"सलोनी की खुशबू" | A short story by AnAlone Krishna | Split story of "Life की परछाई"
"सलोनी की खुशबू"
सच को ना कहने से शक पैदा होता है। शक को दूर ना करने से गलतफहमी होती है। गलतफहमी में जब बातें बनने लगती है तो अफवाह फैल जाता है। अफवाह की जब चर्चा होने लगती है तो वह किस्सा बन जाता है। फिर उस किस्से का लोग कहानी बना देते हैं। और फिर वह कहानी अगर कोई सामने खड़े इंसान से जुड़ा हो तो लोग इसे सच मानने लगते है। पर यही state जहां पर लोग यह तय ही ना कर पाए कि क्या सच है और क्या झूठ, उसे ही मिथ्या कहा जाता है- सच और झूठ के बीच की बारीक line.
इस कहानी की पढ़ते समय आपको एक बाद ध्यान में रखना होगा, आप जो बोओगे वही पाओगी। लोग अपने भविष्य का निर्माण जाने-अनजाने खुद ही करते है।
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कुएं के पास दो औरतें पहले से ही बर्तन घिस रही थीं। वो सलोनी को आते देख आपस में फुसफुसाई-
"लो देखो महारानी को, लाठी लेकर आ गई।"
"इसका तो नौवां महीना चल रहा है ना ?"
"फिर भी देखो ऐसे कबकबाते चलती है जैसे कि यह बहुत बड़ी कामनिहार है।"
"इसके घरवाले इसको नहीं रोकते हैं ?"
"काहे रोकेंगे !"
"बेचारी पेट से है। ऐसी हालत में बच्चे को कुछ हो गया तो...?"
"उनका बच्चा होगा तब ना चिंता करेंगे। वो कहते हैं कि किसी और का बच्चा है।"
"किसका बच्चा है ?"
"उसी का, जिसके साथ भागी थी।"
"कब भागी थी ? हम तो कभी नहीं सुने, ना जान पाए।"
"शादी से पहले भागी थी।"
तबतक सलोनी धीरे-धीरे करीब आ गई, और दोनों औरतों की फुसफुसाहट भी बंद हो गई। सलोनी बगल में धीरे-धीरे करके बर्तनों को रखी। वो महिला जो बुराई कर रही थी, वह बगल हो गई। इसके बाद सलोनी बर्तनों में पानी भरने के लिए कुंए में बाल्टी फेंकती है, तो जो भली महिला उसका फ़िक्र जता रही थी, वह सलोनी के हांथ से रस्सी का डोर ले ली, और बोली- "ऐसी हालत में काहे इतना कष्ट करती हो ?"
सलोनी उसे कुछ नहीं बोली, बस देखकर मुस्कुराई। वह महिला कुएं से पानी खींच दी और सलोनी सारे बर्तनों में पानी भरकर उसे फूलने के लिए छोड़ कर अपना दातुन उठाई और इनसे थोड़ी दूर जाकर साफ जगह में बैठ कर दातुन करने लगी। मौका पाकर वो महिलाएं आपस में फिर से फुसफुसाने लगी-
"तुम इसपर काहे इतना मेहरबानी करती हो ?"
"बेचारी को ऐसी हालत में भी कितना मेहनत करना पड़ता है।"
"करेगी नहीं तो इसको रखेंगे काहे ?"
"काहे ? ब्याह के लाए हैं।"
"ब्याह के इसको लाए हैं, इसके कोंक को थोड़ी !"
"कैसी बात करती हो ? इसकी शादी के नौ महीने नहीं हुए हैं ?"
"नवां महीना तो चल ही रहा है।"
"तो फिर... ?"
वो दोनों अपना-अपना बरतन धोई और फिर बर्तनों को किनारे साफ जगह में रखकर अपना दातुन उठाकर सलोनी के पास जाकर उससे पूछी-
"अच्छा, हमने सुना है कि तुम घर से भागी थी। ये सच है क्या ?"
"कब ? नहीं तो। ऐसा कौन बोला ?" सलोनी को सब पता है उसके चारों ओर लोग क्या-क्या बाते करते हैं। पर वो हमेशा ऐसे जताती है कि उसे कुछ पता ही नहीं। वह उनसे उलझने, लड़ने के जगह नजरअंदाज करके, बेपरवाह होकर निकल जाया करती है। उन दोनों में से एक बोली-
"तो वो लोग जो बारात गए थे और आकर जो बातें कर रहे थे, वो गलत कर रहे थे क्या ?"
सलोनी, "लोग आप दोनों को मेरे साथ देखकर यह भी तो बोलेंगे ही कि आप दोनों भी मेरी जैसी हो। तो क्या यह भी सच हो जाएगा ?"
वह दूसरी महिला इसको पकड़कर सलोनी से दूर ले गई और फुसफुसाकर बोली, "इसलिए कहती हूं ना कि इससे दूर रहो।"
"पर वो भागने की बात को कहां मानी ?"
"तुम भी कुछ गलत करोगी तो किसी के सामने सच मानोगी ? उसके पास मेरे सवाल का जवाब कहां था ? वह तो बात को घुमा दी।"
"हाँ, कह तो वैसे तुम सही ही रही हो।"
सलोनी कुएं से वापस आई। वह देखी कि उसकी ननंद आंगन में बुदबुदाते हुए झाड़ू लगा रही है कि- "महारानी, आज सुतले है।" जब वह सलोनी को देखी तो झाड़ू वहीं छोड़कर जाने लगी। जो देखकर सलोनी के ससुर जो कि उस वक्त बैलों को गौशाला से बाहर निकाल रहे थे, उसकी ननंद को जोर से खेखरे(डांटे)। जिसपर खिसियाकर उसकी सास बोली, और उसके ससुर उसकी सास को मारने के लिए उठे। सलोनी का पति आँखें मसलते हुए छत के घर से बाहर निकल रहा था, वह अपने पिता को अपनी मां को मारने जाता देख दौड़ कर गया और रोक लिए। फिर वह भी गरज कर बोला कि, "ई कुलटा के खातिर हामर माय के मारे जाहे। तोर चलते एकर खाईल परूहा चले लागल हे, नेतो एकरा कब के घार से निकाइल देतलिए।"
यह सब देखकर सलोनी बर्तन बगल में रखकर झाड़ू उठा ली। और सलोनी का पति गुस्से में यह सोचकर कि सब सलोनी के कारण हुआ है, सलोनी को एक लात मारा। जिससे सलोनी गिर गई। सलोनी का ससुर उसे उठाने के लिए गया पर सलोनी अपने पेट के दर्द के मारे बहुत मुश्किल से जैसे-तैसे उठी। उसकी आंखों से आंसू आ रहे थे, पर वह मुस्कुरा रही थी। उसका ससुर उसे चबूतरे में बिठाकर थोड़ा देर आराम करने के लिए बोला। यह देखकर उसकी सास दोनों को खरी-खोटी सुनाने लगी। उसकी ननंद झाड़ू उठाकर सलोनी को बोली, "जाय के रिंध, ने तो देबो एखन खाई ले।"
सलोनी जैसे-तैसे करके लकड़ी के सहारे रसोई गई और अपने पेट के दर्द को बर्दाश्त करते हुए लकड़ी के चूल्हे में उसके धुएं में खांसते हुए खाना बनाई।
सलोनी का पेट लगातार दर्द कर ही रहा था तो वह खाना बनाने के बाद खाकर जाकर अपने घर में सो गई। जब दोपहर हुआ तो उसकी ननंद आकर उसे झूठे बर्तन धोने के लिए बोली और चली गई, पर सलोनी अपने पेट के दर्द को सहते-सहते सो गई थी। थोड़ी देर बाद सलोनी की सास उसकी ननंद को डांटते हुए बर्तन धोने के लिए बोली, ताकि जब उसके ससुर और पति काम करके घर वापस लौटे तो उनको खाना परोसने के लिए बर्तन साफ मिले। पर सलोनी की ननंद दोबारा सलोनी के पास जाकर उसको उठकर यह करने के लिए बोली। इसके बाद भी जब सलोनी फिर भी बाहर नहीं आई और घर के अंदर से उसकी सास उसकी ननंद को फिर से आवाज दी, तो उसकी ननंद गुस्से में सलोनी के कमरे की कुंडी बाहर से लगाकर बर्तन उठाकर उसे धोने चली गई। सलोनी के ससुर और पति दोपहर का खाना खाकर चले गए। उसके बाद जब दर्द से ज्यादा सलोनी को भूख का अहसास होने लगा, तो वह जैसे-तैसे करके उठकर दरवाजे के पास गई और उसको अंदर से खोलने की कोशिश की। पर जब दरवाजा नहीं खुला तो वह समझ गई कि दरवाजा बाहर से बंद है। ऐसा उसके साथ पहली बार नहीं हुआ है। ससुराल के इन नौ महीनों में ऐसा वह पहले भी कई बार देख चुकी है। वो अगर आवाज भी देगी तो उसको सुनने वाला बाहर कौन होगा। कोई उसके लिए दरवाजा खोलने के लिए नहीं आने वाला है। यह सोचकर सलोनी वापस अपने खटिए में लेट गई, और वापस जाकर दरवाजा खुलने के इंतजार में फिर से सो गई।
शाम हो गया, सलोनी के ससुर और पति घर वापस आए। वो देखे कि अभी भी चूल्हा-चौका करना शुरू तक नहीं हुआ है। उसका पति आवाज देता है, "आज भूखे रखोगी का माई ?"
सलोनी की सास घर से बाहर आयी, तो उसके ससुर बोले, "बहु दोपहर के भी कहूं गेल हेलय, अभियों कहू गेल है का ?"
उसका पति धीरे से बुदबुदाया, "कहीं हमेशा खातिर ही चइल जेतलय तो बेस भेतलय।"
उसकी सास बोली, "का जन, हमहू तखनि से ही केवरिया लागल देखे लागल हियय।" और उसकी ननंद को बोली बर्तन धोकर लाने के लिए और खुद चूल्हा-चौखट करने लगी। उसकी ननंद के पास और कोई चारा भी नहीं था, वह सलोनी को कोसते हुए कि, "महारानी ना जाने कहा गेल हय आइज। आवे दे, आईझ ओकरा खाय ले दे हियय।" बर्तन उठाकर चली गई। वह भूल गई कि वही सलोनी को घर में बंद की है। और सलोनी इस आस में कि कोई आयेगा और दरवाजा खोलेगा, इंतजार करते-करते सोई तो अभी भी अंदर ही सोई हुई थी।
धीरे-धीरे ठंडी हवाएं चलने लगी। आसमान में बादल छाने लगे। धीरे-धीरे घना अंधेरा भी होने लगा। सलोनी के ससुराल वाले रात का खाना खा ही रहे थे, सलोनी जोर-जोर से कराहने लगी। वो बाहर आंगन की तरफ निकले तो आंधी भी चल रही थी। आवाज मिट्टी के घर के अंदर से आ रही थी, जिसके बाहर दरवाज़े में कुंडी लगी हुई थी। वो आपस में एक दूसरे को देखे। वो समझ गए कि सलोनी अंदर में है और किसी ने बाहर से कुंडी लगाई है। सलोनी के ससुर और पति उसकी सास और ननंद को देखने लगे, क्योंकि जब दिनभर वो काम करने बाहर गए हुए थे, ये दोनों ही घर पर थी। पर अगर सलोनी को उसकी सास अन्दर बंद की होती तो वह शाम के समय तो उसे बाहर निकालती ही। वो आराम से रहने के बजाय खाना बनाने का मेहनत क्यों करेगी ! तीनों उसकी ननंद की तरफ गुस्से भरी निगाहों से देखे। पर इससे पहले कि वो कुछ भी बोलते, सलोनी और जोर से कराहने लगी। सलोनी सुबह एक बार ही खाना खाई थी। दोपहर में जो अंदर बंद हुई तो उसे पानी भी नसीब नहीं हुआ। ऊपर से उसका नौवा महीना पूरा होने चला था, तो उसके बच्चे को जन्म देने का भी वक्त हो चला था। ससुराल वाले कुंडी खोलकर अंदर घुसे तो देखे कि सलोनी की हालत बहुत खराब हो रही है। उसका ससुर उसकी सास और ननंद को उसे देखने के लिए बोल कर उसके पति का हांथ पकड़ कर बाहर लाते हुए बोला, "चल जल्दी से दाई आर वैध सब के बुलाय लान।"
आँगन तक पहुंचते ही सलोनी का पति अपना हांथ झटक दिया, और बोला "ओकर से हामर कोई रिश्ता ना हय। ना उ हामर छौआ लागय।" और यह बोलकर वह छत वाले घर के अंदर चला गया। सलोनी का ससुर यह समझता था कि इस वक्त उनसे कोई बहस करने से कोई फायदा नहीं है। वह खुद अकेले ही घर से बाहर निकल गया, कुछ औरतों को बुलाने के लिए। उसके चौखट से बाहर पैर रखते ही बारिश शुरू हो गया, पर वह वैसे ही भींगते हुए बाहर निकल गया। और उसके बाहर पैर रखते ही पीछे से सलोनी की सास भी पीछे से बाहर आ गई, और उसके पीछे उसकी ननंद भी, और दोनों उसे अकेले छोड़कर छत वाले घर में चली गई।
सलोनी का ससुर उसके पड़ोस में पहले यह खबर दिया और वहां किसी से छाता लेकर दाई खोजने के लिए चला गया। वो दोनों औरतें, जो सुबह बातें कर रही थी, वो आई। सलोनी को कराहता सुन वह दरवाजे के अंदर उसके पास गई। वो देखी कि सलोनी के पास कोई नहीं है। वो दोनों में से एक उसके ससुराल वालो को बुलाने के लिए दरवाजे से बाहर कदम रखी तो देखी कि सलोनी की ननंद छत घर के grill के पास खड़े होकर इन्हें घूर रही है। वो पहली महिला उसे देखकर दरवाजे के पास खड़ी हो गई। पीछे से इधर दूसरी औरत के आवाज देने पर भी कोई जवाब ना मिलने पर इसे वापस बुलाने दूसरी महिला भी बाहर निकली और उधर grill के पास सलोनी की सास भी आकर खड़ी हो गई। उसकी ननंद और सास इन्हें जिस तरह से घूरी, वो दोनो औरतें धीरे-धीरे बगल से खिसकते हुए घर से बाहर निकलकर वापस चली गई। सलोनी घर के अंदर अकेली हो गई अपने दर्द और हालात के साथ लड़ती हुई। उधर सलोनी का ससुर तूफानी बारिश के भींगता हुआ पहले गांव की दाई के घर गया। वहां जाकर उसे पता चला कि दाई कोई और गांव किसी रिश्तेदार के यहां हुई है। फिर उसी बारिश में जैसे-तैसे करके दूसरे गांव दाई ढूंढने चला गया। इधर सलोनी दर्द में कराहती रही, चिल्लाती रही, पर कोई भी इसके पास नहीं आया।
जब आधी रात बीत गया, तो उस आंधी-तूफान-बारिश और कड़कती बिजली के बीच सलोनी एक बच्ची को जन्म दी। तूफान धीरे-धीरे कम होने लगा और इसके साथ-साथ सलोनी का दर्द भी। और जैसे-जैसे सलोनी का दर्द कम होने लगा, उसे नींद आने लगा और वो कब सो गई उसे पता भी नहीं चला। एक आराम की नींद के बाद सलोनी की आँख खुली। उसे अपना खून से लथपथ बिस्तर में चिपचिपेपन का अहसास हुआ, वो अपनी नवजात बच्ची को टटोली, और अपने सीने के पास ले आई। उस बच्ची की धड़कन तो चल रहा थी, वो सांसे भी ले रही थी, पर शोर... नहीं, वो रो नहीं रही थी। वह छोटी मुलायम सी बच्ची जैसे कि गहरी नींद में सो रही हो। सलोनी उसे बांहों में भरकर मंद-मंद मुस्कुराने लगी। जैसे कि उसके मन में चल रहा हो कि "चलो, इतना दुःख सहने के बाद कुछ तो अच्छा हुआ। अब वह अपनी बच्ची के सहारे आगे की जिंदगी चाहे जैसा भी हो, गुजार लेगी।" वो याद कर रही थी कि उसके साथ कितना बुरा हुआ। उसके माता-पिता उसे बोझ की तरह समझे, और उसे ऐसे इंसान के साथ बांध दिए जिसे उसके चरित्र पर विश्वास नहीं था। जब उसका कोंक भरा तो उसका पति उसके गर्भ में पनप रहे बच्चे को अपना मानने से इंकार कर दिया। उसकी सास उसे मारने-पीटने और गाली देने लगी। उसकी ननंद उसका जीना हराम कर दी। अपना घर अपना घर होता है, और पराया घर में कोई अपना नहीं होता है। सलोनी अगर विरोध भी करती तो उसका साथ देने कौन आता, वह हर बार अकेली पड़ जाती। कुछ कोशिशों के बाद सलोनी हार मान ली, और वह तंग आकर अपने मायके चली गई। वहां जाने के बाद उसे अहसास हुआ कि उन्हें भी वह खटक ही रही है। और उसे यह समझाकर कि मां के घर से डोली निकलने के बाद औरतों का सीधा पति के घर से ही अर्थी निकलती है, उसके ससुराल वालों से सुलह करके उसे वापस उसके ससुराल में छोड़ दिया गया। पर उसकी सास उसे घर के अंदर नहीं घुसने दी। एक ढीला-ढाला, टूटा हुआ खटिया बाहर फेंक दी। वह कुछ घंटे उसी खटिए में गौशाला में मवेशियों के बगल में बैठी रही। कुछ घंटे बीत जाने के बाद भी जब सलोनी की सास नहीं मानी, तो उसका ससुर उनके पुराने मिट्टी के घर जिसमें फिलहाल वो सब्जियां और अनाज रखते थे, ताकि वो लंबे समय तक चले, उसे सलोनी के लिए खोल दिए। कुछ समय तो वह बाहर ही रही, पर कुछ सोच-विचार करके वह अंदर चली गई। उसके ससुर उस खटिए को शाम तक ठीक कर दिए। जब शाम हुआ तो उसकी ननंद उसे बोलने आई, "चल रिंध ने तो देबो एखन खाई ले।" सुबह जब सलोनी चूल्हा-चौका और झाड़ू-पोंछा लगा रही थी, तब इधर उसकी सास और ननंद मिलकर मिट्टी के घर से सारी सब्जियां और अनाज ढोकर छत के घर में ले गई। सलोनी का जीवन इस घर में नौकरानी की तरह हो गया। दिनभर काम करती, तो उसे तीन वक्त का खाना मिलता, वो भी अगर सभी के खाने के बाद कुछ बच जाता तो...। कभी-कभी तो उसकी ननंद उसे तंग करने के लिए थाली में ज्यादा खाना परोसकर, खाना बर्बाद भी कर देती थी। ऐसे में सलोनी को उस दिन या उस पहर आधा पेट खाना खाकर या सिर्फ पानी पीकर ही रहना पड़ता था। बीच में कभी उसके पिता उससे मिलने आए। सलोनी उनके सामने रोने लगी कि वो उसे अपने साथ वापस ले जाए। पर सलोनी की मां उसके पिता को पहले ही धमका के रखे हुए थी कि सलोनी के चक्कर में अगर उसके पिता उसकी छोटी बेटी का भविष्य खराब करेंगे तो वो उसका मरा मुंह देखेंगे। इसलिए उसके पिता भी उसे आश्वाशन देकर चले गए कि वो बीच-बीच में उससे मिलने आते रहेंगे पर उसे अपने साथ लेकर नहीं गए। मान-मर्यादा, सम्मान, यही सब तो आखिर मायने रखता है समाज में किसी घरवालों के लिए, अपनी बेटी का जिंदगी और भविष्य कहां मायने रखता है।
रात भर तेज बारिश हुई है, जिस मिट्टी के घर में सलोनी रहती है उसमें कुछ दरारों और छेदों से बारिश का पानी अन्दर कमरे में गिरा है। अन्दर रखी सामानों और मिट्टी के फर्श पर पड़ने वाली बारिश के पानी से फैलने वाली गीली मिट्टी की खुशबू, भीगी लकड़ियों का सोंधापन, पुराने सामानों से उठती नम धरती की महक, इसके साथ आज रात जन्मी बच्ची और उसके साथ सलोनी के दिल की गहराइयों से उठती एक खूबसूरत कल की खुशबू... हाँ, खुशबू...। सलोनी अपने बीते कल की सारे बाते भूलकर अपने आने वाले कल की खूबसूरत ख्वाब बुनते हुए नम आंखों से चलती उसकी आँसुओ की बूंदों के साथ मंद-मंद मुस्कुराती है। पर उसका यह खुशी का अहसास ज्यादा देर तक रहने वाला नहीं है। सुबह हुआ, उसके घरवालों को होश आया कि उसके घर का बुजुर्ग-बूढ़ा, सलोनी का ससुर रात से गायब है। उसका पति तो बेपरवाही से जाकर अपने कमरे में सो गया, पर उसका ससुर सलोनी के लिए मदद लाने के लिए तेज आंधी-पानी में निकला हुआ था। रात के अंधेरे में कुछ खेत पार करके जब वह दूसरे गांव दाई और वैद्य खोजने जा रहा था, अचानक आंधी तूफान तेज हो गया और वह बचने के लिए किसी पेड़ के नीचे गया। वह जिस पेड़ के नीचे खड़ा था उसी के ऊपर रात में बिजली गिरी और बूढ़ा वहीं मर गया।
सुबह जब हुई और घर में बातें होने लगी कि "बुढ़वा काईल राति निकलल हेलो आर एखन ले घुरल नेखो।" तब गांव का कोई युवा दौड़ कर उनके आंगन में घुसा और उनसे बोला, "तोहीन के बुढ़वा के राति गछवा तरे ठेर मारलो, तोहीन के बुढ़वा आब नाय रहलो।" अंदर से यह सुनकर सलोनी का जी हुआ कि वह बाहर निकले पर यह सुनते ही उसकी सास माथा पीटने लगी कि, "हाय ई करमजली, डायन जनमैले हो। जे हामर बुढ़वा के अइते के साथ खाय गेलय।" उसका पति तो लोगों के साथ लाश को लाने उस युवा के साथ चला गया। पर उसकी सास पीछे माथा पीट-पीट कर सलोनी और उसकी बच्ची को कोसने लगी। उसकी ननंद अपनी मां तो शांत करने के लिए उससे बोलने लगी कि, "तोय नाय कांद गे माई। ई बितनी के घार से बाहैर फइक देबइ, नदी में बोहाय देबइ ,..." यह सब सुनकर सलोनी डर गई। जब सलोनी का पति वापस आया तो औरतें बातें सुना जो आपस में काना-फुंसी कर रही थी- "का जन एकर पुतहिया कैसन हय। एतना कुछ हय गेलय आर एक झीक भी घरवा से बाहर नाय निकललय।" यह सुनकर सलोनी का पति ताव में घर के अंदर घुसा। वह देखा कि सलोनी अपनी बच्ची को कस कर अपने बाहों के बीच अपनी खून-धब्बे वाली आंचल में छुपाकर कस के पकड़ कर डरी-डरी हुई कोने में बैठी हुई है। वह सलोनी को देखकर थम गया, और वहां रखी सुखी-मोटी कुछ लकड़ियों को बाहर चिता के लिए ले गया।
जब सलोनी के ससुर की लाश को ले जाया गया और पीछे-पीछे रोती हुई सारी औरतें भी घर से चली गई, आँगन को शांत और सूना सुनकर सलोनी अपने कपड़ों को टटोली। वहां वह अपने पिता के द्वारा दिए पैसों को रखती थी, जो कि उसे नहीं मिला। क्योंकि मौका देखकर उसकी ननंद वहाँ से पैसे निकाल लिया करती थी, और बोलने पर उल्टा सलोनी पर इल्ज़ाम लगा देती थी कि वह पैसे चुराकर अपने पास रखती है। ऐसा उसके साथ पहले भी हो चुका है। वह उसके बाद अपने कपड़े में अपनी बच्ची को लपेटी और पैदल अकेले ही गांव से 20 mile दूर सरकारी अस्पताल के तरफ चल दी। जाते-जाते उसे ख्याल आ रहा था, कि वह पढ़ी-लिखी लड़की थी। वह बच्चों को tuition पढ़ाकर अपने college की पढ़ाई पूरी की। पर वह इसके बाद अपने माता-पिता की खुशी और उनके मान-सम्मान के लिए चुपचाप वहां शादी कर ली, जहां वो चाहे। उसके माता-पिता उसके लिए क्या चाहे, और उसे कैसा ससुराल मिला, सब उसकी बदकिस्मती थी। पर वह यह समझ नहीं पा रही थी कि वह इस बदकिस्मती से अपनी बच्ची को कैसे बचाएगी। वह समझ नहीं पा रही थी कि वह अपनी बच्ची को सुरक्षित कैसे रखेगी...। क्या वो लोग सच में इसे मार देंगे, या कहीं फेंक देंगे, या नदी में बहा देंगे,...? अब तो उसका ससुर भी नहीं रहा जो थोड़ा-बहुत इसका मदद भी कर देता था। अब तो उस घर में बस वो लोग ही बचे जो सलोनी को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे। अगर वो सलोनी की बच्ची को रहने भी देंगे तो उसका भविष्य कैसा होगा ? उसे कभी वैसा मौका नहीं मिलेगा, जैसा सलोनी को अपने life में पढ़ने का मौका मिला। जैसे वह इन नौ महीनों के अपने ससुराल में शोषित हुई है, उसकी बच्ची भी होगी। जैसे वह नौकरानी की तरह जी रही है, वैसे ही उसकी बच्ची से भी काम करवाया जाएगा।
सलोनी जब अपनी बच्ची को doctor के पास दिखा रही थी, doctor उससे पूछी- "तुम अकेली आई हो ?"
"हां"
"तुम्हारे घर में और कोई नहीं है ?"
"है"
"तो वो लोग क्यों नहीं आए ?"
"मेरे ससुर जी की आज ही मृत्यु हो गई, सब उनके साथ चले गए।"
"फिर भी, किसी को तो साथ में आना चाहिए ना..."
सलोनी मौन रही, doctor फिर पूछी, "क्या वो बेटी नहीं चाहते थे, क्या वो इसे पसन्द नहीं करते हैं ?"
सलोनी फिर चुप रही। तभी एक nurse दौड़ते हुए आई और doctor को बोली, "Madam, कल रात जिस लड़की का बच्चा हुआ है, वो लड़की बच्चा छोड़कर भाग गई।"
Doctor पूछी, "उसका बच्चा कैसा है ?"
Nurse बोली, "वो ठीक है, बस रो रहा है और किसी को देखकर भी चुप नहीं हो रहा है।"
Doctor उसके साथ चली गई। पर सलोनी को ध्यान आया, कि उसकी बच्ची अभी तक अपनी आँखें नहीं खोली है। कम से कम वो तो नहीं देखी है उसे उसकी आँखें खोले हुए। हां वो बीच-बीच में भूख लगने पर रास्ते में रोई, जो कि दूध पिलाने पर शांत हो गई, पर वह आँखें एक बार भी नहीं खोली अभी तक। जब Doctor वापस आई तब वह सलोनी के सामने बोली, "पता नहीं इस दुनियां में कैसी-कैसी लड़कियां है! बिना शादी किए जहां-तहां मुंह मारती फिरती है, गर्भवती होती है, फिर बच्चा होता है तो जिम्मेदारी उठाने के जगह वह उसे बोझ समझकर ऐसे छोड़ कर भाग जाती है।"
सलोनी इसपर कोई जवाब नहीं देती है। वह अपनी बच्ची के बारे बताती है कि वह अभी तक आंखे नहीं खोली है। फिर वह doctor सलोनी की बच्ची को पूरी तरह जांच की और उसे बोली कि चिंता की कोई बात नहीं है। उसकी बच्ची पूरी तरह स्वस्थ है। बस कुछ बच्चें होते हैं जिन्हें रौशनी शुरू-शुरू में बहुत ज्यादा चुभती है, तो वह धीरे-धीरे अपनी आँखें late से खोलते हैं। फिर सलोनी पूछती है, "आप उस बच्चे का क्या करोगे ?"
Doctor बोलती है, "क्या करुंगी ? अनाथालय से बात करूंगी, अगर कोई दंपति बच्चा गोद लेना चाहेंगे तो इसे गोद ले लेंगे या फिर यह बच्चा अब अनाथालय में ही बढ़ेगा। तबतक जबतक कि इसका स्वास्थ्य को लेकर हम अस्वस्थ ना हो जाए, यह नहीं रहेगा।" पर वह सलोनी का interest यह जानने में देख कर पहले सोची कि उसे अपनी बच्ची के साथ बदल लेने के लिए बोले, फिर उसे संदेह हुआ कि वह सलोनी पर भरोसा क्यों करेगी, वह भी तो अकेली आई है। पता नहीं वह उस बच्चे का क्या करेगी। वैसे भी लोगों को अपना खून अपना लगता है और पराया उन्हें पराया ही लगता है। और बेटी की अपेक्षा बेटे को जल्दी ही कोई निःसंतान मां-बाप गोद ले लेंगे।
जब doctor सलोनी को सारा जांच करके उसे report दी तब वह hospital से बाहर निकली। पर वह घर नहीं गई, बल्कि अनाथालय गई। वहां वह अभिषा के साथ पहले भी volunteer करने जाया करती थी। अनाथालय के guardian mothers सलोनी को लंबे समय के बाद देखकर बहुत खुश हुई, पर सलोनी उनके सामने घुटने में बैठकर फूट-फूट कर रोने लगी। वो उन्हें रो-रोकर अपनी शादीशुदा जिंदगी की सारी कहानी बताई। फिर उनसे आग्रह की कि वो उसकी बच्ची को भी अपने पास उस अनाथालय में रख ले। वो mothers सलोनी को समझाई कि, "तुम यह अच्छे से सोच लो। अनाथ वो होते हैं जिसका कोई नहीं होता। यहां छोड़ने के बाद तुम इस बच्ची पर अपना हक नहीं जता पाओगी। तुम्हें कभी नहीं बताया जाएगा कि तुम्हारी बच्ची को कौन गोद लेकर गया है। ताकि तुम उसकी जिंदगी में कभी वापस जाकर उन्हें परेशान ना कर सको।"
पर सलोनी उन्हें बोली कि, "यह मेरे पास रहेगी तो मेरे साथ नहीं जी पाएगी, यह मर जाएगी।" और फिर सलोनी अपनी बच्ची के लिए एक letter लिखती है। इसके साथ वह अपने गले का locket जो कि aluminum alloy का बना था, जिसको वह और अभिषा बनवाई थी, जिसमें उन तीनों best friends की निशानी थी, उसे भी दे देती है। जिससे कि सलोनी चाहे अपनी बच्ची को ना ढूंढे, पर उसकी बच्ची अगर भविष्य में चाहे तो उसे ढूंढ ले। और फिर अकेले वापस अपने ससुराल आ गई।
सलोनी जब गांव में कदम रखी, तब तक शाम हो गया था। आम दिनों की तरह लोग गलियों में काम करके वापस लौट रहे थे, औरतें शाम का चूल्हा-चौका का तैयारी कर रही थी। सलोनी जैसे-जैसे आगे कदम बढ़ाते गई, पीछे-पीछे गांव-मोहल्ले में बातें बनना शुरू हो गया-
"ये तो कल तक गर्भवती थी ना ?"
"इसी के घर से घाट निकला था।"
"छवैया, मोरल जनमल हेलय का ?"
"घाट तो बूढ़वा के लेगल हेल्थिन।"
"छौंवा सब के नाय दफनावल जा हय।"
"एकरा घाट निकलल नाय देखलियय ?"
"एकर राती छौआ हेल हय, एकरे चलते राती बुढ़वा दाई खोजल चल हलय।"
"आपन छवैया के छोईड़ के कहा गेल हेलय ?"
"ओकरा लय के गेल हेलय। हमीन घाट से घुरल हेलीय तखनी से नाय हेलय।"
"छवैया नाय हय साथे। कहां छौइड़ राखलय ?"
"केजन जिंदा नाय हेलय तो, सैले दफनावे ले गेल हेतय।"
"बिहान तो ठिके हेलय। आर दफनावे गेल हेले, घरवा के आर कोई नाय जेतलथिन ?"
"एकर घरवा वलीन एकरा पूछ हथीन ? एगो बुढ़वा पूछ हेलय, ओहो राती मोईर गेलय।"
"तो छवैया के कहां छौइड़ राखलय ? के राखलय एकर छवैया के ?"
"ओहे ने राखतय जेकर हेतय। आर के राखतय ?"
"का मने जेकर हेतय, छोटन(लोग सलोनी के पति को गांव में इसी नाम से पुकारते है) के नाय हेलय का ?"
"नाय, ओखीन दूयो के बीच तो कुछो हेले नाय हेलय।"
"सेले केज़न घरवा वालीन एकर उसास नाय कर हेल्थिन तो। हाम आब बुझे पारल हियय।"
और बस... ऐसे ही लोग आपस मे बातें करते और बनाते रहे।
सच को ना कहने से शक पैदा होता है। शक को दूर ना करने से गलतफहमी होती है। गलतफहमी में जब बातें बनने लगती है तो अफवाह फैल जाता है। अफवाह की जब चर्चा होने लगती है तो वह किस्सा बन जाता है। फिर उस किस्से का लोग कहानी बना देते हैं। और फिर वह कहानी अगर कोई सामने खड़े इंसान से जुड़ा हो तो लोग इसे सच मानने लगते है। जितनी बातें हुई, सब सलोनी के पीठ पीछे हुई, किसी ने सलोनी से बात नहीं की। सलोनी के कानो तक जब बातें आती तो वो भी कोई सफाई नहीं देती। और अब तक पानी सिर के ऊपर जा चुका था। रात में ही कुछ लोग घर आए, हंगामा किए कि वो ऐसी किसी औरत को गांव में नहीं रहने देंगे जो पराया मर्द के साथ संबंध बनाती है, उसका पाप अपने कोंक में रखकर गांव में घूमती है, और जिसके शकल पर अपने किए का ना कोई शर्म है और ना कोई पछतावा। उस पंचायती में उसकी सास बोली, "जेकर पास छौआ लय के गेल हेले ओकरे पास रइह काहे नाय गेले ?"
उसकी ननंद उसकी सास को चढ़ाने के लिए बोली, "एकरा नाय राखले हेतय तो। भगाय देल हेतय।"
लोग बोले कि वो अगर सलोनी को समाज में जगह देंगे तो उनके घरों की भी बहु बेटियों की मानसिकता खराब होगी और फिर वो भी गलत-शलत काम करेंगी। फिर लोगों की बातों को सुनकर सलोनी का पति भी उसे अपने पास नहीं रखने के लिए चाहने लगा, उसे घर निकाल देने लगा। पर पंचायती में बाद में आए कुछ बुजुर्ग उन्हें दबाए कि "ई पहर राइत के कहां जइतय ?"
फिर अंत में यह सबके सामने माना गया कि आज रात तक वह अपने ससुराल में रुक सकती है, पर कल सुबह होते ही अपने बाप घर चली जाए।
सलोनी घर के बाहर वही चौखट के पास बैठकर रोने लगी और सभी लोग उसे अकेला छोड़कर चले गए। सलोनी रोने लगी कि अब वो कहां जाए, उसका कौन घर बचा, उसके माता-पिता तो उसे पहले ही बोझ समझ कर यहां इस घर में बांध दिए थे, और अब वो इस घर से भी निकली जा रही है। अगर वो कहीं जाकर रहेगी भी तो कहां रहेगी, कुछ करेगी भी तो किसके लिए करेगी, अगर जीयेगी भी तो वह अब किसके लिए जीयेगी ? वह अपनी बच्ची को भी अनाथालय में छोड़ आई थी। मौसम तो बारिश का था ही, रात में भी बारिश हुई थी और सुबह सलोनी के hospital जाने के बाद भी बारिश हुई थी। ऐसे मौसम में अक्सर मिट्टी के नीचे रहने वाले कई जीव-जंतु अपने बिल से बाहर निकल आते हैं। एक रेंगता हुआ सांप सलोनी के कपड़ों में महकते उसके खून के गंध को सूंघता हुआ आया। जब वह सलोनी के पांव को छुआ तो सलोनी घबराकर बैठे-बैठे ही हड़बड़ाई, और उसी सांप के ऊपर गिर गई। जिससे सलोनी के शरीर से सांप का आधा शरीर दब गया। सांप भी अपने मौत के डर से सलोनी को काट लिया। और इन दोनों की हड़बड़ाहट में सांप सलोनी को कई और जगह काट लिया। फिर जैसे-जैसे सलोनी का शरीर सुन्न पड़ता गया, सांप धीरे से खिसक कर वहां से निकल गया। जब सुबह हुआ, तो सभी सलोनी को उसी जगह पाए जहां वो रात को उसे रोता हुआ छोड़कर गए थे, ज़हर से शरीर नीला पड़ा हुआ, मरा हुआ।
• इसके माध्यम से यह भी बताने की कोशिश की गई है कि जिन लड़कियों के बारे में यह अफवाह भी अगर उड़ा हो कि वह घर से भागी है, उनका life किस हद तक बुरा हो सकता है।
• हर किसी का life एक जैसा नहीं होता है, इसलिए हमेशा अपने life के साथ compare ना करें।
• Parents are not always right. Their intention are never wrong, but they're not always right.
• I hope, कि मुझसे नफरत करने वाले या मेरा बुरा चाहने वाले इंसान के साथ भी ऐसा ना हो, ना उसे भी ऐसा कुछ कभी देखना पड़े।
Story by AnAlone Krishna.
Written on 4th May(started) - 12th May(finished), 2025 A.D.
Published on 13th May, 2025 A.D.
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Comments
• क्या सलोनी खुद अपने से जुड़े अफवाहों की पुष्टि करती है ?----नही
• क्या आपने भी सलोनी के समाज के लोगों की बातों को ही सलोनी के अतीत का सच मान लिया है ?----नही
• आप कैसे व्यक्तित्व के इंसान हो, समाज में चल रही लोगों की बातों पर आँख मूंदकर यकीन कर लेने वाले या जिसके बारे में अफवाह चल रही हो उस इंसान का पक्ष जानकर उसे समझने के बाद अपनी खुद की अलग राय बनाने वाल ?---- depending on कौन बोल रहे है और matter क्या है, but ek prayashi apne aster se v janne ka rhta hai