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मायूस हो क्यूँ , कृष्ण कुणाल की लिखी कविता

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• मायूस हो क्यूँ • (खोते हुए लोगो के दौर में खुद को संभालते हुए) कृष्ण कुणाल की लिखी कविता ~ मायूस हो क्यूँ ~ वो लम्हे  मुसाफ़िर जी ले तू, जो लम्हे राहों में पा रहा। मंजिल तुम्हें तो मिले न मिले, लोगों से छूटता है जा रहा॥ साख के पत्ते सब झड़ ही जाएंगे, जब पत्ते सारे है सूख गए। नहीं  रहेगा अब तू हर भरा, वो तुमसे अब हैं रुठ गए॥ चंद  लम्हों के थे हमसफ़र वो तेरा, जिनका साथ तुमसे है छूट रहा। यह गुनाह नहीं, हाँ किस्मत है तेरी, जो उनसे रिश्ता है टूट रहा॥ तू देख जरा एक नजर यूं खुद को, क्या तेरी सक्सियत, कौन है तू। क्यूँ सब सहता जा रहा है, फिर भी इतना मौन है तू ? उनकी जिंदगी तुमसे थी, उनका खिलना तुमसे जो था। वो खूबसूरत बनाए जिंदगी को तेरी, उनका जरूरत तुमसे जो था॥ तेरी जैसी है जिंदगी गुजरी, यह समय भी तुझसे सीखा है। तू हरा-भरा था, यह तेरी किस्मत थी, और मुरझाना भी तेरी किस्मत की ही रेखा है॥ -AnAlone Krishna. 08th October '17