घर जाता था। और जहां भाई जाता वहां उसकी बहन भी जाती थी। Mehak को नाना-नानी बराबर प्यार करते थे, जितना वो Rony को करते थे। पर दादा-दादी के यहाँ सिर्फ Rony को प्यार मिलता था, क्योंकि वह उनका अपना खून था। Mehak को बस वैसे ही treat मिलता था जैसे गली में खेलने वाले बाकी बच्चों को मिलता है। इसलिए जब वह teenage पहुंची, उसे यह चीजें समझ आने लगी, तो वह दादा-दादी के घर जाना बंद कर दी। सिर्फ वह अपने नाना-नानी के घर जाने लगी, जब तक कि उसे यह बात पता नहीं चला कि वह वास्तव में किसकी बेटी है, और क्यों नाना-नानी उससे इतना प्यार जताते हैं। जब यह पता चला तो वह वहां भी जाना कम कर दी। क्योंकि उसे फिर उनके आंखों में भी प्यार तो दिखता था, पर साथ में उसके लिए तरस भी दिखता था। पर यह सब तो बाद की बातें हैं। इससे पहले जब रॉनी बहुत छोटा था, और वह तीसरे- चौथे class में था, तब उसके life में बहुत ही important वाकिया हुआ।
Mehak को घर लाने के बाद जब रॉनी खेलने के लिए बाहर पड़ोस में निकलता था, तो उसे तरह-तरह का बात सुनना पड़ता था-
"जा ना, अपनी बहन के साथ खेल ना..."
"किस कचड़े से उठाकर तुम अपनी बहन को लाए हो ?"
"हमलोग कचड़ा घर लाने वाले के साथ नहीं खेलते।"
...
बच्चे जो भी बोलते हैं, वह उनका जुबान नहीं होता है। बच्चे जो देखते हैं, सुनते हैं, उसे ही वो दोहराते हैं। उन बच्चों के इर्द-गिर्द लोग इस तरह की बातें करते होंगे, तभी तो वो छोटे-छोटे बच्चे ऐसी गंदी बातों को सीखे। हो सकता है कि कुछ लोग उदय के घरवालों से भी इस तरह की बातें करते होंगे, या उदय के घर के वो सदस्य जो Mehak को पसंद नहीं करते थे, वो लोगों से इस तरह की बातें करते होंगे। पर किसी की भी हिम्मत उदय और अभिषा के सामने यह सब बोलने की नहीं थी। जब शुरू-शुरू में रॉनी यह सुना, तो वह उनसे झगड़ा किया, मार खाया और रोते हुए घर आया। तब अभिषा रॉनी को प्यार से समझाई, "तुम दूसरों की बातों पर ज्यादा ध्यान मत दो। वो जलते हैं तुमसे, तुम्हारी इतनी प्यारी बहन है, इसलिए तुमको ऐसी बात बोलते हैं।"
पर अभिषा का यह समझाना तो सिर्फ तभी तक काम आना था जब तक कि रॉनी बाहर खेलने जाता था, जब Mehak जाना शुरू की तब ? जब Mehak थोड़ी बड़ी हुई और यह सुनकर रोते हुए घर आई, तब अभिषा उसे समझाई, "देखो, सभी लोग भगवान से अपने लिए बच्चे की प्रार्थना करते हैं, और उन्हें भगवान जो बच्चा देते हैं, जैसा देते हैं, उसी में उनको संतोष करना पड़ता है। मैं और तुम्हारे पापा ऐसा नहीं किए, हमलोग उनसे अलग किए। तुम्हारा यह बड़ा भाई हमको बहुत परेशान कर रहा था, यह गंदे बच्चों के साथ रहकर गंदा बच्चा बन रहा था। इसलिए हमलोग भगवान को बोले कि हमको अपनी पसंद का अच्छा बच्चा चाहिए। सबलोग को जो मिलता है वो उसी में संतुष्ट रहते हैं, पर हमलोग तुमको अपने से specially चुन कर लाए हैं ना, इसलिए वो लोग जलते हैं और ऐसा बोलते हैं।"
वैसे तो यह बातें बहुत गहरा अर्थ देता है, पर उस उम्र के बच्चे के दिमाग में सिर्फ यह बात बैठा कि, "सबलोग को जैसा मिलता है, वैसा अपनाना पड़ता है। पर उसके मम्मी-पापा उसको specially चुन कर लाए हैं। इसलिए वह बहुत special है।"
बच्चों में 'अहं' बहुत होता है, Mehak वहां से रॉनी को चिढ़ाना शुरू की, "तुम गंदा बच्चा था, बहुत बदमाशी करता था, इसलिए मम्मी-पापा मुझे specially चुनकर लाए हैं।"
और फिर वहां से इन दो भाई-बहन के बीच का नोंक झोंक शुरू हुआ। पर बच्चों में 'क्रोध' भी बहुत जल्दी आता है, रॉनी और Mehak कभी-कभी झगड़ भी जाते थे। तब एक दिन अभिषा उन दोनों को समझाई, "देखो जब कोई रिश्ता किसी को किस्मत से मिलता हैं ना, तो उसे लगता है कि हम उसे छोड़ नहीं सकते हैं, इसलिए वो चाहे जो करेगा, हम उसको झेलेंगे। क्योंकि उसके अंदर यह डर नहीं होता है कि हम उसे कभी छोड़ सकते हैं। पर तुम दोनों तो जानते हो, कि तुम दोनों के मम्मी-पापा वैसे नहीं है। अगर तुम दोनों आगे से ऐसे झगड़ा करोगे, बदमाशी करोगे, हमें तंग करोगे तो तुम दोनों को अनाथालय वापस छोड़ देंगे। बोल देंगे भगवान जी से कि रख लो इन दोनों को वापस, हमें नहीं चाहिए इनमें से कोई भी।"
रॉनी यह सुनकर थोड़ा डरा, क्योंकि अनाथालय का किस्सा उसे फिर से याद आ गया। और Mehak को भी थोड़ा डर लगा, कि वैसे भी कोई उन्हें पसंद नहीं करते हैं और अब उसके मम्मी-पापा भी नाराज हो जाएंगे। इसके बाद वो दोनों आपस में अगर कभी झगड़ते भी, तो जैसे ही वो अभिषा और उदय को, या बाकी किसी को इन्हें घूरते हुए देखते, वो दोनों सीधे और शरीफ बच्चों की तरह खड़े हो जाते और कहते, "हमलोग तो बस मजाक-मजाक में बस खेल रहे थे। हमलोग झगड़ थोड़ी रहे हैं।"
आमतौर पर माता-पिता को अपने बच्चों से 'मोह' हो जाता है। जिसके कारण उनके बच्चे चाहे कुछ गलत ही क्यों ना करे, वो ना ही उन्हें डांटते हैं कि कहीं उन्हें बुरा ना लगे, और ना ही उन्हें मारते है। वो उन्हें कुछ कहते तक नहीं और ना ही उनकी गलतियों को point-out करते हैं। ताकि उन्हें ना ही शारीरिक और ना ही कोई भावात्मक तकलीफ हो। अगर अभिषा के जगह यहां पर पूर्वी होती तो शायद वैसी होती, but अभिषा वैसी माँ नहीं थी। और उदय कैसा पिता था, यह तो आप पिछले chapter में पढ़ ही चुके हो। अब एक ही बात कितना बार repeat करूं।
कुछ बातें बड़ों के भी मन में गहरे घाव करती है। वो बच्चों के दिमाग में तो एक खास तरह का असर करता ही है। जब रॉनी और Mehak थोड़ा और बड़ा हुए, आपस में झगड़ते हुए, वह बार-बार लोगों से यह सुनते हुए कि "Mehak उसकी अपनी बहन थोड़ी ना है। उसके मां-बाप उसे गोद लिए हैं।" तब वो दोनों अभिषा को जाकर एक दिन पूछे कि "लोग ऐसा क्यों कहते हैं ?" इस बात को अगर अभिषा और उदय छुपाने या झुठलाने का कोशिश करते, तो वो कब तक कर पाते। जब तक वो दोनों बड़े नहीं होते बस तभी तक ना। जिस दिन रॉनी और अभिषा को यह सच पता चलता कि बच्चे वास्तव में कैसे पैदा होते हैं, उस दिन तो उनके माँ-बाप उन्हें झूठे ही लगते। इसलिए वो सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर उन्हें समझाई, "लोगों को लगता है कि जो बच्चे घर में होते हैं, बस वो ही अपने होते हैं। वो यह जानते नहीं है ना कि वो अपने पसंद से भी बच्चों को चुन के ला सकते हैं। वो सोचते हैं कि जिनको अपनी पसंद से चुन कर लाया जाता है वो अपने नहीं होते हैं। इसलिए वो ऐसा बोलते हैं।"
दोनों बच्चे अभिषा को पूछते हैं, "उन्हें ऐसा क्यूँ लगता है मम्मी ?"
अभिषा उन्हें प्यार से समझाती है, "लोगों को यह समझ नहीं होता है कि रिश्ते बनते कैसे हैं। जब तुम दोनों school जाते हो, जो बच्चे तुम्हें पसंद आते हैं उनसे तुम दोस्ती करते हो। और जिनको तुम पसंद नहीं करते हो, वो अगर तुम्हारे दोस्त के भाई-बहन हो, या दोस्त ही हो, क्या तुम उनसे झगड़ा करते हो ? तुम अकेले में उनसे बात नहीं करते होगे, पर जब तुम्हारे दोस्त साथ में होंगे तब उनके साथ भी खेलते हो ना...? फिर अगर वो अच्छे से behave करते हैं तो तुम उनसे भी दोस्ती कर लेते हो। पर अगर ढीठ बने रहे, तो उनसे दोस्ती तुम रखते हो ? ऐसा इसलिए कि दोस्ती, रिश्ते सभी इंसान के व्यवहार से बनते हैं। पर सब लोग इस बात को नहीं समझते हैं, इसलिए उन बेवकूफ दोस्तों की तरह ढीठ बने रहते हैं। इसलिए जब बड़े होते हैं ना, तो वो झगड़े कर लेते हैं, अलग-अलग रहने लगते हैं। अगर रिश्ता घर में पैदा होने से बनता, तो हमेशा साथ रहते ना ? कोई तुमसे आके बोलेगा कि तुम अपने दोस्तो के साथ मत बैठो, उनके साथ मत खेलो, उनके साथ lunch मत करो, तो तुमलोग मानोगे ?"
तब Mehak पूछती है, "पर मम्मी, हम भी तो अलग रहते हैं, दादा-दादी के साथ नहीं रहते हैं।"
अरे वो तो तुम्हारे पापा के काम और तुमलोग की पढ़ाई के लिए ना...। क्या तुमलोग का वहां चूल्हा अलग जलता है ? या हम छुट्टियों में वापस दादा-दादी के पास उनसे मिलने नहीं आते हैं ? क्या हमलोग जब आते हैं तो अलग खाना बनाते हैं ?"
इसपर Mehak बोलती है, "पर हमलोग अलग कमरे में रहते हैं ना ?"
अभिषा समझाती है, "अब इतने सारे लोग एक ही bed पे कैसे सोएंगे ? उलटेंगे- पलटेंगे तो दिक्कत नहीं होगा ? उधर से रॉनी लात मारेगा, दादी Bed के नीचे, फिर दादाजी रॉनी को खूब मारेगी। फिर फुआ पलटेगी और मेहक के ऊपर, फिर Mehak रोने लगेगी। इसलिए सभी लोग का अलग-अलग कमरा है और सभी अलग-अलग सोते हैं।"
उस पल के लिए तो वो दोनों लोगों की बातों को भूल गए। पर जब रक्षाबंधन का दिन आया, तो शैतान Mehak इस जिद्द में अड़ गई कि वह उस दिन रॉनी से तब तक उपवास करवाएगी जब तक कि उसे भूख ना लगे। तब रॉनी भूख से करे तो क्या करे ! वह उदय के पास गया जो news paper पढ़ रहा था। वह news paper का वह पन्ना लिया जिसमें Sudoku रहता है, और उसे table पे रखकर भरने लगा। News Paper पर कृष्ण की poetry छपी थी-
"_बहन के लिए इँतजार_
कभी खुद को, कभी राहो को,
देखता हूँ मैं, और सोचता हूँ उदास क्यू हैं।
काम में मन ना लगे तब, सोचता हूँ
तू यहाँ हैं और कहीं और तेरा ध्यान क्यू हैं।
सभी के हाथो को देखकर सोचता हूँ,
खाली तेरा हाथ क्यू हैं।
फिर बहना ने आकर राखी बाँधी,
पर लोगो ने कहा अपनी बहन की बात ही कुछ और हैं,
मैं फिर सोचता हूँ, लोग कहते ऐसे बात क्यू हैं।"
उदय रॉनी के खाली हाँथ को देखकर Mehak को बुलाया और डांटते हुए रॉनी के हांथ में राखी बांधने के लिए बोला। और उसे समझाया, "किसी को इस तरह परेशान करना गलत बात है। और तुम्हें भी भूखे रहने की जरूरत नहीं है। फल और शरबत अंदर रखा होगा, जाकर खा लो। और जाकर मम्मी और फुआ की मदद करो, पुड़िया तलने में।"
जब भी रॉनी घर आता, तो मौका पाकर उसकी बुआ और दादी उसे 'ईर्ष्या' दिलाने की कोशिश करते थे कि Mehak उसका हक खा रही है। उसके माता-पिता की संपत्ति, प्यार, समय, सब रॉनी से छीन रही है। पर उदय और अभिषा Mehak और रॉनी, दोनों को ही समान रूप से प्यार करते थे। इसलिए रॉनी के ऊपर इन बातों का कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ा । पर जब Mehak अबोध थी, उसके अंदर 'ईर्ष्या' जाग गया कि दादा-दादी, बुआ और सभी रॉनी को प्यार करते हैं उसे नहीं। इसलिए वह इस 'लोभ' में कि अगर वह सभी के सामने अच्छी बच्ची बनकर रहेगी तो वो उसे भी प्यार करने लगेंगे, वो उनकी एक आवाज में सब सुनने लगी, हर बात को मानने लगी, वो जो भी बोलते, वो करती। शुरू में यह अहसास अभिषा को नहीं हुआ, पर जब वह यह देखी कि सभी Mehak की मासूमियत का फायदा उठा रहे हैं, और उससे नौकरों की तरह हर काम करवा रहे हैं, वह गुस्सा गई, और Mehak को यह सब करने से रोकी। तब Mehak अभिषा से पूछी, "क्यों मम्मी ? पापा कहते हैं कि हम अगर अच्छे बच्चे बनेंगे तो हर कोई हमें पसंद करेंगे। मैं भी तो अच्छी बच्ची बनने की कोशिश कर रही हूँ।"
बच्चों का perspective सिर्फ gray shades ही देखता है। उनकी नजर में चीजें या तो अच्छी होती है, या फिर बुरी। वो गिरगिट जैसे इंसानों के बदलते रंगों को नहीं समझ पाते हैं। इसलिए अभिषा उसको समझाती है कि, "अच्छी बच्ची बनने का और अच्छा व्यवहार रखने का यह मतलब नहीं होता है कि किसी का हर बात को मानना और उसके हर इक्षा को पूरा करना चाहिए। वह इंसान और उसके इरादे गलत भी तो हो सकता है। अच्छे बच्चे का अच्छा व्यवहार रखने का मतलब होता है कि वो बड़ों का सम्मान करे, उनसे misbehave ना करे, उनकी बात सुने। मगर वो जो बोलते है वो तुम्हें गलत लगता है, उससे तुम्हें बुरा लगता है, तुम्हारा दिल वो सब करने को नहीं करता है, तो तुम्हें वो सब करने की जरूरत नहीं है।"
इसपर हँसते हुए और बात को हँसी में उड़ाते हुए Mehak बोलती है, "पर ऐसा तो है ही नहीं। मैं तो अपने मन से वो कर रही थी। मुझे पसंद नहीं होता तो मैं थोड़ी ना करती, आप बहुत tension लेती हो।"
यह कहकर Mehak हँसते हुए अभिषा के नाक को छूकर वहाँ से चली गई। पर अभिषा Mehak की आँखों और चेहरे में देख कर यह समझ गई कि उसे यह सब करना अच्छा नहीं लग रहा था। और वह अपनी feelings को admit नहीं कर रही है।
Patriarchal समाज में माताएं शुरू से अपनी बच्चियों को यह सीखती है कि उन्हें भाइयों के सुविधाओं का ख्याल रखना है। इसलिए बचपन से ही बहने भाइयों की हर बात सुनती है, उनका हर काम करती है। पर क्योंकि रॉनी और Mehak का परिवार वैसा नहीं रहा, तो Mehak रॉनी का कोई बात नहीं मानती थी। जहां आमतौर पर बहने भाइयों के गुस्से से डरती है, Mehak गुस्सा दिलाती थी; जहां बहने रोने लगती है भाइयों के डांटने पर, Mehak रॉनी को पीट देती थी; वो मनाने और खुश रखने का कोशिश करती है भाइयों को ताकि वो भाई उनका काम करे, Mehak रॉनी को धमकाती है। 'काम'(lust) होता है भाइयों को सुख को भोगने का, मेहक ऐसा कोई सुख कभी Rony को भोगने ही नहीं देती थी।
जब रॉनी और Mehak किशोरावस्था में थे, तो रॉनी Mehak के life को control करने का कोशिश करने लगा। क्योंकि उसे लगता था कि कहीं Mehak किसी गलत संगत में ना पड़ जाए। As a brother उसका फिक्र एक हद तक सही भी था। पर Mehak को रॉनी का यह behavior बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। एक दिन Rony और Mehak झगड़ते हुए घर आए। Mehak अपने दोस्तों के साथ movie देखने के लिए जाना चाहती थी, और रॉनी उसे उनके साथ अकेले जाने नहीं देना चाहता था। Mehak रॉनी को बोली, "मुझे कोई खिलौना या अपना पालतू जानवर मत समझिए, जिसे आपके खेलने के लिए कहीं से उठा कर ले आए हो। जिसपर आप जैसे चाभी घुमाइएगा तो वो नाचने लगेगी।"
जब Mehak यह बोली तब अभिषा उदय के साथ hall में बैठकर TV देख रही थी। वो यह सुन ली, वह आई और Mehak को एक जोर का खींच के थप्पड़ दी, और Rony को डांटी, "क्यों लड़ते रहता है इससे ? अब क्या हो गया जो इसको तंग कर रहा है ?" और फिर Mehak के तरफ मुड़कर बोली, "माफी मांगो इससे।"
Mehak बोली, "मैं क्यूँ मांगू माफी ? हुकुम तो मुझपर अपना वो चलाता रहता है।"
अभिषा डांटते हुए बोलती है, "क्योंकि तुम इससे बद्तमीजी से बात कर रही हो।" और रॉनी के तरफ मुड़कर बोली, "और तुम भी इससे माफी मांगो।"
रॉनी कहता है, "आप चाहे हजार बार इससे माफी मांगने बोलो, लेकिन पहले यह तो बता दो कि मेरी गलती क्या है ? ये अकेले बाहर मटरगश्ति करने जा रही है..."
Mehak बीच में बात काटते हुए बोलती है, "तो क्या आपको भी साथ चलना है ?"
यह सुनकर अभिषा गुस्से से Mehak को घूरी, और तब उदय बोला है, "तुम्हारी गलती यह है कि तुम अपनी बहन के life को अपने हिसाब से control करने की कोशिश कर रहे हो।" और फिर Mehak को बोला, "और तुम्हारी गलती यह है कि तुम्हारा भाई तुमको लेकर ptotective है, तुम उसके इस emotion का कद्र नहीं कर रही हो बल्कि बद्दमीजी करते हुए ऐसा कुछ उसको बोल रही हो जो तुम्हें कभी नहीं बोलना चाहिए।"
हाँ, Mehak जो बोली, वो तो सच में किसी को भी hurt कर सकता है। पर उसके इस behaviour का कारण सिर्फ उसकी नासमझी नहीं थी। उसे बचपन से ऐसा माहौल मिला कि वह इस बात को casually लेते आई। इसलिए casually सोचकर बोल दी। रॉनी इसे भले ही hurt होता था, पर यह सोचकर कभी नहीं कहता था कि सभी इस बात को, especially Mehak भी इस बात को कि उसे गोद लिया गया है casually लेती है, तो यह casual ही होगा, और वो बस इनपर over react कर रहा है। पर इसको यह बात hurt करता था। क्योंकि सगी बहन ना होने के बावजूद Rony उसे अपनी बहन की तरह दिल से प्यार करता था और फिक्र करता था।
उदय उन दोनों को बोला, "तुम दोनों में से कोई कहीं नहीं जाएगा, तुम दोनों अभी बैठो मेरे सामने यहां पे।"
Mehak और रॉनी दोनों आते हैं और सामने बैठते है, उदय Mehak से पूछा, "क्या तुम हमें अपना नहीं मानती हो ? क्या तुम्हें ऐसा लगता है तुम इस परिवार की नहीं हो ? तो फिर तुम इस तरह की बातें क्यों करती हो जो किसी को hurt करे ?"
Mehak बोलती है, "देखिए ना पापा, भैया मुझपर हमेशा हुकुम चलाते रहता है- ये लाओ, वो करो, यहां मत जाओ, उसके साथ क्यों रहती हो..."
उदय रॉनी को समझाते है, "तुम अपनी बहन की बहुत फिक्र करते हो, यह हम समझते हैं। पर अगर ऐसा ही कुछ हम तुम्हारे साथ करने लगे तो क्या तुम्हारे लिए अच्छा होगा ?"
रॉनी बोलता है, "देखिए ना, ये पूरा लड़कों की तरह behave करती है। जिसको मन उसको friend बना लेती है, जहां-तहां झगड़ लेती है,..."
Mehak instantly बोलती है, "तो तुम क्या चाहते हो ? मैं कोमल सी, मुलायम सी, डरपोक बनकर घर में बैठी रहूँ ? तुम्हारे लिए लजीज खाना बनाकर कि आज भैया को क्या पसंद करेंगे लाऊं और जाकर तुम्हारे कपड़े धोऊं ?"
उदय मुस्कुराता है यह देखकर कि Mehak बिल्कुल अपनी मां पर गई है। वो समझाता हैं, "देखो, अगर तुम मिट्टी के ढेले को पानी में फेंकोंगे तो क्या होगा ? वो पानी में गिला होकर कीचड़ बनकर नीचे बैठ जाएगा। उसके बाद अगर उस फेंके हुए ढेले को वापस निकालना चाहोगे तो क्या वैसा ही तुम निकाल पाओगे ? क्या तुम पहचान भी पाओगे कि उस कीचड़ में तुम्हारा फेंका हुआ मिट्टी का टुकड़ा कौन सा था ? पर वही, अगर तुम पानी में किसी पत्थर के टुकड़े को फेंकोगे तो क्या उसे कुछ होगा ? तुम अगर उसे निकालना चाहोगे तो वह तुम्हें कैसा मिलेगा ?"
Mehak जवाब दी, "बिल्कुल साफ और ठंडा।"
पर रॉनी बोला, "पर नदी के पानी की धार के वजह से वो भी तो घीस जाएगा और वो भी तो वैसा नहीं रहेगा जैसा पहले था।"
और Mehak तेज बनते हुए बोली, "पर उससे उस पत्थर के टुकड़े में चिकनाहट आ जाता है तो कितना खूबसूरत बन जाता है।"
उदय Mehak और रॉनी को समझाता है कि, "लोगों का संगत, माहौल, वक़्त, अनुभव, और तुम्हारी learnings तुम्हारे ऊपर अपना प्रभाव डालेंगे। पर उनका तुम्हारे ऊपर कैसा प्रभाव पड़ेगा, यह तुम्हारी प्रकृति(nature) पर depend करेगा।" वो Mehak को बोलते हैं, "इसलिए संगत सोच-समझकर चुनना।" और वो रॉनी को बोलते हैं, "और तुम्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। अपनी बहन पर भरोसा दिखाओ।"
रॉनी फिर भी चिंता दिखाते हुए बोलता है, "पर अगर मैं साथ चलूंगा तो क्या हो जाएगा ?"
Mehak smile करते हुए उसे छेड़ने के अंदाज से बोलती है, "आप साथ चलोगे ? पर मेरी सहेली सब इससे uncomfort हो जाएंगी।"
उदय यह सुनकर मुस्कुराता है और अभिषा कहती है, "तुम अपने भाई के बारे में ऐसे नहीं बोल सकती हूँ। मुझे अपने बेटे पर पूरा भरोसा है।" फिर वह रॉनी को बोलती है, "पर बेटा तुम्हें अगर tension होती है अपनी बहन का कि जब तुम साथ नहीं होगे तो उसका क्या होगा, तो इसे strong बनाओ ना...। तुम उसके साथ हर वक्त और हर जगह तो हो नहीं सकते हो। पर देखा जाए तो उसे तुम्हारी नहीं बल्कि तुम्हे उसके defence की जरूरत है।" वह Mehak को बोली, "तुम अपने भाई का ख्याल रखा करो। तुम्हारा भाई इतना सीधा, शरीफ, और मासूम है कि कोई भी लड़की इसपर डोरे डालकर इसको अपनी उंगली में नचायेगी। इसलिए तुम इसका ध्यान रखा करो।"
Mehak अपने मुँह पर हाँथ रखकर बोली, "आ मम्मी, आप भैया को इतना सीधा समझती हो ? और चलो मान लिया कि भैया किसी को ले भी आया, तो आपको क्यूँ परेशानी होगी ? आप दोनों भी तो भाग कर love marriage किए हो। अपलोग के भी कम किस्से हमने थोड़ी सुने हैं।"
उदय उसको बोलते हैं, "तो तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारी माँ मुझपर डोरे डालकर पटाई है, या मैं इसके आगे-पीछे रांझा बना फिरता था ?"
Mehak बोलती है, "सब लोग तो ऐसा ही बोलते हैं।"
उदय बोलता है, "सबलोग नासमझ है, वो सभी को एक ही जैसा समझते हैं।"
Mehak बोलती है, "तो मुझे बताओ, कि अपलोग अलग कैसे हो उनसे ?"
कहते हैं कि जिसको कोई नहीं हरा सकता है उसे उसके बच्चे ही बाद में हराते है। और जिसे उसके बच्चे भी नहीं हरा पाते है उसे उसके बच्चों के बच्चे हराते हैं। उदय Mehak और रॉनी को समझाता है, "आमतौर पर लोग एक-दूसरे का देखा-देखी करते हैं, कि सामने वाले के पास जो है वह उन्हें भी चाहिए या उससे बेहतर चाहिए। इसलिए अगर पड़ोसी का बच्चा कोई खिलौना लेकर आता हैं तो वो चाहते हैं कि उन्हें भी चाहिए; अगर भाई की पसंद की सब्जी बनी है तो उनके पसंद की भी सब्जी बननी चाहिए; पड़ोसी नया मकान बना रहा है तो उनका घर उनसे भी सुंदर दिखना चाहिए; 'ईर्ष्या', अगर बगल वाला नया bike या car लेकर आया है तो उन्हें उससे भी महंगी car या bike चाहिए; वो अपनी महत्वकांक्षा थोपते हैं, पड़ोसी का बच्चा पढ़ाई में तेज है तो उनके बच्चों के marks उससे भी ज्यादा आना चाहिए; पड़ोसी का बेटा सुंदर बहु ब्याह कर लाया है तो उनकी उससे भी सुंदर बहु चाहिए; और उसका दामाद लाख रुपया कमाता है, अपना उससे कम से कम डेढ़ गुना कमाना चाहिए।"
Mehak बोली, "तो अपलोग भी ऐसे ही ख्वाब देखते हो ?"
उदय कहता है, "नहीं। हम उनकी तरह immature नहीं है। हम समाज के लोगों को अपना competitor नहीं मानते हैं, जिसकी वजह से उनसे जीतना और आगे निकलना हम ज्यादा तवज्जो समझे। हम समझते है अपनी जरूरतों को, हम बस खुद में खुद को बेहतर बनाना चाहते हैं।"
Mehak रॉनी के तरफ मुंह बनाकर उसको इशारे में पूछी, "तुम्हें समझ आया कुछ ?"
अभिषा उन्हें समझाती है, "देखो, जब हम बच्चे थे, तो हम भी वैसे ही जिद्द करते थे और देखा-देखी करते थे। पर हम जब थोड़े बड़े हुए तुम्हारी तरह, पढ़ने लगे, चीजों को समझने लगे, तो हमारी पसंद अलग होने लगी। अभी तुमलोग देखो, तुम्हारी उम्र में सभी की पसंद एक जैसी है क्या ? फिर हमलोग थोड़े और बड़े हुए तो हमें जो पसंद था, उसको लेकर ख्वाब देखने लगे। पर जब हम अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए आगे बढ़ने की कोशिश किए, तो हमें अहसास हुआ कि हमें अपने पीछे भी कुछ जरूरी चीजें चाहिए। जैसे कि रहने के लिए घर, खाने के लिए खाना, और पहनने के लिए कपड़े। मतलब हमें सबसे पहले income चाहिए। जब हम कमाने के लिए जा रहे हो, उस वक्त नाश्ता, दोपहर का खाना, और फिर रात में जब थक के आए तो dinner चाहिए; ठीक उसी तरह हमें daily साफ कपड़े भी चाहिए। मतलब हमारा daily works अच्छे से managed होना चाहिए। पर जब हम बाहर हो, तब अगर हमारे घर में या समाज में कुछ हो, तो इसका खबर भी तो हमें होना चाहिए। जब कोई बड़ी घटना घटे, जैसे कि अगर अपना अचानक बहुत ज्यादा तबियत खराब हो जाए, accident हो, घर में death, birth हो, शादी हो, तो लोगों का सहयोग भी तो चाहिए। इसलिए हमारा social relations भी अच्छा होना चाहिए। और लोगों के साथ social relations अच्छे हो इसके लिए हमें भी उनके लिए जाना होगा, जब उन्हें हमारी जरूरत होगी। फिर हमें time to time updates चाहिए ताकि हम time के साथ relevant रह सके। हमारा diet and health भी अच्छा होना चाहिए। इन सभी चीजों को समझने के लिए हमारा knowledge अच्छा होना चाहिए, पढ़ाई अच्छी होनी चाहिए।"
Mehak और रॉनी एक दूसरे को देखते हैं कि कहाँ फँस गए, माँ बोल रही है, अब तो पूरा सुनना ही होगा !
अभिषा आगे कहती है, "पर यह सब हम अकेले कर सकते हैं क्या ? इसके लिए किसी का तो साथ चाहिए ना ? पर वैसे ही क्या कोई भी साथ दे सकता है, क्या किसी के साथ भी हमारी tunning अच्छी बन सकती है ? जब तुम्हारे जैसे मासूम बच्चे किसी को पसंद करते हैं तो क्या ये सब सोचते हैं ? या वो सिर्फ चेहरा देखते हैं, रंग और रूप देखते हैं, मीठी-मीठी बाते करते है और एक दूसरे को commitment दे देते हैं ?"
Mehak पूछती है, "आपके कहने का मतलब है कि हमारी उम्र में अपलोग हमसे ज्यादा समझदार थे ?"
अभिषा कहती है, "तुम्हारी उम्र में हम इन चक्करों में कभी पड़े ही नहीं। हम सिर्फ अपनी पढ़ाई में ध्यान देते थे, career में, और अपने ख्वाब को पूरा करने के बारे में सोचते थे। पर वो तो घरवाले पीछे पड़े हुए थे हमारी शादी करवाने के लिए; और किसी अंजान के साथ अपना जिंदगी बर्बाद करने से अच्छा था कि जिसको जानते थे, एक जैसा सोच रखते थे, उसी के साथ शादी कर लें। इसलिए हमलोग आपस में शादी कर लिए।"
Mehak पूछती है, "फिर सबलोग ये क्यों कहते हैं कि आपलोग भाग कर शादी किए हो ?"
उदय कहता है, "कोई अपनी गलती भला मानता है! हम जो ख्वाब देखते थे वो उनके ख्वाब से अलग था जो वो हमारे लिए ख्वाब देखते थे। हम कहीं उनके हांथ से ना निकल जाए, इसलिए वो हमें जिम्मेदारियों में बांधना चाहते थे, हमारी शादी अपनी पसंद के हिसाब से करवाना चाहते थे। हमारे ख्वाब को कुचल कर अपना ख्वाब को थोपना चाहते थे। जो हमारे life में आते, वो हमारे ख्वाब को support करते या उनके ख्वाब को पूरा करने का कोशिश करते ? आखिर वो हमें मजबूर किए ना कि खुद को बचाने के लिए हम ये सब करे, उनके against जाकर शादी करे। अब उनके खिलाफ जाकर, बिना उनके approval के, हम जाकर शादी कर लिए, तो वो लोग तो कहेंगे ही ना कि हमलोग भाग कर शादी किए हैं।"
Mehak कहती ही, "मतलब यह 110% सही बात है कि आपलोग भाग कर शादी किए हो।" वह रॉनी को बोलती है, "देख रहे हो भैया, तुम्हारे भी ख्वाब कुचले जाएंगे तो तुम भी भाग जाना। ये लोग कुछ बोलेंगे तो मैं तुमको बचाऊंगी।"
रॉनी इसके जवाब में Mehak को बोलता है, "अरे मुझे भागने की क्या जरूरत है, मुझे किसका बाप और भाई पसंद नहीं करेगा ? तुम्हारे बारे में जानकर लड़के के घरवाले शायद तुम्हें अपनाने से मना करे, इसलिए तुम्हें अगर भागना हो तो मुझे भूलना मत। मैं तब भी तुम्हारे साथ रहूंगा।"
अभिषा दोनों को एक साथ थप्पड़ मारी कि फिर ये दोनों शुरू हो गए।
एक वो दिन था और एक आज की रात है। आज भी चारों घर के hall में है TV के सामने। कहीं आप भूल तो नहीं गए कि कहानी कहां से शुरू हुई थी ? कहीं आप इनके life के बीते वक्त, अतीत की परछाई में खोकर यह तो नहीं भूल गए कि इस वक्त चारों dinner करके साथ में movie देखने के लिए बैठे हुए हैं ? अब तो याद आ ही गया होगा। जब movie में add.-break आया तो रॉनी पूछा, "पापा life में किसी partner का होना जरूरी क्यों है ? हम अकेले रहकर अपने ख्वाबों को रूप देने/साकार करने का कोशिश क्यों नहीं कर सकते हैं ?"
उदय रॉनी को समझाते हैं, "क्योंकि हमें सहयोग की जरूरत होती है। हम अगर अपना हर काम को खुद करेंगे तो अपने ख्वाब को वक्त नहीं दे पाएंगे। और अगर अपने ख्वाब में ज्यादा वक्त देंगे तो हमारा बाकी सब जरूरी काम ठीक से नहीं होगा। जिससे फिर इसका side effect हमारे ख्वाब पर पड़ेगा। हां, यह हो सकता है सहयोगी के रूप में तुम अपने लिए किसी को as a life partner ना चुनो। तुम्हारी family के बाकी लोग, हमलोग भी तो तुम्हें support कर सकते हैं। हमारे अलावा तुम्हारे दोस्त तुम्हारे काम में सहयोगी बन सकते हैं। अपने daily जरूरतों के लिए तुम helpers(employees) रख सकते हो। जरूरी नहीं कि जो तुम्हारे बाकी काम को manage करे वो तुम्हारी wife ही हो। हम तुम्हारे life में कभी भी interfere नहीं करेंगे। तुम जिसे चुनोगे, हम उसके साथ तुम्हारा अच्छा relationship stablish करने में support करेंगे; और अगर शादी नहीं करना चाहोगे या जब तक तुम खुद नहीं चाहोगे, तो हम तुम्हारे ऊपर अपना दबाव नहीं बनाएंगे।"
यह सब लिखकर कृष्ण, आपसे यह कहना चाहता है कि, "आपको जैसा life मिला, आप उसे अपनाए, जिए और जी रहे हो। आप जैसा life दोगे वैसा आपके बच्चे जीयेंगे। तो आप अपने बच्चों को कैसा life देना चाहते हो, जैसा आपको मिला वैसा, या उससे बेहतर ?" आपको इसके लिए क्या करना है यह कृष्ण को आपको समझाने की जरूरत नहीं है। यह मै आपको बताऊंगा, क्योंकि मैं समय हूँ। बस आप अपने ज्ञान के स्तर को इतना बढ़ाने की कोशिश करो, कि जब मैं आपसे कुछ कहूं, तो आप मेरी बातों को समझ पाओ। क्यूंकि संमय यानि कि मैं, जब भी किसी को कुछ कहता हूँ और उनसे कुछ expect करता हूँ, तो वो मेरी बात को समझते नहीं है। और फिर मजबूरन मुझे कड़ा होकर कोई गहरा सीख देना पड़ता है। पर वो ये भी नहीं समझते हैं और मुझे फिर निराश करते हैं।
-----Time takes to form the beautiful stories.
Keep a break before the next chapters.-----
• बड़े अपनी महत्वांकाओ को अपने बच्चों पर थोपने की कोशिश करते हैं, और इसका विरोध करना गलत नहीं है। जरूरी नहीं कि उनकी हर इक्षा सही ही हो, इसलिए उनके हर बात को मानना जरूरी नहीं है। हाँ पर बच्चों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके विरोध में बड़ों का disrespect ना हो।
• बड़ों का विरोध करना, उनके against जाना, उनका disrespect नहीं होता है। इससे बस उनके ego को ठेस पहुंचता है, जिसकी परवाह नहीं करना चाहिए।
• जब माता पिता अपने बच्चों को कुछ समझाने की कोशिश करते हैं, जरूरी नहीं कि वो हर बार अच्छे से सफल ही हो।
• जल्दबाजी में मैं इसका cover pic नहीं ढूँढ पाया। अगर आपको कोई suitable लगे then please suggest me.
Finished on 8th August, 2025 A.D.
Published on 8th August, 2025 A.D.
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