● आखिरी ख़्वाहिश ● हिंदी कविता

● आखिरी ख़्वाहिश ● (जिससे दिल को लगता हो कि उसका अधूरापन पूरा हो सकता है, उस आखिरी ख़्वाहिश को भी खोने के अहसास में) By AnAlone Krishna ● आखिरी ख़्वाहिश ● हां, गलतियां कई की थी मैंने पहले। मगर तू, तू मेरे दिल की आखिरी फरमाइश थी। तुम्हें चाहना मेरे दिल की गलती नहीं, तू मेरी सोची-समझी ख्वाहिश थी॥ हां, भटकता रहा है यह दिल कईयों की चौखट पर। मगर यह तेरे दर पर आकर हमेशा के लिए ठहरना चाहता था। वह तू ही थी शायद जिसे मैं ढूंढता फिरा पूरा शहर भर। जब ठहर गई मेरी नजरें, तुमसे यह दिल कहना चाहता था॥ हां, गलतियां कई की थी मैंने पहले। मगर तू, तू मेरे दिल की आखिरी फरमाइश थी। तुम्हें चाहना मेरे दिल की गलती नहीं, तू मेरी सोची-समझी ख्वाहिश थी॥ यूं तो हर लम्हा मैं, अधूरा सा रहता था। तुमसे यह दिल मिलने से पहले किसी पर नहीं ठहरता था। उनकी मौजूदगी में भी इस दिल को एक खालिश रहा करती थी सदा। मन भटकता रहता था कहीं और, और द...